विष्णु खरे: जो आत्मकथा साहित्यिक-फ़िल्मी इतिहास बनाएगी
क्या आप ने किशोर साहू का नाम सुना है? क्या आपको पता है २२ अक्तूबर २०१५ को उनके जन्म के १०० साल पूरे हो रहे हैं? शायद आपको यह भी...
क्या आप ने किशोर साहू का नाम सुना है? क्या आपको पता है २२ अक्तूबर २०१५ को उनके जन्म के १०० साल पूरे हो रहे हैं? शायद आपको यह भी...
एस॰एस॰ राजामौली के निर्देशन में तेलगु भाषा में बनी \'बाहुबली\' फिल्म को देश की अब तक की सबसे महंगी फिल्म बताया जा रहा है जिसमें दो भाइयों के बीच साम्राज्य...
\'यदि उसे (सोनम) भी हेमा मालिनी के साथ अस्पताल ले जाया जाता, तो उसकी जान बच जाती\'_________________________मशहूर अभिनेत्री और सांसद हेमामालिनी की कार दुर्घटना की खबरे सबने पढ़ी और तस्वीरें...
हिंदुस्तान के सबसे चर्चित चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन के लिए यह ‘माह’ और यह ‘साल’ उन्हें याद करने और उनके मूल्यांकन का होना चाहिए था, पर अकादमिक निष्क्रियता और संचार...
६८वें कान इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में इस बार फ्रेंच फ़िल्म ‘दीपन’ को चुना गया है. फ़िल्म का नायक ‘दीप’ तमिल-सिंहल गृह-युद्ध के दरमियान अपनी नकली पत्नी और बेटी के साथ...
सलमान खान की सज़ा और फिर जमानत ने संचार माध्यमों में बहस का रूप ले लिया है, न्यायिक और नैतिक कई तरह के प्रश्न उठ खड़े हुए हैं. दम्भ, दबाव...
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ समूह की मुंबई से 1951 में शुरू हुई अंग्रेजी फ़िल्म पत्रिका ‘स्क्रीन’ के प्रिंट संस्करण के बंद होने की खबर है. ‘स्क्रीन’ कुछ उन पुरानी पत्रिकाओं में...
विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में इतिहास और भूगोल की यात्रा करती 2013 के आस्कर से सम्मानित पावेल पाव्लिकोस्की की पोलिश फिल्म ‘’ईदा’’ कई कारणों से चर्चा में है. इस फ़िल्म के...
ऐब (AIB) ने जिस तरह से गालियों और अश्लीलता की मार्केटिंग शुरू की है और उसे एक मूल्य में बदल दिया है, उससे उसके तात्कालिक असर तो दिखने शुरू हो...
इस वर्ष जब पद्म विभूषण सम्मान से एक साथ दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन को अलंकृत करने की घोषणा हुई तब यह सवाल पूछा जाने लगा कि क्या ये दोनों...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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