चरवाहे की कविताएँ |
१)
एक चरवाहे की प्रेम कथा
(मैग्नोलिया और उसके प्रेमी चरवाहे के लिए)
चरवाहे को तो मारा जा सकता था लेकिन जंगलों से लौटकर आती
उसके बाँसुरी के संगीत को नहीं
आज भी नदी झरनों पत्तों की अदृश्य पदचापों से होकर आता है चरवाहा
पूर्ववत बाँसुरी की उन्हीं धुनों की स्मृतियों पर डग भरते हैं उसके मवेशी.
आए तो थे वे अंग्रेजियत को पूरे गाँव के खून में उतारने
लेकिन उनकी अपनी ही खून की रगो में दौड़ गया चरवाहे का प्यार
भला इस गुलामी से कौन सा बादशाह बचा है दुनिया-जहाँ में?
ब्रितानी अफ़सर की नाजुक बेटी जंगल के पथरीले रास्तों को पार करते
कोठी के दीवारों को चीरकर पहुँच जाती
उस अनाम सम्मोहक धुन की तितली को पकड़ने के लिए दौड़ उठती
साल और महुआ की देह से पीठ टिकाए
निष्काम निर्लिप्त आँख मूँदे चैन की बंसी बजाता रहा चरवाहा
बांसुरी के छेदो से जंगल की साँसों की धुन बजती रही
अब उसमें एक और साँस भी शामिल हो चुकी थी.
अपने केशों में अपना पूरा एकांत गूँथकर लाती थी वह
सूर्योदय की किरणों के साथ आता था उसका प्रेम और साँझ ढलते
खो जाता था सघन जंगल में कहीं
अब केवल चरवाहा नहीं कोई और भी खोने लगा
बाँसुरी की धुन, महुआ की गंध और जंगल की हवा के साथ घुलकर
बहता हुआ दोनों का प्रेम पहुँच गया गाँव से होकर गोरे अफ़सर तक
फूट डालकर नहीं जीता गया जब प्रेम तो उसने
जंगल से उसकी सम्मोहक धुन लूटने की ठानी
वह पहाड़ के उस टीले को नहीं हिला सकता था
सघन उग आए उस बेहया जंगल को नहीं रौंद सकता था
बाग से बसंत नहीं चुरा सकता था
नदी से नहीं हटा सकता था उसकी कल-कल ध्वनि को
इसलिए उसने चरवाहे को छीन लिया जंगल से
चरवाहे की याद में
सफेद घोड़े पर सवार उसकी दूर देश की प्रेमिका ने
जंगल की खाई से कूदकर अपनी जान दे दिया
अब दुनिया की कोई सत्ता अलग नहीं कर सकती उसे उसके चरवाहे से.
२)
चरवाहे का गीत
खानाबदोश था मेरा आदिम चरवाहा
वह घर नहीं चरागाह बदलता था
उसके लिए खुद की भूख और
उसके पशुओं की भूख बराबर हुआ करती थी
गीत गाता हुआ वह जंगलों को पार करता
नदियों में अपने पशुओं के साथ नहाता था
नदियों को आस-पास लिए रहता था वह
उसके लिए उसकी प्यास और
उसके पशुओं की प्यास बराबर हुआ करती थी
उसके हाथ में उसके ईश्वर की लाठी थी
जिससे वह अंत तक अपने पशुओं की रक्षा करता था
उसके लिए उसकी जान और
उसके पशुओं की जान एक ही थी
एक अच्छा चरवाहा अपने पशुओं के लिए
अपनी जान भी दे सकता.
३)
चरवाहे की थाप
आहट पाकर चिहुँक कर उठ जातीं
उसकी मौजूदगी की आश्वस्ति में झपका लेती हैं पलकें
पैरों के कदम-ताल की लय पहचानती हैं
सुनती हैं उसकी हर आवाज़
चीन्हती हैं सभी इशारों को ,
चरवाहे की भाषा बूझती हैं भेड़-बकरियाँ.
में-में से सुबह करती हैं
बाड़े से खुलते ही फूलों-सी बिखर जातीं
वसंत की तरह छा जाती हैं घास के मैदान में
ओस से सनी घास बस ऊपर से ही खाती हैं
अमृत-सा दूध देती हैं
और चरवाहे की मजबूरी में माँस के बदले
पैसों में कीमत भी अदा करती हैं वफ़ादारी की.
