केशव तिवारी : शैलेन्द्र कुमार शुक्ल
साठ पार कर चुके केशव तिवारी के चार कविता संग्रह- ‘इस मिट्टी से बना’, ‘आसान नहीं विदा करना’, ‘तो काहे का मैं’ और ‘नदी का मर्सिया तो पानी ही गाएगा’...
साठ पार कर चुके केशव तिवारी के चार कविता संग्रह- ‘इस मिट्टी से बना’, ‘आसान नहीं विदा करना’, ‘तो काहे का मैं’ और ‘नदी का मर्सिया तो पानी ही गाएगा’...
कुमार अम्बुज की कविताओं पर विचार करते हुए विष्णु खरे ने एक जगह लिखा है कि ‘उनके पास डीएसएलआर कैमरे से व्यक्तियों, वस्तुओं, दृश्यों के कई तकनीकों और कोणों से...
वर्षों से विनय सौरभ की कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं. उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. उनका पहला संग्रह ‘बख़्तियारपुर’ इस वर्ष राजकमल से प्रकाशित हुआ...
ब्रह्मांड ही यात्रा पर है. गंगा की तरह बहता रहता है आकाश. जैसे यात्रा स्वभाव हो. मनुष्य की सभ्यता यात्राओं से निर्मित हुई है. ज्ञान की यात्रा भी. बुद्ध के...
अपने ‘गहन काव्यात्मक गद्य’ के लिए ख्यात 53 वर्षीय कोरियाई लेखिका हान कांग का 2024 के साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए नाम जब सामने आया, लेखिका की ही तरह...
मशीनों के बिना मनुष्य की कल्पना करना आज असंभव है. कहीं ऐसा तो नहीं कि वे हमें संचालित करने लगी हैं. इसको ऐसे समझिए कि आप मोबाइल इस्तेमाल कर रहे...
जब दो अक्टूबर आता है, मन आशंकाओं से भर जाता है. न जाने इस बार गांधी को किस तरह से और कितने लोग निंदित करेंगे. कौन सीधे उनके हत्यारों के...
हिंदी में कलाकार-लेखक कम हैं. सीरज सक्सेना चित्रकार, सिरेमिक और ग्राफिक कलाकार हैं. ‘आकाश एक ताल है’, ‘सिमट सिमट जल’ और ‘कला की जगहें’ उनकी पुस्तकें हैं. कुँवर नारायण की...
सामाजिक तानेबाने, प्रेरणा, भावनाएँ एवं कार्य-व्यापार की ज़मीन से उपन्यासकार कहने को काल्पनिक पर जटिल यथार्थ निर्मित करता है, जो आंकड़ों से भी अधिक विश्वसनीय होते हैं. इसमें सामाजिक अंत:...
बजरंग बिहारी तिवारी वर्षों से भारतीय भाषाओं के दलित साहित्य पर कार्य कर रहे हैं. यह आलेख पंजाबी की दलित कहानियों पर आधारित है. प्रस्तुत है.
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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