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Home » प्रियंका दुबे की कविताएँ

प्रियंका दुबे की कविताएँ

‘प्रेम जितना करुणामय रहा/प्रेमी उतना ही निर्मम’. ‘नो नेशन फ़ॉर वुमन’ की लेखिका और बीबीसी की पत्रकार प्रियंका दुबे की रचनात्मकता के कई आयाम हैं, उनका गद्य पिछले दिनों आपने पढ़ा, और अब ये कविताएँ प्रस्तुत हैं. प्रेम कविताएँ हैं. जैसे प्रेम अलग-अलग ढंग से घटित होता है वैसे ही ये कविताएँ भी अलग हैं. गहरी हैं और राग-विराग के बीच अपना शिल्प पाती हैं.

by arun dev
December 2, 2021
in कविता
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प्रियंका दुबे की कविताएँ
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प्रियंका दुबे की कविताएँ

 

1.
‘प्लेटो बेबी’

उन दिनों,
जब मुझे बहुत लाड़ आता था तुम पर
तब अक्सर मैं तुम्हें ‘प्लेटो’ बुलाती थी
‘माई प्लेटो बेबी’ की एक अनवरत रट से
बातें गूंजती थीं मेरी.

तब यह मालूम नहीं था
कि प्लेटो के सिम्पोज़ीयम1 से निकल कर अरिस्टोफ़ेन्स
सीधे यूं मेरे जीवन में उतर आएगा.
और कहेगा मुझसे कि
दरअसल मैं तुमसे प्रेम नहीं करती
बल्कि एक पूरा मनुष्य हो पाने की
तड़पती सुलगती आकाँक्षा में
अपने स्व का टूटा-छूटा हिस्सा
तुम्हारे भीतर तलाशती हूँ

मुझे नहीं पता कि
अरिस्टोफ़ेन्स सही था या ग़लत
पात्रों की निष्ठा का प्रश्न
मेरे अवचेतन से बाहर ही रहा है.

लेकिन क्या पता
मेरी नाभि का कोई टुकड़ा तुम्हारे भीतर रह गया हो ?
हम जुड़वां तो नहीं थे पिछले जन्म में?
प्लेटो के प्रेम संसार में तो वैसे भी
‘पूरा’ न होने की वेदना में डूबे प्रेमी
एक दूसरे में आधा-आधा रहने वाले
जुड़वां ही होते हैं.

सिम्पोज़ीयम लिखे जाने के ढाई हज़ार साल बाद
आज, हम इतने दूर हैं.

लेकिन जब भी मुझे सवालों के जवाब नहीं मिलते
तो गूगल और किताबों से हारने के बाद
बरामदे में बैठी हुई अक्सर सोचती हूँ
कि तुमसे ही क्यों नहीं पूछ लेती !

क्योंकि तुम तो मेरे बेबी प्लेटो हो.
एंड माई प्लेटो नोज़ एवरीथिंग !

1-सिम्पोज़ीयम प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक प्लेटो की मशहूर कृति है. अरिस्टोफ़ेन्स इस कृति के प्रमुख पात्र हैं.

 

 

2.
सृजक के लिए

प्रेम जितना करुणामय रहा
प्रेमी उतना ही निर्मम

हवा में छूटे प्रश्नचिन्ह
सांस थामें यूं लटकते रहे हैं
जैसे खुद हों अपनी हत्या को आतुर

प्रेम की जड़ें आख़िर कितनी गहरी?

टटोलते टटोलते जड़ों के सिरे को
पृथ्वी के हृदय में आर-पार का सुराख़ कर आयी हूँ.

औंधे लेट कर जब भी
दिन के हिस्से वाली धरती से चीखती हूं
तो रात वाले हिस्से की तरफ़ उठती है गूंज.

लेकिन प्रेमी?
वह तो सिर्फ़ तुम थी.
करुणामई, निर्मम.
हर आघात में…हर प्रेम में…
अपना ही विलोम.

और तुम?
सिर्फ़ सृजक रहे हमेशा.

patrick meylaerts: the lucid

 

3.
दुखों से ऊँचा देवदार

जीते हुए
इतनी क्रूर चीखें कानों में इकट्ठा कर चुकी थी
कि जब तक उसके पास पहुँचती
तब तक
आंसुओं और लार के बीच मौजूद
गालों की खाई मिट चुकी होती थी.

लेकिन नज़दीक आ,
जब भी सिर उठाकर देखा उसे तो लगा
मेरे दुखों से कितना ऊँचा है यह देवदार!

