गीले हाथ
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“आ री तेरे सर में तेल घिस दूं थोड़ा, और तू मुझे कोई अच्छा सा मीरा का भजन सुना”.
“क्या दादी तुम भी, एक तो मेरा नाम मीरा रख दिया ऊपर से हर वक्त कहती हो कि मीरा का कोई भजन सुना, कभी-कभी कुछ और भी सुन लिया करो, कुछ नया, आज तुम्हें एक प्रेम गीत सुनाती हूं आजकल बड़ा हिट हो रहा है”.
“अच्छा सुनाओ, सुनूँ तो कैसा है यह नया प्रेम गीत”.
“सच में सुनोगी, वैसे तुम्हारी उम्र तो ना है प्रेम गीत सुनने की”.
“हट”, दादी ने तुनक कर कहा, “प्रेम से उम्र का क्या लेना देना, प्रेम हो या प्रेम गीत सुनना उसकी कोई उम्र थोड़ी हुआ करती है”,
“ओह दादी सो रोमांटिक, सच बताओ तुम भी अपने वक्त में तो खूब सजती सँवरती होगी जब नई-नई शादी हुई होगी नई दुल्हन सी, किसी नाजुक गुड़िया सी”.
“नहीं री, तब ना सजना सँवरना आता था और ना ही कोई शौक ही था तेरे दादा तो बस यही कहते थे तुझे कुछ ना आता, फिर बहुत सालों बाद जाकर मन में कहीं सजने सँवरने की इच्छा पैदा हुई, चल तू सुना अपना प्रेम गीत देखूं तो कितनी गहराई है उस प्रेम गीत में “
२)
” सुनो, मैं एक प्रेम कहानी लिखने जा रही हूं”
” अच्छा, तो अब तुम कहानी भी लिखोगी, वैसे नाम क्या है उस कहानी का ?”
” गीले हाथ”
” गीले हाथ, यह कैसा नाम हुआ, और वह भी प्रेम कहानी का, यह तो किसी हॉरर कहानी का नाम लगता है,
” अच्छा, पर ऐसा कुछ नहीं है. यह एक प्रेम कहानी है”
” सही में, मजाक नहीं, और आजकल ऐसे नाम की कहानियों को कौन पढ़ता है, उस बेस्टसेलर लेखक की कहानियों को भी देखो, क्या टाइटल चुनता है वह, द गर्ल इन रूम नंबर 73, अब तुम ही बताओ, कोई गीले हाथ नाम की कहानी पढ़ने को आकर्षित होगा या फिर द गर्ल इन रूम नंबर 73 की तरफ, तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें अपनी सोच का दायरा बदल लेना चाहिए”.
” क्या तुम्हें सच में ऐसा लगता है.”
“हां बिल्कुल”.
“अच्छा, ठीक है”.
” तो फिर क्या सोचा तुमने.”
” मैं गीले हाथ ही लिखूंगी और वह एक प्रेम कहानी ही होगी…..
3)
“कैसा लगा गीत, दादी”
“गीत तो ठीक-ठीक है, पर मन को छू जाए ऐसी बात नहीं इसके शब्दों में, प्रेम तो बहुत ही गहरा अर्थ रखता है ऐसे गीत प्रियतम और प्रेम की परिभाषा नहीं दे सकते”.
“वाह दादी, क्या बात है कहीं दादाजी से प्रेम विवाह तो नहीं हुआ आपका, प्यार की इतनी गहरी फिलॉस्फी, सच बताओ कैसे हुआ तुम्हारे और दादा जी का प्रेम विवाह”,
“चल पगली, मैं जिस घर में पैदा हुई उस घर की औरतें भला प्रेम कर सकती थी, प्रेम तो हमारे लिए एक वर्जित शब्द था, जैसे गाय बकरियां एक सीधी लाइन में साथ-साथ हांकी जाती है, और वैसे ही कर दी जाती थी उनकी शादी, वैसे ही एक दिन मेरी शादी तुम्हारे दादा से हुई और मैं इस घर में आ गई, प्रेम प्यार कहां देखती हैं मेरे जैसी लड़कियां और औरतें, पर मैं तुम्हें एक प्रेम कहानी सुनाऊंगी, एक सच्ची प्रेम कथा”.
“अच्छा, कौन थी वह लड़की दादी?”.
“लड़की नहीं, एक औरत थी, 40 से भी ज्यादा उम्र की, शादीशुदा भी थी और बच्चों की मां भी फिर भी प्रेम में पड़ गई”.
“ ओह”.
4)
“सुनो तुम्हारी उस कहानी का क्या हुआ”
“कौन सी कहानी?”
“वही गीला पानी”
“गीला पानी नहीं, गीले हाथ बुद्धू”
“हां वही सेम टू सेम, वह तो प्रेम कहानी थी ना ?”
