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Home » बोर्हेस के सान्निध्य में : जयप्रकाश सावंत

बोर्हेस के सान्निध्य में : जयप्रकाश सावंत

वरिष्ठ लेखक और अनुवादक जयप्रकाश सावंत ने स्पेनिश भाषा के प्रसिद्ध रचनाकार बोर्हेस (1899–1986) के सान्निध्य और साहित्य पर कुछ इस तरह से लिखा है कि आधुनिक साहित्य का क्लासिक लेखक कहे जाने वाले उस शख़्सियत की विशिष्टता साफ़ दिखने लगती है. उनकी दिनचर्या, पसंद-नापसंद और पूर्वाग्रह भी. अपनी कहानी के एक अनुवादक से पत्र-व्यवहार का कटाक्ष तो कमाल का है. “एक अनुवादक के रूप में तुम न केवल भयंकर हो, बल्कि एक प्लास्टिक सर्जन के रूप में ख़तरनाक भी हो. तुम मामूली शरीरशास्त्र को भी नहीं जानते. तुमने अपनी सर्जरी से मेरी कहानी का चेहरा नहीं बदला है, बल्कि मेरी कहानी में एक ऐसी बेकार की पूँछ जोड़ दी है, जो किसी ओरांगउटान को भी अपना संतुलन बनाने के लिए काम नहीं आएगी.” इतने नज़दीक से शायद पहली बार हम बोर्हेस को देख रहे हैं. यह ख़ास अंक प्रस्तुत है.

by arun dev
September 12, 2025
in अनुवाद
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बोर्हेस के सान्निध्य में : जयप्रकाश सावंत
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बोर्हेस के सान्निध्य में
जयप्रकाश सावंत
मराठी से अनुवाद: गोरख थोरात

 

(१)
मैंग्वेल के नजऱों से बोर्हेस

‘बुक्स ऑन बुक्स’ तर्ज़ की किताबें पढ़ने वालों की दुनिया में दो बेहद ख़ास ‘दादा’ लेखक हैं : निकोलस बास्बेन्स और आल्बर्टो मैंग्वेल. दोनों के पास ग्रंथ संबंधी जानकारी का विशाल भंडार है. इनमें मैंग्वेल अधिक शानदार शैली का लेखक है. उसने कहानियाँ-उपन्यास लिखे हैं, अनुवाद किए हैं, विभिन्न संकलनों का संपादन किया है और हाँ, किताबों के बारे में कई किताबें भी लिखी हैं. इनमे दो अद्वितीय नगीने हैं – ‘हिस्ट्री ऑफ़ रीडिंग’ और ‘लाइब्रेरी एट नाइट’.

‘हिस्ट्री ऑफ़ रीडिंग’ एक ऐसी किताब है जो पढ़ने का इतिहास बयान करती है. उसका दिलचस्प पाठ और मैंग्वेल द्वारा इसके लिए जुटाए गए ग़ज़ब के चित्रों के कारण यह पुस्तक किसी उपन्यास जैसी रोचक बनी है. इस पुस्तक का लगभग तीस भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. किताबी दुनिया के मुसाफ़िरों को कम से कम एक बार इसे ज़रूर पढ़ना चाहिए.

इस संयोग को क्या कहें कि किताबों के शौकीन आल्बर्टो मैंग्वेल को केवल सोलह साल की उम्र में, किताबों की दुनिया को ही अपना जीवन माननेवाले लेखक और पाठक होर्हे लुइस बोर्हेस के सान्निध्य में चार साल बिताने का सौभाग्य मिला था. आल्बर्टो मैंग्वेल ने इस सान्निध्य को लेकर ‘विद बोर्हेस’ नामक एक छोटी-सी, बहुत सुंदर पुस्तक लिखी है.

अल्बर्टो मैंग्वेल का जन्म 1948 में ब्यूनस आयर्स में हुआ था. उसे बचपन से ही पढ़ने का शौक़ था. उसकी दादी उसे डाँटती थी कि वह खेलने के लिए बाहर जाने के बजाय घर में ही किताबें पढ़ता रहता है. वह उससे कहती, ‘गो आउट एण्ड लिव’, ‘बाहर जाओ और जीना सीखो’. लेकिन मैंग्वेल ने अपना पढ़ना बंद नहीं किया (‘मैं बड़ों की बात कभी नहीं मानता’, इति मैंग्वेल).

मैंग्वेल ने स्कूल भी ऐसा पाया जो नियमित पाठ्यक्रम पढ़ाने पर ज़्यादा जोर नहीं देता था. इस विद्यालय में पढ़ाने के लिए कुछ प्रोफेसर विश्वविद्यालय से आते थे और पाठ्यक्रम छोड़कर अपने क्षेत्र का कोई विषय समग्रता से पढ़ाते थे. मतलब, साहित्य का शिक्षक पूरे साल भर केवल ‘डॉन किहोटी’ ही पढ़ाएगा. मैंग्वेल ने कहा है कि इससे हमने विश्व भर के साहित्य के बारे में जाना. इसका एक और परिणाम यह हुआ कि मैंग्वेल को अपनी पढाई पूरी करने में कोई दिलचस्पी नहीं रही. कॉलेज में उसने जैसे-तैसे एक साल बिताया. इसके बाद अर्जेंटीना से बाहर निकलकर उसने पूरे युरोप का भ्रमण किया. उसने विभिन्न प्रकाशकों के लिए काम किया और अपना लेखन भी शुरू किया.

1982 के आसपास मैंग्वेल टोरंटो में बस गया. उसने कनाडा की नागरिकता स्वीकार की . इसके बाद सन 2000 में उसने फ़्रांस में एक घर ख़रीदा. वहाँ वह अपने तीस हज़ार पुस्तकों के संग्रह के साथ पंद्रह साल तक रहा. अगले पाँच साल अमेरिका में बिताने के बाद अब 2021 से वह पूर्तगाल के लिस्बन में रह रहा है. यहाँ वह ‘सेंटर फ़ॉर रिसर्च इन हिस्ट्री ऑफ़ रीडिंग’ संस्था का निदेशक है. उसने अपना संग्रह इसी संस्था को उपहार के रूप में दिया है.

