• मुखपृष्ठ
  • समालोचन
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
No Result
View All Result
समालोचन

Home » श्रद्धांजलि : सांस्कृतिक आंदोलन के मजबूत योद्धा थे जितेन्द्र रघुवंशी : जसम

श्रद्धांजलि : सांस्कृतिक आंदोलन के मजबूत योद्धा थे जितेन्द्र रघुवंशी : जसम

सलाम/ श्रद्धांजलि          \’कुशल संगठन कर्ता और वाम सांस्कृतिक आंदोलन के योद्धा थे जितेंद्र रघुवंशी\’ जन संस्कृति मंच आगरा : 8 मार्च 2015 अभी लोगों के शरीर से होली का रंग छूट भी नहीं पाया था कि देश के तमाम तरक्कीपसंद संस्कृतिप्रेमियों का कॉमरेड जितेंद्र रघुवंशी से  हमेशा के लिए साथ छूट […]

by arun dev
March 8, 2015
in Uncategorized
A A
फेसबुक पर शेयर करेंट्वीटर पर शेयर करेंव्हाट्सएप्प पर भेजें
सलाम/ श्रद्धांजलि         

\’कुशल संगठन कर्ता और वाम सांस्कृतिक आंदोलन के योद्धा थे जितेंद्र रघुवंशी\’
जन संस्कृति मंच



आगरा : 8 मार्च 2015

अभी लोगों के शरीर से होली का रंग छूट भी नहीं पाया था कि देश के तमाम तरक्कीपसंद संस्कृतिप्रेमियों का कॉमरेड जितेंद्र रघुवंशी से  हमेशा के लिए साथ छूट गया. 63 वर्ष की उम्र में 7 मार्च की सुबह ही उनका स्वाइन फ्लू के कारण दिल्ली  स्थित सफदरजंग अस्पताल में निधन हो गया.  पिछले साल ही जून माह में आगरा विश्वविद्यालय के के.एम.इन्स्टीट्यूट के विदेशी भाषा विभाग प्रमुख के पद से 30 साल की सेवा के उपरांत उन्होंने अवकाश प्राप्त किया था. अभी वे लिखने-पढ़ने और हिन्दी क्षेत्र में सांस्कृतिक आंदोलन के विकास को लेकर कई योजनाओं पर काम कर रहे थे. उनके निधन की खबर से देश भर के साहित्य-कला प्रेमी लोकतान्त्रिक जमात को जबर्दस्त आघात लगा है. वे अपने पीछे पत्नी, पुत्री और दो बेटों का भरा-पूरा परिवार छोडकर हमेशा के लिए हमसे विदा हो गए.
13 सितंबर 1951 को आगरा में पैदा हुए श्री जितेंद्र रघुवंशी की शिक्षा-दीक्षा आगरा में ही हुई. यहीं के. एम. इंस्टीट्यूट से हिन्दी से परास्नातक की उपाधि हासिल करने के बाद उन्होंने अनुवाद और रूसी भाषा में डिप्लोमा भी किया. बाद में लेनिनग्राद विश्वविद्यालय से (सेंट पीटर्सबर्ग) रूसी भाषा में एम.ए. किया. उन्होंने तुलनात्मक साहित्य में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की थी. पिता राजेन्द्र रघुवंशी और माँ अरुणा रघुवंशी के सानिध्य में प्रगतिशील साहित्य संस्कृति के साथ बचपन से ही उनका संपर्क हो गया था. पिता राजेन्द्र रघुवंशी इप्टा आंदोलन के सूत्रधारों में से एक थे. कॉमरेड जितेंद्र रघुवंशी आजीवन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य रहे. थियेटर को उन्होंने अपने सांस्कृतिक कर्म के बतौर स्वीकार किया.  1968 से इप्टा के नाटकों में अभिनय, लेखन, निर्देशन आदि के क्षेत्र में वे सक्रिय हुए. एम.एस. सथ्यू द्वारा निर्देशित देश विभाजन पर आधारित बेहद महत्त्वपूर्ण फिल्म ‘गरम हवा’ में उन्होंने अभिनय किया. राजेन्द्र यादव के ‘सारा आकाश’ पर बनी फिल्म के निर्माण में सहयोग दिया. ग्लैमर की दुनिया  में वे  बहुत आसानी से जा सकते थे पर उसके बजाए उन्होंने अपनी प्रतिबद्धता हिन्दी क्षेत्र में सांस्कृतिक आंदोलन के निर्माण के प्रति जाहिर की. अभी वे भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तरप्रदेश के अध्यक्ष थे.