अपनी बाल की खाल में
न जाने कितनी ऊष्मा छिपाये होती हैं
चमड़े में बहुत सारी कोमलता और दूध-सा मीठा खून
घात लगाए भेड़िया देखता है दूर से
समझता है चरवाहे और मवेशियों के बीच की दूरी को.
अनमने नींद में हर थिरकन हर कुनमुनाहट
भाँप लेता है चरवाहा ,
एक भी मेमना ले नहीं जाने देगा अबकी
हाँकने वाली लाठी भाँजने को रखता है तैयार
यह बात जानती हैं निश्चिंत चर रही भेंड़-बकरियाँ.
४)
कंपनी की गाड़ी
संकट में सोने की चूड़ी और बाली बेचने के बाद
थोड़े बचे-कुचे खेत भी बेचने के बाद
झुके कंधे की बोझ पर ढोए गये चारे बेचने के बाद
जब कुछ नहीं बचता तब वह
मवेशियों को बेचने का दु:स्वप्न देखता है.
वह ग्वाला अपने बच्चे बेच रहा या अपनी गाएँ
पहले वह दूध बेचा करता था.
गाँव के आखिरी तक पहुँच चुकी है सड़क
जिस पर कंपनी की गाड़ी दौड़ती है अब
जिस सड़क से मेरे पशु निर्बाध निर्भय जाया करते थे.
सुना है बड़ी कंपनी ने खरीद लिया जंगल
सरकार भी शायद गरीबी और तंगी में होगी
अब न खेत बचे न चरागाह न जंगल
क्या खिलाकर जिलाया जाएगा मवेशियों को ?
उनकी गाड़ी के हॉर्न से
मेरे मवेशी भयभीत और अराजक हो जाते हैं
दूर से देखकर ही भागने लगते दूर
बड़ी-बड़ी आँखें उचका कर देखते हैं
इनके जो साथी गए वे कभी लौटे नहीं उनके पास
जो खेत चर कर साथ लौटते थे पहले.
भेड़ियों के घात की आहट पर भी जो पशु
चरना स्थगित नहीं किए
वे अब एक जगह नहीं रुकते हैं देर तक
उस पार बहुत नज़दीक से झाँक रहा है वह
मैं अपने मवेशियों को खूंखार जंगली जानवरों से बचा भी लूँ
पर शहर के बाजार से आती कंपनी की गाड़ी से कैसे बचाऊँ ?
५)
चरागाह से लौटते हुए
सदियों से हम झुंड में ही निकला करते हैं
सुबह से शाम तक तुम सबकी चरवाही के लिए ,
सोचता हूँ क्या मेरे और तुम्हारे पूर्वज एक थे
जो मेरा और तुम्हारा पैतृक प्रेम रहा ?
कोई आदिम नाता जरूर होगा हमारी तुम्हारी जान में.
साथ-साथ रहना बच्चों, एक पास चरना
जान है तो चरागाह है
एक के साथ पीछे-पीछे चलना तुम
कोई बुराई नहीं है तुम्हें अपनी झुंड पर भरोसा करने में
तुम पशु हो इंसान थोड़ी हो मेरे बच्चों.
झुंड समूह से अलग मत होना
जब तक हम एक साथ हैं भेड़िया डरेगा हमसे
साथ-साथ चलने से भय नहीं लगता है
दूरी नहीं लगती है, संशय नहीं होता है
आसान हो जाती है राह
साथ-साथ चलने से बच्चों.
यही रास्ते बाड़े और घर तक जाएंगे
हम जहाँ भयहीन रहा करते हैं.
६)
चरागाह में कब्र
उतना चर लेना चाहती हैं वे घास
जितना अपने चरवाहे के बाद बच्चों के लिए भी
बचा सकें दूध
उतना घूम लेती हैं घास का मैदान
जितना बाड़े की बाद की दुनिया होती है उनकी
चरवाहे की दौड़ भी बाड़े से चरागाह तक
एक-एक मवेशी की उसके लिए अलग पहचान है
झुंड में भी ढूँढ़ लेता किसी एक को
कोई एक पशु भी झुंड जितना ही पशु होता
चर रहे पशुओं के झुंड से
एक पशु के खो जाने का दुख
पूरे पशुओं के खो जाने-सा
होता है किसी चरवाहे के लिए.
