कथा
न्यू आइसलैंड
हालडोर किलयान लैक्सनेस्स
अनुवाद: मधु बी जोशी
हालडोर किलयान लैक्सनेस्स (23 अप्रैल, 1902-8 फरवरी 1998): 1920 के दशक में साहित्यिक परिदृश्य पर उभरे उपन्यासकार, कहानीकार, कवि, नाटककर, निबंधकर और अनुवादक. लैक्सनेस्स आइसलैंड की अस्मिता के प्रमुख दस्तावेजकार हैं. उन्हें 1955 में नोबल पुरस्कार सहित अनेक महत्वपूर्ण साहित्यिक सम्मान मिले. उनकी विचारयात्रा मठ में भिक्षु बनने, समाजवाद से होती सोवियत साम्यवाद तक पहुंची लेकिन बाद में वह अमेरिका और सोवियत संघ दोनों के आलोचक हो गए थे. उन क लेखन पर औगस्त सिण्ड्बर्ग, फ़्रोयड, नुट हैमसन, अर्नेस्ट हेमिंग्वे, सिंक्लेयर लुईस और बर्थोल्ट ब्रेख्त का प्रभाव है. मधु बी जोशी |
रास्ता पुराने आइसलैंड से न्यू आइसलैंड तक जाता है. नए के पुराने से बेहतर होने की उम्मीद में पुराने से नए की ओर जाना पुरानी रीत है. तो टोर्फ़ी टोर्फ़ानसन ने अपनी भेड़ों, गायों और घोड़ों को बेच दिया, अपनी ज़मीन से खुद को उखाड़ लिया और अमेरिका चला आया, जहां हर तरफ किशमिश उगती हैं और जहां बहुत ही ज़्यादा उज्ज्वल भविष्य हमारा और हमारे बच्चों का इंतजार कर रहा है. उसने आखिरी बार अपनी भेड़ों को उनके सींगों से पकड़ा और उन्हें आखिरी बार सबसे ऊंची बोली लगाने वाले के पास ले जाकर बोला:
‘यह मेरी अच्छी गोल्डब्रो है जो हर बरस अपने दो मेमनों को मुलता से वापस ले कर आती है. और बौबिन की ऊन के बारे में क्या कहते हो? है न यह मजबूत, तगड़ी छोकरी? क्यों?’
और यूं उसने एक-एक करके उन्हें बेच दिया, उन्हें खुद सींग से पकड़कर. और उसने आखिरी बार अपनी हथेलियों के गुट्ठलों पर उनके सींगों को दबाया. यह उसकी भेड़ें थीं जो गहरे जाड़े में चरनी के आसपास जुट कर खुशबूदार भूसे में अपनी नाकें घुसा लेती थीं. और जब वह वहाँ के कुछ बदमाशों से निबट कर शहर की लंबी यात्रा से घर आता तो हैरान होता कि उनकी ऊन कैसी बर्फ सी सफेद है. उसके जीव एक खास किस्म के लोगों जैसे थे और औसत लोगों से तो बहुत बेहतर भी थे. और अब उनकी गायों को, जो बहुत दयालु हैं, मूर्खों के झुंड की तरह हांक कर ले जाया जा रहा है और आप उनसे बहुत प्यार करते हैं क्योंकि आप उन्हें अपने बचपन से जानते रहे हैं. रस्सियाँ फटकारते अनजाने छोकरे उन्हें पगडंडियों से हाँकते ले गए. और उसने आखिरी बार अपने घोड़ों के पुट्ठे थपथपाए, यह शानदार जीव शायद उसे समझनेवाले, जाननेवाले और उसकी कद्र करनेवाले दुनिया के एकमात्र प्राणी थे, और उन्हें सबसे ऊंची बोली लगानेवाले के हाथ बेच दिया.
वह उन्हें तब से जानता था जब वे भड़कीले बछेरे हुआ करते थे. अब उसने उन्हें पैसे के लिए बेच दिया क्योंकि इंसानों की रीत ही है पुराने से नए की ओर, पुराने आइसलैंड से न्यू आइसलैंड की ओर जाने की. और उन्हें बेचने के बाद, सींग से पकड़ कर और उसके पुट्ठे थपथपा कर उसे बेच देनेवाले और रस्सी फटकारते किसी अपरिचित छोकरे को उसे हाँक ले जाने देनेवाले इंसान की तरह शाम को उसे प्रार्थना करने का ख्याल तक न आया. उसने महसूस किया कि वह एक दुष्ट आदमी था, कतई नीच, और उसने अपनी बीवी से पूछा: ‘अब नाक सुड़सुड़ाने की क्या बात है?’
जुलाई के बीच के दिनों में, न्यू आइसलैंड में जिसे अब रिवर्टन कहा जाता है वहाँ से कुछ ही दूर, आइसलैंडिक नदी के किनारे के दलदल में एक नए आए आदमी ने घास के बीच लट्ठों का एक केबिन खड़ा किया. टोर्फ़ी ने एक दीवार पर जॉन सिगर्डसन की तस्वीर लटका दी और दूसरी पर उसकी बीवी ने एक कैलेंडर लटका दिया जिस पर चौड़ा हैट पहने एक लड़की की तस्वीर छपी थी. पड़ोसी केबिन बनाने, खाइयाँ बनाने और कई तरीकों से उनके मददगार रहे थे. उन गर्मियों में टोर्फ़ी कमर तक कीचड़ में धंसा खाइयाँ खोदता रहा. जब उसके जूतों के तल्ले निकलने लगे और उसके पैरों के तलवे फावड़े से चोटिल होने लगे तो उसे एक तरकीब सूझी, उसने एक टिन डिब्बे को नीचे से काटा और अपने पैर के अगले हिस्से को उस में अंदर सरका दिया. और पहली शाम खाई खोदने के बाद अपने शरीर से मनीतोबा की खास लिसलिसी मिट्टी को हटाने से जूझते हुए वह अपनी बीवी से कहे बिना न रह पाया:
‘यह न्यू आइसलैंड की कीचड़ तो सचमुच गजब की गंदी है’.
लेकिन उन गर्मियों में बच्चों की महामारी फैली, और टोर्फ़ी टोर्फसन के चार में से दो बच्चे, छह साल की मारिया और तीन साल का जॉन, नहीं रहे. ताबूत बनाने में पड़ोसियों ने उसकी मदद की. बहुत दूर से एक पादरी लाया गया था, उसने जॉन और मारिया को दफनाया और टोर्फ़ी ने जितने मांगे गए उतने पैसे उसे दे दिए. अपने पुराने घिसे-पिटे हैट हाथों में थामे कुछ गंदे-संदे से आइसलैंड के लोगों ने कब्र के पास उदास सुर में प्रार्थना गुनगुनाई. टोर्फ़ी टोर्फसन ने सब के लिए कॉफी, पकोड़े और क्रिसमस केक का इंतजाम किया था. लेकिन शरद आने पर मौसम ठंडा हो गया और बर्फ गिरी, फिर उसकी बीवी का एक नया बच्चा हुआ जिसने केबिन को ताजा रुलाई से भर दिया. यह एक कैनेडाई आइसलैंडर था. फिर अचानक ही जंगलों को रंगों से सराबोर करता गरम मौसम का बेवक्त झोंका चला आया.
और नदी के साथ-साथ चलती सर्पिल पगडंडियों पर चलते आदिवासी इंडियन उत्तर से नीचे आ गए, उन्हें दस्ताने खरीदने थे. उन्होंने बहुत शांति से चीजें लीं और छोटी-मोटी चीजों पर बहस नहीं की, उन्होंने हिरण की पूरी टँगड़ी और पुट्ठे के बदले एक जोड़ी दस्ताने खरीदे, एक जोड़ी जुराबों और एक छोटी शाल के बदले पूरा ही हिरण दे दिया. फिर अपने दस्ताने, जुराबें और छोटी शालें लेकर फिजूलखर्च अभागों की तरह अपनी राह लग गए.
आखिर सर्दी आ गई, और अब क्या किया जाए? टोर्फ़ी ने अपने फार्म का नाम रिवरबैंक रखा था. रिवरबैंक में केवल एक गाय थी, तीन बच्चे, और अलमारी में बहुत कम रसद. गाय का नाम मुले था, उसके बहुत लंबे सींग थे, वह रिवरबैंक मुले के नाम से जानी जाती थी. उसकी बड़ी-बड़ी आँखें थीं और वह किसी परदेसी की तरह टोर्फ़ी की बीवी को घूरती थी और जब भी कोई दरवाजे के पास से गुज़रता, रंभाती थी.
‘मुझे नहीं लगता कि बेचारी मुले से इन सर्दियों में हमारा कम चल पाएगा’. टोर्फ़ी टोर्फसन बोला.
‘तुमने कुछ सोचा है?’ उसकी बीवी ने पूछा.
‘उत्तर की ओर जा कर झील में मछलियां मारने के अलावा तो कुछ नहीं सोचा. कहते हैं वहां से लोग अच्छा कमा लाते हैं’.
‘मैं सोच रही थी कि अगर तुम कहीं निकले तो मैं भी सर्दी में कहीं चली जाऊँ. सिग्रीडुर कहती है कि सर्दियों में विन्निपेग में कपड़े धोनेवालियों के लिए बहुत काम होता है. अगले हफ्ते की शुरुआत में यहाँ से कुछ औरतें जा रही हैं. उनकी तरह मैं भी अपने कपड़ों को स्लेज पर ले जा सकती हूँ. बच्चों के साथ टोटा को छोड़ दूँगी. अब वह चौदह की हो रही है’.
‘शायद मैं बीच-बीच में कुछ मछलियाँ घर भेजने का इंतजाम कर पाऊँ’, टोर्फ़ी टोर्फसन बोला.
यह नवंबर की शुरुआत की एक शाम थी, जंगल पर बर्फ गिर चुकी थी, दलदल जम चुका था. उन्होंने अपने जाने के बारे में फिर कुछ न कहा. जॉन सिगर्डसन दीवार पर मुस्कुरा दिए, चौड़ा हैट पहने कैलेंडरवाली लड़की ने सोते हुए बच्चों को आशीर्वाद दिया. खिड़की में मिट्टी के तेल की छोटी चिमनी जल रही थी लेकिन खिड़की के कांचों पर पाले के फूल खिल रहे थे.
‘मुझे लगता है कि यहाँ भी अपने वहाँ की ही जितनी ठंड पड़ सकती है’, टोर्फ़ी टोर्फ़सन बोल उठा.
‘तुम्हें याद है जब शाम को मेहमान आ जाते थे तो कितना मज़ा आता था? हमारे फार्म पर शरद के इन दिनों भेड़ों की बात ज़रूर होती’.
‘अरे, यह भेडों का बढ़िया इलाका नहीं है’, टोर्फ़ी बोला. ‘लेकिन यहाँ झील में मछली पकड़ी जाती है, और अगर तुमने दक्षिण की ओर ‘नौकरी’ करने का फैसला कर लिया है तो….’
‘सुनो, आइसलैंड चिट्ठी लिखो तो हमारी गाय स्काल्दा के बारे में ज़रूर पूछना कि वह कैसी है. हमारी स्काल्दा. ‘
कुछ देर चुप्पी रही.
टोर्फ़ी टॉर्फसन की बीवी ने फिर बात छेड़ी: ‘वैसे टोर्फ़ी, अमेरिका की गायों के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? तुम्हें नहीं लगता कि ये बहुत ही कम दूध देनेवाली हैं? मुझे तो लगता है कि मैं कभी भी मुले से उतना प्यार नहीं कर सकूँगी. मुझे लगता है कि मैं कभी खुद को किसी विदेशी गाय से प्यार नहीं करने दे सकती.‘
‘अरे ऐसा बस तुम्हें लगता है,’ टोर्फ़ी टॉर्फसन दांत भींच कर थूकता बोला, हालांकि वह कब से तंबाकू चबाना छोड़ चुका था. ‘यहाँ की गायें भी दूसरी गायों की तरह ही कोई कम, कोई ज़्यादा दुधारू होती हैं? लेकिन एक बात पक्की है-अपने स्कोनी को बेचने के बाद अब मैं कभी दूसरे घोड़े से उतना लगाव नहीं रख सकता, कितना शानदार था’.
उन्होंने इसके अलावा किसी भी और ढंग से उसके बारे में बात नहीं की जो उनके पास था या उन्होंने खो दिया था. वे देर तक चुप बैठे रहे, छोटी ढिबरी की रोशनी में पाले के फूल बगीचे की तरह दमक रहे थे…दो गरीब आइसलैंडवासी, पति और पत्नी…… फिर उन्होंने ढिबरी बुझाई और सोने चले गए. फिर शुरू हुई बहुत लंबी, नीरव, कनाडाई जाड़े की रात .–
कुछ दिनों बाद औरतें विन्निपेग के लिए निकाल पड़ीं, तीन दिन का यह सफर वे बर्फ़ से ढके जंगलों, जमे हुए खेतों के बीच से गुजरती पूरा करेंगी. उन्होंने अपने सामान स्लेजों पर बांधे हुए थे, हर औरत अपनी स्लेज खींचती बढ़ी जा रही थी. इस सफर को ‘विन्निपेग में धुलाई’ कहा जाता है. टोर्फ़ी टॉर्फसन एक रात और घर पर रहा.
वह केबिन के बाहर बेड़े में खड़ा जंगल में गायब होती औरतों को देखता रहा. नवंबर के जंगलों ने उनकी बातों को बिना समझे इन परदेसी औरतों की आवाज़ें सुनीं और जो गूंज रहीं थीं. उनके आगे, राह दिखाता एक बूढ़ा आदमी चला जा रहा था. वे आइसलैंड के घर के कते-बुने कपड़े की स्कर्टें पहनी थीं जिनके घेरों को उन्होंने कमर में खोंस लिया था. उनके सिरों पर आइसलैंड के ऊनी शॉल लिपटे थे. लोग कहते हैं कि बढ़िया पैदल चलने वाली हैं. वे रात को कहीं ठहर जाएंगी जहां कम पैसे लगें.
जब औरतें निगाह से ओझल हो गईं तो टोर्फ़ी टॉर्फसन ने केबिन में देखा जहां उन्होंने कॉफी के आखिरी घूंट लिए थे, अनधुले मग अभी भी खिड़की पर पड़े थे. टोटा छोटे बच्चे को संभाले थी लेकिन छोटी इमबा चूल्हे के पास चुप बैठी थी. मम्मा चली गईं.. उस पूरे दिन टोर्फ़ी टॉर्फसन ने दरवाजे की मरम्मत की, दीवारों पर खपच्चियां ठोकीं और जलावन की लकड़ी लाकर अंदर रखी. शाम के समय लड़कियां उसके लिए दलिया, रोटी और मांस का एक टुकड़ा ले आईं. बच्चा चिड़चिड़ाता, रोता रहा. उसकी बहन, बड़े-बड़े और फट कर लाल हुए हाथों वाली चौदह बरस की टोटा उसे बाँहों में झुलाती रही.
‘मुन्ना भैया, अच्छा-प्यारा मुन्ना भैया रोएगा नहीं, मुन्ने भैया को मुले ज़रा सा दूध देगी. ‘– लेकिन बच्चा रोए चला जाता है.
‘मेरी मुली बाँ, बाँ, बाँ,
झोंपड़े में मुले,
मुले के बड़े-बड़े सींग,
उसकी बड़ी-बड़ी आँखें,
सलामत रहे मेरी मुली, मेरी अच्छी मुली
हमारी मम्मा चली गई, चली गई,
हमारी मम्मा गई दूर.
हमारी मम्मा गई कहाँ, कहाँ, कहाँ?
कहाँ चली गई हमारी मम्मा?
मम्मा क्रिसमस के बाद आएगी
मेरे लिए नई पोशाक लाएगी.
नई पोशाक.
हमें रोना नहीं,
पक्का आ रही है, हमारी मम्मा,
हमारी मम्मा,
हमारी अच्छी मम्मा, हमारी मम्मा,
हमारी मम्मा.
भगवान किरपा करे हमारी मम्मा पर
भगवान किरपा करे हमारे भैया की मम्मा पर,
मम्मा’
लेकिन बच्चा रोता चला गया. और टोर्फ़ी टॉर्फसन ने अपना खाना यूं खाया जैसे कोई संगीत कार्यक्रम में जल्दबाजी में कुछ खाने की कोशिश करता है.
क्या ही संवेदनशील कहानी है. हमारे आसपास बसती मूक प्राणियों की दुनिया, उनका संसार अनुभूतियों और सहजीवन का कैसा जीवन रचता है. मनुष्य और दूसरे प्राणी एक स्तर पर प्रकृति में कितने समान हैं. लेखक हमें एक दुनिया के पार ले जा रहे हैं. कुतिया से बातचीत का प्रसंग और ठंड मुझे प्रेमचंद की पूस एक रात में पहुंचा गया. मैं झबरा की कूंssकूं को महसूस कर रहा था. धक से रह गया जब यह संवाद सुना- ईश्वर की निगाह में हम सभी आवारा कुत्ते ही हैं, यही हैं हम सब…’
यह सुबह और यह कहानी दर्ज हो गई। अभी भी इसमें घूम रहा हूँ। शायद बर्फीले पहाड़ों को देख यह कहानी स्मृति का एक हिस्सा होगी। एक भीगी और संवेदनशील अनुभूति का टुकड़ा।
अनुवादक को बहुत आभार क्या ही कहानी दी है और हेमशा कि तरह समालोचन का भी शुक्रिया। सच कहा कहानी चुभती है और विस्मित करती है। 🙏
Sarangjee, aapkee apnee grahansheelta ne in do amar kahaniyon ko jod diya….mera prayas kuch atirikt arth paa gaya.
लैक्सनेस्स की ‘न्यू आइसलैंड ‘ कहानी की शुरुआत में ही कविता की गूंज ‘ नये के पुराने से बेहतर-उम्मीद, पुराने से नये की ओर जाना’ .
अपनी धरती से उजड़ कर दूसरी धरती में जीवन के वृक्ष को रोंपना एक कठिन और अनगढ़ जद्दोजहद है. जानवरों को बेचना और उनकी स्मृतियों में लौटना,अपनी धरती को अंतर्मन में सहेजना एक स्वभाविक प्रक्रिया तो है लेकिन उसे रचनात्मक चरितार्थ करना जोखिम भरा काम है.
इस कहानी में कथ्य, फैन्टेसी, बिम्ब,प्रतीक, रूपक, उपमा,चित्र का अनोखा सम्मिश्रण मर्मस्पर्शी तो है ही साथ ही साथ तर्कनिष्ठ प्रवणता और अटूट सामंजस्य की पठनीयता का अनुशीलन तत्व भी क्रियान्वित है.
‘मूर्खों के झुण्डों की तरह हाँक कर ले जाना’ , जंगलों के रंगों से सराबोर, लम्बी नीरव, जाड़े की रात, बच्चों से लेकर जानवरों तक को खो देना, जंगल में औरतों का ग़ायब होना इत्यादि कई प्रसंगों से लबरेज़ हैं. जो संवेदना, व्याकुलता, बेचैनी, आत्म- संघर्ष,अंतर्द्वंद्व जैसे कई-कई मानवीय रंगों के चित्र-चित्रित हैं.
इस कहानी को हिन्दी में कहानी बनाये रखने का अद्भुत कौशल विदुषी मधु जी को जाता है जिन्होंने कहानी की आत्मा को देशज भाषा, शैली में, अनूदित कर जस की तस हमारे समक्ष रखा.
ये मधुजी की जीवटता ही है कि स्वास्थ्य की प्रतिकूलता के बावजूद उन्होंने कई मौलिकता से भरे अनुवाद किये हैं. हिन्दी में ऐसे कई अनुवाद आये हैं जो भ्रष्ट हैं. मनीषी मधुजी से अनुग्रह है कि वे अपने अनुवादों से पाठकों के रसिक वर्ग को तृप्त करती रहें.
मधुजी व अरुण जी के प्रति आभार.
वंशी माहेश्वरी
Vansheejee, aap jaisa samarth kavi aur sudhee sampadak hee itnee sahriday aur vistrit tippanee uplabdh karva paataa. Mere lie badee baat hui. Kritagya hoon.
हालडोर लैक्सनैस की कहानी-न्यू आइसलैंड अपनी जड़ों से न सिर्फ़ विस्थापन की कहानी है बल्कि एक वृहत्तर परिप्रेक्ष्य में मनुष्य को उसकी संवेदना के विस्तार और गहराई में पूरे जीव जगत से एक अंतरंग रिश्ता जोड़ने की भी कहानी है। इस कहानी से मनुष्यता के उस असीम क्षितिज का आभास होता है जो हमारे बीच सिकुड़ता जा रहा है। कहानी और अनुवाद दोनों उम्दा हैं। सभी को साधुवाद !
ज़बरदस्त कहानी। शुक्रिया मधु जी और अरुण जी।