केरल से नाटक
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केरल के नाट्य निर्देशकों का ज़िक्र आते ही जो नाम सबसे पहले ज़ेहन में उभरता है वह है स्वर्गीय कावालम नारायण पणिक्कर का. पणिक्कर के नाटकों के बारे में और पणिक्कर के बारे में बहुत सी बातें हो चुकी हैं. आज मैं बात करूंगी केरल से आने वाले उन दो नाट्य निर्देशकों की जिनकी चर्चा कम हुई है लेकिन उनका काम अलग है और प्रभावशाली है. पहले हैं केरल से आनेवाले रंगकर्मी और नाट्य निर्देशक अभिलाष पिल्लई जो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में प्रोफेसर हैं और दूसरे हैं युवा निर्देशक मार्ग रेजी.
अभिलाष पिल्लई
अभिलाष का सबसे शानदार काम सर्कस पर है लेकिन सर्कस पर कभी अलग से बात करूंगी. सर्कस के अलावा मैंने अभिलाष के कई नाटक देखे हैं जिनमें ‘अबू दाई’, ‘लॉरेम इप्सम’ प्रमुख हैं. मेरे हिसाब से लॉरेम इप्सम याद रह जानेवाला नाटक है. सर्कस से कम शानदार काम नहीं है अभिलाष का ‘लॉरेम इप्सम’.
लॉरेम इप्सम एक मल्टीलेयर्ड नाटक है जो बहुत से संवेदनशील मुद्दों को रेखांकित करता है. अभिलाष ने यह नाटक २०१५ में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अंतिम वर्ष के छात्रों के साथ तैयार किया था. अभिलाष हमेशा से अपने शिक्षणकार्य व निर्देशकीय कृतियों के लिए नए और चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों की खोज करनेवाले निर्देशक माने जाते हैं और ऐसे विषयों को सामने लाते हैं जिनपर अन्य निर्देशक ध्यान नहीं देते. अभिलाष एक तरह से अरंगमंचीय विषयों से नाटकीय अभिव्यक्ति प्राप्त करने की कोशिश करते हैं.
लॉरेम इप्सम में अभिलाष ने उदासी के दर्द और ख़ुशी के आंसू वाले अनुभवों के विरोधाभास को समझने की कोशिश की है. इसकी विषयवस्तु में उड़ने और लापता होने के विभिन्न सिद्धांत व् मनुष्य जाति की उड़ने की अदम्य इच्छा सम्बन्धी कहानियां शामिल हैं. यह पूरा नाटक कंधार हाईजैक वाले मामले से प्रेरित होकर बनाया गया है और इसकी सबसे ख़ास बात यह है कि इसकी प्रस्तुति एक हवाई जहाज के भीतर की गई. मंच पर हवाई जहाज का सेट बनाया गया और पूरा नाटक उस हवाई जहाज के अंदर खेला गया. दर्शकों के बैठने की व्यवस्था ऐसे की गई ताकि वह यह देख सकें कि उस हवाई जहाज के भीतर चल क्या रहा है.
यह पूरा नाटक इम्प्रोवाइजेशन पर आधारित था. अभिलाष ने छात्रों को कक्षा के पहले दिन अपनी सोच के बारे में कुछ नहीं बताया बल्कि विषय सम्बन्धी कुछ बुनियादी बातें छात्रों से साझा की और इम्प्रोवाइजेशन शुरू करने के लिए कहा. इस तरह धीरे-धीरे इम्प्रोवाइजेशन्स आगे बढे और नाटक परत-दर-परत बनता गया.
इस नाटक के पीछे अभिलाष की परिकल्पना यह थी कि अनंत, अछोर आकाश में उड़ना प्राचीन काल से मनुष्य का एक सपना रहा है. चूंकि हम सच में उड़ नहीं सकते इसलिए अक्सर सपनों में उड़ान भरते रहते हैं.
स्वप्न सिद्धांतों के अनुसार, सपने में उड़ने का मतलब होता है हम सशक्त हैं. अधिकांशतः इसे अच्छे अर्थ में ही लिया जाता है. सपने के दौरान अक्सर उड़ान भरते हुए हम यह भी महसूस करते हैं कि उड़ा कैसे जाता है और यह भी कि सांस लेने की तरह उड़ना भी पूरी तरह से एक प्राकृतिक गतिविधि है. हम आसमान से दृश्यों का आनंद लेते हैं, रास्ते में आनेवाली हवाई बाधाओं से अविचलित हवा में तैरता हुआ महसूस करते हैं. ज़मीन की सांसारिकता के बोझ को छोड़कर बिना डरे उड़ने की आज़ादी एक बहुत ही रोमांचकारी अनुभव है. सपने के इतर उड़ान में हमेशा स्वतंत्रता की भावना तो रहती है लेकिन दूसरी तरफ गिरने का डर भी बना रहता है.
