संदीप सिंह
नोट: यह मेरे दोस्त की डायरी है. चंद रोज पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के पास पटेल चेस्ट में उनके पास जाना हुआ. वे कानपुर जा रहे हैं. यूपी ‘फ़ूड डिपार्टमेंट’ में नौकरी लगी है. 12 साल पहले हम दोनों साथ ही दिल्ली आये थे. 2012 में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में पीएचडी जमा की. 2014 में सेमेस्टर भर के लिए एक कॉलेज में गेस्ट लेक्चरर भी रहे. तबसे बेरोजगार थे. विचारों में लेफ्ट टू सेंटर है, मध्यमार्गी टाइप. उन्होंने मुझसे यह डायरी प्रकाशित करने की कसम ली है.
वे किसी जमाने में विश्वविद्यालय से सटे हुए विजय नगर मुहल्ले में रहा करते थे. तब उन्हें JRF मिला करती थी. यूनिवर्सिटी के लोग जानते होंगे कि रिसर्च के आख़िरी सालों में फ़ेलोशिप बंद हो जाया करती है. परिणामस्वरुप हमारे मित्र की तरह काफी लोगों को विजयनगर के कमरों से पटेल चेस्ट के दड़बों में आना पड़ता है. श्रद्धेय गाइड की अनुकम्पा दृष्टि पहचानने की ऊभ-चूभ में डूबी हमारे मित्र की हसरतों भरी इस डायरी को एक साहित्यिक की डायरी की तर्ज़ पर मैंने ‘एक एडहॉक की डायरी’ का नाम दिया है.
डीयू के गणित से अनभिज्ञ पाठकों के लिए बता दें कि डीयू में तकरीबन 6000 एडहॉक (ठेके पर) शिक्षक हैं. हर चार महीने में इनकी नियुक्ति होती है. इस नियुक्ति के लिए इंटरव्यू लिए जाते हैं. जिसकी दांव-पेंच साल भर चला करती है.
आज मेरा गेस्ट टेन्योर ख़त्म हो गया. मुझे लगता है मैंने ठीक-ठाक ही पढाया. बदमाशों ने दिया भी तो काव्य-शास्त्र का पेपर. स्टाफ रूम में मेरा परफ़ॉर्मेंस ठीक ही था. वो अरोड़ा मैडम तो बहुत मानने लगी थीं. आगे देखो क्या होता है. टीचर इंचार्ज बहुत डिप्लोमैटिक है. साला बोलता कुछ है, करता कुछ है. सोचता हूँ सर (गाइड) से मिल लूं.
सर को फ़ोन किया था. वो कल परिवार सहित शिमला जा रहे हैं. बहुत अच्छे हैं सर. बिना कुछ कहे ही समझ गए. बोल रहे थे चौधरी, इस बार तुम्हारा कुछ करवाएंगे. देखो.
रवीन्द्र कह रहा था वर्कलोड घटने वाला है. नया स्लेबस आने के बाद आधे एडहॉक हटा दिए जायेंगे. मेरा तो दिमाग ख़राब है. क्या करूँगा कुछ समझ नहीं आता. विद्वान बनने का भूत चढ़ा हुआ था. सिविल दे देते तो कम से कम यूपी में हो जाता. ये धोबी के गधे सा हाल तो न होता. सर 20 तारीख तक आयेंगे. फेसबुक पर उनकी शिमला तस्वीरें लाइक कीं.
आज सर का फ़ोन आया था. उनकी नयी किताब आ रही है. प्रकाशन हाउस जाकर फाइनल प्रूफ देखना है. सर को मेरी प्रूफरीडिंग पर बड़ा भरोसा है. कहते हैं चौधरी तुम रोशन निगाहों से पढ़ते हो. अब कैसे बताऊँ कि जीवन में अँधेरा फ़ैल रहा है. सब जानते हुए भी अंजान बने रहते हैं. एजेंट फिर आया था.
गौरव न होता तो मैं क्या करता. उससे पैसे लेकर एजेंट को किराया दिया. सच्चा मित्र है गौरव. सर को आज मैसेज डाला. होप यू आर एन्जोयिंग टाइप. सर को अंग्रेजी में लिखे मेसेज पसंद हैं. उनका जवाब जरूर भेजते हैं. आज भी आया ‘इट्स रियली आसम’.
