अपराह्न पाँच बजे: कुमार अम्बुज
‘विश्व सिनेमा से कुमार अम्बुज’ श्रृंखला कालजयी फ़िल्मों को समझने और अपने समय को बूझने की गहरी अंतर्दृष्टि देती है, भाषा की अपनी संभव ऊंचाई के साथ. यह फ़िल्म की...
‘विश्व सिनेमा से कुमार अम्बुज’ श्रृंखला कालजयी फ़िल्मों को समझने और अपने समय को बूझने की गहरी अंतर्दृष्टि देती है, भाषा की अपनी संभव ऊंचाई के साथ. यह फ़िल्म की...
1961 में प्रदर्शित ‘Judgement at Nuremberg’ को ऑस्कर के अलावा कई सम्मान मिले हैं. यह विश्व की कुछ अच्छी, विचारोत्तेजक फ़िल्मों में से एक है. हिटलर की मौत के बाद...
सिनेमा हॉल जिन्हें चलचित्र मंदिर या टॉकिज आदि नामों से जाना जाता था अब अतीत की बातें हो गयीं हैं, एक समय ये कस्बे की अहम् सार्वजनिक जगहें हुआ करती...
शेक्सपियर ने 1600 ईसवी के आप-पास नाटक ‘हैमलेट’ की रचना की थी. कई देशों में इसपर आधारित और इससे प्रभावित अनगिनत फ़िल्में बन चुकी हैं. लॉरेन्स ओलिविएर द्वारा निर्देशित फ़िल्म...
महत्वपूर्ण चेक लेखक बोहुमिल ह्राबाल के उपन्यास पर आधारित फ़िल्म ‘I Served the King of England’ (2006) आपने शायद देखी हो. ‘विश्व सिनेमा से कुमार अम्बुज’ की यह कड़ी इसी...
'भूलन कांदा’ वनौषधि है, माना जाता है कि इसका स्पर्श मनुष्य को उसके रास्ते से भटका देती है. संजीव बख्शी का यह उपन्यास २०१० में प्रकाशित हुआ था. इस पर...
‘कोई दम कल आए थे मज्लिस में 'मीर' /बहुत इस ग़ज़ल पर रुलाया हमें.’ विश्व के महानतम फ़िल्म निर्देशकों में फ़्राँस्वा त्रुफ़ो का नाम लिया जाता है और उनकी फ़िल्म...
किसी भी पत्रिका के जीवन में ऐसे अवसर आते हैं जब वह कुछ ऐसा प्रकाशित करती है जिसके लिए उसे हमेशा याद रखा जाता है. समालोचन को साहित्य-इतिहास में कुमार...
अंग्रेजी के महानतम कवि-नाटककार शेक्सपीयर की कालजयी कृति ‘मैकबेथ’ में हमेशा से विश्व सिनेमा की रुचि रही है. पिछले वर्ष अमरीकी निर्देशक जोएल कोएन की फ़िल्म ‘द ट्रैजेडी ऑफ़ मैकबेथ’...
कवि, आलोचक, फ़िल्म मीमांसक, अनुवादक, पत्रकार विष्णु खरे (9 फरवरी 1940–19 सितम्बर 2018) की स्मृति में युवा लेखक प्रचण्ड प्रवीर और कुछ मित्रों ने यह सोचा कि उनकी याद में...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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