मैंग्वेल की बोर्हेस से मुलाक़ात 1964 में ब्यूनस आयर्स में हुई थी. उस समय वह सोलह साल का था और बोर्हेस पैंसठ के. बोर्हेस से हुई इस मुलाक़ात को मैंग्वेल स्वयं भी अपने जीवन की सबसे प्रभावशाली घटना मानता है. यह मुलाक़ात एक किताब की दुकान में हुई थी. लिली लेबाख नामक एक जर्मन महिला जर्मनी में नाज़ी उत्पीड़न के दौरान अर्जेंटीना भाग आई थी और उसने ब्यूनस आयर्स में ‘पिग्मेलियन’ नाम से किताबों की दुकान खोली थी. उसने यूरोप-अमेरिका में प्रकाशित पुस्तकें और साहित्यिक पत्रिकाएँ दुकान के लिए उपलब्ध करने पर ध्यान केंद्रित किया था. स्कूल छूटने पर मैंग्वेल इसी दुकान में काम करने जाता था. मैंग्वेल ने शरारत से लिखा है,

“मैंने लिली लेबाख से बहुत कुछ सीखा. वह मुझसे कहती कि एक विक्रेता को पता होना चाहिए कि वह क्या बेच रहा है और इसके लिए वहाँ आने वाली पुस्तकें और पत्रिकाएँ उसे पढ़नी चाहिए. लेकिन मुझे इसके लिए आग्रह करने की ज़रूरत नहीं थी.”

इस दौरान बोर्हेस पूरी तरह से अंधे हो गये थे और वे  अर्जेंटीना के राष्ट्रीय पुस्तकालय के निदेशक भी थे. लाइब्रेरी में अपना काम ख़त्म करने के बाद घर लौटते समय वे किताबों का चयन करने के लिए ‘पिग्मेलियन’ में आते थे. उस वक्त़ मैंग्वेल उनकी मदद करता था. ऐसी ही एक मुलाक़ात में बोर्हेस ने मैंग्वेल से पूछा,

“क्या तुम मुझे किताबें पढ़कर सुनाने के लिए मेरे घर आ सकते हो?” उन्होंने यह भी कहा, “वैसे मेरी माँ मुझे पढ़कर सुनाती है, लेकिन वह अब नब्बे की उम्र की है और थक चुकी है.” मैंग्वेल तुरंत तैयार हो गया. इसके बाद 1964 से 1968 तक, चार साल मैंग्वेल हर हफ़्ते तीन-चार दिन बोर्हेस के घर जाता रहा. कुछ ही दिनों में मैंग्वेल को एहसास हुआ कि बोर्हेस को इस तरह पढ़कर सुनाने वाला वह अकेला नहीं है. बोर्हेस अपने संपर्क में आने वाले कई लोगों से यह अनुरोध करते थे. मैंग्वेल ने लिखा है,

“हम सभी उनके छोटे-छोटे बॉस्वेल (Boswell) थे. एक-दूसरे से अपरिचित, लेकिन दुनिया के इस महानतम पाठक की छवि अपनी सामूहिक स्मृति में रखने वाले…”

 

 

2.

“(बोर्हेस की इमारत के शांत अहाते में प्रवेश करते हुए) मैं छह मंजिलें चढ़कर जाता हूँ और दरवाजे की घंटी बजाता हूँ. जैसे ही नौकरानी दरवाज़ा खोलकर मुझे अंदर आने के लिए कहने वाली होती है, बोर्हेस एक मोटे पर्दे के पीछे से बाहर आते हैं. बड़े सलीके से बटन लगा हुआ ग्रे सूट, सफ़ेद कॉलर और धारियों वाली पीली टाई, दोनों तनिक एक ओर सरके हुए; इस लिबास में बोर्हेस मेरी ओर तनकर चले आ रहे हैं. वह रोज़ के अभ्यस्त स्थान पर भी तनिक टटोलते हुए चल रहे हैं. अपना बेजान दाहिना हाथ आगे बढ़ाकर वे मेरा हाथ पकड़ते हैं और मेरा स्वागत करते हैं. इसके बाद, कोई औपचारिक संवाद नहीं होता. वह मुड़कर मुझे लिविंग रूम की ओर ले जाते हैं और वहाँ सोफ़े पर तनकर बैठ जाते हैं. जैसे ही मैं उनके दाहिनी ओर की कुर्सी पर बैठता हूँ, वह पूछते हैं, “हम आज किपलिंग पढ़ें?”

बोर्हेस के घर पर हुई इस पहली मुलाक़ात से मैंग्वेल ने अपनी पुस्तक की शुरुआत की है. उसने आगे बताया कि ये मुलाक़ातें सिर्फ़ किताबें पढ़ना और बातचीत करने तक सीमित नहीं होती थीं. बोर्हेस ख़ूब गपशप करते थे. कभी-कभी मैंग्वेल के साथ ब्यूनस आयर्स की सड़कों पर घूमने, और कभी-कभी मैंग्वेल को रात के खाने के लिए होटल में भी ले जाते थे. कभी-कभी ये दोनों मूवी देखने भी जाते थे. बोर्हेस की बातचीत का एक बड़ा हिस्सा किताबें और साहित्य होता था. मैंग्वेल का कहना है कि बोर्हेस की लौकिक दुनिया की समझ उनके पढ़ने के प्रतिरूप के रूप में मौजूद थी. वह अक़्सर अपने अंधेपन के बारे में बात करते थे, लेकिन उसका भी साहित्यिक संदर्भ होता था. कभी ये संदर्भ उन्हें ‘पुस्तक और अंधेरा’ देने वाले ‘ईश्वरीय व्यंग्य’ की उनकी कविता के होते, तो कभी होमर, मिल्टन जैसे अंधकवियों की स्मृतियों के.

कभी-कभी संयोग पर आधारित अंधविश्वास के भी होते थे. क्योंकि बोर्हेस अर्जेंटीना की नेशनल लाइब्रेरी के उन तीन निदेशकों में से एक थे, जो अंधेपन का शिकार हुए थे. “अंधापन और बुढ़ापा मनुष्य को अकेला कर देने वाली चीज़़ें हैं.” – बोर्हेस कहा करते थे.

यहाँ मैंग्वेल ने बोर्हेस की पीली टाई का उल्लेख किया है, क्योंकि बोर्हेस अपनी दृष्टि के सामने फैली भूरे रंग की धूमिलता में एकमात्र बस यही पीला रंग देख सकते थे. उनकी दो पसंदीदा चीज़़ों का रंग यही था – पीला गुलाब और धारीदार बाघ. इसीलिए बोर्हेस के दोस्त उनके जन्मदिन पर उन्हें चमकीली पीली टाई उपहार में देते थे. यह टाई पहनने के बाद बोर्हेस अक़्सर ऑस्कर वाइल्ड का यह कथन सुनाते थे कि इतना ‘लाउड टाई’ केवल एक बहरा आदमी ही पहन सकता है! ‘पेरिस रिव्यू’ के एक इंटरव्यू में बोर्हेस ने इस संबंध में एक और मज़ेदार संस्मरण सुनाया है. एक बार एक स्त्री उनसे मिलने आई. उन्होंने हमेशा की तरह अपनी भड़कीली टाई के संदर्भ में ऑस्कर वाइल्ड की यह टिप्पणी उसे सुनाई. इस पर स्त्री ने कहा,

“अच्छा-अच्छा, यानी वाइल्ड का मतलब यह था कि वह आदमी बहरा होने के कारण उस टाई पर लोगों द्वारा की गई टिप्पणियाँ नहीं सुन पाएगा?”