“हां प्रेम कहानी पर कुछ अलग ढंग की”
“यह अलग-वलग क्या होता है प्रेम कहानी में, एक लड़की होती है एक लड़का और दोनों का प्यार और घर वाले दुश्मन फिर फाइनली हैप्पी हैप्पी एंडिंग या फिर सैड”
“जरूरी नहीं की प्रेम कहानी में एक लड़का और एक लड़की ही हूं, यह दो लड़कियों की कहानी भी हो सकती है या फिर दो लड़कों की भी”
“कुछ भी”
“क्या कुछ भी, अच्छा ट्रांसजेंडर की भी तो लव स्टोरी हो सकती है”
“क्या अजीब सी बकवास लगा रखी है तुमने”
“अच्छा अगर कुछ अलग हो तो वह बकवास होता है, चलो मैं तुम्हें कहानी सुना ही देती हूं”
“मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं तुम्हारी कहानी में, पर मैं इतना जरूर कहूंगा कि लिखो जो भी लिखो यह सोच समझकर लिखो कि हम किस समाज में रहते हैं और वह समाज इस तरह की बातों को स्वीकार कर पाता है या नहीं”
“अच्छा”,
“हम्म”
“पर कभी ना कभी तो पुरानी लकीर को मिटाकर नई लकीरे डालनी ही पड़ती है, पुरानी रवायतों को छोड़कर नए ढंग अपना नहीं पढ़ते हैं तो फिर कहानियां क्यों उसी पुरानी ढर्रे से बंधी रहे उन्हें भी अपने रास्ते को तलाश कर लेने चाहिए…….
5)
“ उसका नाम नीरा था, यहीं पहाड़ में ही पली साधारण सी गवांर लड़की गांव की रहने वाली, शक्ल सूरत से साधारण थी और उसे लोगों ने इसका एहसास भी खूब करवाया, जैसे कि आदत होती है दुनिया की, उसके मन में भी अपनी शक्ल सूरत के प्रति हीन भावना थी, किसी भी काम में वह दक्ष ना थी, कुछ भी करती तो कुछ ना कुछ गड़बड़ी कर देती, पर निरी बेवकूफ भी ना थी, बस औसत बुद्धि वाली एक लड़की, फिर शादी हुई और वह पति के घर आ गई, बच्चे-वच्चे घर गृहस्थी करते-करते कब वह 40 पार कर गई पता ही नहीं चला, पर वह थी तो निठल्ली की निठल्ली ही, सुबह जंगल से लकड़ियां इकट्ठा करती, चूल्हा चौका देख करती, बच्चों को देखती, सास ससुर की सेवा टहल करती, पर फिर भी थी तो निठल्ली की निठल्ली ही, उसका पति जब मन में आया मजदूरी करने जाता, जब मन करता ना जाता, ताश खेलें, दारू पिए जो दिल में आए वह करें आखिर था तो वह काम काज करने वाला, घर को चलाने वाला तो वही था, फिर भी घर में तंगी बंगी ही रहती, पैसे की जरूरत हर वक्त,
“ सुन तू काम करेगी एक”, एक दिन उसके ससुर ने उससे पूछा, “एक साहब है वह यहां पंछी-वंछी देखने आया है कुछ दिन यही रुकेगा उसके यहां खाना बनाने और सफाई का काम है करेगी तू”
“ना, यह ना करेगी, इसके बस का ना है”, वह कुछ बोलती उससे पहले उसके पति ने कहा
“अरे बेवकूफ ₹10 महीना देगा, और बचा खाना अलग से, तू ना करने दे इसे तो क्या यहां कमी है, कोई दूसरी झट से जाएगी”, ससुर ने जैसे अपना फैसला सुनाया.
और चल दी नीरा अगले दिन सुबह पहाड़ी के पास बने छोटे से एक घर की तरफ, रास्ता भर सोचती रहे यह पंछी देखने का भला क्या फायदा होता होगा जिसे देखने यह साहब यहां आया है, वहां पहुंची तो देखा कि झाड़ू पकड़े बुरी तरह धूल से सना धारीदार पाजामा और बनियान पहने एक सरदार जी टेबुल पर खड़े हो जाली उतार रहे हैं, आधी सफेद आधी काली दाढ़ी वह भी धूल से सनी हुई, एकबारगी देखने में तो ऐसा लगा जैसे कोई सर्कस का जोकर हो, एक पल को वह दरवाजे पर ही चुपचाप खड़ी हो गई, अचानक ही उनकी नजर उस पर पड़ी, “ किससे मिलना है आपको?”
