कुछ कवि कविता में रहते-रहते खुद कविता की तरह लगने लगते हैं जैसे निराला, शमशेर, जैसे मुक्तिबोध जैसे आलोकधन्वा.
स्वप्निल श्रीवास्तव को मैं जब देखता हूँ. वे मुझे उन्हीं की किसी कविता की कोई पंक्ति लगते हैं. निस्पृह, कुछ धूसर उदास. अब इसी तस्वीर में उनके पीछे बुद्ध का महापरिनिर्वाण है और खुद उनके चेहरे पर बुद्ध. यह वह जगह जहाँ की मिट्टी से मैं ख़ुद बना हूँ.
स्वप्निल श्रीवास्तव को मैं जब देखता हूँ. वे मुझे उन्हीं की किसी कविता की कोई पंक्ति लगते हैं. निस्पृह, कुछ धूसर उदास. अब इसी तस्वीर में उनके पीछे बुद्ध का महापरिनिर्वाण है और खुद उनके चेहरे पर बुद्ध. यह वह जगह जहाँ की मिट्टी से मैं ख़ुद बना हूँ.
आइये उनकी कुछ नई कविताएँ पढ़ें.
स्वप्निल श्रीवास्तव की कविताएँ
विनम्रता
प्रभु जी, इस विनम्रता का क्या करूं
इस बर्बर संसार में इसका कोई मूल्य नहीं
उलटे ही जी का जंजाल बना हुई हैं
मैं जिस सभा में जाता हूं
इसे उतार कर रखना पड़ता है
लोग कहते हैं कि तुम कुछ बनना
चाहते हो तो इस विनम्रता से पिंड छुडा लो
थोड़ा घाघ बन जाओ
मैं मनुष्य होना चाहता हूं
और वे मुझे मनुष्यहीन बनाना चाहते हैं
इस आदमखोर समय में लोग एक दूसरे को
भक्ष रहे हैं
क्या हम किसी जंगल में आ गये हैं ?
झूठा आदमी
झूठा आदमी इतने यकीन के साथ झूठ बोलता है
कि हम उसे सच समझने की गलती करने
लग जाते हैं
वह हमारी बुद्धि हर लेता है
और हमें अपने अनुकूल बना लेता है
झूठा आदमी एक जादूगर की तरह
चमत्कार दिखाता है
हम कागज के शेर को असली शेर
समझने लगते हैं
फर्जी होते हैं उसकी खुशहाली के आंकड़े
लेकिन उसके बोलने के अंदाज से फरेब में
आ जाते हैं
झूठा आदमी झूठ का बना हुआ
एक मुजस्समा है और वह आग से
दूर रहता है
अगर उसके लिये आग बनने की कोशिश
करे तो वह बेनकाब हो सकता है
आग कहीं और नहीं राख के भीतर है
बस हवाओं को थोड़ी तकलीफ उठानी
पड़ेगी.
खरीदारी
सुई की भी खरीदारी करनी होती थी
तो वह मेरे साथ बाजार जाती थी
क्योंकि मैं उसका धागा था
मेरे बिना उसका काम नहीं चलता था
मैंने उसे कपास के खेत दिखाये
और कहा कि वे फूल हैं जो कभी नहीं
मुरझाते
उसने कपास की बत्ती बना कर जिंदगी के
अंधेरे कोनों को रोशन किया
लेकिन उसकी रोशनी में मेरे चेहरे की जगह
किसी दूसरे की सूरत थी
मुझसे ज्यादा कपास के फूलों को
तकलीफ हुई
उसने उन्हें मेरे बटन होल से निकाल कर
किसी गैर के बटन होल में सजा दिये
वहां वे मेरे विरूद्ध खिलखिला रहे थे.
