शर्ली एब्दो और पीके: विष्णु खरे
पेरिस में ही पैदा हुए दार्शनिक वाल्तेयर अभिव्यक्ति की आज़ादी के सबसे बड़े पैरोकार माने जाते हैं. वह कहा करते थे कि तुम्हारी बात से मेरा सहमत होना जरूरी नहीं...
पेरिस में ही पैदा हुए दार्शनिक वाल्तेयर अभिव्यक्ति की आज़ादी के सबसे बड़े पैरोकार माने जाते हैं. वह कहा करते थे कि तुम्हारी बात से मेरा सहमत होना जरूरी नहीं...
सनी लिओने पर विष्णु खरे की टिप्पणी
दादा साहेब फ़ाल्के : सिनेमा के हस्ताक्षर दिलनवाज़भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब फ़ाल्के उर्फ़ धुंदी राज गोविंद फ़ाल्के का जन्म महाराष्ट्र मे नासिक के करीब एक गांव मे 30 अप्रैल 1870 को हुआ. फ़ाल्के मे कला...
महाकाव्य और नाटक ने आधुनिक युग में उपन्यास और सिनेमा के रूप में अपना कायांतरण किया. सिनेमा अनंत दर्शक समूह और पूंजी से जुड़कर एक बड़े सांस्कृतिक उद्योग में बदल...
फ़िल्मलेकिन : मिथक का यथार्थगोपाल प्रधान बीसवीं सदी के नब्बे दशक के शुरू में आई फ़िल्म लेकिन कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण थी. इसके गीतों के बाद से ही हिन्दी फ़िल्मों...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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