आलेख

कोरोना-काल में किताबें : कुँवर प्रांजल सिंह

कोरोना-काल में सिर्फ साहित्य की किताबें ही पढ़ी-गुनीं नहीं जा रहीं हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभाग के शोधार्थी प्रांजल सिंह ने अवध का किसान विद्रोह, इतिहास की पुनर्व्याख्या, पुरबिया...

मृत्यु के सौ साल बाद रोज़ा लक्ज़मबर्ग : अमरेन्द्र कुमार शर्मा

किताबें सच्ची दोस्त होती हैं, इस कठिन समय में वे ही सबसे सुरक्षित साथ दे रहीं हैं. कोरोना-काल में लोगों ने नई पुरानी किताबें जो पढ़ने से रह गयीं थीं,...

भाषा, हिंदी और उपनिवेश : उदय शंकर

डॉ. राजकुमार की पुस्तक ‘हिंदी की जातीय संस्कृति और औपनिवेशिकता’ भारत में अंग्रेजी राज के दरमियान निर्मित और विकसित हुए हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति से उलझती है जिसे हम...

नागरी प्रचारिणी सभा और हिन्दी अस्मिता का निर्माण : सुरेश कुमार

हिंदी भाषा और साहित्य के विकास और प्रसार में ‘नागरी प्रचारिणी सभा, काशी’ की केन्द्रीय भूमिका रही है. इसकी स्थापना बाबू श्यामसुन्दर दास ने तब की थी जब वे विद्यार्थी...

कोरोना : एक चुनौती : रश्मि रावत

साहित्य में कोरोना का प्रवेश हो गया है, विषय के रूप में. लेखकों ने मनुष्य जाति के समक्ष उपस्थित इस महा संकट को संवेदनशीलता और गम्भीरता से लेना शुरू कर...

पाब्लो नेरुदा: प्रेम, सैक्स और “मी टू”: कर्ण सिंह चौहान

पाब्लो नेरुदा: प्रेम, सैक्स और “मी टू”: कर्ण सिंह चौहान

बीसवीं शताब्दी के बड़े कवि पाब्लो नेरुदा (१२ जुलाई १९०४ - २३ सितम्बर १९७३) को उनकी कविताओं के लिए १९७१ में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था. स्पेनिश में लिखने...

युवा कविता : एक : ओम निश्चल

हिंदी में युवा विवादास्पद हैं, ‘युवा-कविता’ तो और भी. न जाने कौन रसायन पीकर ‘युवा’ हिंदी कविता में उतरता है कि चिर युवा ही बना रहता है. और फिर एक...

रेणु जन्म शती वर्ष : हिंदी का हिरामन : विमल कुमार

फणीश्वरनाथ रेणु (४ मार्च १९२१-११ अप्रैल १९७७) का यह जन्म शती वर्ष है, ४ मार्च से उनसे सम्बंधित आयोजन देश भर में प्रारम्भ होंगे. रेणु का जीवन भी किसी उपन्यास...

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