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Home » सहजि सहजि गुन रमैं : लीना मल्होत्रा राव

सहजि सहजि गुन रमैं : लीना मल्होत्रा राव

लीना मल्होत्रा राव :जन्म : ३ अक्टूबर १९६८, गुडगाँव कविताएँ, लेख पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशितनाट्य लेखन, रंगमंच अभिनय, फिल्मों और धारावाहिकों के लिए स्क्रिप्ट लेखनविजय तेंदुलकर, लेख टंडन, नरेश मल्होत्रा. सचिन भौमिक, सुभाष घई के साथ  काम किया है अपनी फ़िल्म सिस्टर्स के निर्माण और निर्देशन में व्यस्तदिल्ली में सरकारी नौकरी ई पता :  leena3malhotra@gmail.com लीना की कविताएँ समय […]

by arun dev
August 21, 2011
in Uncategorized
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लीना मल्होत्रा राव :
जन्म : ३ अक्टूबर १९६८, गुडगाँव 


कविताएँ, लेख पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित
नाट्य लेखन, रंगमंच अभिनय, फिल्मों और धारावाहिकों के लिए स्क्रिप्ट लेखन
विजय तेंदुलकर, लेख टंडन, नरेश मल्होत्रा. सचिन भौमिक, सुभाष घई के साथ  काम किया है 
अपनी फ़िल्म सिस्टर्स के निर्माण और निर्देशन में व्यस्त


दिल्ली में सरकारी नौकरी 
ई पता :  leena3malhotra@gmail.com


लीना की कविताएँ समय और स्त्री के सच पर किसी गद्यात्मक टिप्पणी की तरह अनावृत्त नहीं होती. उनके पास कहन की जो प्रविधि है वह अनुभूति को उसकी सांद्रता में व्यक्त करती है, कुछ इस तरह की उसका असर गहरे जाता है. मिथक इन कविताओं में कायान्तरण करते हैं और अर्थ का दूर तक विस्तार भी करते हैं. लीना के पास एक हठीला प्रेम है, चोटिल पर अविजित, जो अंततः अंतिम शरणस्थली की तरह हर जगह उपस्थित है. ये कविताएँ हिंदी कविता के परिचित परिसर से भी बाहर जाती हैं, ‘शब्द के बेलगाम घोड़े पर सवार’.   

 






















