सौंदर्य, गरिमा और प्रतिरोध : महेश मिश्र
इसाबेल अयेंदे के उपन्यास ईवा लूना का स्पेनिश से अंग्रेज़ी अनुवाद 1988 में हुआ और शीघ्र ही इसने अपनी एक वैश्विक पहचान बना ली. इसकी चर्चा कर रहे हैं, महेश...
इसाबेल अयेंदे के उपन्यास ईवा लूना का स्पेनिश से अंग्रेज़ी अनुवाद 1988 में हुआ और शीघ्र ही इसने अपनी एक वैश्विक पहचान बना ली. इसकी चर्चा कर रहे हैं, महेश...
भारतीय साहित्य की सबसे बड़ी ऑनलाइन लाइब्रेरी ‘कविता कोश’ और ‘गद्य कोश’ के संस्थापक ललित कुमार का जीवन संघर्षों से भरा रहा है. उनकी आत्मकथा ‘विटामिन ज़िन्दगी’ पर चर्चा करते...
रज़ा की कलाकृतियों को देखना ही नहीं, उनके बारे में पढ़ना भी सम्मोहक अनुभव है. यशोधरा डालमिया की ‘सैयद हैदर रज़ा: एक अप्रतिम कलाकार की यात्रा’ ऐसी ही किताब है,...
नदियाँ सभ्यता की बसाहट का आधार रही हैं. जल ने केवल जीवन ही नहीं, संस्कृति को भी सींचा है. रामशंकर सिंह द्वारा संपादित ‘जीवन का तट: उत्तर भारत की नदियाँ...
यह जानकर विस्मय होता है कि नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना 1893 में बाबू श्यामसुंदर दास ने शिवकुमार सिंह और रामनारायण मिश्र के साथ मिलकर उस समय की, जब वे...
‘कर्फ़्यू की रात’ कथाकार शहादत का दूसरा कहानी संग्रह है. उन्होंने उर्दू शायर ज़हीर देहलवी की आत्मकथा ‘दास्तान-ए-1857’, मकरंद परांजपे की किताब ‘गांधी: मृत्यु और पुनरुत्थान’, और उर्दू अफ़सानानिगार हिजाब...
श्रीनारायण समीर ने अनुवाद के सिद्धांत और सृजन को केंद्र में रखते हुए अपना शोधकार्य बेंगलुरु विश्वविद्यालय से पूर्ण किया है. अनुवाद विषयक उनके कई ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं....
रमेश ऋषिकल्प प्राय; लम्बे प्रवास पर रहते हैं. यूरोप की यात्राओं ने उनके एकांत को जहाँ भरा है वहीं उनकी काव्य संवेदना को भी समृद्ध किया है. उनके कविता संग्रह...
भारतीय संविधान में वैज्ञानिक चेतना के विकास को प्रत्येक नागरिक का मूल कर्तव्य माना गया है— “वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद तथा जिज्ञासा और सुधार की भावना का विकास करना हर नागरिक...
नेहा नरूका के कविता संग्रह, 'फटी हथेलियाँ' पर वरिष्ठ कवि-लेखक कुमार अम्बुज लिखते हैं कि " ये कविताएँ आँसुओं की नहीं सवालों की झड़ी लगाती हैं, एक सजग स्त्री, नागरिक...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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