वह इधर-उधर देखने लगी कि वह किस से बात कर रहे हैं, पीछे पलट कर भी देखा तो कोई नजर नहीं आया, उन्होंने दोबारा कहा,”किससे मिलना है आपको”
तब वह समझी कि उसको ही पूछा जा रहा है, “आपको”, पहली बार यह शब्द उसने अपने लिए सुने, उसे तो किसी ने आप कह कर नहीं बुलाया आज तक, उसके बच्चों ने भी नहीं तो फिर यह अधेड़ उम्र का सरदार भला क्यों उसे आप कह कर बुला रहा है,
“ जी मैं वह काम करने और खाना बनाने… “ बस इतना ही कह पाई वह,
“ ओहो अच्छा-अच्छा, आइए आइए, आप पहले दो कप चाय बना लीजिए फिर सफाई करते हैं, मुझे गंदगी बिल्कुल भी पसंद नहीं, मैं चाहता हूं कि हर चीज करीने से लगी हुई हो…….” वह बोलते ही जा रहे थे पर उसने जैसे कुछ सुना ही नहीं, चाय के बाद 2 घंटे लग गए साफ सफाई में, पढ़ने की टेबुल पर बड़ी-बड़ी किताबें सज गई, किताबों को उन्होंने इस तरह से देखा जैसे कोई पिता अपने बच्चों को प्यार से देखता है, अजीब आदमी है किताबों को भी कोई इतना प्यार करता है सिरफिरा लगता है, वह मन में सोचने लगी”,
“वहां दादी तुम तो स्टोरीटेलर हो क्या शानदार कहानी सुनाती है एक एक सीन जैसी आंखों के सामने आ जाता है अगर तुम कहानी लिखो तो बड़ी लेखिका बन जाओगी, अच्छा फिर क्या हुआ”
वह मुसकुराई और बोली, “नीरा घर वापस आई और फिर अपने घर के कामकाज में रंग गई, पर रह-रहकर उसका ध्यान उस आदमी की ओर ही था कितना अजीब और सिरफिरा है बस यही बड़बड़ाती रही,
अगले दिन वह वहां गई तो कोई नहीं था, वह जंगल में गया होगा, उसने सोचा और कामकाज में लग गई, खाना बनाकर हटी ही कि वह आते नजर आए उसे, बेहद खुश, जैसे कोई मोर्चा फतह कर लिया, उसे देख कर चहक कर बोले, “अरे आप आ गई, एक कप चाय तो पिलाइए, आज मैं बहुत खुश हूं बहुत बहुत ज्यादा”.
“अच्छा साहब क्या बात हो गई?”, नीरा ने झिझक कर पूछा.
“मुझे वह पंछी मिल ही गए जिनकी तलाश थी, सब कहते थे विलुप्त हो गए हैं, पर मुझे यकीन था कि जंगल की इस हिस्से में वह मिल सकते हैं और मेरा यकीन आज सच साबित हुआ, वह पंछी वह विलुप्त पंछी मुझे मिल ही गए”. आवाज में इतनी खुशी थी जैसे कोई खजाना मिल गया हो.
“विलुप्त पंछी यह कौन सा पंछी होता है?, हमने तो ना देखा कभी”.
“विलुप्त माने जो पहले थे पर अब नहीं है, यानी खत्म हो गए”.
“वह तो साहब सब ने एक दिन खत्म हो जाना है, पिछले बरस मेरी मां भी चल बसी”.
“वैसे नहीं, विलुप्त यानी जिस की नस्ल ही खत्म हो जाए, एक भी जीव उस नस्ल का बाकी ना बचे, और आपकी मां तो जिंदा होगी आपकी यादों में, आपकी बातों में, और आप में भी, एक इंसान का खत्म होना या एक जीव का खत्म होना अलग बात है, एक पूरी की पूरी नस्ल का खत्म हो जाना एक अलग बात दोनों में अंतर होता है”.
“मैं तो इतना ना जानू साहब हमारे यहां तो पंछियों का शिकार करके लाते हैं और उन्हें पका कर खा लेते”.
उस दिन चाय के साथ-साथ दोनों की बातचीत का सिलसिला भी शुरू हुआ नीरा सोचती कैसे साहब बच्चों की तरह खिलखिला कर हंस लेते हैं, बिना किसी झिझक के छोटी से छोटी बात कर लेते हैं और छोटे बड़े का कोई भेदभाव नहीं करते, बाहर मजदूरों के साथ भी ऐसे बात करते जैसे कोई घनिष्ठ मित्र हैं, बूढ़े बच्चे सब के साथ बात कर लेते हैं, और सबसे बड़ी बात उसे यह हैरानी की लगती थी एक पंछी के मिलने पर कोई इतना खुश कैसे हो सकता है.
“साहब आप पंछी क्यों देखते रहते हैं?”, आखिर चौथे दिन उसने पूछ ही लिया.
“अरे यही तो मेरा काम है, मैं एक पंछी वैज्ञानिक हूं, पक्षियों के बारे में पढ़ना उनके बारे में खोजबीन करना, उनके बारे में जानकारी जुटाना यही तो मेरा काम है,
“यह भला कैसे काम हुआ?”,’ वह पूछना तो चाहती थी मगर चुप ही रही.
फिर वह किताब पढ़ने लगे और पढ़ते-पढ़ते अपने आप ही बोलने लगे जंगल के बारे में पंछियों के बारे में अलग-अलग तरह की बातें जो मीरा के समझ से बाहर थी, बीच-बीच में ऐसे हंसते जैसे मानो बड़ी ही खुशी की कोई बात हो.
अगले दिन गई तो बेहद चहक रहे थे एकदम से बोले, “अरे पता है आपको जो पंछी कल मैंने देखे थे वह एक नहीं जोड़ा है और वह घोंसला तैयार कर रहे है, इसका मतलब उनकी नई पीढ़ी आने वाली है, घोंसला तैयार होते ही चिड़िया उसमें अंडे देगी और शायद उनकी नई नस्ल जल्द ही हमें देखने को मिले”. और झट से कागज लेकर बैठ गए कागज पर कुछ लिखने लगे, नीरा ने चाय रखी, “अरे क्या साहब हाथ पोंछे बिना ही आप लिखने बैठ गए, कागज गीला हो गया आपके हाथ भी गीले हैं हाथ धोने के बाद पोंछे नहीं आपने”.
