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Home » जेम्स ज्वायस: एवलीन: अनुवाद: शिव किशोर तिवारी

जेम्स ज्वायस: एवलीन: अनुवाद: शिव किशोर तिवारी

जेम्स ज्वायस (2 फरवरी, 1882 – 13 जनवरी, 1941) की कहानी एवलीन का यह अनुवाद शिव किशोर तिवारी ने मूल अंग्रेजी से किया है. इससे पहले जेम्स ज्वायस की अनूदित कहानी ‘अरबी बाज़ार’ आप पढ़ चुके हैं. कहानी जितनी मार्मिक है अनुवाद भी उतना ही स्वाभाविक है, स्तरीय है. कहानी प्रस्तुत है.

by arun dev
September 20, 2021
in अनुवाद
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जेम्स ज्वायस: एवलीन: अनुवाद: शिव किशोर तिवारी
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जेम्स ज्वायस
एवलीन

अनुवाद: शिव किशोर तिवारी

मुख्य मार्ग पर काबिज हो रही शाम को देखती वह खिड़की के पास बैठी थी. उसका सिर खिड़की के परदे पर टिका था और परदे के कपड़े की गंध उसके नथुनों में थी. उसे थकान लग रही थी.

सड़क पर शायद ही कोई दिख रहा था. आखिर वाले घर का निवासी घर लौटता दिखा. पक्के फुटपाथ पर उसके जूतों की खट-खट ध्वनि नये लाल घरों की ओर जाने वाली चारकोल सड़क तक आकर चर्र-खर्र में बदल गई. इन घरों की जगह पर एक मैदान हुआ करता था. बचपन में वे दूसरे घरों के बच्चों के साथ शाम को वहाँ खेला करते. फिर बेलफास्ट से आकर किसी ने वह मैदान खरीद लिया और उस पर घर बना दिये– यहाँ के भूरे रंग के छोटे घरों जैसे घर नहीं, बल्कि सुर्ख ईंट वाले घर जिनकी छतें चमकती थीं. मुख्य मार्ग की दोनों तरफ के बच्चे मैदान में एक साथ खेलते– डेवीन परिवार, वॉटर और डन परिवारों के बच्चे, कियो नाम का एक बच्चा जो अपाहिज था, वह खुद और उसके भाई-बहन. बड़ा भाई अर्नेस्ट नहीं खेलता था, वह बड़ा हो गया था. उसके पिता हाथ में लकड़ी की छड़ी लिए उन्हें ढूँढ़ने आते: लेकिन छोटा कियो पहरेदारी पर रहता और उसके पिता यदि आते दीखते तो उन्हें चेता देता था. फिर भी उसे लगता है कि तब परिवार साधारणत: सुखी था. पिता इतने बुरे नहीं हुए थे तब तक और माँ अभी जीवित थी. इस बात को बहुत बरस हो गये; इस समय भाई-बहन बड़े हो चुके थे और माँ नहीं रही थी. टिजी डन भी मर चुकी थी. वॉटर परिवार वापस इंग्लैंड जा चुका था. सब बदलता है. अब वह खुद यहाँ से जा रही थी, औरों की तरह घर छोड़कर.

घर! उसने कमरे पर नजर दौड़ाई– चिरपरिचित चीजें जिनकी हफ्ते-हफ्ते झाड़-पोछ वह कई साल से करती रही थी– इतनी धूल कहाँ से आ जाती है, यह सोचती. इन चिरपरिचित चीजों से बिछड़ने की बात उसके सपने में भी नहीं आई थी, पर अब शायद वह इन्हें कभी न देख पायेगी.

चिरपरिचित होने के बावजूद इतने वर्षों में वह उस पादरी का नाम न जान पाई थी जिसकी पीली पड़ती तस्वीर टूटे हारमोनियम के ऊपर,परम पूजनीया मार्गरेट मेरी एलकॉक की तस्वीर की बगल में दीवार पर लटकी थी. वे उसके पिता के सहपाठी मित्र थे. किसी मिलने वाले को यह तस्वीर दिखाते हुए पिता चलते-चलते लापरवाही के साथ यह जुमला जड़ते, ´अब वह मेलबर्न में रहता है’.