एनएसडी नाटक देखने गया था मोहन राकेश का. वहां अरोड़ा मैडम मिल गयीं. कह रही थीं मैं तो उन्हें भूल ही गया. उन्होंने भी एडहॉक की बाबत पूछा. सर के बारे में भी पूछ रही थीं. प्रिंसिपल से उनका इक्वेशन ठीक है. बात करेंगी मेरे लिए. बहुत अच्छी हैं अरोड़ा मैडम. ऍफ़बी पर उनकी सारी प्रोफाइल पिक्चर लाइक कर गया. बेटी सुन्दर है उनकी.
यार ये रविन्द्र सिर्फ बुरी खबरें लाता है. सीबीसीएस में और पोस्ट कम हो रही हैं. हे ईश्वर, हम लोग क्या करेंगे. ये डूटा वाले भी सिर्फ पॉलिटिक्स करते हैं. काम कोई नहीं करते. आज करोलबाग जाऊँगा. गौरव बोल रहा था सिविल्स की कोचिंग वाले टेस्ट सिरीज की कॉपी चेक करने का अच्छा पैसा देते हैं. सर के वापस लौटते ही मिलने जाऊँगा.
20. अप्रैल
करोलबाग जाना बेकार रहा. हिन्दी साहित्य का कोई टेस्ट होता ही नहीं. सब अंग्रेजी में है. हिन्दी की कापियां सिर्फ सामाजिक विज्ञानों की मिलती हैं. क्या विषय ले लिया यार. साला कुछ नहीं है इसमें. राजेश से मिलना अच्छा रहा. चिकन खिलाया उसने. आजकल इथिक्स की कुंजियाँ लिख रहा है सिविल वालों के लिए. बोल रहा था आजकल ‘एथिक्स’ की बहुत मांग है. शाम तक सर दिल्ली पहुँच जायेंगे. स्टेशन रिसीव करने जाऊंगा.
सर से आज नहीं मिल पाया. विभाग में कोई बड़ी मीटिंग थी. पेंडिंग काम निपटा रहे हैं. देखता हूँ ऐसे मौकों पर मुझे नहीं प्रवेश राय को बुलाते हैं. आदमी जात नहीं भूलता. कई बार मन करता है खुद को भूमिहार घोषित कर दूं. गाजीपुर का हूँ. वहां यह भेद पकड़ में नहीं आता. कितने लोगों को जानता हूँ जो हैं ब्राह्मण लेकिन भूमिहार बने हुए हैं. पिछले वीसी के जमाने में यही साले ठाकुर बने हुए थे. भूमिहारों का बड़ा फायदा है एक साथ तीन जाति साध लेते हैं.
सर बड़े ठंडे-ठंडे थे. शायद पहाड़ से लौटने का असर हो. कुछ ख़ास बोला नहीं. कोई बात नहीं. चेहरा दिखाना भी एक काम है. आदमी को याद रहता है. प्रवेश भी आया था घर पर. तेज़ है लड़का. सर के लिए इनडोर प्लांट लेकर आया था. मूरखप्रसाद के दिमाग में यह सब आता ही नहीं.
सर का फ़ोन आया था. पंख्रराज कमल जी फंसादेश में छपी मेरी कहानी से थोड़े नाराज हैं. बोले मैं दलितों का दर्द नहीं समझता हूँ. दिल किया कि कह दूं मैं भी दलितों जैसा ही हूँ. सर के मित्र हैं. सब सुनना पड़ता है. कब कौन काम आ जाय. ऍफ़बी पर कमल जी को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी है. कुबूल कर लें तो लाइक-कमेन्ट करना शुरू करूँ.
आज एडहॉक पैनल आ गया. अपन तीसरी कैटेगरी में हैं. बीए में फर्स्ट क्लास न बनने का अफ़सोस रहेगा. वैसे इस पैनल की कैटेगरी से कोई फर्क नहीं पड़ता. अप्रोच से पड़ता है. मित्ररंजन चौथी कैटेगरी में है. पर चार सेमेस्टर से पढ़ा रहा है. सर से मिलना है. शायद प्रूफरीडिंग का कुछ पैसा मिल जाय. लटकाकर रखा है. मांगते शर्म आती है.
सर अच्छे मूड में थे. घर में खुशी का माहौल था. हिलसा प्रकाशन से उनकी किताब छप गयी. यह उनकी साध थी. वीसी ने उन्हें ‘परीक्षा स्क्वाड’ में नियुक्त कर लिया है. कह रहे थे वीसी साहब ने मन का मैल निकाल दिया है. सर पिछले वीसी के बहुत करीब थे. इसलिए यह नया वाला कुछ समय तक उनको लेकर सशंकित था. अब सब ठीक हो गया. सर ने मेहनत भी काफी की. कह रहे थे अगर किताब स्लेबस में लग गयी तो पार्टी देंगे. प्रूफरीडिंग का 900 का चेक दिया. आज मैं बहुत आशावान महसूस कर रहा हूँ. सर कितने अच्छे हैं.