“अरे नहीं, हाथ नहीं धोए, असल में जब मैं बहुत भावुक हो जाता हूं तब मेरी हथेलियों पर पसीना आने लगता है, अपने आप ही इसलिए हाथ गले लग रहे हैं”.
“हथेलियों पर भी कभी पसीना आता है!”
“पर मुझे तो आता है, बस सिर्फ तब जब मैं बहुत ज्यादा भावुक हो जाऊं खुशी में या गम में”.
सच में अजीब ही आदमी है, नीरा ने सोचा, जैसा मैंने सोचा था वैसा का वैसा ही है आम लोगों से अलग है, सिरफिरा.
“यह कौन सी किताब है?”. एक किताब की तरफ नीरा ने देखा, जिस पर एक बहुत खूबसूरत लड़की का चित्र था
“अरे यह तो मीरा की जीवनी है, मीरा को जानती हो आप?”
“कौन वो जो नीचे के गांव में रहती है?”
“अरे नहीं, एक बहुत बड़ी संत हुई थी”.
“औरतें भी संत होती है क्या!”
“क्यों औरतें संत क्यों नहीं हो सकती, वह तो महा प्रतापी थी, कृष्ण भक्ति में लीन, पता है वह कृष्ण की इतनी पूजा करती थी की शादी होने के बावजूद भी वह कृष्ण को ही अपना पति मानती थी”.
“यह तो बड़ा पाप हुआ साहब, पति के होते हुए किसी और से प्यार”,
“पगली, प्यार कभी पाप होता है, यह तो दुनिया है जो ऐसे कहती है, प्यार तो मन का भाव है खुद उत्पन्न होने वाला, उस पर किसी का जोर थोड़ी चलता है, और वह तो भगवान से प्रेम में पड़ गई, पर दुनिया इसके भी खिलाफ है, तभी तो दुनिया ने मीरा को जहर का प्याला दे दिया”.
“ओ मर गई बेचारी?”
“नहीं रे, जिस पर प्रेम का रंग चढ़ा हो उस पर जहर कहां असर करने वाला था, चली गई वह कृष्ण की भक्ति करती हुई अपने गोपाल के पास”.
“आपकी बातें तो मेरी समझ से परे है, पता नहीं क्या-क्या बड़बड़ाते रहते है”.
और वह खिल खिलाकर हंस दिए
“आप तो बच्चे जैसा हंसते हैं”
“आपको पसंद नहीं मेरा हंसना, हंसना तो हमेशा खुलकर ही चाहिए हंसने से सेहत ठीक रहती है”.
“ आपके घर में कौन-कौन है, साहिब?”
“घर में?”, वो फिर से हंस दिए, “घर में तो सब के वही होते हैं, जैसे आपके घर में आपका पति और बच्चे और मेरे घर में मेरी पत्नी और मेरे बच्चे स्कूल की मास्टरनी है मेरी घरवाली, जैसा रौब बच्चों में स्कूल पर रखती है वैसा ही घर पर हम सब”,
“औरत का कहां रौब होता है घर पर साहिब!”
“क्यों नहीं होता!”
“घर तो बड़ा होगा आपका?”
“आप तो मकान की बात करने लगी, घर कभी छोटे बड़े नहीं होते, यह तो मकान ही होते है, इमारतें बड़ी छोटी, घर हमेशा एक से ही होते हैं, हां खुशियाँ या गम सब के अलग-अलग होते हैं, यह देखिए मेरा घर”, उन्होंने एक तस्वीर दिखाते हुए कहा, सुंदर पत्नी और 3 बच्चे,
“आपकी पत्नी तो बहुत सुंदर है”, मीरा ने कहा
“हां, उसे सजने सँवरने का बहुत शौक है”.
“वह सुंदर है, इसीलिए तो सजने सँवरने का शौक है, हमारे जैसी साधारण होती तो थोड़ी सजने सँवरने का शौक होता है, ईश्वर ने सबको सुंदर नहीं बनाया”,
“ईश्वर ने सबको ही सुंदर बनाया है और आपसे किसने कहा कि आप सुंदर नहीं हो अच्छी खासी तो दिखती हो, और आपकी आंखें कितनी खूबसूरत हैं, जरा गौर से देखिए इन्हें, मैं कोई कवि या शायर होता तो आपकी आंखों पर ही कोई कविता या गजल लिख देता”.
“आप भी बस जाने क्या-क्या कहते रहते हैं”
“नहीं सच में आप सच में ही खूबसूरत हो”.
“हमें तो आज तक किसी ने ना कहा, बल्कि सब ने एहसास करवाया की शक्ल सूरत अच्छी नहीं है बचपन से लेकर आज तक”.
“सब ने कहा और आपने मान लिया, ऐसा नहीं होता, असली सुंदरता निखरती है आत्मविश्वास से, मन की सुंदरता ही असली सुंदरता है जिस दिन आपके मन में भी आत्मविश्वास पैदा हो जाएगा, अपने लिए, आपके चेहरे पर खुद-ब-खुद चमक आ जाएगी, आज जाएंगी घर तो देखिएगा अपनी आंखों को गौर से अपने आप ही आपके अंदर आत्मविश्वास पैदा हो जाएगा”.