हम पक्षियों को आकाश में उड़ते देखते हैं और सोचते हैं कि काश उनकी तरह हम भी उड़ सकते. हम दौड़ने से लेकर तैरने तक सबकुछ करते हैं पर उड़ नहीं पाते यह जानने के बावजूद कि यूनानी व भारतीय से लेकर सभी पुराण कथाओं में उड़ने से जुड़े कई सन्दर्भ विद्यमान हैं. इन पुराण कथाओं के अनुसार कई देवता और दानव उड़ सकते थे. फिर भी यह सभी मिथक सदा मिथक ही बने रहे और विज्ञान ने उनका अनुमोदन नहीं किया. हालांकि, मानव जाति के हाल के १०० सालों के इतिहास में हमने विज्ञान की तरक्की के कारण हवाई जहाज का निर्माण भी कर लिया जो हमें उड़ने में मदद तो करता ही हैं, हवाई मार्ग से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाता भी है.
आज हमारी उड़ान की रफ़्तार इतनी अधिक है कि हम किसी भी क़ीमत पर मंगल ग्रह तक पहुँचने के लिए दौड़ लगा रहे हैं. विमानन इतिहास की इस छोटी सी अवधि में हम इतना ऊंचा उड़ चुके हैं कि अब यह महज सपना या वृत्ति नहीं रही जबकि पक्षी प्राचीन काल से जैसे उड़ रहे थे वैसे ही उड़ रहे हैं.
इस नाटक के शीर्षक और उसके चयन प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए अभिलाष बताते हैं-
बात करें इस नाटक के शीर्षक की तो वास्तव में लॉरेम इप्सम पिछली पांच सदियों से प्रकाशन और ग्राफ़िक डिज़ाइन उद्योग में इस्तेमाल किया जानेवाले डमी पाठ के लिए प्रयुक्त एक लैटिन शब्द है. एक अज्ञात प्रिंटर शब्दों का नमूना बनाते समय उसमें सार्थक सामग्री की जगह डमी पाठ लेकर आता है और पाठकों / दर्शकों को सामग्री से विचलित हुए बग़ैर केवल फॉन्ट, टाइपोग्राफी और पेज लेआउट के रूप में ग्राफ़िक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आकर्षित करता है. इस तरह डमी के रूप में इस्तेमाल होने वाले लॉरेम इप्सम का वास्तविक पाठ इस प्रकार है-
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लेकिन यह ध्यान देने योग्य बात है कि लॉरेम इप्सम का पाठ आमतौर पर अतार्किक नहीं है जैसा कि प्रतीत होता है. यह ईसा के एक शताब्दी पूर्व सिसरो द्वारा लैटिन शास्त्रीय पाठ ‘डे फिनिबस बोनोरम एट मालोरम’ (अच्छे और बुरे की चरम सीमा) के एक अनुभाग से लिया गया है जिसमें कुछ शब्द जोड़कर या हटाकर अतार्किक, अनुचित लैटिन बनाया गया है. इस लैटिन पाठ का वास्तविक अर्थ एच रैखेम-1914 के अनुवाद में पाया जा सकता है जो कि लॉएब के क्लासिकल लाइब्रेरी एडिशन में वर्णित है जो कि टुकड़ों में निम्नांकित है-
(३२) …. दर्द को पाने के इच्छा, चाहत या प्यार करता है, क्योंकि वह खुद दर्द है लेकिन कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं जिसमें परिश्रम और दर्द उसे बहुत ख़ुशी दे देता है.