 

 

3.

बोर्हेस अंधेपन के इस एकांत में अपनी कविता की रचना कैसे करते थे, इसका वर्णन मैंग्वेल ने दिया है. सबसे पहले लिखी जा रही कविता की पंक्तियाँ उनके मन में बनती थीं. जब उन्हें यक़ीन हो जाता कि कविता पूरी हो गई है, तो  जो भी उनके क़रीब होता, उससे वे पूछते, “क्या तुम इतना लिख लोगे?” फिर वे उस कविता की पंक्ति उसके विरामचिह्नों समेत लिखने के लिए कहते. कविता की पंक्तियाँ आमतौर पर अर्थ की दृष्टि से अगली पंक्ति के कुछ वाक्यांशों से जुड़ी होतीं हैं. लेकिन बोर्हेस अर्थ पर विचार किये बिना केवल एक ही पंक्ति लिखवाते. फिर उस व्यक्ति को इसे सुनाने के लिए कहते. एक बार, दो बार, पाँच बार. (हर बार दोहराने के लिए वह माफ़ी माँगना भी नहीं भूलते.) सुनते समय शायद वे उस पंक्ति के प्रत्येक शब्द को अपने मनःचक्षुओं के सामने देखते होंगे. उनकी पूरी संतुष्टि होने के बाद ही अगली पंक्ति, फिर अगली और इस तरह उसकी कल्पना की कविता किसी और की लिखावट में कागज़ पर साकार होती. फिर बोर्हेस वह कागज़ लेते, उसे मोड़ते और अपने बटुए या किताब में रख देते. (मैंग्वेल आगे बताता है कि पैसों के बारे में भी वे ऐसा ही करते थे. अपने हाथ में आए नोट को वह मोड़कर किसी किताब में रखते और जब भी उसे किसी को देने की ज़रूरत पड़ती, तब उस किताब निकालकर उसका इस्तेमाल करते. लेकिन किताब में रखे पैसे उन्हें हमेशा मिलते, ऐसा भी नहीं था!)

अपनी दृष्टि खो देने के बाद बोर्हेस ने शुरुआत में केवल कविताएँ लिखीं, लेकिन बाद में वह धीरे-धीरे गद्य की ओर भी मुड़ गये. मैंग्वेल ने अपने एक साक्षात्कार में कहा है कि अन्य लोगों की कहानियाँ सुनने का बोर्हेस का एक उद्देश्य उनकी तकनीक का अध्ययन करना था. किपलिंग, स्टीवेन्सन, चेस्टर्टन जैसे अपने कुछ पसंदीदा लेखकों का गद्य पढ़वाते समय बोर्हेस कुछ बिंदुओं पर पढ़ना रोक देते थे और किसी विशेषज्ञ घड़ीसाज़ की तरह, उस अंश की रचना को उद्घाटित करते थे. ऐसा अध्ययन उन्हें अपने ख़ुद के लेखन के लिए आवश्यक लगता होगा. बोर्हेस ने गद्य भी कविता की शैली में लिखा. स्वाभाविक रूप से एक कहानी लिखने में एक कविता से अधिक समय लगता था. अंधा होने के बाद बोर्हेस ने दोनों शैलियों में प्रचुर मात्रा में लिखा, और उसे इस तरह से अंजाम दिया, यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है.

बोर्हेस द्वारा सुनाई गई कविता लिखने की एक और स्मृति मैंग्वेल ने पुस्तक के अंतिम पृष्ठों में बताई है. बोर्हेस को उनके एक दोस्त ने बताया था कि साल के आख़िरी दिन हम जो करते हैं, वही तय करता है कि आप आने वाले साल में क्या करेंगे. बोर्हेस इस निर्देश का बिल्कुल पालन करते थे और हर 31 दिसंबर को एक नई कविता या कहानी की शुरूआत करते थे. 31 दिसंबर, 1967 को मैंग्वेल बोर्हेस को नए साल की शुभकामनाएँ देने उनके घर पहुँचा. तब बोर्हेस ने मैंग्वेल से कुछ शब्द लिख लेने को कहा. चूँकि मैंग्वेल ने उस दौरान की बोर्हेस के साथ हुई अपनी मुलाक़ातों का ब्यौरा नहीं रखा था, इसलिए उसे वे सभी शब्द याद नहीं. लेकिन जहाँ तक उसे याद है, हाथ की छड़ी, सिक्के, चाबियों का गुच्छा जैसी वस्तुओं की वह सूची थी. उसमें अंतिम शब्द थे, “इन सभी को कभी पता नहीं चलेगा कि हम (इस दुनिया से) चले गए हैं…”

 

 

4.

मैंग्वेल ने बोर्हेस के लिए 1968 में आख़री बार पढ़ा. उस दिन बोर्हेस ने उससे हेन्री जेम्स की कहानी ‘द जॉली कॉर्नर’ पढ़वाई. मैंग्वेल ने पुस्तक में पढ़ने के संदर्भ में बोर्हेस की पसंद-नापसंद की भी बात की है. बोर्हेस का कहना था,

“मैं आनंद के लिए पढ़ता हूँ और कर्तव्य और ज़िम्मेदारी की भावनाओं को इसमें हस्तक्षेप नहीं करने देता.”

अतः उन्होंने हाथ में ली पुस्तक को पूरा करने की बाध्यता का पालन कभी नहीं किया. वे अक़्सर किसी किताब के कथानक या उस पर लिखे विश्वकोश के किसी लेख से संतुष्ट हो जाते थे. उन्होंने मैंग्वेल के सामने स्वीकार किया कि उन्होंने जेम्स जॉयस के ‘फ़िनेग़ान्स वेक’ को पूरा पढ़े बिना ही उस पर भाषण दिया था.

