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Home » ग़ज़ल : श्याम बिहारी श्यामल

ग़ज़ल : श्याम बिहारी श्यामल

श्‍याम बिहारी श्‍यामल पत्रकार हैं. उपन्यास प्रकाशित हुए हैं. महाकवि जयशंकर प्रसाद के जीवन और उनके युग पर आधारित उनके उपन्यास की प्रतीक्षा है. ग़ज़लें भी लिखते हैं. पेश है पांच ग़ज़लें. श्‍याम बिहारी श्‍यामल की ग़ज़लें   II एक II कहीं और कली कोई खिलती नहीं मिली दूरबीनें थक गईं दूसरी धरती नहीं मिली लाखों […]

by arun dev
August 30, 2017
in Uncategorized
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श्‍याम बिहारी श्‍यामल पत्रकार हैं. उपन्यास प्रकाशित हुए हैं. महाकवि जयशंकर प्रसाद के जीवन और उनके युग पर आधारित उनके उपन्यास की प्रतीक्षा है. ग़ज़लें भी लिखते हैं. पेश है पांच ग़ज़लें. 







श्‍याम बिहारी श्‍यामल की ग़ज़लें  

II एक II
कहीं और कली कोई खिलती नहीं मिली
दूरबीनें थक गईं दूसरी धरती नहीं मिली
लाखों साल से दिलों को धड़का रहा था
उस चांद की नाड़ी चलती नहीं मिली
जैसा सोचा वैसा ही सूर्ख़ निकला मंगल
लेकिन हवा कोई वहां बहती नहीं मिली
बेहिसाब बड़ा है बेशक ओर-छोर नहीं
उस आसमां की अपनी हस्‍ती नहीं मिली
जाने कब होगी पूरी बेतहाशा यह तलाश
अभी तक तो हवा में बस्‍ती नहीं मिली
श्‍यामल आसपास यह नजारा है कैसा
किसी आंख में ज़मीं बलती नहीं मिली
II दो II
बेमिसाल निशानी है दाम न कर
ताजमहल यह मेरे नाम न कर
ख़ाली हो जाए यह जरूरी नहीं
पैमाना-ए-सहबा तमाम न कर
मुद्दतों बाद सुब्‍ह नसीब हुई है 
जिद न कर इसे शाम न कर
दर्द ओढ़े सोया यहां कोई गज़ीदा
नींद टूट जाए, ऐसा काम न कर
गुमश्‍ता गुमनाम गुमराह है वह
आशिक न कह उसे बदनाम न कर
ख्‍़वाब ख़ुश्‍क नहीं ख्‍़वाहिशें ख़ालिस
श्‍यामल अक़बर कहां सलाम न कर
II तीन II
रोशनी यह कैसी मुकाबिल यहाँ
पलकें उठाना भी मुश्किल यहाँ
ज़मीं पर कभी-कभी नमूदार होते
हलफ़नामे में उनके सारा जहाँ
ताके तो सुब्ह आंखें मूंदते ही शब
ज़माने में मसीहा ऐसा और कहाँ
देखते ही सिहर उठा ताज़महल
कैसा आया है नया शाहजहां
श्यामल चुप रहना मुमकिन अब कहां
खिंचती ही जा रही काली रात जवां
II चार II
हर सांस कैफियत है
मिट्टी ही हैसियत है
चुप्पी तो बयान है
जब शोर सियासत है
यह सुब्ह इन्कलाब है
वह रात रियासत है
जबानों की दुनिया में
लफ़्ज मिल्कियत है
आग को छू ले श्‍यामल
गज़ब मुलायमियत है
II पांच II
महुए की डाली यह पलामू
पलाश की लाली है पलामू
लाह की गज़ब ललौंही दुनिया
कोयल-जल की प्याली पलामू
कनहर राग दामोदर की टेर
अमृत जैसा पानी पलामू
भूमि नीलांबर पीतांबर की
प्यार की राजधानी पलामू
अदब से पेश आ ए वक्त यहाँ
मेदिनी की मथानी यह पलामू
महाप्रभु का जो वृंदावन कभी
फ़िर बने चैतन्य-बानी पलामू
खत्म हो चला धपेलों का खेल
जगा रहा नई जवानी पलामू
हवा हो अब पनसोखों का झुंड
श्यामल सजल कहानी पलामू

________
श्‍याम बिहारी श्‍यामल
20 जनवरी 1965, पलामू के डाल्‍टनगंज (झारखंड)
करीब तीन दशक से लेखन और पत्रकारिता. पहली किताब \’लघुकथाएं अंजुरी भर\’ ( कथाकार सत्‍यनारायण नाटे के साथ साझा संग्रह) 1984 में छपी. 1998 में प्रकाशित उपन्‍यास \’धपेल\’ (पलामू के अकाल की गाथा, राजकमल प्रकाशन) और 2001 में प्रकाशित \’‍अग्निपुरुष\’ (भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध संघर्ष का आख्‍यान, राजकमल पेपरबैक्‍स) चर्चित. 1998 में ही कविता-पुस्तिका \’प्रेम के अकाल में\’ छपी. लंबे अंतराल के बाद 2013 में कहानी संग्रह \’चना चबेना गंग जल\’ (ज्‍योतिपर्व प्रकाशन) से प्रकाशित. दशक भर के श्रम से तैयार नया उपन्‍यास \’कंथा\’ (\’नवनीत\’ में धारावाहिक प्रकाशित, महाकवि जयशंकर प्रसाद के जीवन और उनके युग पर आधारित) प्रकाश्‍य.
संप्रति : मुख्‍य उप संपादक, दैनिक जागरण, वाराणसी (उप्र)
संपर्क नंबर : 09450955978, ई मेल आईडी : shyambiharishyamal1965@gmail.com
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