(३३) …. इच्छा से अंधे हुए वे दर्द और मुसीबत से पीछा नहीं छुड़ा सकते जो कि होना ही है, और उनपर भी बराबर दोष आता है जो इच्छा शक्ति की कमज़ोरी के चलते अपने कर्तव्य में असफल हैं जो कि वैसा ही है जैसा यह कहना कि परिश्रम और दर्द से सिकुड़ना …
इस तरह अंततः हमारी प्रस्तुति की प्रक्रिया और लॉरेम इप्सम के पाठ और अर्थ में समानता को देखते हुए, हमें प्रस्तुति के लिए यह नाम सर्वाधिक उपयुक्त लगा. छात्रों के उत्साह और मेहनत के जज़्बे के कारण यह एक छोटे से विचार से इतना परिपूर्ण और संभव हुआ है. आशा है कि भविष्य में इस तरह की प्रक्रिया से छात्र तो लाभान्वित होंगे ही, हमें इम्प्रोवाइज़ेशन पर आधारित और भी प्रोडक्शंस देखने को मिलेंगे.
अभिलाष के अनुसार यह पूरा नाटक ‘उड़ने की आज़ादी’ और ‘गिरने के डर’ पर आधारित है. अभिलाष ने छात्रों को पहली कक्षा में जो उन्होंने सोचा वह सब कुछ बताने के बजाय विषय सम्बन्धी कुछ एक बुनियादी सूत्र साझा किए और इम्प्रोवाइज़ेशन शुरू करने को कहा. छात्रों द्वारा किये गए कुछ महत्वपूर्ण इम्प्रोवाइज़ेशन इस प्रकार रहे-
१. आपके लिए उड़ने के क्या मायने हैं? जैसे कि उड़ान के मायने हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग हैं, छात्र अपने पहले उड़ान के अनुभव की रचनात्मक अभिव्यक्ति के साथ आए चाहे वह काग़ज़ का जहाज उड़ाना हो या झूला झूलना या फिर पेड़ पर चढ़ना.
२. हवाई जहाज के भीतर के वातावरण का निर्माण: आप हवाई जहाज के भीतर कैसा महसूस करते हैं? ऐसा क्या है जिससे लगे कि आप उड़ रहे हैं?
३. उड़ान, लैंडिंग और विक्षोभ: हवाई जहाज में होनेवाले तीन प्रमुख अनुभव हैं. हम कैसे इन तीन अनुभूतियों को व्यक्त करने का रास्ता खोजें?
४. चैक-इन काउंटर: यात्री के हवाई जहाज में सवार होने की प्रक्रिया में निजी से लेकर सार्वजानिक बातें. जैसे कि उड़ान एक कॉर्पोरेट, वाणिज्यिक व् सार्वजनिक प्रणाली का अनुभव है जहाँ हम विभिन्न लक्षणों वाले कई चरित्रों को देख सकते हैं.
५. सुरक्षा जांच: सुरक्षा जांच व्यक्तिगत और निजी के एकीकरण का प्रतिनिधित्व करती है. तलाशी और सुरक्षा की जांच राज्यों के किसी तीसरे के डर से पैदा हुई ज़रुरत है. राजनीतिक, रचनात्मक व तकनीकी रूप से यह कैसे काम करती है?
६. पायलट का एक दिन: एक पायलट के जीवन में किसी एक दिन हवाई जहाज उड़ने के अलावा और क्या-क्या होता होगा? एक अज्ञात/अल्पज्ञात चरित्र के स्व को समझना.
७. कॉकपिट: हवाई जहाज के अंदर-सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के कई स्थान हैं. लेकिन कॉकपिट एक ऐसा लुभावना स्थान है जिसे सब चाहते हैं. वहां क्या होता है इस बारे में हम हमेशा उत्सुक रहते हैं. वहां कैसे हम एक स्पेस व चरित्र का निर्माण कर सकते हैं.
८. एयरहोस्टेस का एक दिन: एयरहोस्टेस हवाई जहाज से जुडी हमारी पहली स्मृति है. वे व्यक्तिगत तौर पर कैसी हैं? उनके जीवन के किसी एक दिन क्या-के होता होगा?
९. यात्रा के लिए घर छोड़ना: यात्राएं मानव जाति के लिए रहस्योद्घाटन लाने वाली सबसे दार्शनिक बातों में से एक हैं. किसी यात्रा के पीछे हर किसी के अपने कारण, लक्ष्य और महत्वाकांक्षाएं हैं. शायद हर यात्रा के पीछे एक सपना भी होता है. यात्रा करने के लिए घर या कार्यालय या कोई भी निजी स्थान छोड़ना पड़ता है जिससे यात्रा करनेवाले के खुद का चरित्र लोगों के सामने आता है.
१०. अजीब/बेढंगे पल: एक सार्वजनिक वातावरण में एक अजनबी के साथ व्यक्तिगत स्थान साझा करना कभी-कभी अजीबोगरीब पल ले आता है. छात्रों ने एक हवाई जहाज यात्रा की इम्प्रो के दौरान इस पल को क़ैद करने की कोशिश की.
