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Home » ऑर्बिटल : किंशुक गुप्ता

ऑर्बिटल : किंशुक गुप्ता

स्थापना दिवस पर मिले शुभाशीष के लिए समालोचन आपके प्रति हृदय से आभार व्यक्त करता है. वह जो कुछ है अपने लेखकों और पाठकों के कारण ही हैं. ब्रिटिश लेखिका सामंथा हार्वे की पुस्तक ‘ऑर्बिटल’ ने अंततः 2024 का सम्मानित बुकर पुरस्कार जीत लिया है. इसके लिए उन्हें पचास हजार पाउंड मिलेंगे. 1 अक्टूबर 2023 से 30 सितंबर 2024 के बीच अंग्रेजी में प्रकाशित 156 उपन्यासों में से इसका चयन हुआ. इस पुरस्कार के लिए पुस्तकों का प्रकाशन ब्रिटेन या आयरलैंड से होना अनिवार्य है. ‘The Wilderness’, ‘All Is Song’, ‘Dear Thief’, ‘The Western Wind’ के बाद ‘Orbital’ सामंथा हार्वे का पांचवाँ उपन्यास है. छह अंतरिक्ष यात्रियों पर आधारित अपेक्षाकृत आकार में छोटे इस उपन्यास की अब तक 29000 प्रतियाँ बिक चुकी हैं. इस उपन्यास की चर्चा कर रहे हैं लेखक-संपादक किंशुक गुप्ता. पुरस्कार की घोषणा हुए कुछ ही घंटे हुए हैं. और हिंदी में यह ख़ास सामग्री आपके लिए.

by arun dev
November 13, 2024
in समीक्षा
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ऑर्बिटल : किंशुक गुप्ता
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ऑर्बिटल 
अंतरिक्ष यात्रियों की दुनिया 

किंशुक गुप्ता

 

अंतरिक्ष शब्द सुनते ही मैं आतंकित महसूस करता हूँ. मैं जिस शहर में बढ़ा हुआ वह करनाल के बहुत नज़दीक था जहाँ चाँद पर कदम रखने वाली पहली भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला का जन्म हुआ था.

जब टेलीविज़न पर कोलंबिया स्पेस शटल के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर प्रसारित हुई थी, तो मैंने क्षोभ महसूस किया था. अंतरिक्ष यात्री तकनीकी गड़बड़ियों से अवगत थे. ठीक करने के प्रयासों के बावजूद जैसे ही शटल ने पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश किया, एक ज़ोर से विस्फोट हुआ और उसी गर्मी में पुर्जे-पुर्जे हुआ यान पिघलकर बिखर गया.

मैं अक्सर सोचता था: मृत्यु के मुहाने पर खड़े होना, उसकी उपस्थिति को स्पष्ट रूप से महसूस करने के बावजूद भी कुछ न कर पाने की जद्दोजहद कितनी कष्टदायक होती होगी?

सामंथा हार्वे द्वारा लिखित लघु उपन्यास ऑर्बिटल अंतरिक्ष में होने की विडंबनाओं से जूझता है. एक ही वर्ष में इसे बुकर पुरस्कार और उर्सुला के. ले गुइन पुरस्कार दोनों के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया, हार्वे का यह पाँचवाँ उपन्यास शैली और विषय दोनों में उनके पिछले उपन्यासों से मिलता-जुलता है, जिनके केंद्र में स्थितियों के गठजोड़ से उत्पन्न हुए उस महत्वपूर्ण क्षण यानी टिपिंग प्वाइंट की पड़ताल होती है, जब हकीकत तुरंत पलट जाती हैं.

इन दो हकीकतों के बीच झूलता हार्वे का गद्य ‘कॉज़-इफेक्ट’ की जटिल समीकरणों से गुजरता हुआ जीवन के सतत संवेग का साक्षी बनता है. कैपिटलिज्म या दक्षिणपंथ जैसी किसी भी व्यापक शक्ति को एक व्यक्ति या स्थिति पर आरोपित कर वह उनके व्यक्तिगत परिणामों का बखूबी विश्लेषण करती हैं. तब बीमारी (द विलडरनेस) या आपदा (द वेस्टर्न विंड) एक डेवलपर द्रव बन जाता है, जिसमें डूबते ही स्थितियाँ अपनी फोटोग्राफिक वास्तविकता में तुरंत दृश्यमान हो जाती हैं.