वह यहाँ से, अपने घर से, जाने के लिए सहमत हो चुकी है. यह निर्णय विवेकपूर्ण  है? उसने प्रश्न के दोनों पहलुओं को तौलने की कोशिश की. घर में कम से कम आश्रय और भोजन मिल ही जाता है; उसके इर्द-गिर्द ऐसे लोग हैं जिन्हें वह बचपन से जानती है. हाँ, काम बहुत करना पड़ता था– घर में भी और नौकरी में भी. जब स्टोर वाले सुनेंगे कि वह किसी बंदे के साथ भाग गई है तो वे क्या सोचेंगे ? शायद कहें कि उसने बेवकूफी की है, फिर उसकी जगह विज्ञापन निकालकर भर ली जायेगी. मिस गैवन खुश होगी. वह हमेशा उससे खुन्नस रखती थी, खास तौर पर यदि आसपास सुनने वाले हों.

“मिस हिल, देखती नहीं कि ये महिलाएँ कब से खड़ी हैं ?”

“जरा जल्दी करें, मिस हिल.”

स्टोर की नौकरी छूटने का उसे कोई दर्द नहीं होगा.

परंतु किसी दूर अनजाने देश में उसके नये घर में हालात ऐसे नहीं रहेंगे. वह शादीशुदा होगी– वह, एवलीन. लोग उसके साथ शराफत से पेश आयेंगे. जैसा बर्ताव उसकी माँ के साथ हुआ था वैसा उसके साथ नहीं होगा. अब भी, जब उसकी उम्र उन्नीस पार कर चुकी है, उसे कभी-कभी अपने बाप के हिंसक होने का डर रहता था. उसे पता था कि उसकी हौलदिली की बीमारी का यही कारण था. जब वे बड़े हो रहे थे तो बाप ने हैरी और अर्नेस्ट की जैसी और जितनी बार खबर ली थी उतनी उसकी नहीं, इसलिए कि वह लड़की थी; लेकिन हाल में वह उसे भी धमकियाँ देने लगा था कि उसकी मरी माँ का ख्याल न होता तो वह उसकी कैसी गत बनाता. अब उसे बचाने वाला भी न था कोई. अर्नेस्ट की मृत्यु हो चुकी थी और हैरी, जो चर्चों की सजावट के धंधे में था, लगभग हमेशा कहीं देहात में होता. इसके अलावा हर शनिवार की शाम, बिला नागा, पैसों के लिए जो किचकिच मचती थी उससे भी वह बेजार हो चुकी थी. वह अपनी हफ्ते की पूरी तनख्वाह– सात शिलिंग- बाप के हाथ पर रख देती थी. हैरी भी यथासम्भव पैसे भेजता रहता था. लेकिन बाप से पैसा निकाल पाना मुश्किल था. वह कहता कि वह पैसे बरबाद करती है, उसके पास पैसे सँभालने की अक्ल नहीं है और वह अपनी गाढ़ी कमाई रास्ते में फेकने के लिए कभी नहीं देगा, वगैरह-वगैरह.

बात यह थी कि शनिवार की शाम वह अकसर काफी बुरी हालत में होता (नशे में– अनु). आखिर वह पैसे निकालता और उससे कहता कि रविवार के डिनर के लिए खरीददारी करनी है या नहीं. फिर वह जितनी जल्दी हो पाता, भागकर सौदा-सुलुफ लाने निकलती; चमड़े के काले पर्स को मजबूती से हाथ में पकड़े, भीड़ में धक्का-मुक्की करके आगे बढ़ती और अंतत: खरीदारी खतम कर देर रात सामान के बोझ से दबी वापस आती. घर सम्हालने का काम कठिन था, साथ ही घर में जिन दो बच्चों की जिम्मेदारी उस पर थी, उन्हें समय से खिला-पिलाकर नियमित स्कूल भेजना होता था. काम कठिन था, जीवन दुस्सह, परन्तु अब जबकि वह उसे पीछे छोड़ जाने वाली थी, तब उसे लगने लगा था कि यह जीवन इतना भी बुरा नहीं था.