११. केबिन क्रू का अनदेखा जीवन: एक सामूहिक इम्प्रोवाइज़ेशन. हवाई जहाज के अंदर चालक दल के सदस्यों का जीवन कैसा होता है ?
१२. विमान के भीतर आपात स्थिति: एक व्यक्तिगत इम्प्रोवाइज़ेशन. यह एक ऐसे विमान के बारे में है जो हवा में तैरता है और किसी भी तरह की आपात स्थिति में आ सकता है.
१३. उड़ान सम्बन्धी विज्ञापन: फ्लाइंग की अवधारणा व् रूपक बेचने के लिए एक विज्ञापन निर्माण.
१४. तीन शैलियाँ, तीन विषय: विमान के अंदर अलग-अलग चीज़ें होती हैं जो कि डरावनी, रहस्य रोमांच से भरी या कॉमेडी हो सकती हैं.
१५. शौचालय, व्यक्तिगत स्थान: विभिन्न स्थानों के व्यक्तिगत स्थानों की तरह हवाई जहाज में भी व्यक्तिगत स्थान है – शौचालय जहाँ मल-मूत्र त्याग के अलावा क्या किया जा सकता है?
१६. सुरक्षा निर्देश गीत: हवाई जहाज में सुरक्षा के निर्देश अनिवार्य व् आधिकारिक हैं. इसमें संगीत व् उत्सव का पता लगाएं. इस प्रक्रिया में छात्रों ने एक संगीत बनाया जिसे बाद में गीत दिए गए. इस तरह छात्रों ने एक पूरे गीत की रचना- नृत्य संरचना की.
१७. आपातस्थिति: हवाई जहाज में ऐसी अनेक आपातस्थियाँ प्रकट हो सकती हैं जो हमारा जीवन लील सकती हैं. ऐसी क्या-क्या आपातकालीन स्थितियां हो सकती हैं?
१८. रहस्योद्घाटन: यह चरित्र आधारित अभ्यास है और और परिस्थिति का विवरण जानने के लिए किया जाता है.
१९. हाईजैक/स्काइजैक: एक हवाई जहाज में अपहरण का बहुत जोखिम है. अपहरण का नवीनतम रूप क्या हो सकता है?
२०. बोर्डिंग से खान-पान तक: छात्रों ने विमानों के दो प्रकार, सबसे सस्ते टिकट दर रू. ५० वाले विमान और सबसे महंगे टिकट दर वाले विमान की दर रू १० लाख प्रति टिकट इम्प्रोवाइज़ेशन किया.
इन इम्प्रोवाइज़ेशनंस में से कुछ व्यवहारिक इम्प्रोवाइज़ेशन्स को चुना गया और उसके आधार पर प्रदर्शन के लिए नाट्य संरचना का एक ढांचा खड़ा करना शुरू किया गया. फिर प्रदर्शन में क्या शामिल होना चाहिए इसका एक प्रभावशाली पॉवरपॉइंट प्रेजेंटेशन बनाया गया. उपरोक्त इम्प्रोवाइज़ेशन्स के आधार पर ही चालक दल के सदस्यों और यात्रियों का एक चारित्रिक स्केच तैयार किया गया. बाद में इन सब कार्यों में अपने सहयोगी रहे रंगकर्मी राजेश कुमार सिंह की सिफारिशों के आधार पर ही अभिलाष ने अंतिम वर्ष के छात्रों को पात्रों का वितरण किया. छात्रों से भी यह पॉवरपॉइंट प्रस्तुतीकरण साझा किया गया. फिर अभिलाष ने छात्रों को प्रस्तुत संरचना और दिए गए पात्रों के साथ फिर से अभ्यास आगे बढ़ाने के लिए कहा.
अभ्यास पुनः शुरू हुए. छात्रों की लगन और उत्साह ने इस प्रक्रिया को जारी रखा. इसमें एक फ्लाइट में दूसरी अन्य फ्लाइट का विचार लाया गया जिसमें एक के बारे में दूसरे के अंदर क्या चल रहा है वह दिखा. इस बीच अभिलाष ने कुछ पायलेट्स और एयरहोस्टेसेज़ के सत्र भी रखे. एक एयरहोस्टेस ने विमान के भीतरी अनुशासन में छात्रों को प्रशिक्षित किया. इसके अलावा, इस प्रक्रिया में उन्हें इस विषय से सम्बंधित विभिन्न वीडियो और फिल्म्स दिखाई गईं. अंत में, संरचना के अनुसार सभी आवश्यक दृश्य फिर से इम्प्रोवाइज़ किए गए. रंगकर्मी राजेश ने नाटक के अंत के लिए एक कविता विशेष रूप से लिखी जिसे छात्रों को इम्प्रोवाइज़ करने के लिए दिया गया, जिसके विभिन्न संस्करण बने.