धक्क से रह गया मीरा का दिल, जैसे कोई 16 साल की लड़की हो जिसे प्यार का नया-नया एहसास हुआ हो, उसका दिल धक्क से रह जाता है, उसके बाद वह कुछ बोली नहीं और वह भी अपनी किताबों में मगन हो गए, घर पहुंची तो न जाने क्यों उसे सारा घर अस्त-व्यस्त लगा, हालांकि सब कुछ वैसा ही था रोज के जैसा कुछ फेरबदल नहीं, पर फिर भी सब कुछ अस्त-व्यस्त सा लगा, लगा, जैसे घर में नहीं घर को छोड़ कर आ गई हो कहीं और, अपने बच्चे, अपना पति, अपने सास-ससुर, अपना घर सब कुछ से अजनबी लगा, घोर अजनबी, जैसे उनसे उसका कोई नाता ही नहीं हो, ऐसा एहसास उसे जीवन में कभी ना हुआ था, न जाने किस रो में बहती जा रही थी, फिर उठी और खुद को थोड़ा संयत कर घर की हर चीज को करीने से रखने लगी सच में एक-दो घंटे में ही घर को कितना बदल दिया उसने, और शायद खुद को भी.
पति और बच्चे भी कुछ ना कुछ बोल रहे थे, मगर उसके कानों तक जैसे कोई आवाज पहुंच ही ना रही थी, उसने घर में पड़ा पुराना आईना उठाया और उसमें खुद को देखने लगी, “आपकी आंखें सुंदर है सच में सुंदर”, उसने देखा और सच में उसे अपनी आंखें खूबसूरत नजर आने लगी, उसके मन में चाह पैदा हुई कि वह भी बाकी औरतों की तरह सज संवर कर बाहर निकले, और चाह क्या पैदा हुई अगले दिन सुबह वह सच में बाकी औरतों की तरह सज संवर कर चल पड़ी, जाने की इच्छा इतनी तीव्र थी कि 20 मिनट का रास्ता उसने 15 मिनट में ही तय कर लिया,
जब वह वहां पहुंची तब वह कापी पर कुछ लिखे जा रहे थे, उन्होंने उसकी तरफ देखा तक नहीं, बस लिखते-लिखते बोले आ गई आप मुझे चाय की बहुत इच्छा हो रही थी चाय तो पिलाइए”,
नीरा का मन हुआ की वह उसकी तरफ देखें, पर यह क्या उन्होंने तो नजर उठा कर देखा था कि नहीं, चाय की प्याली रखी तो आवाज की, झाड़ू लगाते वक्त भी जोर-जोर से फर्श पर झाड़ू मारा पर फिर भी उन्होंने उसकी तरफ देखा ही नहीं, मन निराशा और मायूसी से भर गया, उसे लगा किसके लिए सजी संवरी है, लिखते-लिखते ही अचानक बोले, “आज आप दाल चावल ही बना लीजिएगा, और हां एक बात तो मैं कहना भूल ही गया आज आप बहुत सुंदर लग रही है”.
“पर आपने तो अभी तक मुझ देखा तक नहीं”
“किसने कहा कि मैंने आपको देखा तक नहीं, देखने के लिए क्या सिर्फ आंखों के ही जरूरत होती है, हम मन से भी किसी को देख सकते हैं जब आप आई तो आपके कदमों ने मुझे बता दिया कि आज आप आत्मविश्वास से लबरेज हैं और यही असली सुंदरता होती है”.
“आपकी बातें मुझे समझ में नहीं आती साहब, पर फिर भी न जाने क्यों यह बातें मुझे अच्छी लगती है”.
“इतनी उलझी भी कहां होती हैं मेरी बातें”, वह हंस दिए
तीसरे दिन जब वो आए तो बेहद खुश थे आते ही नीरा से कहने लगे, “आज खाना आप मत बनाइएगा, आज खाना मैं बनाऊंगा”.
“क्यों साहब, मेरा बनाया खाना आपको अच्छा नहीं लगता?”.
“अरे नहीं, आप तो बहुत अच्छा बनाती हैं पर मेरा भी तो फर्ज है कि एक बार मैं भी आपके लिए खाना बनाऊं, और आज मैं वैसे भी बहुत खुश हूं, पता है चिड़ियों के जोड़े ने तीन अंडे दिए घोसले में, मेरा यहां आना अकारण ना गया, अगर मैं उन चूजों को देख पाऊं बढ़ते हुए और उन की तस्वीरें ले पाऊं तो मेरा यहां आना सफल रहेगा, तो आप आज मेरे हाथ का खाना खाइए और बताइए कि मैं कैसा खाना बताता बनाता हूं”.
“उन पंछियों में ऐसा क्या है कि आप उन्हें इतना पसंद करते हैं?”.
“ठीक से बता नहीं सकता पर फिर भी यही कहूंगा कि वह बिल्कुल मासूम और निस्वार्थ हैं, ठीक आपकी ही तरह, आपके जैसा ही भोलापन है उन पंछियों में”.