बोर्हेस को ‘एपिक’ का, महाकाव्यात्मक विधा का आकर्षण था. लेकिन उनके ‘एपिक’ में होमर के ‘इलियड-ओडिसी’ के अलावा मारपीट करने वाले गुंडों के गिरोहों की मुठभेड़ों के लिए भी जगह थी. उन्होंने स्वयं भी पालेर्मो के,  जहाँ उन्होंने अपना बचपन बिताया था –  अंडरवर्ल्ड के नामचीन छुरेबाजों पर कहानियाँ लिखी हैं. बोर्हेस का मानना था कि इन गैंगवारों के पीछे का साहस और दुस्साहस उन्हें ‘एपिक’ के स्तर तक ले जाता है. ‘पेरिस रिव्यू’ के अपने साक्षात्कार में उन्होंने कहा,

“मेरे पास इन दोनों की कमी थी, शायद इसीलिए मैं उनकी ओर आकर्षित हुआ.”

इसी कारण बोर्हेस को हॉलीवुड की ‘वेस्टर्न’ फिल्में पसंद थीं. दरअसल, उन्होंने इसी इंटरव्यू में यह भी कहा था कि इस ‘वेस्टर्न’ ने ‘एपिक’ को बरक़रार रखा है. शिकागो के गैंगस्टरों के बारे में बनी फिल्मों में गैंगस्टरों के मारे जाने पर उनकी आँखों में आँसू आ जाते थे. मैंगवेल ने लिखा है कि ऐसे दृश्यों के दौरान वह फूट-फूटकर रोने लगते थे. बोर्हेस ने अपनी भावुकता या अपने अंधविश्वासों को कभी नहीं छिपाया. उन्हें इस बात का कोई मलाल नहीं था.

कई प्रसिद्ध लेखक बोर्हेस को नापसंद थे और मैंग्वेल के अनुसार इसके पीछे उनकी सनक या पूर्वग्रह के अलावा और कोई कारण नहीं था. मैंग्वेल द्वारा दी गई बोर्हेस के नापसंद किंतु प्रसिद्ध लेखकों की सूची देखिए : टॉल्स्टॉय, जेन ऑस्टिन, गोएथे, फ़्लॉबेर, स्टेंडल, ज्वाइग, मोपासां, बोकाशियो, प्रूस्त, ज़ोला, बाल्ज़ाक, नेरुदा, थॉमस मान, लोर्का, पिरांडेलो, मार्केज़, आदि आदि. बोर्हेस के इस पूर्वग्रह पर टिप्पणी करते हुए मैंग्वेल ने यह भी स्पष्ट रूप से कहा है कि अश्वेतों और उनकी संस्कृति के बारे में बोर्हेस के विचार नकारात्मक थे और इस नज़रिए से देखें तो बोर्हेस की हमेशा मानवतावादी नज़र आने वाली दृष्टि कलंकित हो गई.

 

 

5.

बोर्हेस के घर के बारे में बताते हुए मैंग्वेल कहता है कि उनका घर बिल्कुल अलग दौर का लगता था. बीस साल पहले के ब्यूनस आयर्स जैसा, या विक्टोरियन या एडवर्डियन अंग्रेज़ी घर जैसा. एक बार पेरू के एक टेलीविजन चैनल के लिए बोर्हेस का साक्षात्कार करने युवा मारियो वर्गास योसा उनके घर आया. घर की दीवारों पर पपड़ियाँ उड़ चुकी थीं, छत टपक रही थी. इसलिए योसा ने उस घर की हालत पर आश्चर्य प्रकट किया. बोर्हेस भड़क गये. वह योसा से बोले,

“आप अपने देश में भड़कीले ढंग से रहते होंगे, यहाँ ब्यूनस आयर्स में हम वैसा आडंबर नहीं करते.” 

योसा ने उसके एक इंटरव्यू में कहा है कि उसके बाद उसकी बोर्हेस से केवल एक बार मुलाक़ात हुई और बोर्हेस ने उसके साथ अत्यंत तटस्थता से व्यवहार किया. अपने घर के बारे में योसा की टिप्पणी से वे शायद बहुत आहत हुए थे. बोर्हेस के घर का वर्णन करते हुए मैंग्वेल हमें सबसे ज़्यादा उत्सुकता वाली बात के पास ले आता है : बोर्हेस का ग्रंथ संग्रह! बोर्हेस के लेखन से लगातार महसूस होता है की उनका पठन प्रचंड है. साथ ही उनकी वैश्विक पुस्तकालय की अवधारणा, या उनके हिसाब से स्वर्ग का अर्थ एक ग्रंथ संग्रह होना; इन सबके आधार पर ज़्यादातर लोगों की सोच यह होगी कि बोर्हेस के घर की दीवारें किताबों से भरी होंगी. घर के कोन-कोने में किताबों की थप्पियाँ होंगी. मैंग्वेल के अनुसार, उनकी ग्रंथ संपदा देखकर पहली नज़र में दर्शकों को निराशा होती है. घर में कुछ ही अलमारियाँ थीं, लेकिन उसी में बोर्हेस की पढ़ाई का सारा सार समाया हुआ था.

बोर्हेस की सबसे आकर्षक और पसंदीदा अलमारी विभिन्न विश्वकोशों– एनसाइक्लोपीडिया और शब्दकोशों से भरी हुई थी. जब बोर्हेस बच्चा था, तब उसके पिता उसे राष्ट्रीय पुस्तकालय ले जाते थे. शर्मीले बोर्हेस को वहाँ के पुस्तकालय प्रमुख से किताबें माँगने में झिझक होती थी. फिर वह वहाँ खुली अलमारी में रखे ‘ब्रिटानिका’ के खंड ले आता और पन्ने खोलकर पढ़ता. एनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ ब्रिटानिका का ग्यारहवाँ संस्करण, जिसमें मैकाले और अन्य लोगों के लेख शामिल थे, बोर्हेस का सबसे पसंदीदा था, और बाद में बोर्हेस ने इसे पुरस्कार के रूप में मिली राशि से अपने लिए ख़रीदा था. विश्वकोश के प्रति यह जुनून उनके मन में जीवन भर बना रहा. उन्होंने एक बार मैंग्वेल से कहा था,

“किसी दृष्टि वाले व्यक्ति की तरह, मैं हमेशा नए-नए विश्वकोश ख़रीदना चाहता हूँ.”

बोर्हेस कई बार मैंग्वेल से इन कोशों की सामग्री भी पढ़वा लेते. फिर, सुनते समय उन्हें कुछ ख़ास बात ध्यान आती, तो वे उसे उस खंड के अंतिम पृष्ठ पर पृष्ठ संख्या सहित नोट करने के लिए कहते. मैंग्वेल कहता है, बोर्हेस की किताबों के आख़िरी पन्ने अलग-अलग लिखावट वाले नोट्स से भरे हुए होते थे.

