आख्यान-प्रतिआख्यान (3): सहेला रे (मृणाल पाण्डे): राकेश बिहारी
कथाकार-आलोचक राकेश बिहारी की इस सदी की कहानियों की विवेचना की श्रृंखला ‘भूमंडलोत्तर कहानी’ समालोचन पर छपी और यह क़िताब के रूप में आधार प्रकाशन से प्रकाशित हुई है. इधर...
कथाकार-आलोचक राकेश बिहारी की इस सदी की कहानियों की विवेचना की श्रृंखला ‘भूमंडलोत्तर कहानी’ समालोचन पर छपी और यह क़िताब के रूप में आधार प्रकाशन से प्रकाशित हुई है. इधर...
राज्य और धर्म का पुराना गठजोड़ रहा है, दोनों एक दूसरे के काम आते थे. कुल मिलाकर यह गठजोड़ जनता के हितों की रक्षा, और तार्किक चेतना के प्रसार में...
आलोचक-अध्येता माधव हाड़ा की चर्चित कृति ‘मीरां का जीवन और समाज’ का अंग्रेजी अनुवाद ‘Meera vs Meera’ शीर्षक से प्रदीप त्रिखा ने किया है जिसे वाणी ने प्रकाशित किया है. इसकी...
रेणु की ख्याति में उनके उपन्यास ‘मैला आँचल’ और उनकी कुछ कहानियों की केन्द्रीय भूमिका है. मैला आँचल के समानांतर उनके दूसरे उपन्यास ‘परती परिकथा’ की चर्चा उसके प्रकाशन से...
कवि-आलोचक अच्युतानंद मिश्र वैचारिक आलोचनात्मक आलेख लिखते रहें हैं, पश्चिमी विचारकों पर उनकी पूरी श्रृंखला है जो समालोचन पर भी है और जो अब ‘बाज़ार के अरण्य में’ (उत्तर-मार्क्सवादी चिंतन...
महाकवि निराला ने कविताओं के साथ-साथ कहानियाँ और उपन्यास भी लिखे हैं, उनके साहित्य को समग्रता में देखते हुए रजनी दिसोदिया ने निराला की स्त्री-चेतना की पड़ताल की हैदेखें आप. ...
विजयमोहन सिंह (1 जनवरी, 1936-25 मार्च, 2015) ने कहानियां लिखीं,उपन्यास लिखे, पत्रिकाओं का संपादन किया, उनका आलोचनात्मक लेखन भी विस्तृत है. उनकी पुस्तक ‘समय और साहित्य’ (२०१२) के माध्यम से...
हिन्दी में साहित्य अकादमी पुरस्कार अनामिका को उनके कविता संग्रह ‘टोकरी में दिगंत- थेरी गाथा: 2014’ के लिए दिया गया है, निर्णायक समिति में थे- श्रीमती चित्रा मुद्गल, प्रो. के....
कवि सूरदास के साहित्य में वात्सल्य और श्रृंगार के साथ-साथ सगुण और निर्गुण के द्वंद्व का तीखा बोध है, इसके साथ ही उनके काव्य-संसार में उनका समय भी बोलता है....
हिंदी में अर्थशास्त्रीय चिंतन की परम्परा क्षीण ही रही, इस दिशा में डॉ. रामविलास शर्मा ने महत्वपूर्ण कार्य किया हालाँकि उनकी इस विषय पर कोई स्वतंत्र किताब नहीं है लेकिन...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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