मीडिया का लोकतंत्र : अरविंद दास
आलोचनात्मक विवेक के प्रसार की अपनी ज़िम्मेदारी से आज हिंदी मीडिया दूर जा चुकी है. वह अधिकांशतः कारोबारी है. जिस देश की आज़ादी की लड़ाई में समाचारपत्रों, पत्रकारों और संपादकों...
आलोचनात्मक विवेक के प्रसार की अपनी ज़िम्मेदारी से आज हिंदी मीडिया दूर जा चुकी है. वह अधिकांशतः कारोबारी है. जिस देश की आज़ादी की लड़ाई में समाचारपत्रों, पत्रकारों और संपादकों...
धार्मिक कट्टरता सबसे पहले स्त्रियों की स्वतंत्रता सीमित करती है. उनके मनुष्य की तरह जीने की आज़ादी के संघर्ष को राजसत्ता के साथ मिलकर कुचल देती है. उनकी यातना की...
हिंदी की एकमात्र यहूदी लेखिका शीला रोहेकर का चौथा उपन्यास ‘पल्लीपार’ सेतु प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है. इससे पहले उनके ‘दिनांत’, ‘ताबीज़’, और ‘मिस सैम्युएल: एक यहूदी गाथा’ उपन्यास प्रकाशित...
कवि आशुतोष दुबे के शब्दों में कहें तो, ‘यह एक प्यारी और ज़रूरी किताब है जिसमें हम रचनात्मक संग-साथ की एक ऐसी जीवंत और असमाप्त कहानी में प्रवेश कर जाते...
वागीश शुक्ल कृति के साथ-साथ विचार और साहित्य का अंतरतर भी खोल देते हैं. भाषा की बाड़ टूट जाती है. सब एक दूसरे के और निकट पहुंच जाते हैं. आस्तीक...
प्रभात प्रणीत के उपन्यास ‘वैशालीनामा: लोकतंत्र की जन्मकथा’ को इसी वर्ष राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. समीक्षा कर रहें हैं अंचित.
2023 के साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित यून फुस्से के उपन्यास ‘Aliss at the Fire’ का हिंदी अनुवाद ‘आग के पास आलिस है यह’ शीर्षक से वाणी से प्रकाशित...
अनुराधा सिंह के कविता संग्रह ‘उत्सव का पुष्प नहीं हूं’ पर वरिष्ठ कवि-लेखक विजय कुमार की यह समीक्षा देखें.
श्यामसुन्दर दास द्वारा संपादित और नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा 1928 में प्रकाशित ‘कबीर ग्रन्थावली’ का परिमार्जित पाठ विख्यात आलोचक-लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने तैयार किया है और इसकी एक सुगठित और...
‘चाय पर शत्रु-सैनिक’ कविता के लिए विहाग वैभव को 2018 का भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार मिल चुका है. चयनकर्ता थे वरिष्ठ कवि अरुण कमल. इसी सितम्बर (2023) में पटना में वरिष्ठ...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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