बोर्हेस के पसंदीदा लेखक की किताबें कम ऊँचाई वाली दो अलमारियों में होती थीं, जिन्हें वे अक़्सर पढ़ते थे. स्टीवेन्सन, चेस्टर्टन, हेन्री जेम्स और किपलिंग. इसके अलावा, एच. जी. वेल्स की कई पुस्तकें, लगभग पूरा ऑस्कर वाइल्ड और लुईस कॅरल; जॉयस की ‘यूलिसिस’ और ‘फ़िनेग़ान्स वेक’, मार्क ट्वेन की ‘लाइफ़ ऑन द मिसिसिपी’, गिब्बन के ‘डिक्लाइन एंड फ़ॉल’ के कई खंड और उनके पसंदीदा ‘डॉन किहोटी’ की ग़ार्नियर प्रति. और जॉन डिक्सन कार की रहस्यात्मक कहानियाँ भी. (नेरुदा की तरह बोर्हेस को भी रहस्यात्मक कहानियाँ पसंद थीं. वास्तव में, उनका मानना था कि अन्य की तुलना में रहस्यात्मक कहानियाँ अरस्तू की साहित्य संबंधी अवधारणा में आने वाली सबसे उपयुक्त विधा थी.) इसके अलावा गणित की कई किताबें और हाँ, शोपेनहावर समेत उनके पसंदीदा दार्शनिक.

उनके बेडरूम की अलमारियों में कविताओं के कई संग्रह रखे हुए थे. दांते पर कई भाष्य और एँग्लो-सैक्सन साहित्य का बहुत बड़ा संग्रह था. मैंगवेल के मुताबिक, अर्जेंटीना का साहित्य शायद उनकी माँ के बेडरूम में था. लेकिन मैंग्वेल ने बोर्हेस की ग्रंथ संपदा के बारे में जो सबसे आश्चर्यजनक बात कही, वह यह कि वे अपनी – ‘मेरे जैसे भुला ही दिए जाने योग्य लेखक की’ – एक भी किताब अपने संग्रह में नहीं रखते थे.

इसी संदर्भ में मैंग्वेल ने एक और अनुभव साझा किया है. एक बार वह बोर्हेस के घर में बैठा था तभी डाकिया एक पार्सल लेकर आया. जब उसे खोला गया तो उसमें हाथ से बने उच्च गुणवत्ता वाले नीले कागज़ पर छपी और काले रेशमी कपड़े में बंधी बोर्हेस की ‘कांग्रेस’ कहानी की डीलक्स प्रति थी, जो एक इतालवी प्रकाशक द्वारा भेजी गई थी. भीतरी चित्रण के लिए हाथ से बने तकनीकी शैली के चित्रों का उपयोग किया गया था. बोर्हेस ने मैंग्वेल को उस प्रति का वर्णन करने के लिए कहा. ध्यान से सुनने पर उन्होंने कहा कि यह कोई किताब नहीं है, बल्कि चॉकलेट का डिब्बा है. और उन्होंने वह प्रति उस झिझक रहे डाकिया को उपहार के रूप में दे दी!

मैंग्वेल ने 1968 में अर्जेंटीना छोड़ा, तब बोर्हेस ने उसे विदाई उपहार के रूप में अपने संग्रह से एक मूल्यवान पुस्तक दी थी. किपलिंग की ‘स्टॉकी एंड कंपनी’ की एक लाल ज़िल्द वाली प्रति. इस प्रति में किपलिंग ने गणेशमुख और हिंदू स्वस्तिक का ‘लोगो’ के रूप में इस्तेमाल किया था. बाद में युद्ध शुरू होने पर नाज़ियों द्वारा इसका उपयोग किया जाने लगा, तो किपलिंग ने स्वस्तिक का प्रयोग बंद कर दिया.

मुझे हाल ही में विकिपीडिया पर एक टिप्पणी पढ़ने को मिली. दिसंबर 2015 में, कनाडा-फ़्रांस स्थित आल्बर्टो मैंग्वेल को अर्जेंटीना के राष्ट्रीय पुस्तकालय का निदेशक नियुक्त किया गया था. मुझे महसूस हुआ, इससे बोर्हेस-मैंग्वेल संबंध का एक मंडल पूरा हो गया है.

‘विद बोर्हेस’ के समापन पर मैंग्वेल ने बोर्हेस के साथ अपनी आख़िरी मुलाक़ात का वर्णन किया है. ये मुलाक़ात 1985 में पेरिस के एक होटल में हुई थी. इस मुलाक़ात के दौरान बोर्हेस ने उससे निराशा के साथ अर्जेंटीना के बारे में बात की थी. उन्होंने आगे कहा था, जिसे आप अपना स्थान मानते हैं, वह वास्तव में आपके चुनिंदा दोस्तों का मंडल होता है. फिर उन्होंने उन स्थानों के नाम लिए, जो उन्हें ‘अपने’ लगते थे. जिनेवा, उरुग्वे में मोंटेवीदेओ, जापान में नारा, टेक्सास में ऑस्टिन और ब्यूनस आयर्स. इनमें से किस स्थान पर उनकी मृत्यु होगी, इसके बारे में उन्होंने जिज्ञासा व्यक्त की. इसमें वे नारा को नहीं चाह रहें थे. (“मैं उस भाषा में मरना नहीं चाहता जिसे मैं नहीं जानता.”) जाते-जाते उन्होंने मैंग्वेल को यह भी बताया कि वे उनामुनो के अमरता के विचार से सहमत नहीं हैं.

एक साल बाद, 14 जून 1986 को बोर्हेस की उसी जिनेवा में मृत्यु हुई, जहाँ उन्होंने अपने स्कूल के दिन बिताए थे. उनकी मृत्यु से पहले, अस्पताल में एक जर्मन भाषी नर्स उन्हें 18वीं सदी के जर्मन कवि नोबालिस का एक उपन्यास पढ़कर सुना रही थी. यह उनकी पढ़वाई गई आख़िरी किताब थी. यह वही किताब थी, जो उन्होंने जिनेवा में अपनी किशोरावस्था के दिनों में पहली बार पढ़ी थी.

