दिलीप कुमार: हमारे बाद इस महफ़िल में अफ़साने बयां होंगे: सत्यदेव त्रिपाठी
सत्यदेव त्रिपाठी फ़िल्मों और रंगमंच पर वर्षों से लिखते रहें हैं, इन विषयों पर उनकी कई क़िताबें प्रकाशित हुईं हैं. अभिनेता दिलीप कुमार पर लिखा गया यह लेख दरअसल सत्यदेव...
सत्यदेव त्रिपाठी फ़िल्मों और रंगमंच पर वर्षों से लिखते रहें हैं, इन विषयों पर उनकी कई क़िताबें प्रकाशित हुईं हैं. अभिनेता दिलीप कुमार पर लिखा गया यह लेख दरअसल सत्यदेव...
अभिनेता दिलीप कुमार की प्रसिद्धि असाधारण थी, वह अद्वितीय हैं. जिस तरह से उनके व्यक्तित्व में गहराई है उसी तरह से उनके अभिनय की भी अनेक परतें हैं. सुशील कृष्ण...
समाज में पुरुष-समलैंगिकता लज्जा और उत्पीड़न तथा फिल्मों में उपहास का विषय रही है. इधर कुछ संवेदनशील निर्देशकों ने इस विषय पर मार्मिक फ़िल्में बनाई हैं जिनमें से ‘अलीगढ़’, ‘आय...
अब्बास कैरोस्तमी को ईरान का आधुनिक सूफी कहा गया जिसके रंग उनकी फिल्मों में बिखरें हैं, पाबंदियों के बीच आज़ाद. लेखक-अनुवादक यादवेंद्र ने उनके व्यक्तित्व के कुछ आयाम यहाँ प्रस्तुत...
मोहम्मद रफ़ी पर यह शानदार क़िताब अंग्रेजी में राजू कोरती और धीरेंद्र जैन ने लिखी है जिसे प्रामाणिक जीवनी कहा जा सकता है इसमें शोध के साथ उनके ७००० गाये...
सिनेमा विश्व की आधुनिक और सबसे लोकप्रिय विधा है. उसमें लगभग सभी ललित कलाओं का समावेश हो जाता है, अभिनय, कथा, कविता, गायन, वादन, वासक-सज्जा, केश-सज्जा आदि आदि और वह...
फ़िल्म पाकीज़ा हिंदी सिनेमा के संवेदनशील अंकन, भावप्रवण अभिनय और कलात्मक दृश्य-विधान का उत्कर्ष है, इसमें किसी महाकाव्य जैसी गहराई है. पतनशील सामन्ती संस्कृति के मुहाने पर खड़ी नृत्य, संगीत...
हरि मृदुल ने ‘अमर उजाला’ के मुंबई ब्यूरो में विशेष संवाददाता रहते हुए चमकती फिल्मी दुनिया के अँधेरे और टूटन को भी करीब से देखा है, उनकी ये तीनों कहानियाँ...
अभिनेत्री साधना के जीवन पर आधारित प्रबोध कुमार गोविल की किताब ‘ज़बाने यार मनतुर्की’ का प्रकाशन बोधि ने किया है. प्रवीण प्रणव ने इसकी अच्छी समीक्षा लिखी है. पुस्तक : ज़बाने...
‘जब ज़ुल्फ़ की कालक में घुल जाए कोई राहीबदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता.’ ‘सहर से शाम हुई शाम को ये रात मिलीहर एक रंग समय का बहुत घनेरा है’प्रसिद्ध अभिनेत्री...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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