मीरा ने उस वक्त कैसा महसूस किया वह खुद भी नहीं जानती थी, उसका मन अजीब सी दुविधा में था जब वह घर आई तो लगा जैसे अपना मन तो वहीं छोड़ आई हो, अपराध बोध, पाप बोध और प्रेम इन तीनों के बीच में फंस गई थी, भरी जवानी में कभी किसी की ओर आकर्षित ना हुई, फिर यह क्या था, क्यों इसका दिल चाहता था कि वह बातें करते रहे और वह सुनती रहे क्यों मैं चाहती थी कि वह हंसते रहे और वह भी उनके पास बैठी मुसकुराती रहे, जितना वह चाहती कि उनके बारे में कुछ ना सोचे उतना ही उसे वह उसकी आंखों के आगे नजर आते.
उस दिन रविवार था, नीरा की सास ने सुबह-सुबह ही उसे आगाह किया, आज तू काम पर मत जाना जंगल में आग लगी है रात को और काफी फैल भी गई है, उधर जाना खतरे से खाली नहीं,
मीरा का मन बैठ गया, तभी उसने हवा को महसूस किया जैसे कभी उसकी मां महसूस करके बताती थी, हवा तो विपरीत दिशा की है आग इस तरफ ना आएगी वह अपनी सास से बोल उठी, “लेकिन साहब को आगाह करना उचित होगा, वह जब दिल करें जंगल की तरफ चल देते हैं मैं बस उन्हें बता कर ही वापस आ जाऊंगी”.
मीरा अभी वहां पहुंची भी नहीं कि रास्ते में एक लड़के ने बताया, “मैंने साहब को कहा कि जंगल में आग लगी है, साहब पंछी का घोंसला,पंछी का घोंसला कहकर जंगल की तरफ भाग गए”.
“कब?”, मीरा ने बदहवास होकर पूछा.
“अभी घंटा दो घंटा पहले”
“तू आ तो मेरे साथ”, नीरा भी तेज कदमों से जंगल की तरफ दौड़ पड़ी
“साहब पगला गए हैं”, रास्ते में लकड़ी बीनते दो लड़कों ने कहा, “हनुमान के मंदिर के पास जो हैंडपंप है वहां से पानी भर-भर के जंगल के आग वाले हिस्से में डाल रहे हैं जैसे कोई पागल हो”.
जब तक नीरा वहां पहुंची उसने देखा उनकी सांस बहुत ज्यादा फूली हुई थी बाल्टी उठाकर आग की तरफ पानी उछाल रहे थे, एक पत्थर पे पैर अटका तो बाल्टी एक तरफ, खुद एक तरफ, साफा किसी और तरफ गिर गया,
“पगला गए हो क्या आप”, मीरा ने चिल्लाकर कहा “ऐसे क्या जंगल की आग बुझती हैं, जंगल की आग को जानते नहीं आप एक पल में सब कुछ तबाह कर देती है”.
“वह पंछी!”, उन्होंने जैसे गिड़गिड़ा कर याचना की.
“पंछी उड़ सकते हैं”, नीरा चिल्लाई
“पर घोंसला और अंडे नहीं”, बस यही शब्द उनके मुंह से निकले और वह जैसे बेहोश हो गए, तीन लड़कों की मदद से वह उन्हें वापस ले आई चारपाई पर लेटाया, लड़के जब चले गए तो उसे ध्यान आया कि उनके कपड़े गीले और मिट्टी कीचड़ से सने हुए हैं, पता नहीं कैसा भाव उसके मन में आया अंदर से पानी लाकर उनके सारे कपड़े उतार दिए, शरीर को साफ किया जैसे मां एक बच्चे को साफ करती है, उनके छुपे हुए अंगों को भी स्पर्श किया, जैसे एक प्रेमिका अपने प्रेमी के शरीर को छूती है, उनके माथे को प्यार से सहलाया जैसे एक पुत्री अपने पिता को लाड करती है, उस एक पल में वह प्रेम के तीनों रूपों को साकार कर चुकी थी, तभी अचानक नीरा का पति चिल्लाता हुआ वहां पहुंच गया,
“ ओह. फिर तो वह नीरा को खींच खांचकर वहां से ले गया होगा, दादी”.
“प्रेम में बहुत ताकत होती है, प्रेम कायर को बहादुर और कमजोर को ताकतवर बना देता है”.
“क्यों चिल्ला रहे हो”, निर्भीक हो मीरा ने पूछा
पति स्तब्ध था, उसने इस लहजे में उससे कभी बात ना की थी, “घर चलो तुम”.
“साहब बेहोश हैं और उन्हें बुखार भी आ रहा है”,
पति का लहजा नर्म पड़ गया था, “लोग क्या कहेंगे?”
“लोगों के कहने की फिक्र कर मैं किसी इंसान को यूं मरता छोड़ नहीं जा सकती, आप जाइए और वैध जी से कोई दवाई लेकर आइए”.
