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Home » अदूनिस : अनुवाद: निशांत कौशिक

अदूनिस : अनुवाद: निशांत कौशिक

94 वर्षीय अदूनिस इस समय दुनिया के श्रेष्ठतम कवि माने जाते हैं. 1988 से नियमित रूप से उन्हें साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया जा रहा है. उनकी तुलना टी.एस. इलियट से की जाती है. रज़ा फाउंडेशन की तरफ से भारत में उन्हें आमंत्रित करने के प्रयास अशोक वाजपेयी द्वारा किए गए थे पर अधिक खर्चीला होने के कारण यह कार्यक्रम संभव नहीं हो सका. उनकी कविताओं का यह अनुवाद निशांत कौशिक ने अंग्रेजी अनुवादों के सहारे किया है. निशांत कौशिक तुर्की के अध्येता हैं, अदूनिस के तुर्की अनुवादों से भी उन्हें मदद मिली है. अदूनिस को धर्म की आलोचना के कारण कई संकटों का सामना करना पड़ा. उनका अधिकतर जीवन निर्वासन में बीता है. इस समय वह पेरिस में रहते हैं. ‘मिहयार’ का मिथक एक तरह से उनका आत्म है. इसे वह भविष्य के सर्वोत्कृष्ट अरब व्यक्तित्व के रूप में परिकल्पित करते हैं जो न केवल स्वतंत्र है बल्कि जिसकी स्वतंत्रता भी स्वतंत्र है. यह ख़ास अंक प्रस्तुत है.

by arun dev
September 5, 2024
in अनुवाद
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अदूनिस : अनुवाद: निशांत कौशिक
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अदूनिस
अनुवाद: निशांत कौशिक

 

अली अहमद सईद असबर (अदूनिस), सीरियाई कवि, लेखक अनुवादक एवं सिद्धांतकार हैं. अदूनिस की काव्यात्मक महत्वाकांक्षा रवायती अभिव्यक्ति और शिल्प से परे जाती है. उनका काम एक गहन अन्वेषण है जो सभ्यताओं के बीच संवाद को उकसाता है तथा प्राचीन और आधुनिक के बीच पुल बनाता है. अदूनिस, पुराने विश्व के समृद्ध ताने-बाने में गहराई से उतरते हैं, ग्रीक और रोमन सभ्यताओं की शास्त्रीय धरोहर से लेकर आधुनिक फ्रांसीसी साहित्यिक परंपराओं तक, और साथ ही पूर्व-इस्लामी अरबी दुनिया के रहस्यमय पहलुओं में भी ख़ुद को समर्पित करते हैं.

अदूनिस ने आधुनिक अरबी कविता में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं. उन्होंने पारंपरिक रूपों की सीमाओं को तोड़ते हुए गीतिकाव्य की संरचना में प्रयोग कर इसे अधिक विविध और गतिशील बना दिया है.

उनकी प्रसिद्ध कविता शृंखला, “दमिश्क़ का मिहयार” अनुवाद के लिए ख़ासी चुनौती प्रस्तुत करता है. मिहयार के माध्यम से, अदूनिस ने खोज और संवाद की एक समृद्ध तस्वीर बनाई है, जो उनकी सभ्यतागत विषयों के प्रति लगाव और रुझान को दर्शाती है. मिहयार, कोई ऐतिहासिक या वास्तविक व्यक्ति नहीं है, बल्कि एक ऐसा प्रतीकपुरुष है जो मनुष्य की अंतहीन खोज, भटकाव और नए जीवन की परिभाषाओं की तलाश का प्रतिनिधित्व करता है. अनूदित कविताओं में शुरू की ७ कविताएँ इसी संकलन से हैं और बाक़ी अन्य से.

इन कविताओं के लिए मुख्य रूप से ख़ालिद मतावा के अनुवाद का सहारा लिया गया हैं. कहीं-कहीं अन्य भाषाओं तथा अन्य अनुवादकों के संस्करण का भी सहारा लिया है.