नाट्यालेख राजेश तैलंग का था. परिकल्पना एवं निर्देशन अभिलाष पिल्लई का. सह-निर्देशन एवं अभिनय मार्गदर्शन हरीश खन्ना का. प्रकाश परिकल्पक थे हिमांशु बी. जोशी. नृत्य संरचना नरेश कुमार की थी. ध्वनि परिकल्पना मार्गदर्शन संतोष कुमार सिंह ‘सैंडी’ की थी. वस्त्रसज्जा परिकल्पना थी परिजीत कौर रिम्मी की और सहायक निर्देशक व् वीडिओ आर्ट परिकल्पक थे फिरोस खान. सभी अभिनेताओं ने बहुत अच्छा काम किया था लेकिन याद रह जाने वाला अभिनय था बेहद उम्दा अभिनेत्री शम्पा मंडल का. कुल मिलाकर ‘लॉरेम इप्सम’ एक याद रह जाने वाला नाटक था.
रेजी
जिस दूसरे नाटक और निर्देशक का ज़िक्र मैं करना चाहूंगी वह है हैदराबाद के सरोजिनी नायडू स्कूल ऑफ़ आर्ट्स एंड कम्युनिकेशन का नाटक ‘4.48 साइकोसिस’ जिसकी प्रस्तुति देखने को मिली बिहार के बेगूसराय में आशीर्वाद रंगमंडल द्वारा २३ दिसंबर २०१४ से आयोजित पाँचवें राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव में. यह नाटक लेखिका सारा कने की डायरी 4.48 साइकोसिस (जिसमें उन्होंने आत्महत्या के विभिन्न तरीकों के बारे में लिखा है और अंततः उन्होंने आत्महत्या ही की), प्रदर्शनकारी कला में महारत हासिल कोरिया के योको योनो और जॉन लेनिन के साहित्य से लिए गए कुछ अंशों और दर्शकों और लोगों की वास्तविक केस स्टडीज पर आधारित है और इसकी कोई एक स्टोरीलाइन नहीं है.
इसके निर्देशक रेजी ने हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के सरोजिनी नायडू स्कूल ऑफ़ आर्ट्स एंड कम्युनिकेशन से मास्टर ऑफ़ परफार्मिंग आर्ट्स (डिज़ाइन एंड डायरेक्शन) में डिग्री प्राप्त की है.
रेजी ने इस नाटक में एक व्यक्ति के चेतन और अवचेतन मन के बीच सुबह (4.48 बजे) के उस वक़्त में चल रहे द्वंद्व को मंच पर उतारने की कोशिश की है जब व्यक्ति न ठीक से सो रहा होता है न ही जाग रहा होता है. वह सोने से जागने के बीच की प्रक्रिया के बीच से गुज़र रहा होता है. उस समय उसके दिमाग में कई गड्डमड्ड होती हुई आकृतियाँ बनती है, कई आड़ी-तिरछी लकीरें बनती हैं जो उसके अतीत, प्रेम, सेक्स और एहसासों को लेकर उसके जो फ्रस्ट्रेशंस हैं, अवसाद हैं उनसे सम्बद्ध होती हैं.
सारा भी प्रेम और सेक्स को लेकर गहरे अवसाद में थीं. रेजी ने अपने प्रदर्शन में बड़ी ही कुशलता से मेडीयेटेड स्पेस में दो शरीरों के बीच जीवन और मृत्यु के विस्तार को दिखाया है और जीजो और अभिनय शुक्ल ने अपने कुशल अभिनय से इस नाटक में जान डाल दी है. दीपज्योति हालांकि चंद मिनटों के लिए ही मंच पर आती हैं लेकिन अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं. डिज़ाइन आधारित यह नाटक पूरी तरह से प्रयोग पर आधारित था. कलाकारों के बीच समन्वय, मंच सज्जा, ध्वनि, प्रकाश व्यवस्था सबकुछ उम्दा. निर्देशक रेजी और इसके मुख्य कलाकार अभिनय शुक्ला यह बताते हैं कि दरअसल यह नाटक नहीं, यह रंगमंचीय कला (परफार्मिंग आर्ट) पर आधारित, प्रॉपर्टीज पर आधारित एक प्रस्तुति है जिसमें थोड़े से नाटकीय तत्व हैं. नाटक के नाम से ही स्पष्ट है कि यह मनोविश्लेषण (सायको-एनालिसिस) पर आधारित नाटक है. इसमें कई जगह यह विभ्रम पैदा होता है कि कोई एक शरीर है जो दो शरीरों में बंट रहा है और फिर वह एकाकार हो रहा है.