ऑर्बिटल के लिए वह अनिश्चित क्षण बाहरी अंतरिक्ष बनता है. विभिन्न राष्ट्रीयताओं के छह अंतरिक्ष यात्री—नेल, चीय, एंटोन, रोमन, पिएट्रो और शॉन- अंतरिक्ष में भेजे जाते हैं. जब उनका अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाता है, उन्हें अंदर से तस्वीरें खींचनी होती हैं, प्रयोग करने होते हैं और डेटा एकत्र करना होता है. डगलस एडम्स की ‘द हिचहाइकर गाइड टू द गैलेक्सी’ या ऑर्थर सी. क्लार्क की ‘रेंडेवू विद राम’ जैसी अंतरिक्ष के बारे में स्काई-फाई पुस्तकों से अलहदा, ऑर्बिटल अंतरिक्ष को वैकल्पिक घर या किसी सामाजिक समस्या के समाधान के रूप में देखने की कोशिश नहीं करता.

हाल ही में बीबीसी को दिए गए एक साक्षात्कार में हार्वे ने कहा कि ऑर्बिटल पर काम करते समय उन्होंने अंतरिक्ष से ली गई पृथ्वी की ‘हज़ारों-हज़ारों घंटे’ की फुटेज देखी थी. महामारी के दौरान काम करते हुए, हार्वे ने कहा, ऐसा महसूस हुआ कि ‘हर दिन ऐसा करने में सक्षम होना एक तरह की खूबसूरत मुक्ति है, और साथ ही मैं छह लोगों के बारे में लिख रही हूँ जो एक टिन के डिब्बे में फँसे हुए हैं.’

डेढ़-सौ पन्नों में छोटे से फ़लक में फैले इस उपन्यास के बारे में सबसे रोचक बात यह है कि इसमें कोई ठोस कथानक नहीं है. दो घटनाएँ कॉन्फ्लिक्ट की झलक देती हैं: चीय की माँ की अचानक मृत्यु और ‘बीमारी से दुबलाए’ इंडोनेशिया के तट पर पनपते तूफ़ान के आसार. लेकिन लेखक द्वारा उनका ट्रीटमेंट भी निष्पक्ष, गैर-नाटकीय तौर पर ही किया गया है. अंतरिक्ष यान द्वारा एक ही ‘पृथ्वी दिन’ में किए गए सोलह चक्करों के इर्दगिर्द बुनी हुई यह कहानी तरल रूप से आगे बढ़ती है. गीतात्मक गद्य और लंबे वाक्यों का उपयोग करते हुए यह मानवीय अस्तित्व की जटिल संरचना को समझने की कोशिश करते हुए आगे बढ़ती है.

‘किसी चिकने उभयलिंगी की तरह उछलते-कूदते’ यान में यात्रा करते हुए उन पर अचानक छोटेपन का शक्तिशाली अहसास हावी हो जाता. वे पृथ्वी को माँ के रूप में और अपने आप को उसके बच्चों के रूप में देखने लगते हैं. जब वे खिड़की के बाहर आकर्षक हरे-भूरे रंगों में चमकते महाद्वीपों, नीले विशाल महासागरों और ‘वायुमंडल के परे कुचले पड़े चंद्रमा को देखते हैं, जो उनके ऊपर न होकर उनके समकक्ष है’ तब नगण्यता का यह एहसास और भी गहरा जाता. अपने होने की अवधारणा उसी तरह गौण हो जाती जैसे शारीरिक भारहीनता.