मैंने हमेशा चाहा था उस एक लड़के को
देवदार के तने से लगाकर चूमना
तब भी लगता था जैसे सिर्फ़ देवदार ही है
जो सह पाएगा उस पर टिके
हमारे प्यार भरे जिस्मों का भार.

अब जब हम दूर हैं
तब भी लगता है
कि सृष्टि के आंसुओं के बोझ
अपनी झुकी डालों पर उठाने वाला यह देवदार
मेरे नसों पीड़ा को भी सोख लेगा.
शिमला के इस पहाड़ पर,
सैकड़ों साल पुराना यह देवदार ही मेरा हमदम है.

सिर्फ़ ढाई सौ फुट नहीं,
दुखों से ऊँचा देवदार.

 

4.
पसलियाँ

वो ख़्वाब था शायद
जब कहा था तुमसे
जब भी मिलती हूँ
तो दिल जैसे
मेरे ‘रिब-केज’ से बाहर आने लगता है

“रिब-केज से बाहर?
अरे! कहीं तुम्हारी पसलियाँ ग़ायब तो नहीं हुईं?
या शायद कम हो गयी हैं?”
कहते कहते तुमने
मेरी पसलियों को गिनना शुरू कर दिया.

मैं?
मैं तुम्हारी गर्दन में बाहें डाले खड़ी
तुम्हारी काली शर्ट में अपना चेहरा छिपा कर
हंसती रही
और फिर हंसती ही रहती हूँ यूं सारी दुपहर

और तुम ?
तुम ‘एक-दो-तीन’ की धुन पर
चुम्बनों के निशान खींचते हुए
गिनते रहे मेरी पसलियाँ
सारा दिन …

मैं इतने प्रेम में हूँ
की तुम्हारे बिना भी
काली शर्ट पहन कर
खुद ही
गिनती रहती हूँ
अपनी पसलियाँ.

 

5.
मारियाना ट्रेंच2 का कारागृह

हमारे बीच की ख़ाली जगह में
न प्रेम बच पाया था, न मित्रता.
तुम्हारी याद में इतना रोती थी मैं
कि फिर उसी याद के गुरुत्वाकर्षण से दूर जाने के लिए
प्रशांत महासागर की गहराई में गोते लगाने लगी.

वहां, मारियाना ट्रेंच की ओर तैरते हुए सोचती…
कि पृथ्वी के इस सबसे गहरे बिंदु के तल पर भी क्या
ग्रैविटी और नीचे खिंचेंगी मुझे?
और, और नीचे?

तुमने कहा था कि
पृथ्वी के गर्भ में ग्रैविटी शून्य हो जाती है.
बस, यही इक बात रटते रटते नीचे उतरती गई थी…
यहां समंदर के तल में सूरज की रौशनी भी नहीं आती.
लेकिन तुम्हारी याद का गुरुत्वाकर्षण तो
यहां भी त्रास देता रहा है मुझे.

कितने ही सालों
समंदर की अन्धेरी कोख में बैठी यही सोचती रही..
कि यह ज़रूर मेरे गहरे प्यार के दुखों का ही दोष होगा
जिसमें पृथ्वी के सीने पर मारियाना ट्रेंच जितना गहरा घाव कर दिया.

वरना, क्यों डुबोती पृथ्वी ख़ुद को तीन-चौथाई पानी में?
क्यों देती प्रशांत महासागर को जन्म?
पृथ्वी पर फैला सारा पानी प्रेम का दुख ही तो है !

शायद इसलिए तो,
मारियाना ट्रेंच के इस गहरे अंधेरे तल में भी
प्रेम की पीड़ा ग्रैविटी की तरह
मुझे खींचते रहने से बाज़ नहीं आती.

लेकिन मेरा अर्जित प्रारब्ध तो यह होना ही था…
अपनी नाभि को पृथ्वी की नाभि में मिलाते हुए,
तुम्हें इतनी गहराई से प्रेम जो किया था मैंने…

इसलिए तो, प्रेम में वापसी के लिए भी
पीड़ा का उतना ही गहरा मार्ग चुनना पड़ा है.
और अब
पीड़ा के इस एकाकी अंतः तल में
प्रेम करने की यातना से बंधी पड़ी हूँ.
यह सारा समंदर मेरा कारागृह है.

2-मारियाना ट्रेंच समुद्र में मौजूद पृथ्वी का सबसे गहरा बिंदु है.

6.
टूटे हुए तारे गिरने कहाँ जाते हैं ?