निशांत कौशिक

 

II दमिश्क़ का मिहयार  II

१.

न सितारा, न किसी पैग़म्बर की प्रेरणा
न ही चाँद पूजने में लीन कोई धर्मनिष्ठ चेहरा
वह आता है जैसे एक क़दीमी भाला
अक्षरों की धरती पर आक्रमण करता हुआ,
लहूलुहान, अपना ख़ून सूरज को सौंपते हुए
आता है वह पत्थर की तरह बरहना
अपनी प्रार्थनाओं को गुफाओं में धकेलता हुआ
वह आता है
लगाता है गले इस भारहीन धरती को

 

2.

वह नहीं जानता, चलन में सारे शब्द
नहीं जानता बियाबान की आवाज़
वह एक पुजारी है
पत्थर की तरह सोता हुआ
अजनबी भाषाओं के बोझ से तारी है

नए फूटते अलिफ़-बे के मलबे तले
रेंगता है
सौंपता है
अफ़सुर्दा हवाओं को
ताँबे की तरह खुरदुरी और जादुई कविताएँ
वह एक बोली है, लहरों के बल की सी
वह ना जाने हुए शब्दों का सूरमा है

 

3.

वह आने वाले शहर के कुएँ में
अपनी आँखें फेंक देने का सपना देखता है
और इससे पैदा हुए अंधकूप की ओर नाचते-फिरते चलने का
अपने उन दिनों को भूलने के, जब वह दृश्यों को निगलता था
उन दिनों को, जिन्होंने उन दृश्यों को पैदा किया
और उठने, ढह जाने का स्वप्न देखता है
जैसे कोई समंदर, मजबूर करे रहस्यों को जन्म लेने के लिए
आसमान के छोर से नया आसमान शुरू करते हुए

 

4.

मैं महामारी और आग के बीच रहता हूँ
अपनी भाषा के साथ, इन मूक दुनियाओं के बीच
मैं एक सेब के बाग़ और आकाश में रहता हूँ

जीवन की पहली ख़ुशी और उदासी में हव्वा के साथ,
उन लानती दरख़्तों की मालिक
उन फलों की मालिक

मैं बादलों और चिंगारी के बीच रहता हूँ,
पसरते हुए पत्थर में
एक ऐसी किताब में
जो रहस्य जानती है
और जानती है पतन

 

5.

आकाश, आओ, उतर आओ
मेरी सँकरी कब्र में
मेरी चौड़ी अबरुओं पर आराम करो
हो जाओ बे-हाथ और बे-चेहरा
बिना हलक़ की खड़खड़ाहट, बिन नब्ज़
उतरो
दो हिस्से कर लो अपनी काया के
एक मेरी परछाई और एक धरती

 

6.

आदम ने मुझसे सरगोशी की;

आह में घुटते हुए
सन्नाटे और फुसफुसाहटों में

‘मैं दुनिया का पहला आदमी नहीं हूँ
मैंने कभी बहिश्त नहीं देखा.
मुझे ख़ुदा तक ले चलो.’

 

7.

मैंने तुमसे कहा, मैंने समुद्रों को सुना,
अपनी कविताएँ सुनाते हुए
मैंने सुनी सीपियों में बजती हुई घंटियाँ
मैंने तुमसे कहा कि मैंने गाया था
शैतान की शादी में, मिथक के उत्सव में
मैंने तुमसे कहा कि मैंने देखा
इतिहास की बारिश में,
क्षितिज की चमक में,
ग्रीक नायिका निम्फ और एक घर

क्योंकि मैं अपनी आँख से यात्रा करता हूँ,
मैंने तुमसे कहा कि मैंने सब कुछ देखा
फ़ासले के पहले कदम में

 