एडहॉक इंटरव्यू की बिसात बिछने लगी है. अभी पत्ते पीसे जा रहे हैं. यह बहुत दर्दनाक समय होता है. इस समय एडहॉक का हर अभ्यर्थी हाइजेनबर्ग के ‘अनिश्चितता सिद्धांत’ में जीता है. किससे क्या बोलना है इसका बहुत ख्याल रखना पड़ता है. हालत कश्मीरियों सी रहती है. लगता है हर आदमी दूसरे का पत्ता काटने में लगा हुआ है. सर का कहना है कि इस पीरियड में ज्यादातर मौन रहना चाहिए और ‘हूं-हूं’ आसन करना चाहिए.
डूटा वाले एडहॉक पोस्ट घटाए जाने के खिलाफ जुलूस निकाल रहे हैं. कन्फ्यूज़ हूँ कि जाऊं या न जाऊं. सर बोल रहे थे कि लोहिया कॉलेज के प्रिंसिपल से मेरे लिए बात की है. प्रिंसिपल साहब वीसी खेमे के हैं. अगर जाऊं और बात उन तक पहुँच गयी तो? जाने का मन तो है.
बहुत बड़ा जुलूस हुआ. चेहरे पर रुमाल बाँधी ली थी. रामेन्द्र ने पूछा तो कह दिया आज बहुत एलर्जी है. सर का उदाहरण था. वो लड़कपने में ऐसे ही मुंह पर रुमाल बाँध वार्डन के घर पर रात में पत्थर फेंकते थे. काफी पहले एक दिन मजाक करते-करते बताया था.
आज बहुत दुखी हूँ. खुदीराम बोस कॉलेज में बात एकदम पक्की हो गयी थी. टीचर इंचार्ज भी पोजिटिव सिग्नल दे चुके थे. न जाने कहाँ से ये रोस्टर टपक पड़ा. जनरल कोटे की सीट ही उड़ गयी. समझ में नहीं आता इसका चक्कर. दलित मित्रों को लगता है रोस्टर में उनकी सीट मारी जाती है. विकलांग कैटेगरी वाले तो इससे नाराज हैं ही. सच्चाई जो भी हो, इससे कोई खुश नहीं. क्योंकि सब कुछ ढांक-ढूंक कर होता है. शक तो होगा ही.
दयाशंकर का दुःख भारी है. एक ज़माने में सर का बड़ा करीबी था. न जाने क्या मामला हो गया उनके नाम पर बिदकता है. उसे भी रोस्टर की मार लगी है. कह रहा था जिसका अप्रोच है उसके लिए रोस्टर तेल लेने चला जाता है. पिछले साल ही लक्खीमल कॉलेज में समीर उषा प्रकाश ने विकलांग कोटे की सीट जनरल में करवा ली थी. साले का असल नाम समीर राय है. पर फेसबुक में अम्मा-पापा का नाम जोड़कर लिखता है. अब इसी नाम से सब जानते हैं. आजकल ऐसा फैशन में है.
सर ने घर पर बुलाया है. अभी तक उनकी किताब की समीक्षा पूरी नहीं कर सका. क्या लेकर जाऊं. उनकी बेटी के लिए छोटा पेंट बॉक्स खरीदने की सोच रहा हूँ. बजट टाइट है.
ये पापा भी न. बार-बार एक ही बात पूछते रहते हैं. हज़ार किलोमीटर दूर बैठकर सलाह देना बहुत आसान रहता है. ‘गाइड से खुलकर बोलो’ की रट लगाए रहते हैं. गाइड उल्लू हैं क्या कि उन्हें बार-बार बताऊँ. सब जानते हैं गाइड. गंभीर-शालीन भी बने रहना पड़ता है उनके सामने. गाजीपुर के उजड्डों को लगता है हर काम ढ़ोल बजाकर होता है. खरी-खरी सुना दी मैंने.
मां मेरी कमजोरी है. फ़ोन आया था. पापा ने ही बताया होगा. बहन की शादी की बात चल रही है. जानता हूँ घर की हालत. पर क्या करूँ मां. कोशिश तो कर रहा हूँ न. फ़ेलोशिप के पैसे घर भेजे थे कि नहीं. आप लोगों ने कितना कष्ट सहकर मुझे पढाया है. झिझक ख़त्म करने का निर्णय लिया है. थोडा तेज़-तर्राक बनूँगा. कल सर से मिलना है.