वह फ्रैंक के साथ एक नई जिन्दगी की खोज में निकलने वाली थी. फ्रैंक बड़ा भला, सुपुरुष और फराखदिल था. रात के स्टीमर से उसे फ्रैंक के साथ जाना है, उसकी पत्नी बनकर ब्यूनस आयरेस में रहने के लिए जहाँ उसके लिए फ्रैंक ने पहले एक घर की व्यवस्था कर ली थी. (डबलिन से लिवरपूल तक स्टीमर से, उसके बाद लिवरपूल से ब्यूनस आयरेस तक पानी के जहाज से –अनु)

फ्रैंक से पहली मुलाकात उसे कितनी अच्छी तरह याद है ! वह मुख्य सड़क पर एक एक घर में किरायेदार था, जहाँ एवलीन का आना-जाना था. कुछ हफ्ते पहले की बात लगती है. वह गेट पर खड़ा था, अपनी नाविक वाली टोपी सिर पर पीछे की ओर खिसकाये और काँसे के रंग के चेहरे पर झबरे बाल लटकाये. फिर उनकी जान-पहचान हुई. रोज शाम वह स्टोर पर उसे मिलता और घर तक छोड़ जाता. वह उसे ‘द बोहिनियम गर्ल’ नामक ओपेरा दिखाने ले गया और पहली बार वह उसके साथ थियेटर के कभी न देखे हिस्से में बैठी. फ्रैंक को गानों का बड़ा शौक था और थोड़ा-बहुत गा भी लेता था. सबको पता हो गया था कि उनका प्रेम-सम्बंध बन रहा था. जब फ्रैंक नाविक से प्यार करने वाली लड़की का गीत सुनाता, वह आनंद-मिश्रित सम्भ्रम में पड़ जाती. वह मजाक में उसे गुड़िया बुलाता. शुरूआत में तो वह इस बात को लेकर उत्साहित थी कि उसका भी एक आदमी है, फिर वह उसे पसंद करने लगी. उसके पास दूर देशों की कहानियाँ थीं. पहले उसे कनाडा जा रहे ‘एलेन लाइन´के एक जहाज में एक पौंड प्रति मास पर डेक ब्वाय की नौकरी मिली थी. उसने उस जहाज का नाम बताया और पानी के जहाज में नियुक्त लोगों के अलग-अलग काम बताये. वह पानी के जहाज से  मैगेलन जलडमरूमध्य पार कर चुका था. उसने एवलीन को पैंटगोनिया के भयानक आदिवासियों के बारे में बताया. ब्यूनस आयरेस में उसके जीवन को स्थिरता मिली. बस छुट्टियाँ मनाने देस आया था.

स्वभावत: उसके पिता को इस मामले की खबर हो गई और उन्होंने उसे फ्रैंक से बात करने को मना कर दिया.

“मैं जानता हूँ इन नाविकों को”, पिता ने कहा.

एक दिन पिता फ्रैंक से झगड़ पड़ा, उसके बाद वह फ्रैंक को छुपकर मिलने लगी.

मुख्य सड़क पर अँधेरा गहरा आया था. उसकी गोद में रखे दो लिफाफों का सफेद रंग धूमिल दिखने लगा. एक में हैरी को लिखा उसका पत्र था, दूसरे में पिता को लिखा. अर्नेस्ट उसका प्यारा था पर हैरी से भी उसकी बनती थी. उसने लक्ष्य किया था कि पिता अब  बुढ़ाने लगे थे, वे उसे मिस करेंगे. कभी-कभी वे बड़ा अच्छा सलूक करते थे. कुछ ही दिन पहले जब वह एक दिन के लिए बिस्तर पर पड़ गई थी, तब उन्होंने उसे एक भूतों वाली कहानी पढ़कर सुनाई थी और उसके लिए टोस्ट सेंक दिया था. एक और दिन, जब माँ जीवित थी, तब पूरा परिवार होथ की पहाड़ी के पास पिकनिक के लिए गया था. उसे याद था कि बच्चों को हँसाने के लिए पिता ने माँ का बॉनेट (स्त्रियों की टोपी) पहन लिया था.