मकबूल फिदा  हुसैन 
चाँद पर निर्वासन 
मोहनजोदड़ो के सार्वजानिक स्नानागार में एक स्त्री स्नान कर रही है 
प्रसव के बाद का प्रथम  स्नान 
सीढ़ियों पर बैठ कर देख रहे हैं ईसा, मुहम्मद, कृष्ण,  मूसा और ३३ करोड़ देवी देवता 
उसका चेहरा दुर्गा से मिलता है 
कोख मरियम से 
उसके चेहरे का नूर जिब्राइल  जैसा है 
उसने  जन्म दिया है  एक बच्चे को 
जिसका चेहरा एडम जैसा, आँखे आदम जैसी, और हाथ मनु जैसे हैं 
यह तुम्हारा पुनर्जन्म है  हुसैन 
तुम आँखों में अनगिनत रंग लिए उतरे हो  इस धरती पर
इस बार  निर्वासित कर दिए जाने के लिए 
चाँद पर 
तुम वहां जी लोगे 
क्योंकि  रंग ही तो  तुम्हारी आक्सीजन है 
और तुम अपने रंगों का निर्माण खुद कर सकते हो 
वहां बैठे तुम कैसे भी चित्र बना सकते हो 
वहां की बर्फ के नीचे दबे हैं अभी देश काल और धर्म
रस्सी का एक सिरा ईश्वर  के हाथ में है हुसैन
और  दूसरा धरती पर गिरता है
अभी चाँद ईश्वर कि पहुँच  से मुक्त है
और अभी तक धर्मनिरपेक्ष है 
वह ढीठौला 
ईद में शामिल, दीवाली में नदारद
वह मनचला करवा चौथ पर उतरता है हर स्त्री इंतज़ार में
सुंदरियों पर उसकी  आसक्ति तुम्हारी ईर्ष्या  का कारण न बन जाए कहीं …
हुसैन
चाँद पर बैठी बुढ़िया ने इतना कपडा कात दिया है 
कि  कबीर  जुलाहा 
बनायेगा उससे कपडा तुम्हारे कैनवास के लिए
और धरती की इस दीर्घा से हम देखेंगे तुम्हारा सबसे शानदार चित्र 
और तुम तो जानते हो चाँद को देखना सिर्फ हमारी मजबूरी नही चाहत भी है. 
तुम्हारा चाँद पर निर्वासन
शुभ हो !
मंगल हो!
साक्षात्कार
शब्द के बेलगाम  घोड़े पर सवार
हर सितारे को एक टापू की तरह टापते हुए मै
घूम आई हूँ इस विस्तार में
जहाँ  पदार्थ सिर्फ ध्वनि मात्र थे
और पकड़ के लटक जाने का कोई साधन नही था
एक चिर निद्रा में डूबे स्वप्न की तरह स्वीकृत
तर्कहीन, कारणहीन ध्वनि
जो डूबी भी थी तिरती भी थी
अंतस में थी बाहर भी
इस पूरे
तारामंडल ग्रहमंडल सूर्यलोक और अन्तरिक्ष में
जिसे न सिर्फ सुना जा सकता है
बल्कि देखा जा सकता है
असंख्य असंख्य आँखों से
और पकड़ में नहीं आती थी
अनियंत्रित, अनतिक्र्मित और पीत-वर्णी  अनहुई आवाज़
क्या वह ध्वनि  मै ही थी ?
और वह शब्द का घोडा तरल हवा सा
जो अंधड़ था या ज्वार
जो बहता भी था उड़ता भी था
चक्र भी था सैलाब भी
और यह आकाश जो खाली न था रीता न था
फक्कड़ न था
था ओजस्वी पावन
तारों का पिता
उड़ते थे तारे आकाश सब मिलजुल कर
वह दृश्य दृष्टा और दृशेय मै ही थी….!!!
भयानक था…
परीक्षा का समय
आनंद से पहले की घडी
क्या वह मै ही थी
इस उजियारे अँधेरे जगत में फैली
एक   कविता  …
क्या वह शब्द मै ही थी.
मुक्ति 
तुम्हारी नजर जब अपनी आँखे छोड़ के मेरी आँखों तक पहुँचती है
तो रास्ते का कोई अवरोध उसे रोक नहीं पाता
बिना व्यवधान कूद लगाती है मेरी आँखों में और
हिमालय की चोटी की स्लाईड  से फिसलते हुए
गिरती है सीधा मेरे दिल पर.
तभी एक ध्यान घटित होता है
एक निर्दोष  झूम उठती है
आवारा आत्मा सिर झुकाए शामिल होती है इन नर्तकों की टोली में
कुछ संभावित ध्वनियाँ बिना जन्म  लिए
इस सृष्टि में फैले  नाद में घुल मिल जाती  हैं
और मै उड़ने लगती हूँ मुक्त होकर.
आज मैं संहारक हूँ.
कि  आज मेरे पास मत आना 
मैं  प्रचंड वायु 
आज तूफ़ान  में तब्दील हो रही हूँ..
निकल जाना चाहती हूँ
आज दंडकारन्य  के घने जंगलों में
कुछ नए पत्तों की  तलाश में जिनसे सहला सकूँ  अपनी देह
जो मेरे झंझावत  में फंस कर निरीह होकर उड़े मेरी ही गति से 
अपनी सारी इच्छाएं जिन्हें जलाकर धुएं में  उड़ा देती थी मैं 
आज बहुत वेग में उड़ा ले चली हैं मुझे  
समय की परिधि से परे 
मनु की नौका की पाल मैंने खोल दी है  
और जोड़ो में बचाए उसके बीजो को नष्ट कर दिया है मैंने 
मनु मै आज  उसी  मछली की  ताकत हूँ  जिसके सींग से बाँधी थी नौका तूने
तेरे  चुने  शेष बचे एक बीज को अस्वीकार करती हूँ मैं 
जाओ आविष्कार करो नए विकल्पों का नए बीजो का 
मेरी इन्द्रियों को थामे हुए सातो घोड़े बेलगाम हो गये हैं 
और मैं अनथक भागती हूँ 
अपने दुस्साहस  के पहिये पर 
किसी ऐसे पहाड़  से टकराने के लिए जिसे चूर करके मैं अपने सौन्दर्य  की  नई परिभाषाये गढ़ लूं 
या जो थाम सके  मुझे
ओ सामान्य पुरुष ! तू हट जाना मेरे रास्ते में मत आना !
मैं एक कुलटा हवा भागती फिर रही हूँ चक्रवात सी 
सब रौंद  कर बढती हूँ आगे 
तेरी चौखट 
तेरी बेड़ियाँ 
तेरे बंद कमरे
बुझा दी है सुलगन अग्नि कुण्ड की
उड़ा के ले चली हूँ राख   
आज मैं संहारक  हूँ 
ओ मेरे हत्यारे
ओ मेरे हत्यारे-
मेरी हत्या के बाद भी 
जबकि मर जाना चाहिए था मुझे
निर्लिप्त हो जाना चाहिए था मेरी देह को
उखड जाना चाहिए था मेरी साँसों को 
शेष हो जाना चाहिए था मेरी भावनाओं  को 
मेरे मन का लाक्षाग्रह धू धू करके जलता रहा 
मेरी उत्तप्त, देह संताप के अनगिनत युग जी गई 
क्योंकि धडकनों के ठीक नीचे वह पल धडकता रहा
प्रेम का 
जो जी चुकी हूँ मैं
वही एक पल 
जिसने जीवन को खाली कर दिया 
समझ लो तुम 
नैतिकता अनैतिकता से नही
विस्फोटक  प्रश्नों
न ही तर्कों वितर्को से 
न
तुमसे भी नहीं 
डरता है प्रेम
अपने ही होने से …
वह बस एक ही पल का चमत्कार था
जब पृथ्वी पागल होकर दौड़ पड़ी थी अपनी कक्षा में
और तारे उद्दीप्त होकर चमकने लगे थे 
करोड़ो साल पहले …
और जल रहीं है उनकी आत्माए
उसी प्रेम के इकलौते क्षण की स्मृति  में टंगी हुई आसमान में
और शून्य बजता है सांय सांय.