उस रात वह वही रुकी, रात भर ऊंघती, उन्हें देखती बुखार कम होने का नाम नहीं ले रहा था, पानी की पट्टियां करती रही, नींद में कुछ-कुछ बड़बड़ाते रहे, बीच-बीच में उसका नाम भी, उसे डर था कहीं बुखार दिमाग को ना चला जाए,
सुबह 10: 00 बजे बाहर डाकिया आया और उसने कहा कि साहब की तार आई है
“साहब को तो बहुत तेज बुखार है और अभी होश में भी नहीं, क्या लिखा है तार में?”
“उनकी माता जी का देहांत हो गया है जल्द घर बुलाया है”.
नीरा अंदर तक तड़प उठी, मन दर्द से भर गया, जैसे उसका कोई अपना मर गया हो, उस अनजान औरत की मौत पर उसका मन इतना अधिक व्यथित और दुखी था जितना कि उसकी सगी मां की मौत के वक्त भी ना था, उसे इस दुख का कारण भी ना पता था, और कारण जानना भी ना चाहती थी उसके मन में तो बस यही बात थी इस हालत में कैसे जा पाएंगे होश नहीं है, अगर होश आ भी गया तो इतना तेज बुखार, हाथ पकड़ कर बैठ गई, वही उनके करीब, और ना जाने कब उनकी छाती पर सिर रखकर वह सो ही गई, तभी लगा जैसे उसे कोई पुकार रहा है, एकदम से आंखें खोली तो देखा उन्हें होश आ गया था और वो उसका नाम पुकार रहे थे, वो एकदम से उठ कर बैठ गई, थोड़ा शर्मिंदा भी हो गई कि क्या सोचेंगे वह, उनके मन में क्या था वह यह जानती ही न थी, और कोई भाव है भी या नहीं, या वह सिर्फ एक नौकरानी ही है उनकी नजर में, गांव की रहने वाली एक गंवार औरत.
उसने उन्हें पानी दिया और चाय के साथ बिस्कुट लेकर आई, तब तक उन्होंने टेबुल पर बड़ी तार देख ली थी उनकी आंखें भरी हुई थी, उन्होंने उसकी तरफ देखा और बोले, “ नीरा तुम मेरे पास आओ”, पहली बार उन्होंने उसे आप नहीं तुम कह कर बुलाया था, “मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं, आज और अभी ना कह पाया तो शायद जीवन भर यह बात कह ना पाऊं, पता नहीं तुम इस बात को कैसे लोगी या क्या सोचोगी मेरे बारे में, पर मुझे यह कह लेने दो, उन्होंने उसके हाथ अपने हाथों में पकड़ , मैं नहीं जानता कि तुम क्या सोचती हो, ना ही मैं तुम्हारी जिंदगी में कोई खलल डालना चाहता हूं, तुम्हें पता है कि मेरे जाने का वक्त अब आ गया है पर मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूं कि जब से तुम यहां आई हो मुझे तुमसे एक अजीब सा लगाव हो गया है, मैं जानता हूं कि यह लगाव सिर्फ लगाव नहीं बल्कि मैं तुमसे प्रेम करने लग गया हूं, पता नहीं तुम प्रेम को समझती हो या नहीं, परंतु मैं तुम्हें फिर भी यही कहूंगा कि प्रेम पाप नहीं होता, मैं जिम्मेदारी में बंधा हूं और तुम भी, हमें अपनी अपनी जिम्मेदारियां निभानी है पर फिर भी जो प्रेम मन में पैदा हो गया है वह कभी मरेगा नहीं, खत्म नहीं होगा, मैं ठीक से शायद बता नहीं पा रहा हूं…….”, वह बहुत कुछ कहते जा रहे थे पर नीरा के लिए तो इतना ही काफी था, उनके हाथ पसीने से लथपथ हुए जा रहे थे, बुखार उतर रहा था शायद, या शायद मैं बहुत ज्यादा भावुक हो गए थे, नीरा ने कसकर उनके हाथ पकड़ लिए, और सिर्फ इतना ही बोल सकी, “ सरदार जी”
उनकी छाती पर अपना सिर रख दिया, वह भी खामोश हो गए, अब वहां शब्दों की जरूरत भी ना थी, दोनों के हाथों की पकड़ और भी ज्यादा मजबूत हो गई, उनके हाथों से लथपथ बहता पसीना मीरा के हाथों को भी गीला कर रहा था, उनके प्रेम का यही पहला और आखिरी आलिंगन था, जब वे जाने लगे तब मीरा ने उन किताबों में से मीरा की जीवनी उठा ली,
वह बोले, “ खुद पढ़ना सीखना और तब पढ़ना इसे”.
“ उसके बाद क्या वह फिर कभी नहीं मिले दादी?”
“मिलते थे, रोज ही रात को जब सब सो जाया करते तब वह उससे मिलने आते और दोनों खामोशी से एक दूसरे के हाथ पकड़ कर वैसे ही आलिंगन बध हो जाते जैसे दो प्रेम करने वाले आलिंगन बध हो जाते हैं”.
“क्या सच में दो प्रेमी ऐसे हो सकते हैं दादी, क्या सच में प्रेम ऐसा होता है?”
“ जब प्रेम निस्वार्थ हो, ना कुछ पाने की चाह हो, ना ही खोने का कोई डर हो तब प्रेम का असली रूप सामने आता है और तब प्रेमी ऐसे ही बन जाते हैं, मीरा और कृष्ण से प्रेम को साकार करते हुए”
6)
“तुम्हारी वह कहानी पूरी हो गई ?, वही गीले हाथ वाली?”
