सूखे ताल मोरनी पिंहके : अखिलेश – २
कवि मान बहादुर सिंह पर समालोचन में ही प्रकाशित अखिलेशके संस्मरण पर विष्णु खरे ने कुछ सवाल उठायें हैं. अपना पक्ष रखते हुए अखिलेश और फिर विष्णु खरे. विष्णु खरे...
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कवि मान बहादुर सिंह पर समालोचन में ही प्रकाशित अखिलेशके संस्मरण पर विष्णु खरे ने कुछ सवाल उठायें हैं. अपना पक्ष रखते हुए अखिलेश और फिर विष्णु खरे. विष्णु खरे...
24 जुलाई 1997 को सुल्तानपुर में कवि मानबहादुर सिंह की नृशंस हत्या ने सबको विचलित कर दिया था. गांवों – कस्बों और सुदूर अंचलों में साहित्यकार अदृश्य रहते हुए कई...
Wooden Human Figures : Peter Demetzआज आपका परिचय कवि प्रमोद पाठक से कराते हैं, वे बच्चों के लिए भी लिखते हैं. उनकी लिखी बच्चों की कहानियों की कुछ किताबें बच्चों...
हिंदी कविता की दुनिया अथाह है, शायद ही ऐसा कोई शहर-नगर हों जहाँ कवि न रहते हों, कविता न लिखी सुनी जाती हो. औसत के असीम में कविताओं के शिखर...
रत्नागिरी की सुहानी शिन्दे का तकिया कलाम है – ‘पकड़ कर चलो तो’. एक साथ हाथ पकड़कर चलने से ही संघर्ष में सफलता मिलती है यह उसे उसके पिता ने...
सिनेमा आधुनिक कला माध्यम है. इस माध्यम में तरह-तरह के प्रयोग होते रहे हैं. तकनीकी मदद से कल्पनाशीलता को मूर्त करने में ‘चल-चित्र’ दीगर कला माध्यमों से बहुत आगे निकल...
जब पूरा वातावरण कट्टरता, हिंसा और असहिष्णुता से भयाक्रांत हो और सत्ता के पहियों के नीचे मासूम, निर्दोष और खरे जन पिस रहे हों तब कविता क्या कर सकती है...
पल्लवी शर्मा प्रक्टिसिंग आर्टिस्ट हैं और कैलिफ़ोर्निया में विगत १८ वर्षों से रह रहीं हैं. उनकी कृतियां राष्ट्रीय - अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित हुई हैं और पसंद की गयी हैं.संत्रास, व्यर्थता बोध,...
हिंदी साहित्य में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी नाम से एक युग है, ज़ाहिर सी बात है द्विवेदी जी का योगदान युगांतकारी है. उनके सम्मान में काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने १९३३...
‘लाख के घर बनाकर लेखक को बुलावा भेजते हैं.’हिंदी के सह्रदय पाठक दूसरी भाषाओँ के कच्चे-पक्के अनुवादों से भारतीय कविता के परिदृश्य को देखते –समझते रहते हैं. मराठी साहित्य प्रारम्भ...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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