हालांकि ऐसे कालातीत, शून्य-गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में विचरने की उच्छृंखलता को पृथ्वी के कठोर, गणनीय मापदंडों से सावधानीपूर्वक संतुलित करने की जरूरत भी अवश्यंभावी हो जाती. दिन और रात की अवधारणा का ठीक-ठाक अनुमान लगा पाना भी काम बन जाता, जैसे सूक्ष्म-गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में ‘प्रयोगशाला के चूहों की तरह’ तैरते अपने शरीरों पर कठोर निगरानी रखना.

‘रोमन अपने क्रू क्वार्टर में कागज़ के टुकड़े पर बनी टैली में अट्ठासीवीं पंक्ति जोड़ देगा. अन्यथा केंद्र बदल जाता है. अंतरिक्ष समय को टुकड़ों में बांट देता है. यह उन्हें प्रशिक्षण के दौरान बताया गया था: जब आप जगें तो हर दिन एक टैली रखें; खुद से कहें कि यह एक नए दिन की सुबह है. इस मामले में खुद से स्पष्ट रहें. यह एक नए दिन की सुबह है.’

चुनाव के विकल्प की उपस्थिति (या अनुपस्थिति) भी उपन्यास में निहित दिलचस्प दुविधा है. एक सख्त दिनचर्या में दिन बिताने के चलते उनका अपने जीवन से नियंत्रण छीन लिया गया है. यह उन्हें बोझ-रहित महसूस कराता है. चुनने की पीड़ा से मुक्त होकर वे दोबारा युवा हो गए हैं. वे कभी-कभी चुनाव के इस अधिकार को मनुष्य के अहंकार से जोड़कर देखते हैं. हालांकि स्वतंत्रता के इस आह्लादित एहसास के बावजूद वे अचानक अपने को शक्तिहीन भी पाते हैं. उनके पास कैमरा पकड़े पृथ्वी की ‘बनती भव्यता’ की ‘चिंताजनक’ दृश्य खींचने का विशेषाधिकार तो है लेकिन वे उस जानकारी का कोई विशेष प्रयोग नहीं कर सकते.

Las Meninas, by Diego Velázquez, 1656, in the Prado Musem, Madrid, Spain.

निश्चितता और अनिश्चितता, वास्तविकता और भ्रम, कला और जीवन के बीच के द्वंद्व को विच्छेदित करने के लिए हार्वे रहस्यपूर्ण ‘लास मेनिनास’ का उपयोग करती हैं. मैड्रिड के म्यूजियो डेल प्राडो में रखी यह पेंटिंग 1656 में स्पेनिश बरोक के प्रमुख कलाकार डिएगो वेलाज़क्वेज़ द्वारा बनाई गई थी. डॉन किख़ोटे और नाटक ‘लाइफ इज़ ए ड्रीम’ से प्रेरित, इस पेंटिंग में राजा-रानी, महिलाओं का झुंड (लास मेनिनस का शाब्दिक अर्थ है द लेडीज़-इन-वेटिंग), एक कुत्ता और यहाँ तक कि खुद चित्रकार भी उपस्थित है. कौन-किसको-क्यों देख रहा है और इसे बनाने के पीछे चित्रकार का क्या मंतव्य है, इसकी कोई साफ़-स्पष्ट व्याख्या संभव नहीं.

माइकल फूको ने अपनी 1966 में प्रकाशित पुस्तक ‘द ऑर्डर ऑफ थिंग्स’ में प्रस्तावित किया कि यह पेंटिंग चित्रकार, विषय-मॉडल और दर्शक के बीच सचेत कृत्रिमता और दृश्य संबंधों के माध्यम से नए ज्ञानमीमांसा के संकेतों को दर्शाती है. वह लिखते हैं:

‘यह हमारे लिए जिस स्थान को खोलता है उसकी परिभाषा… प्रतिनिधित्व, अंततः उस संबंध से मुक्त हो जाता है जो इसे बाधित कर रहा था, अपने शुद्ध रूप में प्रतिनिधित्व के रूप में खुद को प्रस्तुत कर सकता है.’

