परिप्रेक्ष्य : अदम गोंडवी : वह पगडण्डी अदम के गांव जाती है
अदम गोंडवी : वह पगडण्डी अदम के गांव जाती हैपरितोष मणि अदम गोंडवी नहीं रहे. गज़लों के बहाने आम जनता के प्रति हो रहे अन्याय को प्रतिरोध की आवाज़ देने...
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अदम गोंडवी : वह पगडण्डी अदम के गांव जाती हैपरितोष मणि अदम गोंडवी नहीं रहे. गज़लों के बहाने आम जनता के प्रति हो रहे अन्याय को प्रतिरोध की आवाज़ देने...
( 1956-2018)समीर वरण नंदी से शायद यह आपकी पहली मुलाकात हो. समीर की कविताओं में हिंदी का काव्य- मुहावरा बांग्ला की संवेदना से मिलकर दीप्त हो उठा है. काल-बोध से बिद्ध...
साहित्य की दुनिया में दोस्ती के क्या मायने होते हैं ? आलोचक निर्मला जैन ने अपने तीन गहरे दोस्तों कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी और उषा प्रियंवदा पर एक किताब लिखी.....
फरीद खाँ की कुछ नई कविताएँगंगा मस्जिदयह बचपन की बात है, पटना की.गंगा किनारे वाली ‘गंगा मस्जिद’ की मीनार पर,खड़े होकर घंटों गंगा को देखा करता था.गंगा छेड़ते हुए मस्जिद...
अपने दुःख को देखा सब के ऊपर छाया,आह पी गया, हंसी व्यंग्य की ऊपर आई............................................त्रिलोचन कवि आलोचक नंद भारद्वाज ने इस लेख में नागार्जन के व्यक्तित्व, रचनाधर्मिता और लोक भाषाओं...
लेखन और आत्माभिव्यक्ति वन्दना शुक्ला एक पुरानी कहावत है ‘’चमत्कार को नमस्कार’’....आशय यही है कि चाहे विचारधारा हो,कोई अन्वेषण हो, या...
हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि आलोक धन्वा की उतनी ही महत्वपूर्ण कविता ‘ब्रूनों की बेटियां’ पर कवि समीक्षक कुमार मुकुल का भाष्य. कुमार मुकुल ने इस कविता को बड़े परिप्रेक्ष्य...
गोविन्द मिश्र से सुशील कृष्ण गोरे की बातचीत \"साहित्य में विमर्शबाजी एक शार्टकट है.\"पिछले दिनों गोविन्द मिश्र हिंदी एवं मराठी के महत्वपूर्ण आलोचक डॉ.चंद्रकांत बांदिवडेकर पर केंद्रित ‘शब्दयोग’ पत्रिका...
देवयानी की कविताएँ सहजता से मन मस्तिष्क में अपनी जगह बनाती हैं. स्त्री जीवन के चेतन–अवचेतन के कई स्याह सफेद पक्ष यहाँ एक दूसरे में गुंथे हैं. आकांक्षा के सीमांत पर...
हिन्दी कविता की तीसरी धारा मुकेश मानसहिंदी कविता की वह धारा जो शोषण और उत्पीडन के प्रति न केवल तीव्र समझौताविहीन प्रतिक्रिया देती है, बल्कि हाशिए के साथ जीती...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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