भागीरथी कॉलेज में इंटरव्यू की डेट आयी है. यहाँ मामला नहीं बन पायेगा. टीचर इंचार्ज हमारे सर का क्लासमेट था. सुनने में आता है किसी लड़की के चक्कर में दोनों एक दूसरे से भिड़ गए थे. तब से नापसंद करते हैं. चांस तो कम है पर इंटरव्यू देने जाऊँगा.
इंटरव्यू में एक टीचर ने राहुल सांकृत्यायन का जन्मदिन पूछा. दूसरे ने कहा – ये हिन्दी की पोस्ट है. अंग्रेजी में CV क्यों लाये हो? अब क्या बताता! वैसे वहां पहुँचते ही पता चल गया था किसका हो रहा है. साला सुनिलवा. पूरा टाइम मोबाइल पर सेटिंग कर रहा था.
कल द्रोपदी कॉलेज के इंटरव्यू में भी किस्मत आजमाने चला गया था. महिला कॉलेजों में ज्यादातर पुरुषों को नहीं लेते. सेटिंग अच्छी हो तो बात अलग है. इन कॉलेजों के वेटिंग रूम का दृश्य इतना दारुण रहता है कि दामिनी फिल्म के सनी देओल के ‘तारीख पर तारीख’ वाले कालजयी डॉयलाग की तर्ज़ पर ‘इंटरव्यू पर इंटरव्यू’ चिल्लाने का मन हो जाता है.
(डायरी के अन्दर डायरी : यहाँ वे महिलाएं भी इंटरव्यू देने आती हैं जो सुबह-सुबह अपने पतियों और बच्चों को तैयार कर, नाश्ता खिलाकर ऑफिस और स्कूल/कॉलेज भेज चुकी होती हैं. किस्मत ऐसी कि मुझे अक्सर उनके अगल-बगल वाली सीट मिलती है. अपरिचित लोगों के बीच में होने वाली नमस्ते-रूपी मुस्कराहट के आदान-प्रदान के बाद मैं चुप लगा जाता हूँ. पशोपेश यह रहती है कि कहीं मुंह से आंटी या दीदी न निकल जाय. वेटिंग रूम में कई बार उनकी चर्चा पिछली रात की कढी-सब्जी या बालों के रंग पर होती रहती है. दिल्ली के आसपास मेरठ जैसे शहरों से हिन्दी में पीएचडी की डिग्रियां लिए ये कद्दावर औरतें रहस्यमयी पत्रिकाओं में छपे अपने लेख दिखाती हैं. यह भरोसा बलवान हो जाता है कि हिन्दी-साहित्य का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता. इनकी प्रेरणा और जिजीविषा देखकर खुद पर शर्म आने लगती है. मेरा बस चले तो प्रिंसिपल को कह दूं कि हिन्दी की इन वीरांगनाओं को रखना ही पड़ेगा.)
द्रोणाचार्य और लाला हरदयाल कॉलेज में भी इंटरव्यू दिया. यहाँ भी अप्रोच समय पर नहीं पहुंचा. इस बार कहानी और उपन्यास मुख्य पेपर है. और इंटरव्यू में मैडम काव्य के भेद पूछ रही थीं.
सर को न जाने क्या हो गया है. पता नहीं मेसेज भिजवाते भी हैं या नहीं. तत्परता नहीं दिखा रहे पहले वाली. आज अरोड़ा मैडम को ऍफ़बी पर मेसेज भेजा है उनके कॉलेज में पता करने के लिए.
एक हफ्ते से सिर्फ भागादौड़ी हो रही है. राजेश की बाइक मांगकर लाया था. 500 का तो पेट्रोल ही फूंक डाला होगा. उधार के बढ़ते पहाड़ का दर्द मुझे ही समझ आता है. खैर, जिनसे-जिनसे मिलना मैटर करता है सबसे मिल लिया. इस बार कोई कसर नहीं छोडूंगा. सर भी न. घाघ हैं. देखा बाइक है चार काम पकड़ा दिए. पर बिटिया उनकी अच्छी है. मेरे दिए पेंट बॉक्स से उसने तस्वीर बनाई.
