देवेश पथ सारिया की कविताएँ |
लामाओं का गढ़ा किरदार होते हुए
लटकती हुई प्रार्थनाएँ पूरब से पश्चिम तक
कोई अंतर नज़र नहीं आता उत्तर से दक्षिण तक
मेरे आंगन की घास ज़र्द हो चुकी है
क्या तुम्हारी तरफ़ पेड़ तोतई रंग के हैं?
मील के पत्थर मुझे पुराने दोस्तों जैसे लगते हैं
ट्रेन के डिब्बे शरणार्थियों को आश्रय देने वाले देश ले जा रहे हैं
मैं पूर्व दिशा के एक द्वीप से आ रहा हूँ
क्या तुम्हारे शहर के रास्ते में वह दरवाज़ा है
जो इम्तियाज़ अली की फिल्मों में दिखाई देता है?
तुम्हारे शहर के रास्ते में कितने मठ और लामा हैं?
एक दरवेश ने कहा था:
सच्चा प्यार तुझे कहीं मिलेगा
तो पाँच दरियाओं की धरती में
उस धरती के दो फाड़ हो चुके हैं
सरहद पार न करनी पड़े, इसके लिए
मेरा प्यार चढ़ते पंजाब में होना चाहिए
अगर वह लैंहदे पंजाब में हुई तो?
क्या इसी तरह कटेगी बाक़ी फसल
एक हंसिए से जो किसी झंडे पर नहीं छपा
ओह, ख़ून बहता है अब ईख से
घुटने और कोहनी छिल गए हैं
यह आईना देखने का सही वक़्त नहीं है.

बाओशान रोड मेरा पता है
मेरी आँखें छोटी नहीं हैं
मेरे पसीने में पोर्क और सी-फूड की गंध नहीं है
मेरे बच्चे एक चुस्त स्त्री की छाती से नहीं चिपके हैं
मेरे बाल कब से ताइवानी शैली में नहीं कटे हैं
मैंने स्थानीय मान्यताओं के आधार पर नक़ली मुद्रा नहीं जलाई
मैंने केवल एक्युपंचर करने वाले डॉक्टरों और नर्सों से दोस्ती बढाई
मैंने महज़ एक ताइवानी लड़की से दिल लगाया
मछुआरों के रक्षक देवताओं को मैं शुक्रिया नहीं कह पाया
मैं कभी आलीशान फाॅरेस्ट रेल में नहीं बैठ सका
मैं समुद्र पर ढलता सूरज कुछ कम दफ़ा देख सका
अगर मैं ताइवानी होता तो शायद
खिलंदड़ टैक्सी ड्राइवर जैकी जैसा होता
पर मैं सिर्फ़ एक आप्रवासी हूँ
मैं जैकी की थोड़ी-बहुत नक़ल कर सकता हूँ
जैसे मैं ‘जूस’ को ‘जूसि’ बोल सकता हूँ
“हाउ आर यू, माई फ्रेंडि” उसके अनूठे लहज़े में पूछ सकता हूँ
लेकिन मेरी पत्नी की कोई जूस शाॅप नहीं है
मेरा बेटा पुलिस ट्रेनिंग नहीं ले रहा
ताइवानी मंत्रालय ने मुझे
आगे काम देने से इनकार कर दिया है
अब बचे हुए वीजा का मैं क्या करूं?
यह भारत से ढाई गुना महंगी जगह है
बिना आमदनी के यहाँ रहना
मतलब बचत उड़ाकर घी पीना
लो, अब मैं ख़त्म करता हूँ
भारी मन से आप्रवासी होना
बेमन से बैठता हूँ चीलगाड़ी में
इतने वर्षों में अपरिचित हो गई
सरज़मीं-ए-हिंदुस्तान लौटता हूँ
हालांकि ताइवान के हवा-पानी के देवताओं से
मेरी ठीक से रामा-श्यामा नहीं है
फिर भी मेरे पसीने में ताइवानी नमक है
मेरे ख़ून में दौड़ता है ताइवानी लोहा
मेरा दिल ताइवान की लोकधुन पर धड़कता है
बाओशान रोड अब भी मेरा पता है.
