खेला: वैश्विक पृष्ठभूमि में सत्ता का खेल: प्रीति चौधरी
‘खेला’ कथाकार नीलाक्षी सिंह का दूसरा उपन्यास है जिसे सेतु प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. कच्चे तेल की राजनीति से आतंक और हथियारों के वैश्विक खेल तक पसरे इस उपन्यास...
‘खेला’ कथाकार नीलाक्षी सिंह का दूसरा उपन्यास है जिसे सेतु प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. कच्चे तेल की राजनीति से आतंक और हथियारों के वैश्विक खेल तक पसरे इस उपन्यास...
कवि-संपादक पीयूष दईया समकालीन परिदृश्य में अनूठे कवि हैं. कृष्ण बलदेव वैद ने उनकी कविताओं को नवाचारी, मौलिक और आला दर्जे की माना है और उनकी कविताओं की ‘संश्लिष्ट संवेदना’...
गरिमा श्रीवास्तव की क्रोएशिया प्रवास-डायरी ‘देह ही देश’ जब से प्रकाशित हुई है, चर्चा में है, बड़े स्तर पर इसने लेखकों और पाठकों का ध्यान खींचा है. कथाकार और समाज-वैज्ञानिक...
आशुतोष राना हिंदी सिनेमा के उन कुछ अभिनेताओं में से एक हैं जो हिंदी में लिखते और सोचते हैं, संजीदा कलाकार हैं. इधर उन्होंने एक पुस्तक लिखी है ‘रामराज्य’. इसकी...
उपन्यास सामाजिक अध्ययन की दृष्टि से बड़े काम के होते हैं, यहाँ तक कि जिन्हें हम ‘लोकप्रिय साहित्य’ कहते हैं उनकी भी गम्भीर विवेचनाएँ हुईं हैं. समाज के अंदर पसर...
अपने पहले ही उपन्यास- ‘कलि-कथा: वाया बाइपास’ (1998) से चर्चित अलका सरावगी महत्वपूर्ण उपन्यासकार हैं, इधर उनका नया उपन्यास ‘कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिए’ वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है...
‘स्मृति एक दूसरा समय है’ मंगलेश डबराल का अंतिम कविता संग्रह है, सत्ता (ओं) से लड़ते हुए उनकी कविताएँ यहाँ अधिक मूर्त हुईं हैं. इस संग्रह की चर्चा कर रहें...
वरिष्ठ विज्ञान-लेखक देवेंद्र मेवाड़ी साहित्य के भी लेखक हैं, इसे साबित करने के लिए उनकी यह पुस्तक- ‘कथा कहो यायावर’ पर्याप्त है. हिन्दी में विज्ञान और विज्ञान-गल्प लेखन की अपार...
कृष्णा सोबती का लेखन बहुआयामी है, उनका जीवन आवरण से ढंका हुआ उन्हीं की तरह. उनके सार्वजनिक निर्णय उसे और जटिल बनाते रहे हैं. गिरधर राठी ने रज़ा फाउण्डेशन की...
हिंदी की बीसवीं शताब्दी के कुछ सबसे महत्वपूर्ण लेखकों में से एक जयशंकर प्रसाद हैं. कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, और आलेख इन सभी विधाओं में उनका कार्य आज भी प्रासंगिक...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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