मंटो का उपन्यास : बग़ैर उनवान के : विनोद तिवारी
सआदत हसन मंटो ने एक उपन्यास भी लिखा था, यह बहुत कम लोग जानते हैं. इस उपन्यास के हिंदी में छपने की भी एक कथा है और उपन्यास की अपनी...
सआदत हसन मंटो ने एक उपन्यास भी लिखा था, यह बहुत कम लोग जानते हैं. इस उपन्यास के हिंदी में छपने की भी एक कथा है और उपन्यास की अपनी...
कोरोना-काल में सिर्फ साहित्य की किताबें ही पढ़ी-गुनीं नहीं जा रहीं हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभाग के शोधार्थी प्रांजल सिंह ने अवध का किसान विद्रोह, इतिहास की पुनर्व्याख्या, पुरबिया...
किताबें सच्ची दोस्त होती हैं, इस कठिन समय में वे ही सबसे सुरक्षित साथ दे रहीं हैं. कोरोना-काल में लोगों ने नई पुरानी किताबें जो पढ़ने से रह गयीं थीं,...
कोरोना या कोई भी महामारी केवल चिकित्सकीय समस्या नहीं रहती कभी भी, एक तरह से अब तक के ‘विकास और उसके ‘सह उत्पाद’ पर वह गम्भीर प्रश्न खड़ा करती है....
डॉ. राजकुमार की पुस्तक ‘हिंदी की जातीय संस्कृति और औपनिवेशिकता’ भारत में अंग्रेजी राज के दरमियान निर्मित और विकसित हुए हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति से उलझती है जिसे हम...
हिंदी भाषा और साहित्य के विकास और प्रसार में ‘नागरी प्रचारिणी सभा, काशी’ की केन्द्रीय भूमिका रही है. इसकी स्थापना बाबू श्यामसुन्दर दास ने तब की थी जब वे विद्यार्थी...
साहित्य में कोरोना का प्रवेश हो गया है, विषय के रूप में. लेखकों ने मनुष्य जाति के समक्ष उपस्थित इस महा संकट को संवेदनशीलता और गम्भीरता से लेना शुरू कर...
बीसवीं शताब्दी के बड़े कवि पाब्लो नेरुदा (१२ जुलाई १९०४ - २३ सितम्बर १९७३) को उनकी कविताओं के लिए १९७१ में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था. स्पेनिश में लिखने...
हिंदी में युवा विवादास्पद हैं, ‘युवा-कविता’ तो और भी. न जाने कौन रसायन पीकर ‘युवा’ हिंदी कविता में उतरता है कि चिर युवा ही बना रहता है. और फिर एक...
फणीश्वरनाथ रेणु (४ मार्च १९२१-११ अप्रैल १९७७) का यह जन्म शती वर्ष है, ४ मार्च से उनसे सम्बंधित आयोजन देश भर में प्रारम्भ होंगे. रेणु का जीवन भी किसी उपन्यास...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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