इतना-इतना सब कुछ
मसीह की आँखों में निस्पृहता है, फटकार नहीं
गिरजाघर अंग्रेज़ों के चले जाने के बाद तन्हा है
गिरजे के बाद जंगल है और जंगल के बाद हैं मुसलमानों के घर
रफ़ीक़ भाई का ईसाईयत से बस इतना-सा नाता है
कि दरगाह जाते हुए पैगंबर के अदब में सर झुक जाता है
खारा पानी उड़ता है, मीठा पानी बरसता है
बचा हुआ नमक कहाँ रह जाता है?
किसी-किसी हैंड पंप से हमेशा खारा पानी क्यों आता है?
उनका उस पानी पर इतना ही दावा है
कि उसमें उनकी बकरी बह गई थी
एक मेहनतकश आदमी
दूसरे मेहनतकश आदमी को शिकंजी पकड़ाता है
वे एक-दूसरे को आदर से देखते हैं
उनका एक-दूसरे से इतना-सा नाता है
कि दोनों ने दिन भर पसीना बहाया है
वह विदेश में इंटरनेशनल फूड फेस्टिवल में है
म्याँमार के स्टॉल के बाहर खड़ी है
समोसा खाने के लिए लोगों को बुला रही है
उसकी यह अंतर्राष्ट्रीय शिरकत ख़ुद को एक भुलावा है
उसके गृहदेश में सैन्य तानाशाही चल रही है
मैं रोज़ तुम्हें ईमेल लिखता हूँ
रोज़ तुम मेरे संसार में रंग भरती हो
जवाब फिर भी किसी दिन नहीं देती
मेरा तुम्हारे प्यार पर इतना ही दावा है
कि हमने मंदिर, दरगाह, गुरुघर में मिलकर अरदास की थी.
मृत बच्चों के लिए कविता
कोई बच्चा अगर मर जाए
तो आप उससे
प्यार करना नहीं छोड़ देते
आप उसे सीने से चिपका कर रखते हैं
जब तक ज़्यादा दुनियादार लोग
उसे जबरदस्ती आपसे अलग नहीं कर देते
उसके पसंदीदा साबुन से
आप उसे सावधानी से नहलाते हैं
उसकी आँखें जो अब कभी नहीं खुलेंगी
उन्हें आप साबुन के झाग से बचाते हैं
आप उसके बदन से छुआते हैं
उसके सभी प्रिय कपड़े
अब भी पाउडर लगाने के बाद
पहना देते हैं सबसे अच्छे कपड़े
उसे अंतिम यात्रा पर ले जाते समय
आप महसूस करते हैं कि
वह स्कूटर पर आगे खड़ा है
उसने दोनों हाथ फैला दिए हैं
और आँखें मूँदकर वह हवा को महसूस कर रहा है
आप उसके लिए पथरीली नहीं
बल्कि नर्म मिट्टी चुनते हैं
जिसमें वह आराम से सो सके
उसे दफ़ना या जला देते हैं
और पहरेदारी करते हैं
उस जगह या चिता की
कि कोई अघोरी या तांत्रिक वहाँ न आ जाए.
रहबरों का टीला
बसावट हटते ही आ धमकती हैं मकड़ियाँ
बसावट होते ही ग़ायब हो जाती हैं नीलगायें
इससे पहले और इसके बाद
कहाँ रहती हैं मकड़ियाँ, कहाँ रहती हैं नीलगायें?
हिंदी का एक छात्र बताता है:
यह कविता का समन्वय काल है
अगर मैं इस काल से भिन्न कवि हुआ तो
क्या वहीं छिटक दिया जाऊंगा
जहाँ रहती हैं मकड़ियाँ, जहाँ रहती हैं नीलगायें?
