कथा-गाथा : ख़यालनामा : वन्दना राग
आलोचक और कथाकार राकेश बिहारी के स्तम्भ ‘भूमंडलोत्तर कहानी’ का समापन वन्दना राग की कहानी ‘ख़यालनामा’ की विवेचना से हो रहा है, इसके अंतर्गत आपने निम्न कहानियों पर आधारित आलोचनात्मक आलेख...
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आलोचक और कथाकार राकेश बिहारी के स्तम्भ ‘भूमंडलोत्तर कहानी’ का समापन वन्दना राग की कहानी ‘ख़यालनामा’ की विवेचना से हो रहा है, इसके अंतर्गत आपने निम्न कहानियों पर आधारित आलोचनात्मक आलेख...
‘स्वागत हर्ष के साथ नव वर्ष कारहे अमन आदम की बस्तियों में न्याय हो अधिक अधिक करुणासौन्दर्यबोध होकलाएं मनुष्यता की औरविकसित हो धरती के सभी निवसियों में साथ रहने की...
साल ने जाते-जाते मशहूर इस्राइली उपन्यासकार और पत्रकार ‘एमोस ओज’ Amos Oz (4 May 1939 – 28 December 2018) को हमसे छीन लिया. वह क्या थे और उनका लेखन किस तरह...
(Photo by Rohit Umrav)वीरेन डंगवाल की सम्पूर्ण कविताएँ, ‘कविता वीरेन’ के ‘असंकलित और नयी कविताएँ’ खंड में एक कविता है ‘रामपुर बाग़ की प्रेम कहानी.’ यह कविता कहानी है पर्यावरण...
मोनिका कुमार का पहला कविता संग्रह ‘आश्चर्यवत्’ इस वर्ष वाणी प्रकाशन द्वारा रज़ा फ़ाउंडेशन के सहयोग से ‘प्रकाश-वृत्ति’ के अंतर्गत’ प्रकाशित हुआ है. इसकी भूमिका वागीश शुक्ल ने लिखी है....
यह समझना चाहिए कि कविता कौतुक नहीं है. जहाँ बहुत कला होती है वहाँ अर्थ महीन होकर लगभग अदृश्य हो जाता है, अंतत: कवि-कर्म एक मानवीय गतिविधि है जिसमें मनुष्यता...
जिसे हम आज़ादी का संघर्ष कहते हैं और जो १९४७ में प्रतिफलित हुआ उसके पीछे लम्बा प्रेरणादायी नवजागरण काल है. हर बड़े राजनीतिक संघर्ष से पहले ज्ञानात्मक उभार और प्रसार...
मुक्तिबोध का साहित्य और उनका चिंतन उनके जीवन-संघर्ष और आत्म-संघर्ष का प्रतिफल है और साक्षी भी, उनके कथा-साहित्य में हम इसे खासतौर से पहचान सकते हैं. आलोचक सूरज पालीवाल ने...
आधुनिक चिकित्सा का तन्त्र कितना जानलेवा है इसे बड़ी कही जाने वाली बिमारियों से जूझते हुए रोगी और उनके परिजन समझते हैं, अब यह तन्त्र एक निर्मम व्यवसाय में बदल...
कवि सिद्धेश्वर सिंह निर्देशक अमर कौशिक की फ़िल्म ‘स्त्री’देखने गए, वहाँ उन्हें स्त्रियों पर लिखी कविताएँ भी याद आईं. डरना-वरना तो क्या ? यह टिप्पणी उन्होंने जरुर भेज दी मुझे....
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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