‘पूर्णावतार’, ‘शिलावहा’ और अवतारवाद: विनोद शाही
अवतारवाद की अवधारणा भारतीय चिंतन के केंद्र में रही है, इसकी व्याप्ति इतनी है कि इसके विरोधी भी कालान्तर में ...
अवतारवाद की अवधारणा भारतीय चिंतन के केंद्र में रही है, इसकी व्याप्ति इतनी है कि इसके विरोधी भी कालान्तर में ...
कविताएँ प्रतीकों का इस्तेमाल करती हैं, उन्हें बदल भी देती हैं और उनके सामने प्रतिरोध में खड़ी भी हो जाती ...
विनोद शाही सच्चे अर्थों में चिंतक-लेखक हैं. उनकी आलोचना दृष्टि में साहित्य, समाज और उनसे जुड़ी विचारधाराओं की गत्यात्मकता की ...
जीवित भाषाएँ अपनी शब्द संपदा का निरंतर विकास करती रहती हैं, एक भी शब्द के लुप्त हो जाने का अर्थ ...
लालबहादुर वर्मा से मेरा पहला परिचय उनकी क़िताब ‘यूरोप का इतिहास’ (पुनर्जागरण से क्रांति तक) से हुआ जब मैं १८ ...
किसी भी आंदोलन के क्रांतिकारी होने के लिए जरूरी है कि वह आमूल परिवर्तन उपस्थित करे, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक ...
कृषि कानूनों में बदलाव और सुधार के लिए प्रारम्भ होने वाला किसान आंदोलन धीरे-धीरे अपना अखिल भारतीय स्वरूप ग्रहण करता ...
आलोचक प्रो. मैनेजर पाण्डेय की भक्तिकाल की आलोचना दृष्टि पर यह आलेख प्रसिद्ध आलोचक विनोद शाही का है. उन्होंने गम्भीर ...
नई सदी में समय के हिसाब से तो अभी दो दशक ही गुज़रे हैं लेकिन जिन प्रवृत्तियों से कोई सदी ...
श्रीवन विक्रम मुसफ़िरप्रकाशक : आधार प्रकाशन एस.सी.एफ. 267सेक्टर-16 पंचकूलामूल्य: 150विक्रम मुसाफ़िर (जन्म 7 सितम्बर, 1981, शिमला) के उपन्यास \'श्रीवन\' की समीक्षा ...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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