संदेश विरल हो रहे हैं
शब्द चटक कर टूट रहे हैं
मुझे उनकी लिपि समझ नहीं आती
अज्ञात, अज्ञात में विखंडित होता है
मैं इस ऊँचे टीले से पुकारता हूँ:
चली आओ मेरी मकड़ियो,
चली आओ मेरी नीलगायो!
मिट्टी सरकती है
टीला दरकता है.
प्रभात की कविताएँ सुनाते हुए
मैंने तुम्हें प्रभात की
इतनी कविताएँ सुनाई हैं
कि अब प्रभात को पढ़ता हूँ
तो तुम्हारी याद आती है
बबूल को देखता हूँ
तो हमारे पाँवों की सोचता हूँ
जो साथ चलते-चलते
जाने कब रास्ता भटक गए
क्या तुम्हारे पाँव में कांटा चुभा था?
पाटोर में सरसराहट हुई है
एक स्त्री गाय-भैंस दुहने चली गई है
काश ये नश्वर सृष्टि इस तरह चलती
कि बिछुड़ता न एक भी मोरपंख
कि फीका न पड़ता हमारे प्यार का रंग
युवती एक दिन खेत में आ ही जाती है
उसका प्रेमी गड़रिये को जाने देता है
लड़कियाँ अब भी कार्तिक नहाती हैं
सारस अब भी लंबी यात्राएँ करते हैं
हम ही किसी नदी किनारे नहीं मिलते
तुमने कभी पीली लूगड़ी नहीं ओढ़ी
पर पहना होगा छींट का कुर्ता, छींट का सलवार
तुम छींट को कहती होगी पोलका-डाॅट्स
मेरी दादी-नानी ब्लाउज को पोलका कहती थीं
और बहुओं को लंबे-लंबे असीस देती थीं
अब सुनाने के लिए मैं नहीं हूँ
क्या तुम ख़ुद पढ़ लोगी?
प्रभात की नई किताब आई है
‘अबके मरेंगे तो बदली बनेंगे’
तो तय हुआ कि हम भी यही करेंगे?
नगर बैराग
बिना नाम के मरता हुआ आदमी
अटकती अंतिम सांसों में कहता है:
मुझे श्मशान मत ले जाना
एक क़िसिम का बैराग तो नगर भी देता है.
अब तक तीन जन्म
तुमने एक दिन किसी से बात की जो बीते जन्मों की दास्तान सुनाता था. उसने तुम्हें बताया कि तुम दो जन्मों में मुझसे संबंधित रही हो. एक जन्म में मैं बिन बाप का बेटा था और तुम मेरी माँ थीं और तुमने मुझे असहाय छोड़कर दूसरी शादी कर ली थी. दूसरे जन्म में हम दोनों एक-दूसरे के शत्रु सैनिक थे और तुमने मुझे गोली मार दी थी. मैं तुमसे गुज़ारिश करता और हम उस दृश्य का अभिनय किया करते. तुम दीवार की ओट में छुप जाया करतीं और उँगलियों से गोली चलाने का अभिनय करतीं. मैं गोली लगकर मर जाने का अभिनय करता. यह तीसरा जन्म होना चाहिए हमारा. इसमें हमें एक-दूसरे को और नहीं सताना चाहिए. हम मिलेंगे और कुछ और अभिनय करेंगे— उस जन्म का जिसमें तुम मेरी माँ थीं. इस बार भी मैं बिन बाप का बेटा हूँ और तुम इस बार पहले से मजबूत औरत हो और तुम अपने बच्चे को अपने साथ रख सकती हो. मेरे सर पर तुम्हारा साया हर दम बना रह सकता है.

बेरोज़गार लेखक
सभी प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के बावजूद
तमाम वेबसाइटों पर उसका रचनाकर्म मौजूद होने के बावजूद
वह पूरा दिन ख़ुद से बातें करता है
दिन में एक बार भी नहीं बजता उसका फ़ोन
वह सोचता है
क्या कोई अपनी महबूबा को सुनाता होगा उसकी कविताएँ?
