तुम्हें याद है सिर्फ ख़ून का स्वाद: कुमार अम्बुज
अंग्रेजी के महानतम कवि-नाटककार शेक्सपीयर की कालजयी कृति ‘मैकबेथ’ में हमेशा से विश्व सिनेमा की रुचि रही है. पिछले वर्ष अमरीकी निर्देशक जोएल कोएन की फ़िल्म ‘द ट्रैजेडी ऑफ़ मैकबेथ’...
अंग्रेजी के महानतम कवि-नाटककार शेक्सपीयर की कालजयी कृति ‘मैकबेथ’ में हमेशा से विश्व सिनेमा की रुचि रही है. पिछले वर्ष अमरीकी निर्देशक जोएल कोएन की फ़िल्म ‘द ट्रैजेडी ऑफ़ मैकबेथ’...
कवि, आलोचक, फ़िल्म मीमांसक, अनुवादक, पत्रकार विष्णु खरे (9 फरवरी 1940–19 सितम्बर 2018) की स्मृति में युवा लेखक प्रचण्ड प्रवीर और कुछ मित्रों ने यह सोचा कि उनकी याद में...
सच में सभ्यता का इतिहास साथ ही साथ बर्बरता का भी इतिहास है, जर्मनी के नाज़ी दौर में यहूदियों को पानी के जहाज़ में भरकर समुद्र में छोड़ दिया गया...
विश्व के महानतम निर्देशकों में से एक रूस के आंद्रेई तारकोवस्की द्वारा निर्देशित फ़िल्मों के काव्यत्व की चर्चा होती रही है, उनकी फ़िल्में किसी कलाकृति जैसी हैं. इनमें से एक...
कुमार अम्बुज विश्व सिनेमा से कालजयी चलचित्रों पर इधर लिख रहें हैं, कहना यह चाहिए कि उनके समानांतर लिख रहें हैं. यह कवि का तो गद्य है ही सतर्क सहृदय...
वृद्ध होना केवल दैहिक परिवर्तन नहीं है, यह और भी बहुत कुछ है- परिवार और समाज में तेजी से स्थितियां बदल जाती हैं. इस विषय पर अंग्रेजी में १९३७ में...
कवि कुमार अम्बुज हिंदी में फ़िल्मों पर सृजनात्मक ढंग से लिखने वाले कुछ गिने चुने लेखकों में शामिल हैं. मर्गेरीट ड्यूरॉस द्वारा लिखित और अलँ रेने निर्देशित फ़्रांसिसी/जापानी फ़िल्म 'हिरोशिमा...
विनोद कुमार शुक्ल ने पीयूष दईया से संवाद (समालोचन पर प्रकाशित) में फ़िल्मकार मणि कौल के विषय में यह कहा है कि ‘दर्शक मणि कौल की फिल्म में उसी तरह...
सत्यदेव त्रिपाठी फ़िल्मों और रंगमंच पर वर्षों से लिखते रहें हैं, इन विषयों पर उनकी कई क़िताबें प्रकाशित हुईं हैं. अभिनेता दिलीप कुमार पर लिखा गया यह लेख दरअसल सत्यदेव...
अभिनेता दिलीप कुमार की प्रसिद्धि असाधारण थी, वह अद्वितीय हैं. जिस तरह से उनके व्यक्तित्व में गहराई है उसी तरह से उनके अभिनय की भी अनेक परतें हैं. सुशील कृष्ण...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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