समय कम बचा था, फिर भी वह खिड़की के पास बैठी रही, अपना सिर खिड़की के परदों पर टिकाये, और धूल भरे परदे के कपड़े की गंध को साँसों में बसाये. बहुत नीचे सड़क पर कहीं आर्गन बजने की आवाज सुनाई दी. गाना उसने पहचान लिया. कैसा संयोग है कि वह गीत उसे अपनी माँ से किया वादा याद दिलाने आ गया, जब तक संभव हो घर-परिवार को सँभालकर रखने का वादा. उसे बीमार माँ की आखिरी रात याद आई; एक बार फिर कल्पना में वह हाल के दूसरे सिरे पर स्थित माँ के अँधेरे और बासी हवा से भरे उस कमरे में पहुँच गई; उस समय बाहर कोई आर्गन पर इटली का कोई करुण गीत बजा रहा था. आर्गन बजाने वाले को 6 पेंस पकड़ाकर हटा दिया गया था. उसे याद था कि पिता बीमार के कमरे में अकड़-भरी चाल में वापस आये थे, यह कहते हुए, “कमबख्त इटालियन! आ गये यहाँ तक!”

यह सब याद करते समय उसकी माँ के जीवन का करुण चित्र उसके अंतर के सबसे स्पर्शकातर अंश में व्याप्त हो गया– छोटे-छोटे तमाम बलिदानों सो भरा जीवन जिसकी परिणति विक्षिप्तता में हुई. अपनी माँ के आखिरी दिन के दो शब्द उसके कानों में फिर गूँजने लगे और उसके बदन में झुरझुरी-सी आ गई.

“डेरवॉन सेरॉन! डेरवॉन सेरॉन!”

(विक्षिप्त, मृत्यु के सन्निकट व्यक्ति का अनर्गल प्रलाप अथवा गेलिक या आयरिश भाषा के किन्हीं शब्दों का अस्पष्ट उच्चारण– अनु.)

भय की वशीभूत, वह सहसा खड़ी हो गई. भाग कर बचो! उसे भागना है! फ्रैंक उसे बचायेगा. वह उसे जिन्दगी देगा, शायद प्यार भी. लेकिन उसे जीवित रहना है. दु:ख क्यों झेले वह? उसे खुश रहने का अधिकार है. फ्रैंक उसे बाँहं में भर लेगा, उसे आलिंगन में बाँध लेगा. उसे बचा लेगा.

नॉर्थ वॉल स्टेशन पर वह सतत् गतिमान भीड़ में खड़ी थी. उसका हाथ फ्रैंक के हाथ में था, उसे पता चल रहा था कि फ्रैंक उससे कुछ बार-बार कह रहा है, जहाज की यात्रा की बाबत कुछ. स्टेशन पर चारों ओर सैनिक और उनके भूरे बैग दिख रहे थे. शेड के खुले, चौड़े दरवाजे से वह जहाज घाट पर खड़े स्टीमर की काली काया को देख पा रही थी, उसकी खिड़कियों में प्रकाश दिख रहा था. फ्रैंक की बातों का वह कोई जवाब नहीं दे रही थी. उसे अपना चेहरा जर्द और ठंडा लग रहा था.

बिपदा के व्यूह में फंसी वह ईश्वर से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करने लगी. स्टीमर से एक लम्बी, करुण-सी सीटी धुंध को भेदती बज उठी. वह चल दे तो कल वह फ्रैंक के साथ समुद्र पर होगी, तीव्र गति से ब्यूनस आयरेस की तरफ जाती. टिकट खरीदे जा चुके थे. फ्रैंक जब उसके लिए इतना सब कर चुका था तब भी वह पीछे हट सकती थी? अतिशय कातर एवलीन को उल्टी-सी लगने लगी, पर उसके होठ नि:शब्द, उत्कट प्रार्थना में हिलते रहे.

एक तेज घंटा बजा, मानो उसके हदय के ऊपर.उसे भान हुआ कि फ्रैंक ने उसका हाथ पकड़ लिया है.

“चलो!”

उसके हृदय में समस्त समुद्रों का आलोड़न भर आया. फ्रैंक उसे समुद्रों के आलोड़न की ओर खींच रहा था: वह डुबा देगा उसे. एवलीन ने दोनों हाथों से लोहे की रेलिंग को पकड़ लिया.

“चलो!”

नहीं! नहीं! नहीं! यह असंभव है. उतावली के साथ उसने रेलिंग पर हाथ कस लिए. उसके मुँह से एक दर्द-भरी चीख समुद्र की दिशा में निकली.

