प्रस्तरकलाअनिता दुबे |
प्रस्तर अर्थात पत्थर जो निर्जीव हैं उनका सजीव चित्रण कलाकृतियों में माध्यम होना प्रस्तरकला है.
हमारे आस पास प्रकृति ने मनुष्य को हर वो सामग्री और दृष्टि दी है जिससे जीवन रचा जा सकता है. चाहे वह मिट्टी हो लकड़ी हो, फूल, फल या पत्थर ही क्यों न हो. हमें नदी तालाब झरने समुद्र किनारे और पहाड़ों से लेकर अपने आसपास असंख्य पत्थर अपने निर्जीव स्वरूप में मिलते हैं. पहली दृष्टि में हम उनके रंग चमक और आकार से प्रभावित होते हैं. दूसरी दृष्टि में आकार और भाव से भी पहचान सकते हैं. और तीसरी दृष्टि से हम उन्हें अपनी कल्पनानुसार उपयोग करते हुए जीवनका हर दृश्य रच सकते हैं.
मेरी मां को पत्थरों से लगाव था जिसे देखकर मेरे बचपन में नर्मदा नदी से पत्थर जमा होने लगे पहले रंग फिर आकार ने ही इन निर्जीव पत्थरों से दोस्ती करवाई बाद में कुछ आकृतियां खेल-खेल में गढ़ी जिसमें नाविक, कछुआ,नाव घर, गांव और बाद में ताजमहल शामिल हुआ.
सेना अधिकारी पति के साथ देश के कोने-कोने में बहुत से प्रदेशों और दर्शनीय स्थलों पर जाना हुआ दुर्लभ दुर्गम स्थानों पहाड़ों नदी समुद्र से जुड़ाव ने फिर पत्थरों से प्रेम करना सिखाया. यहीं से पत्थर आकृतियों के चित्र सृजन की वापस शुरुआत हुई. धीरे-धीरे हर विषय, वस्तु, दिन, समय, अवसर, व्यक्तित्व, कविताएं और कहानियां भी इन्हीं पत्थरों ने कहना शुरू किया. नर्मदा, बेतवा, ब्रम्हपुत्रा, गंगा, तीस्ता, तोरसा, यमुना, जैसी कई नदियों के पत्थर घर आते रहे.
बरसों से सहेज कर रखे पत्थरों से गांधी जी की कुछ तस्वीरें बनाई थीं. अमृत महोत्सव वर्ष में गांधी जी का स्मरण करते हुए महात्मा गांधी एक शान्ति दूत के जीवन की कुछ प्रमुख घटनाओं को प्रस्तर कला से बनाने का प्रयास किया है. पत्थर जो निर्जीव हैं जो खनिजों का मिश्रण मात्र है. वे भी इस प्रयास में मेरे साथ ऐसे जुड़े की जब जिस आकार को सोचा वैसे पत्थर मुझे अपने संग्रह में ही मिलते गए.
तुलसी और बांस की तीलियों के साथ कुछ टूथ पिक्स, ब्राउन पेपर, सफेद पेपर, जूट, सुतली, सूती धागे, बजरी, कंकर, ईंट, गमले के टुकड़े, कुछ पत्थरों के बारीक टुकड़ों ने और सड़क बनाने वाली गिट्टी ने भी इन कलाकृतियों में अपना योगदान दिया. ये सभी वे माध्यम हैं जिन्हें हम बहुत छोटा समझने की गलती करते हैं.
इन्हीं नन्हें समझे जाने वाले माध्यम से महात्मा गांधी जैसे विशाल व्यक्तित्व की रचना की प्रस्तुति करने का मन बना और तब कोरोना काल के कुछ माह पहले इसकी शुरुआत की पिछले ढाई साल तक गांधी जी पर लिखे को पढ़ा, गांधी भवनों में जाकर जानकारियां लीं और तब शान्ति दूत गांधी जी को प्रस्तरकला से बनाई. जहां आज के समय आदमी पत्थरों के समान शुष्क और कठोर बन रहा है वहीं गांधी जी के विचार से पत्थरों को नर्म और संवेदनशील बनाने का मेरा यह प्रयास आप सभी के लिए है.
ll महात्मा गांधी ll
1.
२.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9.
10.
अनिता दुबे कविता संग्रह: एक और सुबह (2009), बाल कविताएँ-बचपन (2016),अँकुरित होती हैं स्त्रियाँ (२०२२) प्रस्तर कला पता: अनिता दुबे |
यह बहुत अच्छा काम । अभी हफ्ते भर पहले भोपाल में उन्होंने अपनी प्रदर्शनी में बुलाया था । इस कला में अपनी कल्पनाशीलता को पिरोना अद्भुत है ।
टैगोर की दाढ़ी देख कर मुझे बहुत अचरज हुआ था. उस पर गांधी जी की ओढ़ी हुई धोती पर सलवटें .. कमाल करती हैं अनिता जी. हमेशा ही .
यह अभिनव काम है। निश्चित ही अनिता जी का कवि रूप इस कल्पनाशीलता में सहयोगी है। उन्हें बधाई। समालोचन के लिए भी कि यह सब एक जगह पेश कर दिया है।
ओहो! रचनात्मकता असीम है। आकाश से भी अनूठी। कल्पना। बहुत कलात्मक प्रस्तुति। कलाकार को मेरी बधाई
अभिव्यक्ति का बहुत कलात्मक माध्यम बन गए हैं प्रस्तर अनीता जी की प्रस्तर कला से , साधुवाद
समालोचन पर इसे संजोने हेतु बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं 💐
कमाल है। कला का इतना प्रभावी रूप ! वाह ! इनका बाल संग्रह कैसे मिलेगा ?
नितान्त मनमोहक
अनीता दुबे के पास यह गज़ब की कला है। पत्थरों को चुनना और चुनकर एक आकार देना आसान तो नहीं। बिना कल्पनाशीलता के यह संभव नहीं है। जैसे एक चित्रकार कूंची से चित्रों को आकार देता है, उसी तरह अनीता दुबे जी अपनी कल्पनाशक्ति से इन पत्थर, तीली, धागे से चित्रों का अतुलनीय विन्यास बुनती हैं। यह कला है और अनीता जी अनोखी कलाकार।
गांधीजी पर उनकी यह चित्र-वीथिका उनकी कला का उच्चतर नमूना है। पिछले दिनों वे विदिशा में हमारे साथ थीं। सांची भ्रमण पर वे चीन्हें-अचीन्हें पत्थर कलेक्ट कर रही थीं। उनकी यह प्रतिभा देखकर मुझे बेहद खुशी सुई।
अनीता जी को बहुत बधाई और शुभकामनायें।
अद्भुत! कल्पना संकल्पना, रचना – संरचना सब अद्भुत अप्रतिम। बहुत बहुत बधाई कलाकार को और धन्यवाद भी, कला के इतने अनूठे रूप काअनुभव कराने के लिए।
अदभुद कलाकृति और कल्पनाशीलता
बस, अद्भुत