“नहीं, मैंने लिखी ही नहीं”.
“लेकिन क्यों?”
“तुम्हें पसंद नहीं था ना मेरा वो लिखना, इसलिए”
“मेरी पसंद ना पसंद से क्या फर्क पड़ता है! तुम्हें लिखना चाहिए था”
“और अगर फर्क पड़ता हो “
“एक पल के लिए अपने हाथ तो दो”
“एक पल के लिए?, शायद ज्यादा देर तक तुम मेरे हाथ पकड़ भी ना पाओ”
“अरे क्या तुम्हारे हाथों गीले हैं, ऐसा क्यों?
“मेरी हथेलियों पर पसीना आ रहा है इसलिए”
“हथेलियों पर भी कभी पसीना आता है!”
“मुझे आता है पर सिर्फ तब जब मैं बहुत भावुक हो जाती हूं, खैर छोड़ो, छोड़ दो मेरे हाथ मैंने कहा था ना मेरे हाथ तुम ज्यादा देर तक न थाम पाओगे” वह हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली
उसने उसके हाथ और कस के पकड़ लिए, और वह उसके कंधे पर सिर रखकर खड़ी हो गई, दोनों के हाथ गीले होते जा रहे थे, गीले होते जा रहे थे.
7)
“मीरा उठ”, मां ने जोर-जोर से झिंझोड़ते हुए मीरा को जगाया, “ तेरी दादी तो गई..
मीरा हड़बड़ा के उठी, एक पल को समझ ही ना पाई की मां क्या कह रही है, दादी तो रात उसके साथ बातें करते-करते सोई, सब रो रहे थे,
वह दादी के पास गई उन्हें देखने लगी, चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी, और जैसे हल्की सी लालिमा भी, पड़ोस की औरतें दादी को घेर कर बैठी थी, अचानक एक औरत बोली,” अरे यह इनके हाथ इतने गीले कैसे!
“ अरे सच, हाथ तो बिलकुल गीले हैं” एक और बोली
सभी औरतें हैरानी से उनके हाथ देखने लगी,
अचानक उसे याद आया, दादी का नाम क्या था
“नीरजा ! नीरा ! “ और मीरा समझ गई के नीरा तो चली गई अपने प्रेमी के पास.
हरदीप सबरवाल हिंदी, इंग्लिश और पंजाबी में तीन दर्जन से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित. २०१४ में कविता HIV Positive को Yoalfaaz best poetry competition में प्रथम स्थान मिला. 2015 में कविता The Refugee’s Roots को The Writers Drawer International poetry contest में दूसरा स्थान मिला. 2016 में कहानी “The Swing” ने The Writers Drawer short story contest 2016 में तीसरा स्थान जीता. प्रतिलिपी लघुकथा सम्मान 2017 में में तृतीय स्थान मिला. sabharwalhardeep@yahoo.com
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अच्छी कहानी है। और अच्छी हो सकती थी। लेखक को अँग्रेज़ी के शब्द हटा देने चाहिए। जैसे, इंटरेस्ट की जगह रूचि लिखना चाहिए, इत्यादि। भारत में अब बातचीत में तो अँग्रेज़ी आ ही जाती है, पर उसे लेखन में भी लाया जाये, यह ज़रूरी नहीं। अन्यथा “दैनिक भास्कर” अख़बार की तरह लेखक लोग भी हिन्दी-अँग्रेज़ी की खिचड़ी भाषा मे लिखने लगेंगे, कुछ तो लिख भी रहे हैं। जैसे इधर हिन्दी लेखन में अँग्रेज़ी शब्दों को लाने का प्रचलन बढ़ गया है।
कहानी में पक्षियों से प्रेम करने वाले सरदार जी और उनके लिए काम करने वाली ग्रामीण महिला का लम्बा प्रसंग बहुत सुन्दर है।
बहुत सुंदर प्रेम कथा-अद्भुत एवं अद्वितीय। सच्चे प्रेम की परिभाषा गढ़ती एक विरल कथा। बगैर वासना के भी प्रेम संभव है।प्लेटोनिक लव की संभाव्यता को बल देती इस विरल कथा के लिए हरदीप जी एवं समालोचन को साधुवाद !
अभी-अभी कहानी पढ़ी । एक चालीस वर्ष की आयु की महिला अपने घर में गुम है । इस कहानी के नायक ने उसे गुमशुदगी से बाहर निकाला । मीरा की कहानी बतायी । प्रेम करने की उम्र नहीं होती, यह समझाया । पक्षी विज्ञानी के काम में सहायता करने के कारण महिला के जीवन में रंग भर गया । उसे प्रेम का एहसास हुआ । छोटे छोटे विवरणों में मैं भी ख़ुद को भूल गया ।
कहानीकार से निवेदन है कि सिर पर तेल घिसना की बजाये तेल मलना या लगाना लिखते ।
बहुत दिन बाद कोई अच्छी कहानी पढ़ी। इस तरह की कहानियाँ कृशन चंदर लिखा लिखा करते हैं। साधुवाद