जितेंद्र जी का मुख्य कार्यक्षेत्र भले ही नाटक और थियेटर रहा हो पर मूलतः वे एक कहानीकार थे. आजादी आंदोलन के प्रमुख कम्युनिस्ट कार्यकर्ता राम सिंह के जीवन पर आधारित उनकी एक कहानी काफी चर्चित हुई थी. इसके अलावा \’लाल सूरज\’, \’लाल टेलीफोन\’ जैसी कहानियों के शीर्षक इस बाद के गवाह हैं कि वे लाल रंग को चहुँओर फैलते देखना चाहते थे. उनके द्वारा लिखे कुछ प्रमुख नाटक ‘बिजुके’, ‘जागते रहो’ और ‘टोकियो का बाजार’ है. अभी मृत्यु से कुछ दिन पूर्व आकाशवाणी आगरा से उनकी एक कहानी का प्रसारण किया गया था और आगरा महोत्सव के दौरान 23 फरवरी को प्रेमचंद की कहानियों पर आधारित नाट्यप्रस्तुति ‘रंग सरोवर’ का मंचन हुआ था. इससे यह आसानी से समझा जा सकता है कि मृत्यु के ठीक पहले तक वे किस तरह प्रतिबद्ध और सक्रिय थे. आगरा में किसी भी प्रगतिशील सांस्कृतिक आयोजन की संकल्पना उनको शामिल किए बगैर नामुमकिन थी. वे युवाओं के लिए एक सच्चे रहनुमा थे. 2012 में आगरा में हुए रामविलास शर्मा जन्मशती आयोजन समिति के सलाहकार के रूप में उनके अनुभव का लाभ इस शहर को प्राप्त हुआ. हर साल होने वाले आगरा महोत्सव के सांस्कृतिक समिति के वे स्थाई सदस्य थे. इसके अलावा शहीद भगत सिंह स्मारक समिति, नागरी प्रचारिणी सभा, आगरा, बज़्मे नजीर, यादगारे आगरा, प्रगतिशील लेखक संघ आदि से भी उनका जुड़ाव रहा. आगरा में वे हर साल वसंत के महीने में नजीर मेले का आयोजन कराते थे और हर गर्मी में बच्चों के लिए करीब एक माह की नाट्यकार्यशाला नियमित तौर पर कराते  थे. 1990 के बाद देश के भीतर सांप्रदायिक राजनीति के उभार के दिनों में उनके भीतर का कुशल संगठनकर्ता अपने पूरे तेज के साथ निखर कर सामने आया. इप्टा द्वारा इसी दौर में कबीर यात्रा, वामिक जौनपुरी सांस्कृतिक यात्रा, आगरा से दिल्ली तक नजीर सद्भावना यात्रा, लखनऊ से अयोध्या तक जन-जागरण यात्रा आदि का आयोजन किया गया. उनका वैचारिक निर्देशन और उनकी सांस्कृतिक दृष्टि ही इस पूरी योजना के केंद्र में थी.

वे लेखक संगठनों की स्वायत्तता, विचारधारात्मक प्रतिबद्धता और सांस्कृतिक संगठनों की जरूरत और भूमिका को नया आयाम देने वाले चिंतक भी थे. लेखकों की आपेक्षिक स्वायत्तता के हामी होने के बावजूद वे यह मानते थे कि

‘‘अब यह तो उसे (लेखक को) ही तय करना है कि वह नितांत व्यक्तिगत स्वतन्त्रता चाहता है या सामाजिक स्वतन्त्रता. सामाजिक स्वतन्त्रता की जंग सामूहिक रूप से ही लड़ी जा सकती है. सामूहिकता के लिए संगठन अनिवार्य है. अब संगठन का न्यूनतम अनुशासन तो मानना ही होगा. ऐसे लेखक तो हैं और रहेंगे, जिन्हें एक समय के बाद लगता है कि उनका आकार संगठन से बड़ा है. वे अपनी ‘स्वतन्त्रता’ का उपयोग करें लेकिन अपने अतीत को न गरियाएँ.’’ वैचारिक भिन्नता का सम्मान करते हुए भी सांस्कृतिक कार्यवाहियों के लिए एकता का रास्ता तलाश लेने वाले ऐसे कुशल संगठनकर्ता की आकस्मिक मृत्यु से हिन्दी क्षेत्र में वाम सांस्कृतिक आंदोलन को ऐसी क्षति हुई है जिसकी भरपाई निकट भविष्य में संभव नहीं दिखती. वे आखिरी दम तक प्रतिबद्ध मार्क्सवादी सांस्कृतिक योद्धा रहे. विचारधारात्मक दृढ़ता और समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष भारत का स्वप्न देखते हुए वामपंथी सांस्कृतिक आंदोलन के लिए जो जमीन छोडकर कॉ. जितेंद्र रघुवंशी चले गए हैं उस पर नए दौर में नई फसल की तैयारी ही उनके प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी. जन संस्कृति मंच एक सच्चे कम्युनिस्ट, क्रांतिकारी संगठनकर्ता  और सांस्कृतिक आंदोलन के मजबूत योद्धा को क्रांतिकारी सलाम पेश करता है.


जन संस्कृति मंच की ओर से राष्ट्रीय सहसचिव प्रेमशंकर द्वारा जारी
premss24@gmail.com
ShareTweetSend
Previous Post

बात – बेबात : जोगीरे .. : आचार्य रामपलट दास

Next Post

सबद भेद : आचरण पुस्तकें और स्त्रियाँ : गरिमा श्रीवास्तव

Related Posts

केसव सुनहु प्रबीन : रबि प्रकाश
समीक्षा

केसव सुनहु प्रबीन : रबि प्रकाश

ख़लील : तनुज सोलंकी
कथा

ख़लील : तनुज सोलंकी

जाति, गणना और इतिहास : गोविन्द निषाद
समाज

जाति, गणना और इतिहास : गोविन्द निषाद

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

समालोचन

समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

  • Privacy Policy
  • Disclaimer

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum

No Result
View All Result
  • समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • आलोचना
    • आलेख
    • अनुवाद
    • समीक्षा
    • आत्म
  • कला
    • पेंटिंग
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • शिल्प
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • संपर्क और सहयोग
  • वैधानिक