आलेख

मनीषा कुलश्रेष्ठ : परम में उपस्थित वह अनुपस्थित

मनीषा कुलश्रेष्ठ के पाँच कहानी संग्रह (बौनी होती परछांई, कठपुतलियाँ, कुछ भी तो रूमानी नहीं, केयर ऑफ स्वात घाटी, गंधर्व – गाथा), तीन उपन्यास (शिगाफ़, शालभंजिका, पंचकन्या) और माया एँजलू...

प्रेम के असम्भव गल्प में: आशुतोष दुबे

प्रेम के असम्भव गल्प में: आशुतोष दुबे

‘प्रेम के असम्भव गल्प में’ कवि आशुतोष दुबे का लिखा गद्य है, उनकी कविताओं की ही तरह भाषा के सौन्दर्य और लयात्मकता से भरपूर. भाषा में लिखने की शुरुआत प्रेम...

परख : फाँस (संजीव): राकेश बिहारी

वरिष्ठ कथाकार संजीव का उपन्यास ‘फाँस’ भारतीय कृषक समाज की वर्तमान दारुण दशा पर केन्द्रित है. बड़ी संख्या में किसानों की आत्महत्या पूरे तंत्र पर सवालिया निशान है. समस्या जितनी...

विष्णु खरे : साहित्य अकादेमी का क्रांतिकारी संकल्प

२३/१०/२०१५ को साहित्य अकादेमी के कार्यकारी मंडल ने लेखकों - कलाकारों के विरोध प्रदर्शन के बीच अपना प्रस्ताव पारित किया. वरिष्ठ लेखक–आलोचक विष्णु खरे इस प्रस्ताव को अकादमी के इतिहास...

वीरेन डंगवाल : विष्णु खरे

रात नही कटती? लम्बी यह बेहद लम्बी लगती है ?इसी रात में दस-दस बारी मरना है जीना हैइसी रात में खोना-पाना-सोना-सीना है.ज़ख्म इसी में फिर-फिर कितने खुलते जाने हैंकभी मिलें...

हिंदी में कामकाज: राहुल राजेश

हिंदी में कामकाज: राहुल राजेश

हिंदी केवल साहित्य की भाषा नहीं है वह कामकाज की भी भाषा है, हिंदी के समक्ष जब हम चुनौतियों की चिंता करें तब हिंदी की इस भूमिका को भी गम्भीरता...

भूमंडलोत्तर कहानी (८) : नीला घर (अपर्णा मनोज) : राकेश बिहारी

भूमंडलोत्तर कहानियों के चयन और आलोचना के क्रम में इस बार अपर्णा मनोज की कहानी ‘नीला घर’ पर आलोचक राकेश बिहारी का आलेख- ‘नीला घर के बहाने’समालोचन प्रस्तुत कर रहा...

भूमंडलोत्तर कहानी (७) : उत्तर प्रदेश की खिड़की (विमल चन्द्र पाण्डेय) : राकेश बिहारी

भूमंडलोत्तर कहानियों के चयन और चर्चा के क्रम में इस बार विमल चंद्र पाण्डेय की चर्चित कहानी ‘उत्तर प्रदेश की खिड़की’ पर आलोचक राकेश बिहारी का आलेख- ‘प्रेम, राजनीति और...

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनका अभिनंदन : मैनेजर पाण्डेय

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनका अभिनंदन : मैनेजर पाण्डेय

महान संपादक आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी को १९३३ में काशी नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से एक अभिनंदन ग्रन्थ भेंट किया गया जिसमें देश–विदेश के साहित्यकारों– मनीषियों के लेख संकलित थे....

१९ वीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण: नामवर सिंह

१९ वीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण: नामवर सिंह

व्याख्यान सुनने (यहाँ पढने) का फायदा यह है कि आप एक बैठकी में ही व्याख्याता के वर्षों के अध्ययन, शोध और निष्कर्षों से सामना कर पाते हैं. व्याख्यान अगर नामवर...

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