यह उपन्यास मनुष्य जीवन की अनिश्चितता को देखने के कई सुविधाजनक बिंदु प्रस्तावित करता है: पृथ्वी पर जीवन के एक विहंगम दृश्य के अलावा, जीवन को देखने के अनेक ज़ूम्ड-इन दृश्य उपस्थित हैं: उनके परिवारों से आते नियमित ईमेल, उनका ‘तैरता हुआ परिवार’, और प्रयोगात्मक चूहों के तीन समूह: वे जो ‘हथेलियों में बेर’ की तरह खत्म हो रहे हैं जैसे उनकी ‘आत्माएँ ढह गई हों’; वे जिन्हें उनकी माँसपेशियों को बर्बाद होने से रोकने के लिए नियमित रूप से इंजेक्शन दिया जा रहा है; और वे जो आनुवंशिक रूप से संशोधित, अधिक मजबूत और भारी हैं और गुरुत्वाकर्षण के साथ जीवन के लिए तैयार हैं. साथ ही अंतरिक्ष यान का शरीर जो उन्हें धरती की कक्षा में तैराए रखता है जब उनके शरीर की कोशिकाएँ अपने आप को खा रही हैं. जीवन के इस रहस्यात्मक अवधारणा के विपरीत चीय की माँ की मृत्यु की त्वरित खबर है.

ऑर्बिट अवधारणा पर आधारित है- बड़ा’ और ‘छोटा’, ‘वास्तविकता’ और ‘भ्रम’ जैसे तथ्यों को ज़ूम इन और आउट करते हुए यह हमें अपनी समझ पर कठोर, निर्मम नज़र डालने के लिए उकसाता है कि क्या ये अवधारणाएँ कभी इतनी निरपेक्ष या निश्चित होती हैं जितना हम सोचते हैं.

‘और समय के साथ हम यह देखने लगते हैं कि हम ब्रह्मांड के किनारे पर हैं, लेकिन यह किनारे पर स्थित ब्रह्मांड है, जिसमें कोई केंद्र नहीं है, केवल चहलकदमी करने वाली चीज़ों का एक समूह है, और शायद हमारी समझ की संपूर्णता हमारे अपने बाहरीपन के एक विस्तृत और निरंतर विकसित होने वाले ज्ञान से बनी है, वैज्ञानिक जांच के साधनों द्वारा मानव जाति के अहंकार को तब तक कुचला जाता है जब तक कि वह अहंकार न बन जाए, एक बिखरी हुई इमारत जो प्रकाश को अंदर आने देती है.’

उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ और इतिहास- रोमन के नायक सर्गेई क्रिकेलेव, जिसे यू.एस.एस.आर. द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया था पर उसे मीर की कक्षा में लंबे समय तक रहना पड़ा क्योंकि तब तक यू.एस.एस.आर. का अस्तित्व समाप्त हो चुका था, या चीय के घर की दीवार पर चिपकी चंद्रमा पर लैंडिंग दिवस की तस्वीर- बौने होने लगते हैं. वे खुद को और अपने सभी पूर्वजों को सिर्फ़ प्रयोगशाला के चूहों के रूप में देखने लगते हैं जिनकी यात्राएँ जल्द ही ‘कोच भ्रमण की तरह लगेंगी, और उनकी उँगलियों पर खुलने वाली संभावना के क्षितिज केवल उनकी अपनी छोटेपन और संक्षिप्तता की पुष्टि करेंगे.’

ऑर्बिटल की बड़ी सफलता यह भी है-  एक ऐसी जगह की कथा कहना जो स्थिर नहीं है, जो लगातार घूम रही है. कथानक पल-प्रतिपल बदलते दृश्यों को सफलतापूर्वक क्रमबद्ध करता है. एक समय पर अंतरिक्ष यात्री ‘महाद्वीपों को एक दूसरे से टकराते हुए या रूस और अलास्का को नाक से नाक सटाते हुए’ देखकर खुश हो जाते हैं, लेकिन जल्द ही वे इस ‘निरंतर ट्रेडमिल’ से थक भी जाते हैं. ‘कभी-कभी उन पिछड़ते महाद्वीपों को अपने-आप से दूर धकेलना कठिन हो जाता है. वहाँ होने वाला सारा जीवन, जो आया और चला गया, आपकी पीठ पर बैठ जाता है.’ यहाँ तक कि सूक्ष्म बदलावों को भी कुशलतापूर्वक रेखांकित किया गया है.

