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परिप्रेक्ष्य : लेखन और आत्माभिव्यक्ति : वन्दना शुक्ला

       लेखन और  आत्माभिव्यक्ति                   वन्दना शुक्ला एक पुरानी कहावत है ‘’चमत्कार को नमस्कार’’....आशय यही है कि चाहे विचारधारा हो,कोई अन्वेषण हो, या...

भाष्य : ब्रूनों की बेटियां : कुमार मुकुल

हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि आलोक धन्वा की उतनी ही महत्वपूर्ण कविता ‘ब्रूनों की बेटियां’ पर कवि समीक्षक कुमार मुकुल का भाष्य. कुमार मुकुल ने इस कविता को बड़े परिप्रेक्ष्य...

मैं कहता आँखिन देखी : गोविन्द मिश्र

  गोविन्द मिश्र से सुशील कृष्ण गोरे की बातचीत    \"साहित्य में विमर्शबाजी एक शार्टकट है.\"पिछले दिनों गोविन्द मिश्र  हिंदी एवं मराठी के महत्वपूर्ण आलोचक  डॉ.चंद्रकांत बांदिवडेकर पर केंद्रित ‘शब्दयोग’ पत्रिका...

सहजि सहजि गुन रमैं : देवयानी

देवयानी की कविताएँ सहजता से मन मस्तिष्क में अपनी जगह बनाती हैं. स्त्री जीवन के  चेतन–अवचेतन के कई स्याह सफेद पक्ष यहाँ एक दूसरे में गुंथे हैं. आकांक्षा के सीमांत पर...

सबद भेद : हिंदी कविता की तीसरी धारा : मुकेश मानस

  हिन्दी कविता की तीसरी धारा     मुकेश मानसहिंदी कविता की वह धारा जो शोषण और उत्पीडन के प्रति न केवल तीव्र समझौताविहीन प्रतिक्रिया देती है, बल्कि  हाशिए के साथ जीती...

कथा – गाथा : विपिन चौधरी

विपिन चौधरी ::कहानीकार, कवयित्री जन्म - २ अप्रैल १९७६, भिवानी (हरियाणा)जिले के खरकड़ी- माखवान गाँव में शिक्षा – बी. एससी., ऍम. ए.(लोक प्रकाशन) दो कविता संग्रह व कुछ कहानियाँ व लेख विभिन्न...

मति का धीर : स्मृति में गोरख

जनवादी कवि गोरख पाण्डेय जन संस्कृति मंच के संस्थापक और प्रथम महासचिव थे. वह जे.एन.यू से ज्यां पाल सात्र के अस्तित्ववाद में अलगाव के तंतुओं पर पी.एच.-डी.कर रहे थे, बाद में  सिजोफ्रेनिया से ग्रस्त...

सहजि सहजि गुन रमैं : अनुज लुगुन

 युवतर अनुज लुगुन ने हिंदी कविता के परिसर को अपनी प्रश्नाकुल उपस्थिति से समृद्ध किया है.उनकी कविताएँ आदिवासी समाज की अस्मिता और संघर्ष से रची बसी हैं. उनमें उतर–औपनिवेशिक भारत...

परख और परिप्रेक्ष्य : तीन व्यक्तित्व

सांस्कृतिक आंदोलन के तीन व्यक्तित्वगोपाल प्रधानभारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भगत सिंह और गांधी को परस्पर विरोधी माना जाता है. भगत सिंह का जन्मदिन 28 सितंबर है और गांधी का...

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