चरागाह में बिखरे अपने पशुओं को
राजा विक्रमादित्य-सा
सिंहासन बत्तीसी वाले घास के टीले पर बैठे
न्यायपूर्वक देखता है
कि सब बराबर चर रहीं हैं या नहीं
उसी चरागाह में दफ़्न है उन पशुओं की पूर्वजों के शरीर
जिनको दफनाते समय शिशु पशु को दूर रखा जाता
विडंबना यह है कि वह अपने माँ की कब्र के ऊपर की
घास चरने आ ही जाता है.
पहले चरागाह में कब्रें होती थीं
अब कब्रों में चरागाह है
धीरे-धीरे हमारी पृथ्वी कब्रगाह हो रही है
और चरागाह दफ़्न होते जा रहे उसमें
धीरे-धीरे पृथ्वी से चरागाह खत्म हो रहे
लिहाज़ा चरवाहे भी गुम हो रहे धीरे-धीरे
और कुछ दिन बाद
सभी गाएँ भी चली जाएँ पृथ्वी से
किसी कब्र से होते हुए गोलोक.
७)
अहिरानटोला
गाय के रंभाने से शुरू होता है दिन
और सोने से पहले एक तसल्ली की नज़र से खत्म
और बीच में सानी-पानी
मैदान-मैदान चरवाही होती.
अहिरानटोला में जब कभी किसी बच्चे के दोस्त आते
तो मुँह बिचकाते हुए आते
पकी ईंटों की जमीन को बुहारने के बाद भी
गोबर की एक परत और एक गंध रह ही जाती थी
और सच बताऊँ तो उस सुगंध के साथ हमारी पहचान भी
गाहे-बगाहे कह ही दिया जाता था कि
बुद्धि घुटनों में होती है हमारी ओर कई बार
अकेले में बचपन में सोचता था कि क्या सचमुच है
फिलहाल समय के साथ ‘बुद्धि बहुत चलती है तुम्हारी’ भी सुना
और तब पता चला कि बुद्धि बराबर ही बँटी थी सबमें
वैसे परंपरा में देखें तो इस विशेषण के लिए
अहिरों के अलावा औरत जात भी सहोदर रही.
सुबह-सुबह ग्वाले और शुद्ध दूध के खोजी खरीददार
हमारी चौखट पर घंटों खड़े दिखते थे
सबकी निगाह उस बाल्टी पर ही होती थी
तौलते समय झाग का भी हिसाब होता था मपनी में
और इस तरह मछली बाज़ार के समक्ष दूध बाज़ार
एक विनम्र प्रतिस्पर्धा देता था.
दूध दुहने के बाद जब बछड़ों को खोला जाता था
तो उनके साथ पहुँच की दौड़ होती थी मेरी
बचपन में गाय की थन से बछड़े के साथ एक हिस्सेदारी में
मैं भी दूध पीने को दौड़ता था.
दोपहर को नहलाना-धुलाना और
नीम की बहारन के धुएँ से संझौती होती थी
तीन गाएँ थीं अपनी–
काजल, आँचल और बादल
नागिन सी पूँछ हिलाते हुए
ठुमक कर चलती थीं तीनों एक दूसरे के पीछे
खुरों की धूल से गोधूलि करते हुए
एक बार जो झाँको तो सिर उठाए पास चली आती थीं
पहचानती इतना थीं कि जिसका नाम पुकारो
वही देखती थी और दो तीन बार बुलाने पर
सभी ताकने लगती थीं
मानो कोई सामूहिक प्रयोजन हो.
दीवाली का पहला दिया
गउशाले और गोबर की ढेर पर रखा जाता था ,
तीज-त्योहारों की मेहँदी का टीका
सफेद बादल के माथे पर छपा दिखता था
काजल का रंग काला था और आँचल ललछौं थी.
परिवार में बराबर की हिस्सेदारी थी इनकी
समय पर चारा न मिलने पर मुँह उठाकर ताकतीं
राह-जोहतीं, पुकारतीं , दुहने के समय खुद-ब- खुद
हिलने डुलने लगतीं और न आने पर भूमि पर
दूध की बूँदें चुआना शुरू भी कर देती थीं मानो एक धमकी हो.
