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Home » सहजि सहजि गुन रमैं : परमेश्वर फुंकवाल

सहजि सहजि गुन रमैं : परमेश्वर फुंकवाल

पेंटिग कुंवर रवीन्द्र परमेश्वर फुंकवाल गीतात्मक संवेदना के कवि हैं. लगाव के बिसरे भूले-क्षण और अलगाव की चुभती- टीसती यादें उनकी कविताओं में जब तब उभर आती हैं. एक कविता रेल से कट गए एक बूढ़े पर है जिसके मुआवज़े के लिए पूरा घर तैयार है पर उसे घर में रखने के लिए तैयार नहीं […]

by arun dev
December 10, 2014
in Uncategorized
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पेंटिग कुंवर रवीन्द्र

परमेश्वर फुंकवाल गीतात्मक संवेदना के कवि हैं. लगाव के बिसरे भूले-क्षण और अलगाव की चुभती- टीसती यादें उनकी कविताओं में जब तब उभर आती हैं. एक कविता रेल से कट गए एक बूढ़े पर है जिसके मुआवज़े के लिए पूरा घर तैयार है पर उसे घर में रखने के लिए तैयार नहीं था.
 परमेश्वर फुंकवाल की कविताएँ                        
वैसे ही
हम जो पुल पार करने को खड़े हैं 
वे कांपते हैं
तेज़ हवाओं में
कदमों को तोड़कर चलने से ही बचे रहेगे ये पुल
अनुशासन हर जगह नहीं बचाता हमें
कभी कभी एक जोर का ठहाका ही
काफी होता है
कभी जंगल में खिले बेतरतीब फूल
कभी कभी
रात के दो बजे
तुम्हारा फोन
कुछ शब्द हमें वैसे ही कहने होंगे
जैसे वे आये थे हमारी सोच में
बिना किये किसी की फ़िक्र
बिना किये सुबह होने की प्रतीक्षा.. 
दूरी
मुरझा कर गिरे जाते हैं फूल
चिड़ियों के पंख
थकान से रिस चले हैं
पुल के पार
दिन डूबता हुआ
शहर को समेट रहा है
एक चिट्ठी आज भी मेरी जेब में
रखी रखी मुड़ती गयी
इस तरह बस उम्मीद में चलते रहना है
कोई कहे भी कि
लौट आओ
तो संभव न हो सके
उसे सुन पाना.
तैय्यारी
झींगुर हावी हो रहे हैं
घड़ी की टिक टिक पर
रसोईघर से बर्तनों की आवाज़
कब की बह गयी
दिन के सारे बुलेटिन
ऑटो मोड में चलाकर सो गए हैं
चौबीस घंटे खबर देने वाले
एक स्वप्न दूर किसी तारे से गले मिलकर
रोशनी की एक किरण की तरह
खिड़की की झिरी से आकर दिमाग को
टटोल रहा है
एक उचाट नींद को 
रात भर रखता हूँ सिरहाने
फिर उतरने लगता है
चेहरे से अन्धकार का सूखा लेप
झुर्रियों से दगा कर
तैयार होता हूँ कुछ इस तरह
तुम्हारे बिना
एक पूरा दिन बिताने को.
सरयू का जल
पूरे होश में कहा था
प्रेम है तुमसे
अब होश संभाल कर रखता हूँ शब्द
उनके सारे संभावित अर्थों की आशंकाओं को तौल तौल कर
परिचय की हदों से लौट आती है नज़र
क्या मैं जानता न था प्रेम
कि तुम्हे
या फिर अपने आप को
झुठलाता हूँ सब कुछ
तपती रेत के पनीले दृश्य मानकर  
दो फूल किनारे से मुझे देखते हैं अपलक
बरसती बूंदों की टप टप में
सुनता हूँ आहट
तुम्हारे लौट जाने की
चढ़ता हुआ पानी अब सांस में घुल रहा है.
मुआवजा
वह लड़कर आया था
आया क्या था लगभग निकाल दिया गया था
सत्तर के ऊपर घर में वह आता भी किस काम
सोच की घनी बेलों में उलझा 
सिद्धपुर स्टेशन के बाहर
पटरी पर लेट गया
डेमू के ड्राईवर ने हॉर्न मारा
फिर ब्रेक
फिर भी देर हो चुकी थी
१०८ उसे उठा कर ले गयी
जिन पैरों ने एक एक ईंट को
घर की नींव और दीवार में रखा था
वे गिट्टी पर पड़े थे
उसके प्राण अस्पताल नहीं पहुँच सके
रेल पर चार लाख के मुआवजे के लिए
अब मुकदमा है
जिसकी पेशी पर जाने के लिए
घर सुबह से तैयार है.
______________________
  
परमेश्वर  फुंकवाल
16 अगस्त 1967

आई आई टी कानपुर से सिविल इंजीनियरिंग में परास्नातक

परिकथा, यात्रा, समालोचन, अनुनाद, अनुभूति, आपका साथ साथ फूलों का, लेखनी, नवगीत की पाठशाला, नव्या, पूर्वाभास, विधान केशरी में रचनाओं का प्रकाशन. कविता शतक में नवगीत संकलित.
पश्चिम रेलवे अहमदाबाद में अपर मंडल रेल प्रबंधक
pfunkwal@hotmail.com
_______

प्रख्यात चित्रकार कुंवर रवीन्द्र के अब तक लगभग सत्रह  हज़ार रेखांकन और चित्र प्रकाशित हो चुके हैं.

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