लेखक और अनुवादक सुरेश ऋतुपर्ण 1988 से 1992 तक ट्रिनिडाड और टोबैगो स्थित भारतीय उच्चायोग में राजनयिक के रूप में...
संस्कृति, दर्शन, इतिहास, आधुनिकता, लोकतंत्र, वैज्ञानिक चेतना, सामाजिक न्याय और फासिज़्म जैसे विषयों पर आज हिंदी में सहज, प्रमाणिक और...
हिंदी के साहित्यकार देश के स्वाधीनता-संघर्ष में भागीदार रहे. आज़ादी के बाद सत्ता से उनके निकट संबंध बने. मैथिलीशरण गुप्त,...
एडवर्ड सईद की पुस्तक ओरिएंटलिज्म ने पूरब को देखने के पश्चिमी नजरिए में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए गंभीर सवाल खड़े...
'तमस' उपन्यास के मराठी अनुवाद के लिए साहित्य अकादमी के अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित मराठी तथा हिन्दी के वरिष्ठ लेखक...
जो स्थिति आज अंग्रेजी भाषा की है, मध्यकाल में लगभग वही स्थान फ़ारसी भाषा का था. 1837 में ईस्ट इण्डिया...
लेखक-आलोचक गरिमा श्रीवास्तव के स्त्री-आत्मकथाओं पर प्रकाशित आलेखों ने इधर ध्यान खींचा है. इनमें दलित, मुस्लिम स्त्रियाँ हैं. हिंदी, तमिल,...
प्राकृतिक सुषमा से भरे वनांचल में एक वन्य अधिकारी की मुलाकात एक लेखक से होती है और वह बाद में...
हिंदी में ‘नैरेटिव’ शब्द का उपयोग होता आया है. इसका एक पूरा शास्त्र है. जिसे नैरेटोलाजी कहते हैं और जिसका...
निर्मला जैन का समय हिंदी साहित्य के अध्यापन का एक युग ही है. आज़ादी के बाद हिंदी अध्येताओं और अध्यापकों...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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