आलोचना

प्रतिरोध के अभिप्राय और तुलसीदास का महत्त्व: माधव हाड़ा

प्रतिरोध के अभिप्राय और तुलसीदास का महत्त्व: माधव हाड़ा

किसी कवि की इससे बड़ी सफलता क्या होगी कि उसका काव्य इतना लोकप्रिय हो जाए कि घर में किसी मांगलिक आयोजन से पहले उसका सामूहिक पाठ किया जाए, और विडंबना...

टोकरी में दिगंत: शहर एक विस्मृत गंध का नाम है: गीताश्री

टोकरी में दिगंत: शहर एक विस्मृत गंध का नाम है: गीताश्री

कथाकार, पत्रकार और स्त्रीवादी लेखिका गीताश्री ने यह आलेख हिंदी की महत्वपूर्ण कवयित्री अनामिका की कविताओं में शहर- ख़ासकर मुज़फ़्फ़रपुर की उपस्थिति के विविध आयामों को ध्यान में रख कर...

आख्यान-प्रतिआख्यान (3)

आख्यान-प्रतिआख्यान (3): सहेला रे (मृणाल पाण्डे): राकेश बिहारी   

कथाकार-आलोचक राकेश बिहारी की इस सदी की कहानियों की विवेचना की श्रृंखला ‘भूमंडलोत्तर कहानी’ समालोचन पर छपी और यह क़िताब के रूप में आधार प्रकाशन से प्रकाशित हुई है. इधर...

मीरां: विमर्श के नए दौर में: रेणु व्यास

मीरां: विमर्श के नए दौर में: रेणु व्यास

आलोचक-अध्येता माधव हाड़ा की चर्चित कृति ‘मीरां का जीवन और समाज’ का अंग्रेजी अनुवाद ‘Meera vs Meera’ शीर्षक से प्रदीप त्रिखा ने किया है जिसे वाणी ने प्रकाशित किया है. इसकी...

परती परिकथा की पहेली: प्रेमकुमार मणि

परती परिकथा की पहेली: प्रेमकुमार मणि

रेणु की ख्याति में उनके उपन्यास ‘मैला आँचल’ और उनकी कुछ कहानियों की केन्द्रीय भूमिका है. मैला आँचल के समानांतर उनके दूसरे उपन्यास ‘परती परिकथा’ की चर्चा उसके प्रकाशन से...

कविता का बदलता बोध: अच्युतानंद मिश्र

कवि-आलोचक अच्युतानंद मिश्र वैचारिक आलोचनात्मक आलेख लिखते रहें हैं, पश्चिमी विचारकों पर उनकी पूरी श्रृंखला है जो समालोचन पर भी है और जो अब ‘बाज़ार के अरण्य में’ (उत्तर-मार्क्सवादी चिंतन...

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