उत्तर-अशोक : आशुतोष भारद्वाज
फोटो : कविता वाचक्नवीअशोक वाजपेयी हिंदी आलोचना में अपनी प्रेम कविताओं के कारण चर्चित, प्रशंसित और निंदित रहे हैं. पर बाद की उनकी कविताओं के आयतन में विविध विस्तार दिखते...
फोटो : कविता वाचक्नवीअशोक वाजपेयी हिंदी आलोचना में अपनी प्रेम कविताओं के कारण चर्चित, प्रशंसित और निंदित रहे हैं. पर बाद की उनकी कविताओं के आयतन में विविध विस्तार दिखते...
‘हम एक जैसे होने के बजाय भिन्न रहते हुए एक दूसरे को ज़्यादा बेहतर ढंग से समझ सकते हैं’. धार्मिक उन्माद और सांस्कृतिक एकीकरण के उफान में गांधी ऐसे नैतिक,...
कथाकार तरुण भटनागर द्वारा यूजेन आयोनेस्क के नाटक ‘लैसन’ के हिंदी अनुवाद ‘पाठ’ पर यह वक्तव्य पढ़ने योग्य है.किताब : तरुण भटनागर ...
कहानी कहने की दुविधा और मजबूरी के बीच...(संदर्भ : पुरुषोत्तम अग्रवाल की कहानी ‘नाकोहस’) राकेश बिहारी वरिष्ठ आलोचक और नवोदित कथाकार पुरुषोत्तम अग्रवाल की कहानी ‘नाकोहस’ (पाखी, अगस्त 2014) पर बात...
फोटो आभार : Anusha Yadavआज राजेन्द्र यादव का जन्म दिवस है, उनकी अनुपस्थिति में उनका पहला जन्मोत्सव. सभ्यता की चेतना और संस्कृति के विवेक में जिनका योगदान होता है उन्हें इसी...
भूमंडलोत्तर कहानी - क्रम में इस बार कथा - समीक्षक आलोचक राकेश बिहारी ने विवेचन - विश्लेषण के लिए हंस जनवरी 2014 में प्रकाशित आकांक्षा पारे काशिव की कहानी ‘शिफ्ट+कंट्रोल+ऑल्ट=डिलीट’को...
भूमंडलोत्तर कहानी क्रम में कथा - समीक्षक आलोचक राकेश बिहारी ने विवेचन - विश्लेषण के लिए कथा- देश के जून २००१ के अंक में प्रकाशित रवि बुले की कहानी \'लापता...
'मिलकर वे दोनों प्राणी/दे रहें खेत में पानी'. (त्रिलोचन) प्रेम, दाम्पत्य और वासंती बयार की अनगिन अभिव्यक्तियाँ कविता में बिखरी पड़ी हैं. नवगीत की एक मजबूत धारा हिंदी में रही...
चंद्रकुंवर बर्त्वाल बतौर कवि छायावाद के वैभव काल में समाने आते हैं. उनकी कविताओं में जहां छायावाद की समृद्धि है वहीं छायावाद को अतिक्रमित करती हुई अलग काव्य प्रवृत्ति भी...
हिंदी से पूर्व–उत्तर की भाषाओं के रिश्तों पर केंद्रित गोपाल प्रधान का यह आलेख गम्भीरता से हिंदी साहित्य में पूर्व–उत्तर की उपस्थिति की भी पड़ताल करता है. पूर्वोत्तर और हिंदी...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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