मैं और मेरी कविताएँ (दस) : बाबुषा कोहली
बाबुषा कोहली किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. नई सदी की हिंदी कविता का जो मुहावरा बना है उसमें उनकी ख़ास उपस्थिति है. कथ्य और शिल्प दोनों स्तरों पर उन्होंने...
बाबुषा कोहली किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. नई सदी की हिंदी कविता का जो मुहावरा बना है उसमें उनकी ख़ास उपस्थिति है. कथ्य और शिल्प दोनों स्तरों पर उन्होंने...
कवि के लिए कितना कुछ है देखने के लिए, कहने के लिए. कभी-कभी वह एक भीगते चित्र से कविता तराश लेता है. प्रशस्ति-गायकों के बीच महाराज की असलियत भी उससे...
कथाकार, उपन्यासकार, निबंधकार शिवदयाल कविताएँ भी लिखते हैं. उनकी कुछ कविताएँ प्रस्तुत हैं. अलग शिल्प और आस्वाद की ये कविताएँ प्रभावित करती हैं.शिवदयाल की कविताएँ ...
Sculpture by jesús Curiá.रवीन्द्र के. दास का पहला कविता संग्रह, ‘मुखौटा जो चेहरे से चिपक गया है’ २०१५ में प्रकाशित हुआ था. उनके चार कविता संग्रह तथा संस्कृत के ‘मेघदूतम्’...
photo by Ashraful Arefinकविता का पुष्प कभी भी कहीं भी खिल सकता है. उसके अंकुरण की संभावना जिन तत्वों से होती है वे हर जगह मौज़ूद रहते हैं, जब वे इकट्ठे हो...
अनुराधा सिंह ने अपने वक्तव्य में लिखा है कि कवियों को ग़ैर ज़रूरी होना आना चाहिए. कविता भी जिसे हमें जरूरी नहीं समझते, भूल चुके हैं जो लगभग अदृश्य सा...
गौतम का जन्म ६२३ ईसा पूर्व, लुम्बिनी में माना जाता है(धर्मानंद कोसम्बी). आज से लगभग २६४३ वर्ष पूर्व. जबकि मिस्र के फराहों का समय ईसा से लगभग तीन हजार साल...
‘कवि भीपरती खेत का गहरा दुख ठीक से न कह पाने परहो रहा है निराश-हताश’कवि प्रेमशंकर शुक्ल विषय केन्द्रित कविताएँ लिखते रहें हैं. उनके कुछ संग्रह किसी थीम के इर्दगिर्द रहते...
‘कवियों के कवि शमशेर’ की लेखिका रंजना अरगडे में ख़ुद एक कवयित्री छुपी है इसे कोई कैसे जान सकता था? अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में रंजना अरगडे ने अपनी कविताओं...
शोभा सिंह का दूसरा कविता संग्रह \'यह मिट्टी दस्तावेज़ हमारा\' प्रकाशित होने वाला है. उनकी राजनीतिक भंगिमाओं वाली कविताओं का व्यक्तित्व और सुदृढ़ हुआ है, स्त्रियाँ और उनकी विडम्बनाएँ मुखर...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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