गदह-राग
गधों को आप लाख शास्त्रीय संगीत सुनायें
उन्हें गदह राग ही पसंद आता है
वे इस मामले में बजिद्द हैं
वे एक दूसरे को देख कर खुशी में
रेकते हैं
उत्साह में अपनी दुलत्ती झाड़ते हैं
वे अपने मनोभाव को छिपाते नही हैं
आत्मीयता के साथ प्रकट करते हैं
उनकी देहगाथा सार्वजनिक होती है
जिन्हें देख कर हम प्राय: उन्हें
जलील करते रहते हैं
मनुष्य एक छिपा हुआ पशु है
वह ऐसा नहीं है, जैसा वह दिखाई
देता है
कभी कभी उसका काईयापन बुरी से बुरी
आदतों को मात कर देता है
गधों को आप काहिल और मूर्ख
कह कर मजाक उड़ा सकते हैं
उसे अपमानित करने के लिये कोई
मुहावरा गढ़ सकते है
लेकिन आप ठीक से सोचे तो पायेंगे
कि आदमी गधों से बड़ा गधा है
वह बुद्धिमान होने का ढोंग करता
रहता है
गधे न हो हमारे मैले–कुचैले कपड़े
घाट तक न पहुंच पायें
वे हमारे कपड़े नहीं हमारा अज्ञान भी
धोते हैं
इसलिये गधों के बारे में अपनी परम्परागत
सोच बदले और उसे नयी नजर से देखने की
कोशिश करें.
रहनुमा
वे हमारे लिये भूख का इलाज नहीं
मजहबी किताबें लेकर आये थे
और कहा था कि मजहब और खुदा
तुम्हारे सारे दुख दूर कर देंगे
धीरे – धीरे टिड्डी दल की तरह
हमारे इलाके में फैल गये
उन्होंने हमारे खेत नहीं हमारे
दिमाग को ढँक लिया था
हम अनाज बोने की तरकीब भूल कर
खेत में मजहब उगाने लगे
यह समझ हमें बहुत दिनों बाद
आयी कि जिन लोगों ने हमे लूटा था
वे हमारे ही रहनुमा थे.
अंगरक्षक
अंगरक्षक निरापद नहीं रह गये हैं
वे उन्हीं को मारते है जिनके हिफाजत
के लिये उन्होंने हलफ उठाई है
वे दुश्मनों के हाथ बिक जाते हैं
उनके लिये मुखबिरी करते हैं
किस पर यकीन किया जाय, सारे मंजर
शको – शुबहों से भरे हुये हैं
अंगरक्षक बहुत दिनों तक महफूज
नहीं रहते – उन्हें भी गोली का निशाना
बना दिया जाता है
उनकी लाश गटर में तैरती हुई
पायी जाती है
इतिहास पर बहुत से खून के धब्बे हैं
इनकी शिनाख्त कौन करेगा
तारीखसाज संदेह से परे नहीं है
उनके कलम में निजाम के दौलत खाने की
स्याही भरी हुई है.
पत्थर की इमारत
इस खूबसूरत मकान में समृद्धि की तमाम
चींजें थी
पोर्टिको में चमचमाती हुई गाड़ी
ड्राइंगरूम में कीमती फर्नीचर और मौसम को
नियंत्रित करनेवाले आधुनिक उपकरण थे
हमारी अगवानी में पगड़ी बांधे
ताबेदार थे
कुछ स्त्रियां थी जो शाम होते अपने
जलवे बिखेरने को बेताब थी
लेकिन मकान के शेल्फ में कोई किताब
नहीं थी
मकान में परिंदों के लिये नही
छोड़ी गयी थी कोई जगह
कहीं से नहीं दिखाई देता था आसमान
कि रात होते सितारों से खेली जा सके
आंखमिचौनी
यहां मेरे पसंद की कोई चीज मौजूद
नहीं थी
मैंने अपने आप से चुपके से कहा कि
अब मुझे इस पत्थर की इमारत से
विदा हो जाना चाहिये.
साथी
किसी ने बुरे वक्त में मेरा साथ दिया हो
यह बात मुझे याद नहीं है
लेकिन दुख ने मेरा हमेशा साथ
दिया है
हां कभी कभी उससे कहता था कि
वह रस – परिवर्तन के लिये कभी
सुखी लोगो का घर गुलजार कर
दिया करे – क्योंकि वे अपने सुख से
तबाह हो चुके हैं
वह कहता कि तुम्हारे सिवा मुझे
कोई पसंद नहीं करता
वे मेरी परछाई से दूर रहना
चाहते हैं
मुझे देखते ही बंद कर लेते हैं
अपना अपना दरवाजा
अब मैं तुमको छोड़ कर
कहां जाऊंगा
इतना तो कोई अपने सुख पर
भरोसा नही करता – जितना मै अपने
दुख पर करता हूं.
_________________
_________________
स्वप्निल श्रीवास्तव
510 : अवधपुरी कालोनी – अमानीगंज
फैज़ाबाद : 224001
मोबाइल फोन : 09415332326