रासबिहारी बोस कॉलेज में साले अध्यापक भी रास रचाते हैं. शोधार्थी कितना असहाय हो जाता है. हिंदी का हो तो और भी ज्यादा. मेरी सीनियर, जूनियर और साथ की लड़कियों की कहानी सुनता हूँ तो शर्म से सिर झुक जाता है. क्या जवान क्या बूढ़े अध्यापक – सब साले लार टपकाते रहते हैं. इस लाररूपी लासे से चिपका आता है एडहॉक का आश्वासन. बिना इंटरव्यू दिए ही लौट आया. सर का कहना है इतना भावुक होना ठीक नहीं.
रामानंद कॉलेज में सर ने बात की है. बोल रहे थे हो जाना चाहिए. थोडा हल्का महसूस हो रहा है.
इंटरव्यू हुए दो दिन बीत गए. मेरा नहीं हुआ. भाड़ में जाए ये दुनिया. सब मामला सेट था. टीचर इन्चार्च ने मुझे ले लेने का आश्वासन दिया था. सर ऐसा बोल रहे थे. पर प्रिंसिपल को एमएचआरडी से पंकज उपाध्याय के लिए फ़ोन आ गया. पंकज के नाना मिर्ज़ापुर में आरएसएस के अध्यक्ष हैं. ऐसे मौके पर सर भी कुछ नहीं कर सकते. लग रहा है साठी ग्रुप में किसी से मिलना पड़ेगा.
हरेन्द्र सर से मिला. साठी ग्रुप में सक्रिय हैं. परमानेंट होने से पहले सात साल एडहॉक पढ़ा चुके हैं. उनको देख हिम्मत होती है. मेरे ही इलाके से हैं. मेरा दर्द समझते हैं. बोले पिछली सरकार होती तो जरूर करवा देते. मदद का वादा किया है. यह बात मैंने अपने सर को नहीं बताई.
अब तक बात नहीं बनी. इस सेशन में कुल 16 इंटरव्यू दे चुका हूँ. क्या जमाना आ गया है. एक एडहॉक के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ेंगे? जेआरऍफ़ हूँ. पीएचडी हूँ. तीन अच्छे और पांच औसत पब्लिकेशन हैं. ज्यादातर लोग API पॉइंट पूरा करने के लिए तो पैसे देकर ऐंवे टाइप लेख छपवाते हैं. अपन का तो क्वालिटी पर छपा है. कभी ज्यादा क्रांतिकारी भी नहीं रहा. अपने काम से काम रखा. उस पर ये हाल है.
जालिम है ये दुनिया. फ्रॉड हैं साले सब. इटावा में खाकर आगरा में हगते हैं. सिर्फ अपनी पड़ी है सबको. बहुत प्यार दिखाती थी वह मुटल्ली अरोड़ा मैडम. हफ्ते भर से फ़ोन न उठा रही. सर भी कुछ रिस्पांस न दे रहे. दुनिया वालों बताओ मैं क्या करूँ?
सर बहुत अच्छे हैं. मेरे मन में गलत विचार आ गए थे. फोन आया था उनका. बात की है मेरे लिए. मैंने तो आशा छोड़कर यूपी के फ़ूड इन्स्पेक्टर का फॉर्म भी भर दिया. सर भी क्या-क्या करें. कितने तो उनके लोग हैं. आसान नहीं है इतना.
कल तुलसीदास कॉलेज में इंटरव्यू है. खुदा न खास्ता सब ठीक रहा तो परसों से अपन भी एडहॉक होंगे. सर के प्रति कृतज्ञता से मस्तक झुका जा रहा है. अम्मा-पापा को फ़ोन करूँगा. गौरव को भी बोलता हूँ कि भाई के पैसे जल्द वापस होंगे.
एक हफ्ते तक डिप्रेशन में था. मेरा वहां पक्का हो जाता अगर इंटरव्यू के बाद टीचर इंचार्ज को विभाग के एक बहुत पावरफुल प्रोफ़ेसर का फ़ोन न आ जाता. प्रोफ़ेसर संघ के करीब हैं. टीचर इंचार्ज ने मुझसे साफ़-साफ़ बोला- भाई, मुझे भी तो नौकरी करनी है’.
मैं ये एडहॉक का धंधा छोड़ रहा हूँ. फ़ूड इंस्पेक्टर के एग्जाम की डेट आ गयी है. जमकर मेहनत करूँगा और सलेक्शन लूँगा. बहुत हुई इन सालों की चापलूसी. साले रबड़ के पुतले. कल गया था सर के घर. अंतिम प्रणाम कर आया.
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संदीप सिंह
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