“एवलीन! एवी!”-  फ्रैंक ने दौड़कर बैरियर पार किया और एवलिन को पीछे-पीछे आने के लिए पुकारा. किसी ने चिल्लाकर फ्रैंक को बढ़ते रहने के लिए कहा, लेकिन वह अब भी पुकार रहा था. एवलिन नीरक्त-मुख उसकी ओर ताकती खड़ी रही– निर्विकार, किसी असहाय पशु की तरह. उसकी आँखों ने फ्रैंक को कोई इंगित नहीं दिया– न प्रेम का, न विदा का, न अभिज्ञान का.

_________________________

शिव किशोर तिवारी

२००७ में भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त.
हिंदी, असमिया, बंगला, संस्कृत, अंग्रेजी, सिलहटी और भोजपुरी आदि भाषाओँ से अनुवाद और आलोचनात्मक लेखन.

tewarisk@yahoocom

Tags: evelinejames joyceएवलीनजेम्स ज्वायस
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Comments 6

  1. Anonymous says:
    1 year ago

    Apne marm mein kitnee bhaarateey kahanee!
    Ya striyon kee voluntary victimhood deshon kee seema naheen maanatee?

    Reply
  2. श्रीविलास सिंह says:
    1 year ago

    बेहतरीन कहानी। और उतना ही अच्छा अनुवाद मानो हिंदी की ही कहानी हो।

    Reply
  3. रमेश अनुपम says:
    1 year ago

    पहली बार आपके माध्यम से जेम्स ज्वायस और उनकी कहानी से परिचित होने का सौभाग्य मिला। बहुत प्यारी और मार्मिक कहानी है एवलिन । अनुवाद भी बहुत सुंदर है।शिव किशोर तिवारी और समालोचन को बहुत बहुत बधाई

    Reply
  4. Deepak Sharma says:
    1 year ago

    Congratulations Shiv Kishore Tewari ji for this delightful translation and thank you Arun Dev ji for presenting it.
    Eveline is yet another Joyce story enforcing his belief:
    IRELAND IS THE SOW THAT EATS HER OWN FARROW.
    Knowing this fully well,yet Eveline will not leave her dismal place. No promise of a better life can tempt her.
    Deepak Sharma

    Reply
  5. अम्बर पाण्डेय says:
    1 year ago

    यह सुखद संयोग है कि यह वर्षों पूर्व अंग्रेज़ी में पढ़ी कहानियाँ अब हिंदी में पढ़ने को मिल रही है।
    इस कहानी की बहुत गम्भीर फ़ेमिनिस्ट readings मैंने पढ़ी है। तिवारी जी ने इस कहानी का अनुवाद करके हिंदीभाषियों पर उपकार किया है। जॉयस को एक बार पुनः पढ़ने का मेरा दिल करने लगा है। Fennegans wake को छोड़ मैंने उन्हें काफ़ी पढ़ा है magar इन कहानियों को पढ़कर ऐसा लग रहा है मैंने उस समय ठीक से नहीं पढ़ा था, मैं बच्चा था और मुझे अब पढ़ना चाहिए।

    Reply
  6. अतुल अरोड़ा says:
    1 year ago

    पता नहीं, मैंने आयरलैंड के परिवेश से जुड़ा जो भी आज तक पढ़ा है, मुझे उदास करता है। एक ठंडी बर्फीली छुअन छोड़ जाता हुआ। Eveline पढ़ते हुए मुझे लगातार लगता रहा कि मैं जॉयस को हिंदी में तो ज़रूर पढ़ रहा हूँ,लेकिन लगभग अंग्रेजी की ही तरह । माहौल तक के अनुवाद में भी । अब कहानी में इतना कुछ है कि जो विशिष्ट ढंग से संदर्भित है, तो उसके विभिन्न स्पर्शों को सहेज लेने की चेष्टा कहानी के मर्म से परे जाने के परिश्रम की तरफ धकेलती है , हालांकि जिन कठिनाइयों के पार जाने की लालसा मुख्य पात्र में नज़र आती है और उसकी अवश विवश स्थिति और पार न पाने का उदास निर्णय , सब यूनिवर्सल है। तो, हिंदी में जो इस तरह का लेखन हमें वैसे भी उपलब्ध है, या बांग्ला में , वह जॉयस से प्रभावित है क्या?हमारे लेखक अपने अनुभवों और उनकी अभिव्यक्ति के शैल्पिक स्वरुप को शक्ल देने के लिए इतने पर-आश्रित हैं?

    Reply

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