मेहमान दही का शरबत ही खोजते हैं अहिरानटोला में
और नात-बात घी और रबड़ी
मिठाई के नामपर जरावन हलुआसोहन ही भाता है मुझे
सारी वाली दही की खोज में तो
कितने दूर-दूर से लोग आ जाते थे ,
मिट्टी के हंड़िया में सोन-सोन जमती
गोइंठा के आग और धुएँ में घुल मिलकर
तैयार होती थी अहिरानटोला की दही
और जब रबड़ी के बाद जरावन से निकलता था घी
टोला-मुहल्ला किसी दैवीय गंध से सुवासित हो जाता था.
आँचल बीमार पड़ के गई और बादल अचानक गई
जब काजल का समय आया तो घर में
पिताजी का खाना-पीना कम हो गया था
बहुत दिनों तक तो पिताजी दूध भी नहीं पिए
काजल के जाने के बाद घर में उस साल गाय नहीं आई
पर विश्वसनीयता वाले ग्राहक पहुंच आते थे.
अहिरानटोला में गाय भैंसे हमेशा रहीं
हमारे यहाँ ब्याह शादी दरवाज़े पर बँधी गाय देखकर हो जाती थी
मुसीबत के दिन में पड़ोसी दूध बाँट लेते थे
और दूध का क़र्ज़ लिए बड़े हुए हैं
यहाँ के बच्चे और बूढ़े.
८)
खूँटे के आस-पास
वहीं खूँटे के आस-पास से बिखरा गोबर उठातीं
पहले घर-आँगन और दुअरा लीपतीं
फिर बाहर की दीवारें
थोड़ी सी मिट्टी मिला लेतीं और दीवार के लिए गेरुआ
और फिर काढ़ देतीं फूल-पत्ती-चिड़िया
कलाओं की सुगढ़ता में अनगढ़ जीवन छिप ही जाता है
नौकरी पर जाने वाली स्त्री उनके लिए कुलहीन रहीं
पर उन्हें जाते हुए बड़े आश्चर्य से देखतीं वे
खाँटी घरेलू औरतों को शहर में होम मेकर कहते हैं
गाँव में इन्हें आँगन का खूँटा कहते हैं
गोबर पाथकर महला दूमहला बना देतीं
और पियराई सरसों का फूल लाकर खोंस देतीं ऊपर
सर्फ से मल-मल कर हाथ का मैल छुड़ा लेतीं
पर कोहनी की कजरी का निशान ?
सोने की चूड़ी में थोड़ा गोबर लगा ही रह जाता
जिससे पता चल जाता कि वे गोबर पाथकर घर चलाती हैं
आते जाते हुए किसी सहेली द्वारा पेड़ू के दर्द पूछने पर
आँचल का कोर दाँत से दबाए खिसियाकर हँस देतीं
और फिर गोइठा पाथने लगतीं
दुख नहीं खत्म होता खांची का गोबर खत्म हो जाता
तो फिर वापस खूँटे के पास जाकर गोबर उठा लातीं
गाँव में कहते थे कि खूँटे के पास लक्ष्मी वास करती है.
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पहली पढ़त में ही बांधने वाली कविताएं। विशिष्ट श्रम से जुड़े समुदाय या जाति को केंद्र में रख कर लिखी कविता में यह देखना होता कि वह श्रम के स्थान पर समुदाय की कविता न बन जाए। ये कविताएं श्रम को केंद्र में रखकर आगे बढ़ती हैं, जो सुन्दर दृश्य है। कवि को बधाई और शुभकामनाएं।
सही कहते हो शिरीष भाई , लेकिन समुदाय की गंध भी चाहिए पाठक को! वर्ना वह रिपोर्ट जैसी लगने लगती है.
