आलेख

प्रेमचंद की परंपरा के मायने: प्रेमकुमार मणि

प्रेमचंद की परंपरा के मायने: प्रेमकुमार मणि

प्रेमचंद की परम्परा क्या है और उनकी परम्परा का किस तरह विकास हुआ है. यह ऐसा विषय है जिसपर लगातार बहसें होती रहीं हैं. परम्परा में शामिल लेखकों की सूची...

मिलान  कुंदेरा और निर्मल वर्मा: हरीश त्रिवेदी

मिलान कुंदेरा और निर्मल वर्मा: हरीश त्रिवेदी

प्राग में निर्मल वर्मा के मित्रों में मिलान कुंदेरा भी शामिल थे. निर्मल वर्मा ने उनकी कहानियों के मूल से हिंदी में अनुवाद किये हैं. लेखन में सेक्स को ‘पॉलिटिकल...

मिलान कुंदेरा: हँसने की चाह में: गरिमा श्रीवास्तव

मिलान कुंदेरा: हँसने की चाह में: गरिमा श्रीवास्तव

“उपन्यास का कार्य प्रश्न पूछना है, वह दुनिया को समझदारी और सहिष्णुता के साथ प्रश्न के रूप में देखने की दृष्टि देता है.” ऐसा मानने वाले विश्व-प्रसिद्ध उपन्यासकार मिलान कुंदेरा...

शाइर तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है: रामलखन कुमार

शाइर तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है: रामलखन कुमार

कविता विघटनकारी राजनीति को ललकार सकती है, उसका प्रतिपक्ष रच सकती है. ऐसे ही शायर थे राहत इंदौरी जो मुशायरों में असहमति की मज़बूत आवाज़ थे. उनके कवि-कर्म पर विस्तार...

सौभाग्यनूपुर: बजरंग बिहारी तिवारी

सौभाग्यनूपुर: बजरंग बिहारी तिवारी

तमिल साहित्य के पांच महान महाकाव्यों में से एक ‘सीलप्पदिकारम्’ के रचनाकार इलंगो अडिहल चोल साम्राज्य से जुड़े समझे जाते हैं. इधर चर्चित सेंगोल का सम्बन्ध भी चोल साम्राज्य से...

किताबों की दुनिया और जवाहरलाल नेहरू: शुभनीत कौशिक

किताबों की दुनिया और जवाहरलाल नेहरू: शुभनीत कौशिक

1962 में अपनी आत्मकथा के सस्ते, अजिल्द संस्करण के प्रकाशन पर जवाहरलाल नेहरू हर्ष व्यक्त करते हैं. उस समय वह भारत के प्रधानमंत्री थे. आज राजनेताओं की पुस्तकें खूब चमक-धमक...

प्रकाश मनु : सदाशय पारदर्शिता: गिरधर राठी

प्रकाश मनु : सदाशय पारदर्शिता: गिरधर राठी

देखते-देखते प्रकाश मनु तिहत्तर वर्ष के हो गए. उनकी छवि साहित्य के अनथक योद्धा की है. संपादन, बाल साहित्य, उपन्यास, कहानियाँ, जीवनी, आत्मकथा, साक्षात्कार, आलेख, आलोचना आदि क्षेत्रों में वह...

गगन गिल का काव्य-संसार: सुदीप्ति

गगन गिल का काव्य-संसार: सुदीप्ति

हिंदी की महत्वपूर्ण कवयित्री गगन गिल (1959) के पांच कविता संग्रह प्रकाशित हैं- ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ (1989), ‘अँधेरे में बुद्ध’ (1996), ‘यह आकांक्षा समय नहीं’ (1998), ‘थपक थपक दिल...

एक फ़िक्शन निगार का सफ़र: ख़ालिद जावेद

एक फ़िक्शन निगार का सफ़र: ख़ालिद जावेद

किताबों की यात्राएँ भाषाओं की नदी में अनुवाद के सहारे तय होती हैं और इनका सभ्यागत योगदान है. किसी को महत्वपूर्ण पुस्तकों की इन यात्राओं पर काम करना चाहिए. ऐसी...

साहित्य का मनोसंधान:  मृदुला गर्ग

साहित्य का मनोसंधान: मृदुला गर्ग

वरिष्ठ लेखिका मृदुला गर्ग सृजनात्मक लेखन और अनुवाद में पिछले छह दशकों से सक्रिय हैं. उनकी सक्रियता का प्रमाण संस्मरणों पर आधारित उनकी पुस्तक, ‘वे नायाब औरतें’ हैं जो वाणी...

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