उपन्यास और सांस्कृतिक प्रतिरोध: विजय बहादुर सिंह
वरिष्ठ आलोचक विजय बहादुर सिंह ने शास्त्रीय संगीत के साझे घरानों पर लिखे गये रणेंद्र के तीसरे उपन्यास- ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ के बहाने ‘सांस्कृतिक प्रतिरोध’ की आवश्यकता और उपन्यास...
वरिष्ठ आलोचक विजय बहादुर सिंह ने शास्त्रीय संगीत के साझे घरानों पर लिखे गये रणेंद्र के तीसरे उपन्यास- ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ के बहाने ‘सांस्कृतिक प्रतिरोध’ की आवश्यकता और उपन्यास...
वरिष्ठ मार्क्सवादी आलोचक मैनेजर पाण्डेय आज अस्सी वर्ष के हो गये. उन्हें हिंदी समाज की तरफ से शुभकामनाएं. हिंदी आलोचना की सैद्धांतिकी में उनका महत्वपूर्ण अवदान है, उन्होंने कुछ सार्थक...
वरिष्ठ मार्क्सवादी आलोचक मैनेजर पाण्डेय आज अस्सी वर्ष के हो गये. उन्हें हिंदी समाज की तरफ से शुभकामनाएं. हिंदी आलोचना की सैद्धांतिकी में उनका महत्वपूर्ण अवदान है, उन्होंने कुछ सार्थक...
जीवित भाषाएँ अपनी शब्द संपदा का निरंतर विकास करती रहती हैं, एक भी शब्द के लुप्त हो जाने का अर्थ है उससे जुड़ी असंख्य स्मृतियों का लोप हो जाना. हिंदी...
गगन गिल की कविताएँ हों या गद्य वह ख़ुद में उतर कर लिखती हैं, संवेदनशीलता, मार्मिकता और संक्षिप्तता उनके गद्य की भी विशेषताएं हैं. अक्का महादेवी पर उनका लिखा पढ़ते...
“बुरे वक्त की रात में भी/जीता हूँ/सूरज की तरह/सामना करने से/भागकर/डूब नहीं जाता” इस तरह जीने और रचने वाले वरिष्ठ कवि मलय की रचनावली का प्रकाशन अभी हाल ही में...
महान पिता के पुत्र के समक्ष कुछ अतिरिक्त चुनौतियाँ रहती हैं, उसे हर समय पिता से मापा जाता है. अमृत राय ने केवल ‘कलम का सिपाही’ भर लिखा होता तो...
हिंदी साहित्य में यहूदी लेखकों की संख्या गिनी चुनी रही है, वर्तमान में शीला रोहेकर एकमात्र हिंदी की यहूदी लेखिका हैं. दिनांत’ और ‘ताबीज़’ के अलावा ‘मिस सैम्युएल: एक यहूदी...
कवि अष्टभुजा शुक्ल की दाम्पत्य- प्रेम की कविता- ‘आज की रात’ और ‘बहुत बेचैन हिया’ जिनके प्रकाशन में लगभग एक दशक का अंतराल है, का चयन यहाँ सदाशिव श्रोत्रिय ने...
ब्रिटिश काल में बंगाल राष्ट्रवाद के उदय और सामाजिक-धार्मिक सुधारों का महत्वपूर्ण स्रोत था, उसका गहरा असर हिंदी प्रदेशों पर भी पड़ा. ऐसे में उस समय की बांग्ला स्त्रियाँ किस...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum