
अगले दिन टोर्फ़ी टॉर्फसन निकल पड़ा. कनाडाई सर्दियों का एक दिन, नीला, विशाल, शांत….बर्फ से ढके जंगलों पर कव्वे मंडरा रहे थे. उत्तर की ओर जाती पगडंडियों पर चलता, अपने पैक को पीठ पर लादे वह झील की तरफ चलता गया. यह इलाका अभी बसा नहीं था, कहीं कोई आदमी न आदमजात, मीलों तक केबिन से निकलता धुआं नहीं, बस बर्फ से ढके जंगलों पर उड़ते हुए वे कौवे जो शाखों पर यूं उतरते जैसे पलास (कला और युद्ध की ग्रीक देवी) की मिट्टी की मूर्ति पर उतरते हों. ‘कभी नहीं.’ और टोर्फ़ी टॉर्फसन अपनी भेड़ों, अपनी गायों, अपने घोड़ों और उस सब के बारे में सोचने लगा जो उसने खो दिया है.
तभी अचानक एक किस्मत की मारी कुतिया धीमे-धीमे चलती जंगल से निकल कर उसके रास्ते में आ गई. यह कंकाल-सी, आवारा कुतिया थी, पेट इतना बड़ा कि वह मुश्किल से चल पा रही थी. बेतरह फूले उसके थन बर्फ में घिसट रहे थे क्योंकि उसके बच्चे होने वाले थे. वे विपरीत दिशाओं से आए थे, दो एकाकी जीव जो अमेरिका में अपनी नैया खुद खे रहे हैं और आज सर्दियों के एक ठंडे दिन बर्फ में मिल गए हैं. पहले तो उसने अपने कान खड़े किए और अविश्वास से भरी भूरी आँखों से उसे घूर कर देखा. फिर वह बर्फ में झुकी और कांपने लगी, और वह समझ गया कि वह उसे बता रही थी कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है, कि उसने अपना मालिक खो दिया था, कि उसे अकसर ही पीटा जाता रहता था, और उसने कभी भी पेटभर नहीं खाया था, कि कोई कभी उसके प्रति दयालु नहीं रहा था, कभी नहीं; और वह बिलकुल नहीं जानती थी कि उसपर आगे क्या बीतेगी. वह कह रही थी कि मैं बहुत गरीब हूँ.
‘क्या कहें, दुनिया में सब तरह के लोग हैं’! टोर्फ़ी टॉर्फसन ने कहा. उसने अपना पैक उतार दिया और अपने पैरों को सामने फैलाए बर्फ में बैठ गया. पैक में ऊपर ही थोड़ा सा कुछ था जो टोटा ने बटोर-बटारकर अपने पापा के लिए सफर पर साथ ले जाने के लिए रखा था. कुतिया बर्फ में पूंछ हिलाने लगी और भूखी आँखेँ पैक पर गड़ा दीं.
‘अरे, अरे, तो तुमने अपने मालिक को खो दिया है और जाने कब से कुछ नहीं खाया है, और मैंने अभी-अभी अपनी बीवी को निकाल दिया है, हाँ, हाँ, वह कल चली गई. हाँ, वह इन जाड़ों में विन्निपेग में धोबिन के तौर पर खुद को जमाने की कोशिश करेगी, हाँ, हाँ, अब मामला ऐसा ही है. हाँ, हमने सामान बाँधा और वहाँ देस में एक काफी अच्छा भला चलता कामकाज छोड़ यहाँ आ गए लट्ठों के केबिन में लानत भरी ज़िंदगी जीने, हाँ, हाँ. … ठीक है, ज़रा यह टिक्की आज़माओ, मैं बता सकता हूं कि तुम इसे सटक जाओगी. ओहो, यह बस गए-गुजरे टुकड़े हैं, कुत्ते को देने लायक तक नहीं, आवारा कुत्ते को देने लायक भी नहीं. खैर, मेरा जी नहीं हो रहा कि तुम्हें भगा दूँ, बेचारी अभागी- ईश्वर की निगाह में हम सभी आवारा कुत्ते ही हैं, यही हैं हम सब…’
समय बीतता गया, टोर्फ़ी टॉर्फसन झील में मछलियाँ पकड़ता और द्वीप पर एक केबिन में लाल दाढ़ीवाले अपने मालिक के साथ रहता जो मछली पकड़ने के अलावा दूसरे मछुआरों को तंबाकू, शराब और सुतली बेचकर भी पैसा कमाता था. मछुआरा कुतिया को सख्त नापसंद करता था और रोज़ कहता कि इस अभागी कुतिया को मार दिया जाना चाहिए. उसने केबिन खुद बनाया था. इसके दो हिस्से थे, एक हॉल और एक कमरा. वे कमरे में सोते और हॉल में मछली पकड़ने का साज-सामान, रसद और बाकी सामान रखते थे, कुतिया केबिन के दरवाजे के बाहर सीढ़ी पर सोती थी.
मछुआरा उदार किस्म का आदमी नहीं था और टोर्फ़ी को भोजन का थोड़ा ही हिस्सा देता था. उसने कुतिया को ज़रा सा भी निवाला देने से बिल्कुल मना किया हुआ था, कहता था कि उसे मार दिया जाना चाहिए. टोर्फ़ी उसकी बात का जवाब नहीं देता था लेकिन मछुआरे के सोने चले जाने पर हमेशा ज़रा सा कुछ कुतिया के लिए चुरा लेता था. फिर कुतिया के ब्याने का समय आ गया. वह ब्या गई. जब वह पूरी तरह ब्या चुकी तो टोर्फ़ी ने उसे मछुआरे से चुराया हुआ मांस का एक बढ़िया और बड़ा सा टुकड़ा खाने को दिया, वह जानता था कि जच्चा की भूख बहुत कड़ी होती है. और मछुआरे की इच्छा के खिलाफ उसने उसे हॉल में बोरी पर सोने दिया. फिर वह खुद भी लेट गया.
वह कुछ ही देर लेटा होगा कि किसी के चलने की आहट से नींद उचट गई. पता चला कि मछुआरा बिस्तर से उठकर बाहर हॉल में गया, ढिबरी जलाई, कुतिया को गर्दन से पकड़ा और उसे बाहर बर्फ में फेंक दिया. फिर बाहरी दरवाजा बंद करके ढिबरी बुझाई और अपनी खाट पर लेट गया. थोड़ी देर शांति रही, फिर कुतिया बाहर रोने लगी और हॉल में पिल्ले करुण सुर में किंकियाने लगे.
तब टोर्फी टॉर्फसन उठा, टटोलते-टटालते हॉल से बाहर निकला और कुतिया को अंदर कर लिया, वह तुरंत अपने पिल्लों को ढक कर बैठ गई. उसके बाद वह सोने के लिए लेट गया. कुछ ही देर में किसी के चलने की आहट से उसकी नींद फिर उचट गई. पता चला कि मछुआरा बिस्तर से उठकर बाहर हॉल में गया, ढिबरी जलायी, कुतिया को गर्दन से पकड़ा और उसे दोबारा बाहर बर्फ में फेंक दिया. फिर वह अपनी खाट पर लेट गया. फिर से कुतिया बाहर रोने लगी और पिल्ले करुण सुर में किंकियाने लगे, टोर्फी टॉर्फसन फिर उठा, कुतिया को पिल्लों के पास अंदर बुला लाया और फिर से लेट गया. थोड़ी देर बाद मछुआरा फिर उठा, ढिबरी जला कर फिर बाहर चला. लेकिन अब टोर्फ़ी टॉर्फसन चुप न बैठ पाया, वह तीसरी बार बिस्तर से बाहर निकल मछुआरे के पीछे हॉल में आ गया.
‘या तो तुम कुतिया को रहने दो या उसके साथ मैं भी बाहर जाऊंगा,’ टोर्फी टॉर्फसन बोला और पलभर में ही अपने मालिक से गुत्थमगुत्था हो गया. उनकी हाथापाई से केबिन हिल गया. जो कुछ उनके रास्ते में आया, टूट गया. उन्होंने एकदूसरे पर ज़बरदस्त घूंसे बरसाए लेकिन मछुआरा ज़्यादा जुझारु था. बहरहाल, टोर्फी ने उसे कमर से दबोच कर दोहरा कर दिया, उसकी ठोड़ी घुटनों से सटा दी. फिर उसने केबिन का दरवाजा खोला और उसे बाहर फेंक दिया.
बाहर मौसम शांत था, सितारे चमक रहे थे, बेहद ठंड थी और हर चीज पर बर्फ जमी थी. टोर्फी के शरीर पर नील पड़े थे, जख्मों से खून रिस रहा था, वह हाँफ रहा था. तो टोर्फी टॉर्फसन- जो एक शांत आदमी कहा जाता था, जिसने कभी किसी जीव को नुकसान नहीं पहुंचाया- का यह अंजाम होना था? आधी रात को एक आदमी को उसके अपने घर से फेंक दिया, जमी हुई जमीन पर, वो भी एक कुतिया के पीछे! शायद मैंने उसे मार भी दिया है, टॉर्फी ने सोचा, लेकिन यही झगड़े का अंत है – ऐसा ही होना बदा था. हाय मैं क्यों न्यू आइसलैंड आया!
और वह केबिन से बाहर निकल गया, बिना कोट पहने वह बर्फीली ज़मीन पर चलता जंगल की ओर बढा. मुश्किल से बीस फीट चला होगा कि वह अपने क्रोध और मछुआरे को भूल, उस सब के बारे में सोचने लगा जो उसके पास था और जो उसने खो दिया था. जबतक वह उसे खो न दे, तबतक किसी को नहीं पता होता कि उसके पास क्या था. वह अपनी भेड़ों के बारे में सोचने लगा जिनकी ऊन बर्फ सी सफेद थी, अपने शानदार घोड़ों के बारे में जो उसे जानते-समझते थे और उसकी कद्र करते थे. उसे अपनी गायों की याद आई जिन्हें पिछले वसंत की एक शाम रस्सियाँ फटकारते अपरिचित छोकरे पगडंडियों से हाँकते ले गए थे. और वह जॉन और मारिया के बारे में सोचने लगा जिन्हें सर्वशक्तिमान ईश्वर ने अपने पास न्यू आइसलैंड पर फैले स्वर्ग में बुला लिया था जो उधर पीछे रह गए अपने देस के स्वर्ग बिलकुल ही अलग है. और उसके मन में आइसलैंड से आए उन लोगों की तस्वीर उभरी जो अपने पुराने हैट अपने बेहद थके हाथों में थामे कब्र के पास खड़े दुआ बुदबुदाते रहे थे.
वह पेड़ों के बीच जमी हुई जमीन पर ढह पड़ा और यह लंबा-चौड़ा, मजबूत आदमी-जो ओल्ड आइसलैंड से न्यू आइसलैंड तक चला आया था, यह सर्वहारा जो बहुत अच्छे भविष्य की उम्मीद में, एक बेहतरीन ज़िंदगी के लिए, अपने बच्चों को कुर्बानी के तौर पर ले आया था-पाले से जमी रात में फूट-फूट कर रोया. उसके आंसू बर्फ पर गिरते रहे.
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Madhu B(ala) Joshi
Communication Practitioner
Literary Translation (1990-2012)
English to Hindi:
Lyrical essays, short stories and poems by Rabindra Nath Tagore, Sita Kant Mahapatra, Jayant Mahapatra, Ayappa Panicker, Suma Josen, Anil Saari, Alice Walker, Tony Morrison, Alice Munro, Prof. M.N. Srinivas, Suniti Nam Joshi, Nirmal Verma, Shail Mayaram, Syed Haider Raza, (National Academy of Letters, Radhakrishna Prakashan, Rajkamal Prakashan, Poorvagrah, MGAHV and major literary journals).Hindi To English:
Short Stories, poems and essays by eminent Hindi poets and writers Dharmvir Bharati, Prayag Shukla, Alokdhanva, Narendra Nagdev, Vinod Bharadwaj, Uday Prakash, Mannoo Bhandari, Phanishwar Nath Renu, Jyotsana Milan, Bhuvaneshwar, Trilochan, Ashok Vajpeyee, Vimal Kumar, Ashok Seksaria, Krishna Sobti, Vidyasagar Nautiyal, Balwant Singh, Yateendra Mishra, Kunwar Narayan, Ashok Vajpeyee, Akhilesh, Gagan Gill, Yateendra Mishra, Raveendra Kaliya, Rajesh Joshi, Ramesh Upadhyay (National Academy of Letters, International Writing Program IOWA University, Max Mueller Bhawan, University of London, Indian Institute for Advanced Studies, State Academy of Letters, Madhya Pradesh, Harper Collins India, Rupa & Co., IIC Quarterly, The Little Magazine, MGAHV and major literary journals).
BOOKS:
English to Hindi:
• Female Eunuch by Germaine Greer.
• Devi by Mrinal Pandey.
• Daughters’ Daughter by Mrinal Pande.
• Aatma Ka Taap (Conversations with Veteran Painter S.H. Raza) by Ashok Vajpeyee
• Aisa Des Hamara (Hebrew Short Stories) (To be published)
• Resisting Regimes by Shail Mayaram (To be published)Hindi to English:
• Anveshi by Narendra Nagdev (to be published).
• Surang by Sanjay Sahay (to be published).
• Girija: A journey through Thumri ( Rupa & Co.) 2006
• Devvruksh (anthology of Pushpita’s poems) 2009.
A-319, Govindpuram
Hapur Road,
Ghaziabad-201 013 (U.P.)
Cell: 9891812966.
E-mail: madhubalajoshi@yahoo.co.in
क्या ही संवेदनशील कहानी है. हमारे आसपास बसती मूक प्राणियों की दुनिया, उनका संसार अनुभूतियों और सहजीवन का कैसा जीवन रचता है. मनुष्य और दूसरे प्राणी एक स्तर पर प्रकृति में कितने समान हैं. लेखक हमें एक दुनिया के पार ले जा रहे हैं. कुतिया से बातचीत का प्रसंग और ठंड मुझे प्रेमचंद की पूस एक रात में पहुंचा गया. मैं झबरा की कूंssकूं को महसूस कर रहा था. धक से रह गया जब यह संवाद सुना- ईश्वर की निगाह में हम सभी आवारा कुत्ते ही हैं, यही हैं हम सब…’
यह सुबह और यह कहानी दर्ज हो गई। अभी भी इसमें घूम रहा हूँ। शायद बर्फीले पहाड़ों को देख यह कहानी स्मृति का एक हिस्सा होगी। एक भीगी और संवेदनशील अनुभूति का टुकड़ा।
अनुवादक को बहुत आभार क्या ही कहानी दी है और हेमशा कि तरह समालोचन का भी शुक्रिया। सच कहा कहानी चुभती है और विस्मित करती है। 🙏
Sarangjee, aapkee apnee grahansheelta ne in do amar kahaniyon ko jod diya….mera prayas kuch atirikt arth paa gaya.
लैक्सनेस्स की ‘न्यू आइसलैंड ‘ कहानी की शुरुआत में ही कविता की गूंज ‘ नये के पुराने से बेहतर-उम्मीद, पुराने से नये की ओर जाना’ .
अपनी धरती से उजड़ कर दूसरी धरती में जीवन के वृक्ष को रोंपना एक कठिन और अनगढ़ जद्दोजहद है. जानवरों को बेचना और उनकी स्मृतियों में लौटना,अपनी धरती को अंतर्मन में सहेजना एक स्वभाविक प्रक्रिया तो है लेकिन उसे रचनात्मक चरितार्थ करना जोखिम भरा काम है.
इस कहानी में कथ्य, फैन्टेसी, बिम्ब,प्रतीक, रूपक, उपमा,चित्र का अनोखा सम्मिश्रण मर्मस्पर्शी तो है ही साथ ही साथ तर्कनिष्ठ प्रवणता और अटूट सामंजस्य की पठनीयता का अनुशीलन तत्व भी क्रियान्वित है.
‘मूर्खों के झुण्डों की तरह हाँक कर ले जाना’ , जंगलों के रंगों से सराबोर, लम्बी नीरव, जाड़े की रात, बच्चों से लेकर जानवरों तक को खो देना, जंगल में औरतों का ग़ायब होना इत्यादि कई प्रसंगों से लबरेज़ हैं. जो संवेदना, व्याकुलता, बेचैनी, आत्म- संघर्ष,अंतर्द्वंद्व जैसे कई-कई मानवीय रंगों के चित्र-चित्रित हैं.
इस कहानी को हिन्दी में कहानी बनाये रखने का अद्भुत कौशल विदुषी मधु जी को जाता है जिन्होंने कहानी की आत्मा को देशज भाषा, शैली में, अनूदित कर जस की तस हमारे समक्ष रखा.
ये मधुजी की जीवटता ही है कि स्वास्थ्य की प्रतिकूलता के बावजूद उन्होंने कई मौलिकता से भरे अनुवाद किये हैं. हिन्दी में ऐसे कई अनुवाद आये हैं जो भ्रष्ट हैं. मनीषी मधुजी से अनुग्रह है कि वे अपने अनुवादों से पाठकों के रसिक वर्ग को तृप्त करती रहें.
मधुजी व अरुण जी के प्रति आभार.
वंशी माहेश्वरी
Vansheejee, aap jaisa samarth kavi aur sudhee sampadak hee itnee sahriday aur vistrit tippanee uplabdh karva paataa. Mere lie badee baat hui. Kritagya hoon.
हालडोर लैक्सनैस की कहानी-न्यू आइसलैंड अपनी जड़ों से न सिर्फ़ विस्थापन की कहानी है बल्कि एक वृहत्तर परिप्रेक्ष्य में मनुष्य को उसकी संवेदना के विस्तार और गहराई में पूरे जीव जगत से एक अंतरंग रिश्ता जोड़ने की भी कहानी है। इस कहानी से मनुष्यता के उस असीम क्षितिज का आभास होता है जो हमारे बीच सिकुड़ता जा रहा है। कहानी और अनुवाद दोनों उम्दा हैं। सभी को साधुवाद !
ज़बरदस्त कहानी। शुक्रिया मधु जी और अरुण जी।