क्या कोई बाँचता होगा चिट्ठी की तरह उसके संस्मरण?
दुनिया भर से चुनकर जो उम्दा कविताएँ उसने हिन्दी तक पहुँचाईं
वे किसी की नज़र से गुज़री भी होंगी या नहीं?
क्या किसी ने इस बात पर ग़ौर किया होगा
कि उसने अपने अनुवादों को दिए हैं
अपनी कविताओं से भी उत्कृष्ट शब्द?
उसकी लुनाई की चिंता केवल नाई को होती है
ताकि चेहरे और सिर की मालिश कर कुछ पैसे कमाए जा सकें
उसके स्वास्थ्य की चिंता केवल बीमा बेचने वालों को है
ताकि निर्धारित मासिक लक्ष्य पूरा किया जा सके
उन्हें उसकी माली हालत का सही अंदाज़ा नहीं है
एक लड़की को सही-सही
पता चल गई थी उसकी आर्थिक हैसियत
लड़की को दूसरे मुक़ाम प्यारे लगने लगे
वह यह कहकर उसे अवसाद में छोड़ गई:
“कविता लिखना कोई विशेष उपलब्धि नहीं
कविताओं से कोई रुपया-पैसा नहीं आता
कंगले और चरित्रहीन होते हैं लेखक!”
वह सोचता है
यदि वाक़ई उसका एक अदृश्य पाठक वर्ग है
और उसमें शामिल हैं कुछ प्रशंसक भी
उस स्थिति में यदि उसका हर प्रशंसक
उसे मात्र सौ रुपए भेंट कर दे
तो क्या इतनी रक़म इकट्ठी हो सकती है
कि वह बीड़ी-माचिस की दुकान खोल ले?
बादल प्रेमी लड़की
तुमसे पहले मैं बादलों से कई तरह से मिला था
वे भी मुझसे कई तरह से पेश आए थे
नैनीताल में वे कभी भी टपक पड़ते थे
राजस्थान में कई बार दिलासा देकर छोड़ जाते थे
बिहार में वे हर साल बाढ़ लाते थे
ताइवान में बेहद उमस
तस्वीरों में उन्हें बेजा संपादित कर दिया जाता था
अमूर्त पेंटिंग्स में वे बेचैनी अधिक पैदा करते थे
सुकून बनकर वे अब आए हैं
मैं तैर रहा हूँ झक्क सफ़ेद समुंदर में
बादल प्रेमी लड़की
जो तुम आई हो
तो हर टुकड़ा बादल
एक तैरता हुआ जहाज़ है.
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राजस्थान के राजगढ़ (अलवर) के देवेश पथ सारिया ताइवान में खगोलशास्त्र के पोस्ट-डॉक्टरल शोधार्थी हैं. 2023 के भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित हैं. विभिन्न भाषाओं में कविताओं के अनुवाद प्रकाशित. उनकी प्रकाशित कृतियों में नूह की नाव (कविता-संग्रह), स्टिंकी टोफू (कहानी-संग्रह), छोटी आँखों की पुतलियों में (कथेतर गद्य) तथा हक़ीक़त के बीच दरार और यातना शिविर में साथिनें (अनुवाद)शामिल हैं. |




ये कविताएँ-
विषय वैविध्य। और निर्वाह। व्यग्र और उदग्र। मार्मिकता : ‘मृत बच्चों के लिए कविता’ पढ़ना और सँभालना मुश्किल हुआ। अभी बधाई और आगे के लिए शुभकामनाएँ!
देवेश पथ सरिया नूह की नाव से एक प्रतिभाशाली कवि के रूप मैं आए हैं, भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार उन्हें मिला है ,मैने सबसे पहले उन्हें प्रियंवद की पत्रिका में पढ़ा ,नए कवियों मे वे सबसे प्रतिभाशाली कवि हैं,उनका भविष्य उज्ज्वल है,,,,