उत्तराखण्ड में नवलेखन: बटरोही
वरिष्ठ कथाकार बटरोही उत्तराखण्ड की साहित्यिक-सांस्कृतिक संपदा को अपनी लेखनी का विषय बनाते रहें हैं. उनके लेखन में साहित्य, इतिहास, स्मृति, लोक और व्यक्तिगत संस्मरण घुलमिल कर आते हैं. इस...
वरिष्ठ कथाकार बटरोही उत्तराखण्ड की साहित्यिक-सांस्कृतिक संपदा को अपनी लेखनी का विषय बनाते रहें हैं. उनके लेखन में साहित्य, इतिहास, स्मृति, लोक और व्यक्तिगत संस्मरण घुलमिल कर आते हैं. इस...
राजेन्द्र यादव (28 अगस्त, 1929-28 अक्तूबर, 2013) ने ‘हंस’ मासिक पत्रिका का 1986 से 2013 तक संपादन किया. हिंदी साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में यह समय ‘हंस’ की केन्द्रीयता और...
नरेन्द्र पुंडरीक (15 जुलाई, 1953, बांदा) का छठा कविता संग्रह- ‘समय का अकेला चेहरा’ पिछले वर्ष लिटिल बर्ड पब्लिकेशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ. आलोचना, अनुवाद और संपादन में भी...
गीतांजलि श्री के उपन्यास- ‘रेत-समाधि’, उसके अनुवाद ‘Tomb of Sand’ और उसे मिले अंतर-राष्ट्रीय बुकर सम्मान को लेकर हिंदी के साथ-साथ भारतीय भाषाओं में भी गहमागहमी है. यह हिंदी के...
किसी समाज को महसूस करने का एक तरीका उसके साहित्य को पढ़ना है. बाहरी हलचलों का पता तो दूसरे माध्यम दे सकते हैं, भीतरी परतों के बीच जो कुछ चल...
‘लोकगीतों के यायावर’ देवेन्द्र सत्यार्थी (28 मई, 1908-12 फरवरी, 2003) संपादक, कथाकार, आदि के साथ-साथ कवि भी थे, उनके कवि पक्ष की विवेचना कर रहें हैं प्रकाश मनु.
होली हो, दीवाली हो या कृष्ण जन्माष्टमी आगरा के 18 वीं सदी के कवि नज़ीर अकबराबादी की लिखी कविताएँ ही आख़िरकार हमारी मदद करती हैं. ईद पर उर्दू में बहुत...
अन्तोन चेख़फ़ (29 जनवरी,1860 -15 जुलाई,1904) की कहानियां आज भी पाठकों पर गहरा असर छोड़ती हैं. कौशलेन्द्र पेशे से चिकित्सक हैं पर मन उनका साहित्य में ही रमता है. चेख़फ़...
अनुराधा सिंह की निर्वासित तिब्बती कविताओं पर आधारित पुस्तक ‘ल्हासा का लहू’ वाणी प्रकाशन ने रज़ा फ़ाउण्डेशन के सहयोग से इधर प्रकाशित किया है. 2018 में ज्ञानपीठ से उनका पहला...
औपनिवेशिक भारत में केवल इतिहास की ही खोज़ ख़बर नहीं ली जा रही थी, साहित्य की भी भूली बिसरी संपदा का शोधन हो रहा था. इनमें देशी विदेशी सभी तरह...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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