आलेख

डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे: जीवन और स्वप्न: रवि रंजन

डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे: जीवन और स्वप्न: रवि रंजन

शरण कुमार लिंबाले के ‘अक्करमाशी’, और लक्ष्मण गायकवाड के ’उठाईगीर’ से हिंदी के पाठक परिचित हैं, पर इनके अनुवादक ‘सूर्यनारायण रणसुभे’ से अंजान. मराठी और हिंदी का बहुत पुराना नाता...

जायसी कृत ‘चित्ररेखा’ और उसकी कथा: माधव हाड़ा

जायसी कृत ‘चित्ररेखा’ और उसकी कथा: माधव हाड़ा

महाकवि मलिक मुहम्मद जायसी के महाकाव्य पद्मावत की प्रसिद्धि इतनी अधिक है कि उसकी तुलना में उनकी अन्य कृतियों की तरफ ध्यान नहीं जाता है. ‘चित्ररेखा’ उनकी ऐसी ही कृति...

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की अधिकृत जीवनी: प्रीति चौधरी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की अधिकृत जीवनी: प्रीति चौधरी

अली मदीह हाशमी ने फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की जीवनी अंग्रेजी में लिखी है जिसका हिंदी अनुवाद अशोक कुमार द्वारा किया गया है. इसे फ़ैज़ की अधिकृत जीवनी कही जा रही ...

तेजिमोला से मूलान तक: हमारी कथाओं की स्त्रियाँ: प्रीति प्रकाश

तेजिमोला से मूलान तक: हमारी कथाओं की स्त्रियाँ: प्रीति प्रकाश

हमारी लोक कथाओं में स्त्रियों की उपस्थिति ख़ासी समस्यामूलक है. लैंगिक समानता और व्यक्तित्व के स्वतंत्र विकास के लिहाज़ से भी इनमें दिक्कतें हैं. प्रीति प्रकाश ने लोक कथाओं को...

कबीर: ‘पीव क्यूं बौरी मिलहि उधारा’: सदानन्द शाही

कबीर: ‘पीव क्यूं बौरी मिलहि उधारा’: सदानन्द शाही

सदानन्द शाही का इधर रैदास बानी का काव्यान्त्रण ‘मेरे राम का रंग मजीठ है’ प्रकाशित हुआ है. गोरख, कबीर, रैदास उनकी रूचि के विषय हैं. कबीर को सम्बोधित उन्होंने कविताएँ भी...

नागरी प्रचारिणी सभा: उमस के बीच इंद्रधनुष: विनोद तिवारी

नागरी प्रचारिणी सभा: उमस के बीच इंद्रधनुष: विनोद तिवारी

साहित्य की दुनिया में संस्थाओं का बहुत महत्व होता है. हिंदी भाषा और उसके साहित्य में ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ की केन्द्रीय भूमिका रही है. इसके निर्माण और देय की गौरव...

रामचन्द्र गाँधी: वह आवाज़ और कुछ पेंसिलें: आशुतोष भारद्वाज

रामचन्द्र गाँधी: वह आवाज़ और कुछ पेंसिलें: आशुतोष भारद्वाज

प्रसिद्ध दार्शनिक और महात्मा गाँधी के पौत्र रामचंद्र गांधी (9 जून, 1937-13 जून, 2007) ने  ऑक्सफ़ोर्ड से पीटर स्ट्रॉसन के निर्देशन में दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी,...

अल्बेयर कामू का उपन्यास और लुईस पुएंजो का सिनेमा ‘द प्लेग’: अमरेन्द्र कुमार शर्मा

    महामारियां व्यवस्था की आपराधिक ख़ामियों को कत्ल-ए-आम मचाकर डरावने ढंग से उजागर करती हैं, यह मनुष्य की लोभ और लूट की अनैतिक सभ्यता का भी पर्दाफाश कर देती हैं....

नरसीजी रो माहेरा और उसका साँवरा सेठ: माधव हाड़ा

नरसीजी रो माहेरा और उसका साँवरा सेठ: माधव हाड़ा

मनुष्य की जो सभ्यता विकसित हुई उसमें किसी नियंता की कल्पना लगभग सार्वभौम है, उसे सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी भी होना ही होता है. भारत में इस ईश्वर को मानवीय बनाने...

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