नदी पुत्र: उत्तर भारत में निषाद और नदी : सौरव कुमार राय
रमाशंकर सिंह की पुस्तक ‘नदी पुत्र: उत्तर भारत में निषाद और नदी’ निषादों की नदी पर निर्भरता के साथ-साथ समाज में उनकी उपस्थिति और राजनीतिक गतिशीलता को भी देखती है....
रमाशंकर सिंह की पुस्तक ‘नदी पुत्र: उत्तर भारत में निषाद और नदी’ निषादों की नदी पर निर्भरता के साथ-साथ समाज में उनकी उपस्थिति और राजनीतिक गतिशीलता को भी देखती है....
कुमार अम्बुज हिंदी के महत्वपूर्ण कवि हैं, इस वर्ष आया उनका नया कविता संग्रह- ‘उपशीर्षक’ हिंदी कविता में रेखांकित करने वाली घटना है, इस दशक की मनोदशा का दर्पण है....
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक उर्मिलेश का यात्रा-संस्मरण ‘मेम का गाँव गोडसे की गली’ संभावना प्रकाशन से इसी वर्ष प्रकाशित हो कर आया है और अपनी खोजी दृष्टि और सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों...
कृष्ण कल्पित का कविता संग्रह- ‘एक महादेश की गाथा: हिन्दनामा’ २०१९ में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था और तभी से रुचि का विषय बना हुआ है. मिथकों, पुराख्यानों और...
सुजीत कुमार सिंह हिंदी नवजागरणकालीन साहित्य के अध्येता हैं. हरीश त्रिवेदी द्वारा संपादित, ‘अब्दुर्रहीम ख़ानेख़ाना: काव्य-सौन्दर्य और सार्थकता’ को परखते हुए उनकी नज़र प्रारम्भिक पत्र-पत्रिकाओं में छपी सामग्री पर भी...
वाणी प्रकाशन से २०२१ में प्रियंका नारायण की पुस्तक ‘किन्नर: सेक्स और सामाजिक स्वीकार्यता’ प्रकाशित हुई है. प्रियंका ने किन्नरों की लैंगिक अवधारणा तथा जीव-वैज्ञानिक अध्ययन के साथ ही पुराण,...
‘शब्दों का देश’ राकेश मिश्र का चौथा कविता संग्रह है जिसे राधाकृष्ण प्रकाशन ने इसी वर्ष प्रकाशित किया है. इस संग्रह की समीक्षा युवा आलोचक शशिभूषण मिश्र ने लिखी है.
सुपरिचित कथाकार तरुण भटनागर के कहानी संग्रह ‘प्रलय में नांव’ की समीक्षा कर रहें हैं- रमेश अनुपम. शीर्षक कहानी के साथ ‘क़ातिल की बीबी’ कहानी भी आप यहीं पढ़ सकते...
सेतु प्रकाशन से इसी वर्ष श्रीप्रकाश शुक्ल की प्रकाशित पुस्तक- ‘महामारी और कविता’ की विवेचना कर रहें हैं सौरव कुमार राय. इतिहास, साहित्य और महामारी के अंतर-सम्बन्धों पर कुछ रेखांकित...
दो दशकों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय और अनेक पुरस्कारों से सम्मानित शिरीष खरे की ‘एक देश बारह दुनिया’ उनकी तीसरी किताब है, उनकी ‘तहक़ीकात’ और ‘उम्मीद की पाठशाला’...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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