कभी-कभी अंतरिक्ष यान सांसारिक द्वेष से सुरक्षा महसूस कराता है; कभी-कभी वह निष्क्रियता व्याप्त एक तंग जगह लगने लगती है. उदाहरण के लिए, पिएट्रो की बेटी द्वारा उससे पूछा गया सवाल: क्या प्रगति सुंदर हो सकती है? पृथ्वी पर रहते हुए, उसने इसका सकारात्मक उत्तर दिया था, और जोड़ा था कि प्रगति का अर्थ जीवित होना होता है जो अपने आप में ही एक सुंदर अवस्था है. लेकिन अंतरिक्ष यान पर रहते हुए जब उन्हें ‘मनुष्य के विक्षिप्त हमले’ देखने को मिले, तब उन्हें यह आश्चर्य हुआ कि प्रगति कोई चीज़ न होकर ‘रोमांच और विस्तार की भावना है जो पेट से शुरू होकर छाती तक पहुँचती है.’

अंत में, शॉन को अहसास होने लगता है कि शायद लास मेनिनास उस कुत्ते के बारे में है जो इंसान होने के विशिष्ट परन्तु हास्यास्पद तरीकों को देखकर भौचक्का है. इस तरह ऑर्बिटल इंसान होने या (न होने) के उन सभी दार्शनिक और समसामयिक सवालों के जूझता है जिन पर गौर करना अत्यंत जरूरी है. यदि हमने अपने जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन नहीं किया तो वह दिन बहुत दूर नहीं जब हम केवल पृथ्वी की उसी तरह देख पाएंगे जैसे वे छह अंतरिक्ष यात्री देख रहे हैं.

इस प्रकार ऑर्बिटल जीवन की भव्यता का प्रशस्ति पत्र भी है. यह जीवन के नए तरीकों और विरोधाभासों को स्वीकार करने और खुद को इसकी प्रबल शक्तियों के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए कहता है.

‘मानव उपलब्धि के किसी शिखर पर पहुँचना केवल यह पता लगाने के लिए काफ़ी है कि आपकी उपलब्धियाँ कुछ भी नहीं हैं और यह समझना किसी भी जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है, जो अपने आप में कुछ भी नहीं है, और हर चीज़ से कहीं ज़्यादा है. कोई धातु हमें शून्य से अलग करती है; मृत्यु बहुत करीब है. जीवन हर जगह है, हर जगह.’

_________

किंशुक गुप्ता

मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ लेखन से कई वर्षों से जुड़े हुए हैं. अंग्रेज़ी के प्रमुख अखबारों जैसे द हिंदु, द हिंदु बिज़नेस लाइन, द हिंदुस्तान टाइम्स, न्यू इंडियन एक्सप्रेस, द डेक्कन हेराल्ड, टाइम्स ऑफ इंडिया, द क्विंट, स्क्रॉल, आउटलुक, लाइव मिंट, द कारवाँ के लिए स्वतंत्र लेखन. यूनिवर्सिटी ऑफ पेनिस्लीवेनिया, स्पॉल्डिंग यूनिवर्सिटी केंटकी की पत्रिकाओं में प्रकाशित. रैटल, द इंकलैट, द पेन रिव्यू, हंस, पाखी इत्यादि में प्रकाशित. बेस्ट एशियन पोएट्री 2021 के लिए दो कविताएँ चयनित. हाइकु के लिए रेड मून एंथोलॉजी और टचस्टोन अवार्ड्स के लिए मनोनीत. डॉक्टर अनामिका पोएट्री प्राइज़ (2021), रवि प्रभाकर स्मृति लघुकथा सम्मान (2022), निशा गुप्ता अखिल भारतीय युवा कहानी प्रतियोगिता (2022) से पुरस्कृत. जैगरी लिट और द मिथिला रिव्यू के कविता संपादक और उसावा लिटरेरी रिव्यू के सहायक संपादक के तौर पर कार्यरत.