मुझे अपने वो दिन याद आ गए जब हम एक ही गांव के पांच छह लड़के अपने अपने मवेशियों को लेकर निकल पड़ते नदी के किनारे किनारे खुले घास के मैदानों में चरते पशु और हम लटका देते रोटी वाला झोला किसी पेड़ की टहनी पर कभी नदी में नहाना और कभी हंसी मजाज़। चरवाहा अपनी जिंदगी का बादशाह होता है।
केतन यादव भाई की कविताओं ने मुझे मेरे वो दिन याद करवा दिए। यह बहुत सुंदर लगीं हैं मैने बुकमार्क कर ली हैं फिर पढ़ने के लिए।
जतिंद्र औलख
लिजलिजे प्रेम, मध्यमवर्गीय कुंठाओं,नकली प्रतिरोध, समकालीन मुहावरे के दबाव से मुक्त ये कविताएं स्वागत योग्य हैं कहीं कहीं कुछ स्फीति है पर आगे जाने का माद्दा साफ़ दिखाई देता है।
Ketan Yadav की इन कविताओं को पढ़ते हुए कई बार लगा कि ये अपने अनुभव और विषय वस्तु में बहुत टटकी और भिन्न कविताएं हैं।उदय प्रकाश की बिरजित खान के अलावा प्रभात की कुछ कविताएं इस विषय पर हैं। यहां केतन की कविताएं चरवाहे के अनुभव के साथ उनकी करुणा और निरीह जीवन के अंतर्द्वंद्व को बहुत बारीकी से दर्ज कर उसे आधुनिक समय की ऐसी त्रासदी में बदल देती हैं जिसका नष्ट होना भी अब सहज सामान्य लगता है। केतन को इन मार्मिक कविताओं के लिए हार्दिक बधाई।
“खानबदोस था मेरा आदिम चरवाहा
वह घर नहीं चारागाह बदलता था
उसके लिए खुद की भूख और
उसके पशुओं की भूख बराबर हुआ करती थी”
बहुत सुन्दर, बल्कि खुद भूखे रह आर भी वह पशुओं को खिलाता है!
केतन यादव को अपनी जड़ों की पहचान है, इससे सुखद और कुछ नहीं हो सकता। काश! यह पहचान बाकी युवा लेखकों को भी होती।
Ketan Yadav इधर के युवा कवियों में मेरे पसंदीदा कवि है और उनके पास जो भाषा, बिम्ब और कथ्य है वह ज़मीनी होने के साथ अनुभव से भी उपजता है इसलिये उनके यहाँ कविता खिलती है और पूरे ज़ोर के साथ अपनी बात कहती है
ये कविताएँ सिर्फ कविताएँ नही बल्कि इस ग्लोबल समय में एक अलग दुनिया की दास्ताँ है जो शिद्दत से ध्यान बंटाती है और मेनस्ट्रीम में पुख्ता तरीके से अपनी बात कहने और सुने जाने की माँग करती है
युवा मित्र और पुत्रवत केतन को शुभाशीष
ग्रामीण संस्कृति जहां मवेशियों को घर का सदस्य और लक्ष्मी माना जाता है। उस घर, आंगन, गौशाला, और अहिराने जैसे माहौल की सुगंध से भरी सभी कविताएं आपको एक अलग दुनिया से परिचय करती हैं। केतन को इस विषयवस्तु के इर्द गिर्द कविता रचने के लिए बधाई। आप भी इक कविता *अहिरानटोला* का एक अंश देखें…
“परिवार में बराबर की हिस्सेदारी थी इनकी
समय पर चारा न मिलने पर मुँह उठाकर ताकतीं
राह-जोहतीं, पुकारतीं , दुहने के समय खुद ब खुद
हिलने डुलने लगतीं और न आने पर भूमि पर
दूध की बूँदें चुआना शुरू भी कर देती थीं मानों एक धमकी हो.”
वाह वाह केतन !
अच्छी कवितायें
ताजे और टोटके बिम्ब के साथ भाषा पर शानदार काम किया है चेतन ने।
लोक जीवन में रचे बसे ताने-बाने के साथ जीवन की जद्दोजहद और श्रम के बीच चरवाहे और पशुओं के बीच व्यापक रूप से बैचेनी को बहुत ही सुघड़ शिल्प के साथ चरवाहे की कविताएं पहली बार में ही ध्यान खींचती है।
बहुत शुभकामनाएं केतन
युवा कवि एवं भावुक हृदय केतन यादव जिनकी दुनियावी समझ दिनोंदिन और भी ज़्यादा गहरी होती जा रही है। उनकी रचना प्रक्रिया की कच्ची ज़मीन पर जीवनानुभवों की विशिष्ट छाप है। हाल की इन सारी कविताओं में भावों का उतार चढ़ाव भीतर तक छू जाता है। विशेषकर अंत की दोनों कविताएँ “अहिरानटोला” और “खूंटे के आसपास” पढ़कर तो कोई भी भाव विह्वल हो जाए।🌼 बहुत सुंदर ऐसे ही रचनाक्रम जारी रहे।💐😊