साहित्य, लोकप्रिय साहित्य और कुछ पूर्वाग्रह: दिनेश श्रीनेत
नई शिक्षा नीति के अंतर्गत हिंदी के पाठ्यक्रम में तरह-तरह के बदलाव दिखने लगे हैं. जिस समिति ने इन बदलावों को अनुमोदित किया है, सम्बन्धित विषय की उसकी विशेषज्ञता, प्रस्तावित...
नई शिक्षा नीति के अंतर्गत हिंदी के पाठ्यक्रम में तरह-तरह के बदलाव दिखने लगे हैं. जिस समिति ने इन बदलावों को अनुमोदित किया है, सम्बन्धित विषय की उसकी विशेषज्ञता, प्रस्तावित...
हंगरी की रोज़ा हजनोशी गेरमानूस (1892-1944) शान्तिनिकेतन में अप्रैल-1929 से जनवरी-1932 तक रहीं. उनकी प्रवास डायरी हंगरी में 'Bengali Tüz' और फिर अंग्रेजी में 'Fire of Bengal' के नाम से...
महत्वपूर्ण उपन्यासकार अलका सरावगी का नया उपन्यास ‘गाँधी और सरलादेवी चौधरानी: बारह अध्याय’ अपने प्रकाशन से ही चर्चा का विषय बना हुआ है, कुछ अच्छी समीक्षाएं सामने आईं हैं. आधुनिक...
प्रसिद्ध शिल्पकार शम्पा शाह साहित्य से गहरे आबद्ध हैं. आदिवासी कला आदि पर उनका लिखा महत्व का है. गगन गिल की पुस्तक ‘इत्यादि’ पर उनका यह आलेख मोहक है. प्रस्तुत...
मलिक मुहम्मद जायसी के ‘पदमावत’ से हम सब सुपरिचित हैं. क्या आप जानते हैं कि उन्होंने कृष्ण कथा पर आधारित महाकाव्य ‘कन्हावत’ भी लिखा है. लगभग पांच सौ साल पहले...
कवि त्रिलोचन की मानें तो- ‘ग़ालिब गैर नहीं हैं, अपनों से अपने हैं.’ हिंदी को भले ही उर्दू से परहेज़ रहा हो पर मीर, ग़ालिब को उसने दिल से लगा...
आज प्यारे विष्णु खरे (9 फरवरी, 1940 - 19 सितंबर, 2018 जीवित रहते तो हम लोग उनका 82 वां जन्म दिन मना रहे होते. प्रकाश मनु गहराई और तसल्ली से...
प्रख्यात लेखिका, दार्शनिक, नाट्य और फ़िल्म निर्देशक सूसन सौन्टैग (16 जनवरी, 1933 – दिसम्बर 28, 2004) अपने समय की प्रसिद्ध शख्सियत थीं. उनका एक पहलू सामाजिक कार्यकर्ता का भी है....
सन्तोष अर्श समकालीन हिंदी कविता पर गम्भीरता से लिखते हैं, युवा कवियों के क्रम में सपना भट्ट की कविताओं पर लिखा है. कविताओं के मनोजगत में झाँकने की उनकी कोशिश...
हिमालय का क्षेत्र पहाड़ों के लिए ही नहीं जंगलों के लिए भी जाना जाता है, जंगल और उसके वृक्ष जहाँ उसकी संस्कृति के अटूट हिस्से हैं वहीं उनपर कारोबारियों की...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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