 

 

(6)
बोर्हेस और अनुवाद

पढ़ते समय कुछ अजीब संयोग अनुभव होते हैं. हम जो पढ़ रहे होते हैं उसके संबंध में, उससे विरोधी या उसकी पुष्टि करने वाली बात ठीक उसी समय पढ़ने मिलती है. मैं एक बार ब्राज़ीलियाई लेखक लुइस फर्नांडो वेरिसिमो का ‘बोर्हेस एंड द इटर्नल ओरांगउटान’ नामक उपन्यास पढ़ रहा था.¹

इसमें एक साहित्यिक शैली की किंतु ‘कातिल कौन?’ छाप रहस्यात्मक कथा है. इसका पहला प्रकरण अत्यंत दिलचस्प है. इसमें उपन्यास का निवेदक-नायक वोगेलस्टाइन एक साहित्यिक संगोष्ठी के लिए ब्यूनस आयर्स जा रहा है. ब्राज़ील में रहने वाला वोगेलस्टाइन लगभग पचास की उम्र का है,  अंग्रेज़ी भाषा का शिक्षक है और कभी-कभी वह अंग्रेज़ी से पुर्तगाली में अनुवाद भी करता है. वह एक अविवाहित मनुष्य है, जिसने अब तक एक साधारण सा जीवन जिया है. साहित्य और किताबें, यही उसकी एकमात्र दुनिया है.  एडगर एलन पो उसका पसंदीदा लेखक है. ब्यूनस आयर्स की संगोष्ठी भी पो के लेखन पर केंद्रित है, और वोगेलस्टाइन उसमें भाग लेने वाले पो विशेषज्ञों के विचार और बहस सुनने के लिए उत्सुक है. ब्यूनस आयर्स जाने की उसकी उत्सुकता के पीछे एक और निजी कारण है. जब वोगेलस्टाइन बीस साल का था, तब उसके हाथों बोर्हेस के मामले में एक अनुचित बात हो गई थी. अब वह व्यक्तिगत रूप से बोर्हेस से मिलकर उससे माफ़ी माँगना चाहता है.

कैसी अनुचित बात? तीस साल पहले, वोगेलस्टाइन को अंग्रेज़ी पत्रिका ‘एलेरी क्वीन मिस्ट्री मैगज़ीन’ में होर्हे लुइस बोर्हेस नामक एक अर्जेंटीना के लेखक की कहानी पढ़ने मिली थी. उसने पहली बार यह नाम सुना था. वह ब्राज़ील की एक रहस्यात्मक कहानियाँ छापने वाली पत्रिका के लिए इस कहानी का अनुवाद करने लगा. लेकिन अनुवाद करते समय उसे मूल कहानी थोड़ी नीरस और अस्पष्ट-सी महसूस हुई. उसे लगा, कहानी में असली अपराधी कौन है, इसका निर्णय मानो पाठकों पर छोड़ दिया है. फिर उसने उस कहानी में बहुत सारे परिवर्तन किये. उसके कथानक में कुछ पो शैली के प्रसंग घुसेड़ दिये और समापन इस तरह अप्रत्याशित किया कि कहानी में अभी तक जो कुछ भी घटित हुआ था, सब उलट-पुलट हो जाए.

उसने सोचा, कौन है ये अर्जेंटीना का लेखक? मैं उसकी स्पेनिश कहानी के अंग्रेज़ी अनुवाद से यह जो पुर्तगाली अनुवाद कर रहा हूँ, उसमें मैं कुछ बदलाव करूँ भी तो वह किसे ध्यान आएगा? और यदि लेखक के ध्यान में आ भी गया, तो वह भी उसकी कहानी में इस तरह सजीवता लाने के लिए, मुझे धन्यवाद ही देगा.

लेकिन कुछ दिनों बाद पुर्तगाली पत्रिका के संपादक को बोर्हेस का एक व्यंग्यात्मक पत्र मिलता है –

“यह जो कोई अति-विद्वान और घमंडी ब्राज़ीलियाई अनुवादक हाथ लगी असहाय कहानियों को तोड़-मरोड़ रहा है, उसकी आपराधिक मानसिकता का पता लगाने के लिए साहित्यिक अपराधियों की एक समिति नियुक्त करना ज़रूरी है.”

पत्र स्वाभाविक रूप से वोगेलस्टाइन के पास भेजा जाता है, उत्तर देने के लिए. लेकिन वह जो जवाब देता है, उससे मामला और बिगड़ जाता है. वह लिखता है,

“मैंने आपकी कहानी को तोड़ा-मरोड़ा नहीं, बल्कि एक प्लास्टिक सर्जन की तरह मूल कहानी की नाक थोड़ी ठीक की है. अगर मैंने कोई ग़लती की है तो बस यही कि मैं मरीज़ से यह पूछना भूल गया कि क्या उसे अपनी नई नाक पसंद है?”

फिर वोगेलस्टाइन को बोर्हेस का दूसरा पत्र मिलता है,

“एक अनुवादक के रूप में तुम न केवल भयंकर हो, बल्कि एक प्लास्टिक सर्जन के रूप में ख़तरनाक भी हो. तुम मामूली शरीरशास्त्र को भी नहीं जानते. तुमने अपनी सर्जरी से मेरी कहानी का चेहरा नहीं बदला है, बल्कि मेरी कहानी में एक ऐसी बेकार की पूँछ जोड़ दी है, जो किसी ओरांगउटान को भी अपना संतुलन बनाने के लिए काम नहीं आएगी.”³

खैर, इस बीच वोगेलस्टाइन को पता चलता है कि बोर्हेस कौन है. शर्मिंदा होकर माफ़ी माँगते हुए वह उन्हें चार पत्र भेजता है. लेकिन बोर्हेस उन पत्रों का कोई जवाब नहीं देते. जब वोगेलस्टाईन अपने पाँचवें पत्र में व्यक्तिगत रूप से माफ़ी माँगने के लिए ब्यूनस आयर्स आने का इरादा जताता है, तब बोर्हेस के सचिव या उनकी माँ द्वारा लिखा पत्र उसे मिलता है. उस पत्र में कहा गया है कि बोर्हेस ने उसे माफ़ कर दिया है, लेकिन वोगेलस्टाईन को उनसे दूर ही रहना चाहिए.

यह मज़ेदार मामला पढ़ते समय वह संयोग वाली बात हुई, जिसके बारे में मैंने शुरू में लिखा है. मुझे एफ़्रेन क्रिस्टल द्वारा लिखित पुस्तक ‘इनविज़िबल वर्क : बोर्हेस एंड ट्रांसलेशन’ मिली. इस पुस्तक में अनुवाद पर व्यक्त हुए बोर्हेस के विचारों को पढ़कर मुझे लगा कि अगर वोगेलस्टाइन ने यह किताब पढ़ी होती, तो उसे अपने द्वारा की गई तोड़-मरोड़ के लिए इतना अपराधबोध महसूस नहीं होता.