II कुछ और कविताएँ II

Adonis

(एक)
तसल्ली

क्या इससे तुम्हें तसल्ली होगी
कि बादल हर पल आते और जाते हैं
फिर उनके बाद और बादल आते हैं
क्या इससे होगी तसल्ली कि
कब्रें दरअसल घर हैं
जहाँ लोग
दीवारों के भीतर रहकर बराबरी हासिल कर लेते हैं
क्या इससे कुछ दिलासा मिलेगा
कि हमारी नज़र सिर्फ़ उतना ही पकड़ पाती है
जितना बादल रच देते हैं
मेरी तसल्ली इसमें है
कि मैं जहाँ से आया हूँ
वह जगह अब भी मेरे कानों में
रहस्य फुसफुसाती है
और जिस समय का मैं हूँ
वह अभी भी अपने रंगों को ताज़ा करता है
पेड़ों की किताब में अपने पन्नों को पलटते हुए

 

(दो)
लालसा

मुझमें एक लालसा है, जो तमाम लालसाओं से परे है
बीतते हुए वर्षों की छाती को भरने की लालसा से इतर
चीज़ें इस तरह आती हैं
जैसे कोई और मंज़िल न जानती हों.
वे कहती हैं: हमारा होना, यूँ होने के सिवा मुमकिन नहीं
जैसे यह होना, होने से भी बड़ा हो
लालसा उठती है, पसरती जाती है, और हमेशा नाशाद रहती है
यह अपने आप से मुक्ति चाहती है
आकाश को धरती से जोड़ना चाहती है.

 

(तीन)
फ़ुरात
(Euphrates)

फ़ुरात उग्र है
इसके किनारों से उठती हैं छुरियाँ,
काँपती हुई धरती और गर्जना की मीनारें,
लहरें क़िला बनी हुई हैं
मैं भोर को देखता हूँ, जिसकी पंखियाँ कटी हुई हैं,
भीषण होती बाढ़ें, पानी के ही तर्रार भालों को गले लगा रही हैं
फ़ुरात भड़क रही है
इस चोटिल आक्रोश को बुझाने के लिए कोई आग नहीं
कोई प्रार्थना नहीं

 

(चार)
आईना

मैं आईना बन गया हूँ
मैंने सब कुछ प्रतिबिंबित कर दिया है
तेरी आग में, मैंने पानी और पौधे की रस्म को बदल दिया है
मैंने आवाज़ और पुकार का आकार बदल दिया है

मैं तुम्हें दो रूपों में देखता हूँ
तुम और यह मोती जो आँखों में तैर रहा है
पानी और मैं प्रेमी बन गए हैं
मैं पानी के नाम पर पैदा हुआ हूँ
और पानी मेरे भीतर पैदा हुआ है
हम जुड़वाँ बन गए हैं.

 

(पाँच)
मृत्यु का उत्सव

मृत्यु पीछे से आती है
हर साबक़े में
सामना जीवन से ही होता है

आँख एक सड़क है
और सड़क एक चौराहा

एक बच्चा जीवन के साथ खेलता है,
एक बूढ़ा आदमी झुकता है उसपर

बातूनी जीभ को ज़ंग लग जाती है
और सपनों की कमी से सूख जाती है आँखें

चेहरे पर झुर्रियाँ, दिल में गड्ढे
एक शरीर : आधा दरवाज़ा, आधा ढलान

उसका सिर है एक तितली
जिसका एक ही पँख है

आसमान पढ़ता है तुम्हें
जब मृत्यु लिख देती है

आसमान के दो स्तन हैं;
जिन्हें मुँह लगाए हैं लोग
हर जगह हर वक़्त

आदमी एक किताब है
जिसे पढ़ता है जीवन धीरे-धीरे
एक रौ में पढ़ लेती है जिसे मृत्यु
बस एक बार ही

और इस शहर का क्या?
इसमें भोर
समय नाम के अँधेरे में चलती हुई छड़ी की तरह है

बहार आयी घर के बाग़ीचे में
और संदूक़ खोल दिया अपना झाड़ों-दरख़्तों पर
बाँहों से गिरती बारिश के साथ

कवि यह ग़लती क्यों करता है
बहार उसे अपने पत्ते देती है
और वह उन्हें स्याही को दे देता है

हमारा अस्तित्व एक ढलान है
और हम उस पर चढ़ने के लिए जीते हैं

मैं तुम्हें बधाई देता हूँ रेत
तुम ही हो
जो एक ही कटोरे में पानी और भ्रम को रख सकती हो.