 





















मकबूल फिदा हुसैन 


एक माँ की प्रार्थना

प्यार होगा तो दर्द भी होगा
सफ़र होगा
तो होंगी रुकावटें भी
साथी होगा तो यादें होंगी
कुछ मधुर तो कुछ कडवी बाते भी होंगी
उड़ान होगी तो थकान होगी
सपने होंगे तो सच से दूरियां होंगी ;

मेरी बेटी
तुम्हारे नए सफ़र के शुरुआत में
क्या शिक्षा दूं तुम्हें —

प्यार मत करना – दर्द मिलेगा ,
सफ़र मत करना – कांटे होंगे ,
साथी मत चुनना – कडवी यादे दुःख देंगी
उड़ान मत भरना – थक जाओगी
इस दर्द से कांटो से आसुओं से भीगे रास्ते मत चुनना ,
मेरे ये डर कहीं तुम्हारे संकल्प को छोटा न कर दें
इसलिए
प्रार्थना में मैंने आखें मूँद ली है
और उन तैंतीस करोड़ देवी देवताओं का आह्वान किया है –

हे बाधाओं के देवता –
मैं तुम्हे बता दूं
कि वह बहुत से खेल इसलिए नहीं खेलती के हारने से डरती है
तुम ध्यान रखना कि
कोई बाधा इतनी बड़ी न हो
जो उसके जीतने के हौसले को पस्त कर दे
तुम उसे सिर्फ इतनी ही मुसीबतें देना
जिन्हें पार करके
वह विजयी महसूस करे
और
उसकी यह उपलब्धि
उसके सफ़र में एक नया उत्साह भर दे.

हे सपनो के देवता –
वह बहुत महंगे सपने देखती है
उसके सपनो में तुम सच्चाई का रंग
भरते रहना
ताकि
जब वह अपने सपनो कि नींद से जगे तो
सच उसे सपने जैसा ही लगे.

हे सच्चाई के देवता –
हर सच का कड़वा होना ज़रूरी नहीं है
इसलिए मेरी प्रार्थना स्वीकार करना
उसके जीवन के सच में
कडवाहट मत घोलना.