 

 

7.

एफ़्रेन क्रिस्टल कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में तुलनात्मक साहित्य विभाग के प्रमुख हैं. वे स्पेनिश के प्रोफ़ेसर भी हैं और विशेष रूप से बोर्हेस के विशेषज्ञ भी माने जाते हैं. उपरोक्त गंभीर पुस्तक की प्रस्तावना में, क्रिस्टल का कहना है कि जिस तरह किताबें और पठन, विश्वकोश, दर्पण, बाघ और भूलभुलैया (लैबरिंथ) आदि बोर्हेस की साहित्यिक दुनिया के केंद्र में हैं, उसी तरह, बल्कि उससे ज़्यादा महत्वपूर्ण स्थान उसके अनुवाद संबंधी विचार-विमर्श का है. उनकी कई कहानियों में अनुवादकों को नायक के रूप में दिखाया गया है, और कई कहानियों को काल्पनिक अनुवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है.

प्रस्तावना में आए एक अन्य संदर्भ से पता चलता है कि बोर्हेस को अपना ख़ुद का अनुवाद कार्य कितना महत्वपूर्ण लगता था. अपने एक व्याख्यान के आयोजकों को अपनी जीवनी संबंधी जानकारी भेजते समय बोर्हेस ने सबसे पहले फ़्रांत्ज़ काफ़्का, वर्जीनिया वूल्फ़, विलियम फ़ॉकनर के अनुवादक के रूप में अपना उल्लेख किया था और उसके बाद अपने प्रकाशित साहित्य के बारे में जानकारी दी थी.

क्रिस्टल की यह पुस्तक तीन प्रकरणों में विभाजित है. पहले प्रकरण ‘बोर्हेस ऑन ट्रांसलेशन’ में क्रिस्टल ने अनुवाद पर बोर्हेस के विचार प्रस्तुत किए हैं. यह प्रकरण बोर्हेस के इस संदर्भ में कुछ लेख और कई साक्षात्कारों के माध्यम से व्यक्त उसके विचारों पर आधारित है.

दूसरा प्रकरण ‘बोर्हेस ऐज़ ट्रांसलेटर’ में बोर्हेस के अनुवादों का जायज़ा लिया गया है. और तीसरे प्रकरण ‘ट्रांसलेशन इन द क्रिएटिव प्रोसेस’ में बोर्हेस का रचनात्मक साहित्य और उसके अनुवाद विमर्श के बीच संबंधों की पड़ताल की गई है. इसके पहले प्रकरण में बोर्हेस ने जो अनुवाद संबंधी लोकविलक्षण मत व्यक्त किए हैं, वे अब तक मेरी पढ़ी गई अनुवाद संबंधी चर्चा को सर के बल खड़ी करने वाले हैं. इस टिप्पणी के बहाने मैं उनका सारांश प्रस्तुत कर रहा हूँ.

बोर्हेस का सबसे चर्चित मुद्दा यह है कि उनके अनुसार अनूदित रचना मूल रचना को पीछे भी छोड़ सकती है, और इसके लिए यदि अनुवादक उसमें कुछ जोड़ता या घटाता है, तो इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है.’ इसके पीछे उनकी धारणा यह है कि मूल रचना कोई बाइबल की तरह पवित्र या अपरिवर्तनीय वस्तु नहीं होती. उसका लेखक कोई सर्वांग परिपूर्ण (superior being) व्यक्तित्व नहीं होता. वह भी एक त्रुटिपूर्ण और ग़लती करने वाला इंसान होता है. संभव है कि उसने अनेक बातों की अनदेखी की हो, जो उसकी मूल रचना को पूर्णत्व की ओर ले जा सकती थीं. एक अच्छे अनुवादक को ऐसी संभावनाओं पर विचार करना चाहिए और रचना को बेहतर बनाने के लिए परिवर्तन और परिवर्धन से परहेज़ नहीं करना चाहिए.

बोर्हेस के अनुसार अनूदित रचना को गौण मानना मूल रचना को ‘मानक’ मानने की ग़लत धारणा पर आधारित है. वास्तव में ‘मानक रचना’ ऐसी कोई चीज़़ नहीं होती और मूल रचना तथा अनूदित रचना के बीच का अंतर मूल रचना की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है. साथ ही, बोर्हेस को यह भी नहीं लगता कि ऐसा अंतर मूल रचना के साथ ‘धोखाधड़ी’ है. उनका कहना है कि जिस तरह एक लेखक अपनी रचना को बेहतर बनाने के लिए उसके अलग-अलग प्रारूप बनाता है, उसी तरह अनुवादक को भी मूल रचना को एक प्रारूप समझकर उसे संशोधित करने की स्वतंत्रता ले लेनी चाहिए.

ग़ौरतलब है कि बोर्हेस ने अपने अनुवादकों को अपने साहित्य के अनुवाद में यह स्वतंत्रता प्रदान की है. क्रिस्टल लिखते हैं, जब स्पैनिश अनुवादक नेस्टर इबारा ने बोर्हेस की कहानियों-कविताओं का कुछ बदलावों के साथ फ़्रेंच अनुवाद किया, तब बोर्हेस ने उनका न केवल स्वागत किया, बल्कि इन बदलावों के लिए कृतज्ञता भी प्रकट की. क्रिस्टल यह भी लिखते हैं कि बोर्हेस को अपने साहित्य के मूलनिष्ठ जर्मन अनुवादों की तुलना में अंग्रेज़ी और फ़्रेंच अनुवाद अधिक पसंद थे, क्योंकि उनमें अधिक स्वतंत्रता ली गई थी. इसी नेस्टर इबारा द्वारा किए पॉल वैलेरी की फ़्रेंच कविताओं के स्पेनिश अनुवाद बोर्हेस को मूल कविताओं की तुलना में बेहतर लगते हैं, और बोर्हेस की टिप्पणी है कि इसकी कुछ पंक्तियाँ मूल फ़्रेंच पंक्तियों की तुलना में वैलेरी की काव्य दृष्टि को अधिक बेहतर ढंग से पकड़ती हैं. एफ़्रेन क्रिस्टल ने यह भी याद किया है कि बोर्हेस को ‘डॉन किहोते’ का किशोरावस्था में पढ़ा अंग्रेज़ी अनुवाद बहुत पसंद आया था, और जब बाद में उन्होंने इसे मूल स्पेनिश में पढ़ा, तो उन्हें वह एक ‘ख़राब अनुवाद’ लगा था!

