छिपकलियाँ : नरेश गोस्वामी
नरेश गोस्वामी की कहानी ‘छिपकलियाँ’ पढ़ते हुए निदा फ़ाज़ली का यह शेर याद आता रहा. ‘देस वीराना’ की कोई न कोई कथा हर शहरी के पास है. महानगर ईटों के...
नरेश गोस्वामी की कहानी ‘छिपकलियाँ’ पढ़ते हुए निदा फ़ाज़ली का यह शेर याद आता रहा. ‘देस वीराना’ की कोई न कोई कथा हर शहरी के पास है. महानगर ईटों के...
प्राची अपनी सहेलियों शालिनी और सौम्या के साथ जंगल-यात्रा पर सपरिवार निकलती तो है, पर ये लोग कहाँ फंस जाते हैं? ताकत, पूंजी और मनोविज्ञान के इस खेल में क्या...
एलजीबीटी समुदाय (lesbian, gay, bisexual, and transgender) को केंद्र में रखकर लिखी गई कहानियों में इस्मत चुगताई की उर्दू कहानी ‘लिहाफ़’ पहली हिन्दुस्तानी लेस्बियन प्रेम कहानी है जिसका प्रकाशन १९४२...
(by kallchar)राकेश बिहारी ने समकालीन कथा-साहित्य पर अपने स्तंभ ‘भूमंडलोत्तर कहानी’ की शुरुआत लगभग चार वर्ष पूर्व समालोचन पर की थी. आज इसकी २१ वीं कड़ी योगिता यादव की कहानी ‘गलते...
बारिश के देवता प्रत्यक्षा लगातार बारिश हो रही थी. झमझम. फोन की घँटी बेतहाशा बजती है. हलो हलो ? हलो डॉक्यूमेंटस नहीं मिले.. कोई उधर से चीख रहा है...
कृति : Egon Schieleराकेश बिहारी आलोचक के साथ साथ हिंदी के समर्थ कथाकार भी हैं. उनके दो कहानी संग्रह- ‘वह सपने बेचता था’ तथा ‘गौरतलब कहानियाँ’ प्रकाशित हैं. प्रस्तुत कहानी...
(Suttee by James Atkinson, 1831)समकालीन हिंदी कथा-साहित्य पर आधारित स्तम्भ, ‘भूमंडलोत्तर कहानी’ के अंतर्गत आशुतोष की कहानी – ‘अगिन असनान’ की विवेचना आप आज पढ़ेंगे. यह कहानी ‘सती’ के बहाने समाज...
कथाकार किरण सिंह की कहानी ‘संझा’ दो लिंगों में विभक्त समाज में उभय लिंग (ट्रांसजेंडर) की त्रासद उपस्थिति की विडम्बनात्मक कथा है. इसे ‘रमाकांत स्मृति पुरस्कार’ और प्रथम ‘हंस कथा...
अज्ञेय सम्पूर्ण रचनाकार थे. कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, संपादक, पत्रकार, गद्य लेखक आदि, अपनी बहुज्ञता और विविधता में जयशंकर प्रसाद की याद दिलाते हुए. उनकी एक प्रसिद्ध कहानी है गैंग्रीन जो...
कथाकार तरुण भटनागर के शीघ्र प्रकाश्य उपन्यास ‘कफ़स’ में एक चरित्र है- अदीब. जब वह पैदा हुआ तब उसके शरीर में औरत और आदमी दोनों के जननांग थे. उसके पिता...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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