मुक्तिबोध की कहानियाँ : सूरज पालीवाल
रायपुर में पिछले दस वर्षो से अनवरत ‘मुक्तिबोध स्मृति व्याख्यान’ के अंतर्गत इस वर्ष ११ सितम्बर को व्याख्याता थे वरिष्ठ आलोचक सूरज पालीवाल, और विषय था– ‘दीमक के व्यापारियों के...
रायपुर में पिछले दस वर्षो से अनवरत ‘मुक्तिबोध स्मृति व्याख्यान’ के अंतर्गत इस वर्ष ११ सितम्बर को व्याख्याता थे वरिष्ठ आलोचक सूरज पालीवाल, और विषय था– ‘दीमक के व्यापारियों के...
विवरण जिनमें समकालीन मध्यवर्गीय जीवन अपना होना लिखता रहता है मसलन रोजाना के खर्चे की बेतरतीब सी घरेलू डायरी जिसमें खरीद फ़रोख्त ही नहीं हमारी दयनीयता और विवशता भी लिखी...
कृष्णा सोबती की स्त्रियाँ दबंग हैं और अपनी यौनिकता को लेकर मुखर भी. पर क्या वे ‘स्त्रीवादी’ भी हैं? कृष्णा सोबती खुद को स्त्रीवादी लेखिका के रूप में नहीं देखती...
जैसे कोई कोई ही कवि होता है उसी तरह से कुछ ही सहृदय होते हैं जहाँ कविताएँ खुलती हैं. सुरुचि, समझ और धैर्य ये भावक की ज़िम्मेदारियाँ हैं. सदाशिव श्रोत्रिय...
भाषा त्वचा की तरह होती है. क्या कभी त्वचा भी बदली जा सकती है. इस देश की विडम्बनाओं का कोई अंत नहीं. शायद अकेला देश है जो अपनी भाषा का...
हिंदी साहित्यकारों और सेवियों को राजनीतिक आधार पर बांट कर क्या हम समग्र साहित्य को क्षति पहुंचा रहें हैं ? स्वतंत्रता दिवस पर वरिष्ठ कवि पत्रकार विमल कुमार की यह...
राही मासूम रज़ा का उपन्यास ‘आधा-गाँव’ हिंदी के श्रेष्ठ उपन्यासों में से एक है. उनका उपन्यास ‘टोपी शुक्ला’ भी चर्चित रहा है. शोध छात्र ज़ुबैर आलम इस उपन्यास की चर्चा...
कवि विष्णु खरे के दो संग्रह ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ और ‘और अन्य कविताएँ’ २०१७ में एक साथ प्रकाशित हुए, पहले की भूमिका केदारनाथ सिंह ने लिखी है दूसरे का फ्लैप कुँवर...
पंकज चौधरी की कविताएँ अभिधा की ताकत की कविताएँ हैं, इस ताकत का इस्तेमाल वह सत्ता चाहे सामाजिक और धार्मिक ही क्यों न हो की संरचनाओं में अंतर्निहित असंतुलन को...
प्रभात की कविताओं पर लिखते हुए अरुण कमल ने माना है कि ‘यह हिंदी कविता की उंचाई भी है और भविष्य भी’. उनका संग्रह ‘अपनों में नहीं रह पाने का...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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