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समालोचन

Home » गांधी और अनिता दुबे की प्रस्तरकला

गांधी और अनिता दुबे की प्रस्तरकला

पत्थर, बजरी, तीलियाँ और धागे आदि को मिलाकर कविता जैसी कोई कृति भी क्या बन सकती है. भोपाल में कुछ दिन पहले अनिता दुबे की महात्मा गांधी पर केन्द्रित प्रस्तरकला प्रदर्शनी देखने का अवसर मिला. जैसे गांधी का शिल्प और विचार भी इनमें ढल गये थे. यह विषय को आत्मसात किये बिना संभव नहीं लगता. दर्शक औचक खड़ा देखता रहता है कि यह कैसे संभव हुआ होगा. व्यक्तित्व और विचारों की नज़ाकत को ये पत्थर के टुकड़े कैसे सजीव कर सकते हैं? बहरहाल उनमें से कुछ चित्र यहाँ प्रस्तुत हैं. इन कृतियों को गांधी संग्रहालय जैसी जगहों पर स्थायी रूप से प्रदर्शित करना चाहिए.

by arun dev
December 12, 2022
in शिल्प
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गांधी और अनिता दुबे की प्रस्तरकला
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प्रस्तरकला

अनिता दुबे

प्रस्तर अर्थात पत्थर  जो निर्जीव हैं उनका सजीव चित्रण कलाकृतियों में माध्यम होना प्रस्तरकला है.

हमारे आस पास प्रकृति ने मनुष्य को हर वो सामग्री और दृष्टि दी है जिससे जीवन रचा जा सकता है. चाहे वह मिट्टी हो लकड़ी हो, फूल, फल या पत्थर ही क्यों न हो. हमें नदी तालाब झरने समुद्र किनारे और पहाड़ों से लेकर अपने आसपास असंख्य पत्थर अपने निर्जीव स्वरूप में मिलते हैं. पहली दृष्टि में हम उनके रंग चमक और आकार से प्रभावित होते हैं. दूसरी दृष्टि में आकार और भाव से भी पहचान सकते हैं. और तीसरी दृष्टि से हम उन्हें अपनी कल्पनानुसार उपयोग करते हुए जीवन‌का हर दृश्य रच सकते हैं.

मेरी मां को पत्थरों से लगाव  था जिसे देखकर मेरे बचपन में नर्मदा नदी से पत्थर जमा होने लगे पहले रंग फिर आकार ने ही इन निर्जीव पत्थरों से दोस्ती करवाई बाद में कुछ आकृतियां खेल-खेल में गढ़ी जिसमें नाविक, कछुआ,नाव घर, गांव और बाद में ताजमहल शामिल हुआ.

सेना अधिकारी पति के साथ देश के कोने-कोने में बहुत से प्रदेशों और दर्शनीय स्थलों पर जाना हुआ दुर्लभ दुर्गम स्थानों  पहाड़ों नदी समुद्र से जुड़ाव ने  फिर पत्थरों से प्रेम करना सिखाया. यहीं से पत्थर आकृतियों के चित्र सृजन‌ की वापस शुरुआत हुई. धीरे-धीरे हर विषय, वस्तु, दिन‌, समय, अवसर, व्यक्तित्व, कविताएं और कहानियां भी इन्हीं पत्थरों ने कहना शुरू किया. नर्मदा, बेतवा, ब्रम्हपुत्रा, गंगा, तीस्ता, तोरसा,  यमुना, जैसी कई नदियों के पत्थर घर आते रहे.

बरसों से सहेज कर रखे पत्थरों से गांधी जी की कुछ तस्वीरें बनाई थीं. अमृत महोत्सव वर्ष में गांधी जी का स्मरण करते हुए महात्मा गांधी एक शान्ति दूत  के जीवन की कुछ प्रमुख घटनाओं को प्रस्तर कला से  बनाने का प्रयास किया है. पत्थर जो निर्जीव हैं जो खनिजों का मिश्रण मात्र है. वे भी इस प्रयास में मेरे साथ ऐसे जुड़े की जब जिस आकार को सोचा वैसे पत्थर  मुझे अपने संग्रह में ही मिलते गए.

तुलसी और बांस की तीलियों के साथ कुछ टूथ पिक्स, ब्राउन पेपर, सफेद पेपर, जूट, सुतली, सूती धागे, बजरी, कंकर, ईंट, गमले के टुकड़े, कुछ पत्थरों के बारीक टुकड़ों ने और  सड़क बनाने वाली गिट्टी ने भी इन कलाकृतियों में अपना योगदान दिया. ये सभी वे माध्यम हैं जिन्हें हम  बहुत छोटा समझने की गलती करते हैं.

