अल्बेयर कामू का उपन्यास और लुईस पुएंजो का सिनेमा ‘द प्लेग’: अमरेन्द्र कुमार शर्मा
महामारियां व्यवस्था की आपराधिक ख़ामियों को कत्ल-ए-आम मचाकर डरावने ढंग से उजागर करती हैं, यह मनुष्य की लोभ और लूट की अनैतिक सभ्यता का भी पर्दाफाश कर देती हैं....
महामारियां व्यवस्था की आपराधिक ख़ामियों को कत्ल-ए-आम मचाकर डरावने ढंग से उजागर करती हैं, यह मनुष्य की लोभ और लूट की अनैतिक सभ्यता का भी पर्दाफाश कर देती हैं....
मनुष्य की जो सभ्यता विकसित हुई उसमें किसी नियंता की कल्पना लगभग सार्वभौम है, उसे सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी भी होना ही होता है. भारत में इस ईश्वर को मानवीय बनाने...
‘छबीला रंगबाज़ का शहर’ और ‘वास्कोडिगामा की साइकिल’ के लेखक प्रवीण कुमार की कहानियों में बनते हुए शहर और बिगड़ते हुए गावं की शक्ल-ओ-सूरत पर कथाकार और समाज विज्ञानी नरेश...
(केदार जी का चित्र कवि अनिल त्रिपाठी के फेसबुक दीवार से आभार सहित) आज कवि केदारनाथ सिंह (७ जुलाई १९३4 – १९ मार्च २०१८) के स्मरण का दिन है. उनकी पुण्यतिथि...
पत्रकार अरविंद दास हिंदी में मीडिया के सरोकारों को समझने और उसपर लिखने वाले लेखक हैं. ‘अनुज्ञा बुक्स’ से उनकी इसी विषय पर नयी पुस्तक आ रही है- ‘मीडिया का...
लेखक-आलोचक पंकज पराशर द्वारा लिखे गये कला क्षेत्र की मकबूल शख्सियतों पर केंद्रित आलेख समालोचन पर आप पढ़ रहें हैं,इन्हें बहुत पसंद किया गया है. इस बीच वे अपनी यात्रा...
गजानन माधव मुक्तिबोध (१३ नवम्बर,१९१७ – ११ सितम्बर,१९६४) की लम्बी कविताओं में ‘ अँधेरे में’, ‘ब्रह्मराक्षस’ आदि की चर्चा होती है, पर ‘लकड़ी का रावण’ कविता पर ध्यान कम गया...
युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित हिन्दी कहानियों के संदर्भ में अक्सर ‘उसने कहा था’ की ही चर्चा होती है. प्रेमचंद युग से लेकर आजतक युद्ध केंद्रित कहानियां लिखने का सिलसिला...
(18th-century painting of Padmini.)महाकवि जायसी कृत ‘पदमावत’ के ४८ वर्ष बाद 1588 ईस्वी में हेमरतन ने ‘गोरा बादल पदमिणी चउपई’ की रचना राजस्थानी भाषा में की थी. लगभग ६१६ छंदों...
‘वापसी’ जैसी कालजयी कहानियों के अलावा ‘पचपन खंभे लाल दीवारें’, ‘रुकोगी नहीं राधिका’, ‘शेषयात्रा, ‘अंतर्वंशी’,‘भया कबीर उदास’, ‘नदी’, \'अल्पविराम\' आदि उपन्यासों की लेखिका उषा प्रियंवदा ने बीते २४ दिसंबर को...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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