निशांत कौशिक
1991, जबलपुर, मध्य प्रदेश

जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली स्नातक, तुर्की भाषा एवं साहित्य मुंबई विश्वविद्यालय, महाराष्ट्र : डिप्लोमा, फ़ारसी तुर्की, उर्दू, अज़रबैजानी और अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद पत्रिकाओं में प्रकाशित.

विश्व साहित्य पर टिप्पणी, डायरी, अनुवाद, यात्रा एवं कविता लेखन में रुचि.
फ़िलहाल पुणे में नौकरी एवं रिहाइश.
kaushiknishant2@gmail.com

Tags: 20242024 अनुवादअदूनिसनिशांत कौशिक
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Comments 6

  1. रोहिणी अग्रवाल says:
    10 months ago

    अदूनिस की ओजपूर्ण कविताओं की विश्वदृष्टि भीतर तक बांधती है। जीवन और मृत्यु के इर्दगिर्द बुने गये रहस्यों के बीच सरसराते हुए ये कविताएं मनुष्य की अपराजेय जीवनी-शक्ति का सम्मान हैं। दरअसल मनुष्य ही जीवन है और ब्रह्मांड की संपूर्ण लय-ताल भी, बशर्ते अपनी ही संकीर्णताओं का अतिक्रमण करके वह कण-कण में स्थित अपने ही अ-पहचाने वजूद को पहचानने की संवेदना विकसित कर सके। ये कविताएं दर्शन की निगूढ़ताओं और अव्यक्त की अमूर्तताओं से भिगोकर मानस को समृद्ध करती हैं।

    Reply
    • पद्मसंभवा says:
      10 months ago

      ख़ालिद मत्तावा के अनुवाद में अदूनिस कई जगह ज़्यादा अंग्रेज़ी लगे थे. निशांत ने उन्हें हिन्दी कर के दिखा दिया है. बहुत बधाई, अदूनिस की बहुत-सी और कविताओं का अनुवाद करें. कितनी तो प्यारी कविताएँ रह गयीं !

      Reply
  2. Vijay Rahi says:
    10 months ago

    बहुत सुंदर कविताएं हैं। अनुवाद भी बहुत सहज है।
    निशांत कौशिक जी को बहुत बधाई और शुभकामनाएं। समालोचन का भी बहुत आभार 🌼

    Reply
  3. मुमताज़ इक़बाल says:
    10 months ago

    एक बहाव के साथ पढ़ता चला गया मैं! निशांत भाई के काम की तारीफ़ मैं करता रहा हूँ, चाहता हूँ कि वो ऐसे ही लगन से विश्व साहित्य को हम सबके सामने प्रस्तुत करते रहें।
    बहुत उत्कृष्ट रचनाओं का बहुत पठनीय एवं सफल अनुवाद।

    Reply
  4. Chandrakala Tripathi says:
    10 months ago

    बहुत सुंदर सृजनात्मक औरा में बसा हुआ अनुवाद और सचमुच जादुई कविताएं। ग़ज़ब का रुपाकारी अमूर्तन। बधाई समालोचन,ऐसी रुह में सांस भर जाने वाली कविताओं के लिए.

    Reply
  5. Digamber Digamber says:
    10 months ago

    बेहतरीन कविताएं। चयन भी और अनुवाद भी।

    Reply

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समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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