हे प्रेम के देवता –
मै तुम्हे आगाह कर दूं
कि
वह तुम्हारे साधारण साधकों कि तरह नहीं है
जो लफ्जों के आदान प्रदान के प्रेम से संतुष्ट हो जाए
वह असाधारण प्रतिभाओं कि स्वामिनी है
वह जिसे चाहेगी टूट कर चाहेगी ;
और समय का मापदंड उसके प्रेम की कसौटी कभी नहीं हो सकता
पल दो पल में
वह पूरी उम्र जीने की क्षमता रखती है
और
चार कदम का साथ काफी है
उसकी तमाम उम्र के सफ़र के लिए ;
इसलिए
उसके लिए
अपने लोक के
सबसे असाधारण प्रेमी को बचा कर रखना
जो लफ़्ज़ों में नहीं
बल्कि अपनी नज़रों से लग्न मन्त्र कहने की क्षमता रखता हो
और
जो उसके टूट के चाहने के लायक हो;

हे जल के स्वामी –
उसके भीतर एक विरहिणी छिपी सो रही है
जब रिक्तता उसके जीवन को घेर ले
और
वह अभिशप्त प्रेमी जिसे उसे धोखा देने का श्राप मिला है
जब उसे अकेला छोड़ दे
उस घडी
तुम अपने जल का सारा प्रवाह मोड़ लेना
वर्ना तुम्हारा क्षीर सागर
उसके आंसुओं में बह जाएगा
और तुम खाली पड़े रहोगे –
बाद में मत कहना कि मैंने तुम्हे बताया नहीं

हे दंड के अधिपति –
तुम्हे शायद
कई कई बार
उसके लिए निर्णय लेना पड़े I
क्योंकि वह काफी बार गलती करती है
लेकिन मै तुम्हे चेता दूं कि बहुत कठोर मत बने रहना
क्योंकि तुम्हारा कोई भी कठोर दंड
उसके लिए एक चुनौती ही बन जायेगा
तुम्हारे दंड कि सार्थकता
अगर इसी में है
कि
उसे
उसकी गलती का अहसास हो तो
तो थोड़े कोमल बने रहना
एक मौन दृष्टि
और
एक पल का विराम काफी है
उसे उसकी गलती का बोध कराने के लिए I

हे घृणा के देवता –
तुम तो छूट जाना
पीछे रह जाना
इस सफ़र में उसके साथ मत जाना
मै नहीं चाहती
कि किसी से बदला लेने कि खातिर
वह
अपने जीवन के कीमती वर्ष नष्ट कर दे

हे जगत कि अधिष्ठानी माता
तुम्हारी ज़रुरत मुझे उस समय पड़ेगी
जब वह थकने लगे
और उसे लगने लगे कि यह रास्ता अब कभी ख़त्म नहीं होगा
उसके क़दम जब वापसी की राह पर मुड जाएँ
और वह थक कर लौट आना चाहे
उस समय
तुम अपनी जादुई शक्तियों से
दिशाओं को विपरीत कर देना
और
अपने सारे जगत की चिंता फ़िक्र छोड़कर
मेरा रूप धारण कर लेना
और उसे अपने आँचल में दुबका कर
उसकी सारी थकान सोख लेना
और बस इतना ही नहीं
उसकी पूरी कहानी सुनना
चाहे वह कितनी ही लम्बी क्यों न हो
और हाँ !
उसकी गलतियों पर मुस्कुराना
मत वरना वह बुरा माँ जायेगी
और
तुम्हे
कुछ नहीं बताएगी
जब उसकी आँखों में तुम्हे एक आकाश दिखने लगे
और होंठ मौन धारण कर लें
और उसकी एकाग्रता उसे एकाकी कर दे
तब तुम समझ जाना
कि
वह लक्ष्य में तल्लीन होकर चलने के लिए तत्पर है
तब
तुम चुप चाप चली आना
मै जानती हूँ कि वह
अब
तब तक चलेगी जब तक उसकी मंजिल उसे मिल नहीं जाती

जाओ बेटी
अब तुम अपना सफ़र प्रारंभ कर सकती हो
तुम्हारी
यात्रा शुभ हो
मंगलमय हो.

:::::

   

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