अम्बिएंस आधारित इस नाटक में सांकेतिक रूप से मानव मस्तिष्क के विभ्रमों और दिग्भ्रमण को निर्देशक रेजी ने बखूबी दिखाया है. रेजी के टीम की ख़ास बात यह है कि उनकी टीम में अलग-अलग जगहों और विधाओं से आनेवाले कलाकार हैं जिन्होंने इस पूरे नाटक को खूबसूरती प्रदान की है. कोई चित्रकार है तो कोई मूर्तिकार, कोई गायक है तो कोई नर्तक. देश के अलग-अलग हिस्सों के अलावा इसमें विदेशी विशेष रूप से थाईलैंड की एक कलाकार की मंच परे महत्वपूर्ण भूमिका रही. नाटक बहुभाषायी था.
हिंदी, अंग्रेज़ी और मलयालम भाषा का प्रमुखता से प्रयोग किया गया था. इस महोत्सव में हुए चार नाटकों में रेजी के इस नाटक को सर्वाधिक सराहा गया. सबसे ख़ास बात यह है कि बेगूसराय के रंगकर्मियों के अलावा आम दर्शक भी डिज़ाइन और तकनीक आधारित इस नाटक से बोर नहीं हुए. उन्होंने भी इसका उतना ही आनंद लिया जितना थिएटर के मर्मज्ञ लोगों ने और नाटक के बाद इस पर उतनी ही चर्चा भी की.
के. मंजरी श्रीवास्तव कला समीक्षक हैं. एनएसडी, जामिया और जनसत्ता जैसे संस्थानों के साथ काम कर चुकी हैं. ‘कलावीथी’ नामक साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था की संस्थापक हैं जो ललित कलाओं के विकास एवं संरक्षण के साथ-साथ भारत के बुनकरों के विकास एवं संरक्षण का कार्य भी कर रही है. मंजरी ‘SAVE OUR WEAVERS’ नामक कैम्पेन भी चला रही हैं. कविताएँ भी लिखती हैं. प्रसिद्ध नाटककार रतन थियाम पर शोध कार्य किया है. manj.sriv@gmail.com |
नाटक तैयार करने की प्रक्रिया को जिस तरह प्रस्तुत किया गया है,वह उपयोगी और अनुकरणीय है। दोनों नाटकों की प्रस्तुतियों से परिचय कराने के लिए के.मंजरी के प्रति आभार।
जानकारीपूर्ण बढ़िया आलेख। प्रस्तुत करने का धन्यवाद।
यह सीरीज़ भी अपने तरह की अनूठी ही है। सबसे अच्छी बात इसमें युवा रंगकर्मियों के चुनिंदा नाटकों के बहाने उनकी समझ और भविष्य के रंगमंच की आहट है. बधाई समालोचन और मंजरी Manjari. मुझे लगता इस सीरीज़ का कोई बहुत अच्छा शीर्षक होना चाहिए.
रेजी और अभिलाष पिल्लई जी के काम को देखने की उत्सुकता मंजरी जी ने जगा दी है. इम्प्रोवाइज़ेशन के प्रॉम्प्ट्स पढ़ कर मज़ा आ गया, तरह तरह के नैरेटिव और एक्सपेरिमेंटल एक्ट्स मन में उभरने लगे. रेजी जी के नाटक ‘साइकोसिस’ में योको ओनो के काम को कैसे अन्तर्निहित किया गया होगा यह सोच कर मन कल्पना की उड़ान भरने लगा. दोनों निर्देशकों के काम से परिचय करवाने और उसका विश्लेषण करने के लिए मंजरी जी आपका शुक्रिया! रंगमच के उन सभी निर्देशक जो कल्पना के नए आयाम छु रहें हैं उन सभी के काम को सलाम!