इस टिप्पणी का समापन मैं एफ़्रेन क्रिस्टल द्वारा दिए गए बोर्हेस के उद्धरण से करना चाहूँगा :

An original can be unfaithful to a translation.
मूल रचना अपने अनुवाद के प्रति अप्रामाणिक हो सकती है.

________________

१. यह लेख ‘समालोचन’ के लिये भेजते वक्त एक दुखद समाचार मिला कि अभी कुछ ही दिन पहले, ३० अगस्त २०२५ के दिन लुइस फर्नांडो वेरिसिमो का निधन हुआ. वे ८८ साल के थे.
२. बोर्हेस की अंग्रेज़ी में अनूदित पहली कहानी इसी पत्रिका में 1948 में प्रकाशित हुई थी.
३. यहाँ ओरांगउटान का ज़िक्र भी प्रासंगिक है. वोगेलस्टाइन (और बोर्हेस भी) जिस एडगर एलन पो के प्रशंसक है, उसकी ‘मर्डर्स इन द र्यू मॉर्ग्य’ (1941) को अंग्रेज़ी साहित्य में पहली जासूसी कहानी माना जाता है. ओरांगउटान उस कहानी का एक महत्वपूर्ण पात्र है.

संदर्भ :
 With Borges: Alberto Manguel, Thomas Allen Publishers, 2004.
Borges and Eternal Orangutans, Luis Fernando Verissimo, (Tr.) Margaret Jull Costa. New Directions, 2004.
Invisible Work: Borges and Translations, Efrain Kristal, Vanderbilt University Press, 2002.

 

जयप्रकाश सावंत 
जन्म १९४८, मुंबई.
अस्सी से ज़्यादा समकालीन हिंदी कहानियों के मराठी में अनुवाद. साथ में अनेक कविताओं के और एक  उपन्यास का भी.  उदय प्रकाश और रघुनंदन त्रिवेदी के कहानियों के अनुवाद पुस्तक रूप से प्रकाशित. अलका सरावगी के उपन्यास ‘कलिकथा वाया बायपास’ के अनुवाद के लिए साहित्य अकादेमी का अनुवाद पुरस्कार. पुस्तकों और लेखकों के बारे में मराठी में स्वतंत्र आलेखों का एक संकलन ‘पुस्तकनाद’ शीर्षक से प्रकाशित, जिसका हिंदी अनुवाद भी प्रकाश्य है.
ई-मेल : jsawant48@gmail.com
गोरख थोरात
1969
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार भालचंद्र नेमाड़े के ‘हिंदू-जीने का समृद्ध कबाड़’ से अनुवाद कार्य प्रारंभ. भालचंद्र नेमाड़े के साथ-साथ अशोक केळकर, चंद्रकांत पाटील, महेश एलकुंचवार, अरुण खोपकर, दत्तात्रेय गणेश गोडसे, रंगनाथ पठारे, राजन गवस, जयंत पवार, अनिल अवचट, मकरंद साठे, अभिराम भड़कमकर, नरेंद्र चपळगाँवकर, मनोज बोरगाँवकर समेत अनेक साहित्यकारों की करीब चालिस रचनाओं का अनुवाद. रजा फौंडेशन के लिए साहित्य-कला आलोचना संबंधी अनेक पुस्तकों का अनुवाद.
महाराष्ट्र राज्य हिंदी अकादमी मामा वरेरकर अनुवाद पुरस्कार, अमर उजाला ‘भाषा बंधु’ पुरस्कार, Valley of Words International Literature and Arts Festival, 2019 Dehradun का श्रेष्ठ अनुवाद पुरस्कार, बैंक ऑफ बड़ोदा का राष्ट्रभाषा सम्मान आदि   से  सम्मानित.
gnthorat65@gmail.com
Tags: 2025गोरख थोरातजयप्रकाश सावंतबोर्हेस
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Comments 4

  1. निशांत कौशिक says:
    2 months ago

    सुंदर, व्यवस्थित, संजीदा और सुपाठ्य।
    इतनी सारी दिलचस्प जानकारियाँ और उतने ही नए पहलू बोर्हेस के बारे में ।

    अन्य लेखकों के बारे में उनकी टिप्पणी मिलती तो कुछ पता चलता कि वे कौन से पूर्वाग्रह हैं या सनक है जो टॉलस्टाय से लेकर मार्केस तक के लिए उनके मन में थे।

    इसका अनुवाद इतना सहज है कि लगता ही नहीं यह मूलतः मराठी में लिखा गया है।

    लेखक, अनुवाद और समालोचन सभी का बहुत आभार

    Reply
  2. Teji Grover says:
    2 months ago

    जितना शोधपरक और विद्वता पूर्ण यह आलेख है उतना ही पठनीय और दिलचस्प भी। बल्कि ऐसा लगने लगता है मानो आप BORGES की रची अनूठी दुनिया में अनायास भटक आये हैं और उनकी किसी कहानी को जी रहे हैं। मेरे आसपास का माहौल, पेड़, किताबें, गिलहरी की चिचियाहट सभी रूपांतरित हो गए मेरे लिए आज सुबह!!

    मुझे यह मालूम नहीं कि जो पाठक Borges से परिचित नहीं हैं इस आलेख का उनका पठन अनुभव क्या होगा, लेकिन मुझे लगता है कि यह तहरीर हर पाठक को बेतरह सम्मोहित कर जाने वाली है। Borges के पाठकों के लिए भी यह आलेख कम महत्वपूर्ण नहीं है। जिन किताबों का ज़िक्र इसमें है और Borges को पढ़कर सुनाने वालों के जो अनुभव इसमें दर्ज हैं , अनुवाद के विमर्श में जो Borgesian आयामों की झलक है, उनके चलते मुझे लगता है कि बहुत से पाठको की Borges यात्राएँ भी अधिक सम्पन्न होंगी।

    जयप्रकाश सावंत और गोरख थोरात दोनों का तहे दिल से आभार

    Reply
  3. पवन करण says:
    2 months ago

    मैं उस भाषा में मरना नहीं चाहता जिसे मैं नहीं जानता।

    कमाल का लेख है इसके लिए जयप्रकाश जी और थोरात जी दोनों का आभार।

    अनुवाद पर क्या शानदार उदारता है कि वाह।

    Reply
  4. Vishnu Nagar says:
    1 month ago

    बहुत अच्छा और बहुत महत्वपूर्ण आलेख। साधुवाद।

    Reply

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