इन्हीं नन्हें  समझे जाने वाले माध्यम से  महात्मा गांधी जैसे विशाल व्यक्तित्व की रचना की प्रस्तुति  करने का मन बना और तब कोरोना काल के कुछ माह पहले इसकी शुरुआत की पिछले ढाई साल तक गांधी जी पर लिखे को पढ़ा, गांधी भवनों में जाकर जानकारियां लीं और तब  शान्ति दूत गांधी जी  को प्रस्तरकला से बनाई. जहां आज के समय  आदमी पत्थरों के समान शुष्क और कठोर बन रहा है वहीं गांधी जी के विचार से पत्थरों को नर्म और संवेदनशील बनाने का  मेरा यह प्रयास आप सभी के लिए है.

 

ll महात्मा गांधी ll

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अनिता दुबे 
एम.फिल. मनोविज्ञान 

कविता संग्रह: एक और सुबह (2009), बाल कविताएँ-बचपन (2016),अँकुरित होती हैं स्त्रियाँ (२०२२)

प्रस्तर कला
गांधी जी की जीवन यात्रा पत्थरों से प्रदर्शित तीन प्रदर्शनी
1- 2,अक्टूबर 2022 गांधी भवन‌ भोपाल
2-14,15,16 अक्टूबर हिंदी साहित्य सम्मेलन भोपाल के तहत स्वराज भवन भोपाल में
3-17,18,19,20 नवम्बर टैगोर विश्व विद्यालय द्वारा आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय कला और साहित्य उत्सव “विश्व रंग” मिंटो हॉल भोपाल 2022

पता: अनिता दुबे
404 मॉर्निंग ग्लोरी अपार्टमेंट
गुलमोहर सिटी, खराडी, पुणे, महाराष्ट्र – 411014.
ntdubey9@gmail.com

Tags: 20222022 शिल्पअनिता दुबेगांधीप्रस्तरकला
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Comments 11

  1. Rajendra Dani says:
    2 years ago

    यह बहुत अच्छा काम । अभी हफ्ते भर पहले भोपाल में उन्होंने अपनी प्रदर्शनी में बुलाया था । इस कला में अपनी कल्पनाशीलता को पिरोना अद्भुत है ।

    Reply
  2. सुदीप सोहनी says:
    2 years ago

    टैगोर की दाढ़ी देख कर मुझे बहुत अचरज हुआ था. उस पर गांधी जी की ओढ़ी हुई धोती पर सलवटें .. कमाल करती हैं अनिता जी. हमेशा ही .

    Reply
  3. कुमार अम्बुज says:
    2 years ago

    यह अभिनव काम है। निश्चित ही अनिता जी का कवि रूप इस कल्पनाशीलता में सहयोगी है। उन्हें बधाई। समालोचन के लिए भी कि यह सब एक जगह पेश कर दिया है।

    Reply
  4. प्रिया वर्मा says:
    2 years ago

    ओहो! रचनात्मकता असीम है। आकाश से भी अनूठी। कल्पना। बहुत कलात्मक प्रस्तुति। कलाकार को मेरी बधाई

    Reply
  5. Vishakha says:
    2 years ago

    अभिव्यक्ति का बहुत कलात्मक माध्यम बन गए हैं प्रस्तर अनीता जी की प्रस्तर कला से , साधुवाद
    समालोचन पर इसे संजोने हेतु बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं 💐

    Reply
  6. Manohar Chamoli says:
    2 years ago

    कमाल है। कला का इतना प्रभावी रूप ! वाह ! इनका बाल संग्रह कैसे मिलेगा ?

    Reply
  7. डॉ किरण मिश्रा says:
    2 years ago

    नितान्त मनमोहक

    Reply
  8. हीरालाल नागर says:
    2 years ago

    अनीता दुबे के पास यह गज़ब की कला है। पत्थरों को चुनना और चुनकर एक आकार देना आसान तो नहीं। बिना कल्पनाशीलता के यह संभव नहीं है। जैसे एक चित्रकार कूंची से चित्रों को आकार देता है, उसी तरह अनीता दुबे जी अपनी कल्पनाशक्ति से इन पत्थर, तीली, धागे से चित्रों का अतुलनीय विन्यास बुनती हैं। यह कला है और अनीता जी अनोखी कलाकार।
    गांधीजी पर उनकी यह चित्र-वीथिका उनकी कला का उच्चतर नमूना है। पिछले दिनों वे विदिशा में हमारे साथ थीं। सांची भ्रमण पर वे चीन्हें-अचीन्हें पत्थर कलेक्ट कर रही थीं। उनकी यह प्रतिभा देखकर मुझे बेहद खुशी सुई।
    अनीता जी को बहुत बधाई और शुभकामनायें।

    Reply
    • गरिमा खरे says:
      2 years ago

      अद्भुत! कल्पना संकल्पना, रचना – संरचना सब अद्भुत अप्रतिम। बहुत बहुत बधाई कलाकार को और धन्यवाद भी, कला के इतने अनूठे रूप काअनुभव कराने के लिए।

      Reply
  9. सुरेन्द्र प्रजापति says:
    2 years ago

    अदभुद कलाकृति और कल्पनाशीलता

    Reply
  10. Kamlnand Jha says:
    2 years ago

    बस, अद्भुत

    Reply

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समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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