‘ये दिल है कि चोर दरवाज़ा’ कहानी संग्रह 2023 में वाणी से प्रकाशित.

Tags: 20242024 Booker PrizeOrbitalOrbital by Samantha Harvey wins 2024 Booker PrizeSamantha Harveyऑर्बिटलकिंशुक गुप्ता
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Comments 6

  1. Pawan Karan says:
    8 months ago

    शुक्रिया।

    Reply
  2. deepak sharma says:
    8 months ago

    Congratulations and thanks to both Arun Dev ji and Kishunk Gupta ji for their ready and prompt response to the announcement of the Man Booker Prize 2024.
    And making it available to the Samalochan readers,much to their delight.
    Having been described as a Space Pastoral by Samantha Harvey herself,Orbital had naturally
    piqued our interest and is very much welcome.
    Warm regards.
    Deepak Sharma

    Reply
  3. सवाई सिंह शेखावत says:
    8 months ago

    सामंथा हार्वे के उपन्यास ‘ऑर्बिटल’ की महिमा इसलिए और बढ़ जाती है कि उसमें एक ऐसे दुर्लभ विषय को कथानक का आधार बनाया है जिसके लिए गहरी वैज्ञानिक समझ की ज़रूरत है।ऐसा उपन्यास केवल कल्पना शक्ति अथवा वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर ही लिखा जाना संभव नहीं है।दोनों के गहरे तालमेल और सूक्ष्म अवलोकन से ही यह संभव है।क्या हिंदी में ऐसे किसी उपन्यास की कल्पना भी संभव है?

    Reply
  4. Ved Prakash Srivastav says:
    8 months ago

    द ऑर्बिटल की स्टोरी रोमांचक है अनुवाद सहजता से किया गया है इसे पढ़ना मौलिक रूप में रचनात्मकता को बढ़ाएगा किंशुक भाई को साधुवाद

    Reply
    • Vijay Sharma says:
      7 months ago

      Where’s the translation?

      Reply
  5. Dinesh Shrinet says:
    7 months ago

    कुछ समय पहले जब मैं बुकर पुरस्कार की बेवसाइट पर लांग लिस्ट देख रहा था, तो संयोग से हिशाम मातार की ‘माई फ्रैंड्स’ और सामंथा हार्वे की ‘ऑर्बिटल’ ने मेरा ध्यान खींचा था. ऐसा लगता है कि परिस्थितियों से मनुष्य जीवन की विडंबनाओं और वहां से एक वैचारिक यात्रा तक ले जाने वाले विषयों की आज जरूरत है. ऐसा फिक्शन जो रोशनी की तरह हमारे जेहन पर काम करे, चीजें और स्पष्टता हासिल करें मगर किसी बाहरी नज़रिए से नहीं हमारी खुद की सोच में वह स्पष्टता आए. स्पेस पर आधारित होने के बावजूद खुद हार्वे इसे साइंस फिक्शन नहीं बल्कि एक यथार्थवादी उपन्यास मानती हैं. उनका साक्षात्कार पढ़ते हुए मुझे लगा कि इन किताबों के बारे में हिंदी कम ही बात हो पाती है. मुझे पुरस्कारों की शॉर्ट लिस्ट और लांगलिस्ट देखना काफी पसंद है, सम्मानों से परे कई बेहतरीन किताबों का अस्तित्व होता है जो कई बार शोर-शराबे में अनकही-अनदेखी रह जाती है. बहरहाल आर्बिटल ने पुरस्कार जीत भी लिया. समालोचन ने इधर अनूठे संतुलन के जरिए भारतीय और वैश्विक साहित्य के प्रासंगिक पलों से खुद को जोड़े रखा है. किंशुक हिंदी की दुनिया में लगातार नवाचारी हस्तक्षेप कर रहे हैं. दोनों को शुभकामनाएं.

    Reply

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