अवांछित अनचाहा प्रेम
एक ऐसा उल्का पिंड है जिसे
सृष्टि का कोई भी गृह
अपनाना नहीं चाहता

टूटे हुए तारे गिरने के लिए आख़िर कहाँ जाते हैं?
कौन सा गृह देता होगा अपनी ज़मीन पर
उन्हें जल कर बिखर जाने भर की पनाह?

सारे गृहों से मायूस लौटने पर
क्या अंतरिक्ष की काली अंधी खोह में
अनंत काल तक गिरते जाना ही
इन टूटे उल्का पिंडों की नियती होती होगी?

मैं धरती पर सुनना चाहती हूँ
इस अवांछित प्रेम का गिरना

लेकिन
इस ‘फ़्री-फाल’ में आवाज़ नहीं आती.

 

7.
ज़ीरो और इन्फ़िनिटी के बीच

मेरे सीने के क्षितिज पे सो रहे
सूरजमुखी के दो फूलों पर
आहिस्ता से अपनी हथेलियाँ सुलाते हुए
उसने उनके बीच की खाई में
अपना चेहरा छिपा लिया

जब वह भौतिकी के सवालों से जूझ रहा होता
तो सूरजमुखियों के बीच की उस खाई को
एक भागते हुए इलैक्ट्रोन का ‘वेव मैप’ बताता

और जब उपन्यास में कविता ढूँढ रहा होता
तब उन्हें
दो प्रेम पहाड़ों के बीच की घाटी कहने लगता,
हमारी निजी ‘वैली ओफ़ लव’.

लेकिन उस रात उसने
मेरे सीने पर बसी उस प्रेम घाटी में
आराम करता अपना चेहरा
धीरे से उठाया
सूरजमुखी के फूलों को चूमते हुए कहा,

‘एक ज़ीरो है, दूसरा इन्फ़िनिटी,
बस.
एक से शुरू होती है
और
दूसरे पर जाते जाते
ख़त्म हो जाती है दुनिया’.

 

8 .
मजनू

मजनू होने
और मजनू हो पाने की चाहना में
उतना ही फ़र्क़ है जितना
नींद और ख़्वाब में

इसलिए तो
हर मजनू में आशिक़ होता है
लेकिन हर आशिक़ में मजनू नहीं

क्योंकि मजनू कभी
नौकरियाँ करने या पैसे कमाने
वापस अपने शहरों को नहीं लौटा करते

वह तो विरह को खून में मिलाकर
फिरते हैं दरबदर एकाकी
और रोते हैं यूं
जैसे हंस रहे हों

मिलन की हर प्रत्याशा के उस पार तड़पते
मजनुओं के सीने में
वस्ल की तलब भी बाक़ी नहीं बचती

होती है तो सिर्फ़
प्यार से प्यार में
मर जाने की आकाँक्षा.

तुम लिखोगे मजनू
अपने आभासी गद्य में

मैं मर जाऊँगी इक़ रोज़
प्यार से प्यार में मिले
विरह को
जीते हुए.

 

9.
एक और ‘छोड़ना’

हमेशा से
इतना सब छोड़ती यूं आयी हूँ
जैसे जन्मों से सिर्फ़ एक वैराग्य की ही
प्रत्याशा में बिंधी रही

इतनो ने छोड़ा मुझे भी
जैसे विरह की छाती में धंसी मेरी नियती
जीवन से भरे दुर्लभ क्षणों में भी
मृत्यु की तरह दबे पाँव
हमेशा पीछे चलती रही हो

तुम्हारे जाने से
इस सारे छोड़ने और छूटने में
एक और छोड़ना जुड़ गया है.

दोष तुम्हारा नहीं,
कालिदास के नायकों की नाभि से जन्मी
मेरी नियती का है.

जन्मों की विरहिणी हूँ
इस प्रेम में भी
विरह ने मेरा सीना तब तक नहीं छोड़ा
जब तक मेरी छाती में
मासूम कामना की बजाय
वैराग्य नहीं उभर आया.

 

10.
गुड़

स्मृति को विस्मृत होने में कितना वक्त लगता है ?
एक लम्हा या एक जन्म ?

प्रेम के रास्ते पर लौटने में कितने जन्म लग जाते हैं ?
क्या इसका जवाब उन युगों में छिपा है …
जिन युगों में हर रोज़ तुम्हारे प्रेम के गुड़ से
मीठा हुआ करता था मन मेरा ?

अब कड़वा गुड़ और कड़वी याद कहाँ से लाऊँ ?
जो बचा है,
वह भी तो
मीठा ही है मेरे भीतर.

बाक़ी हर स्वाद माफ़ किया जा चुका है

हां,
मीठे मन के साथ ही
प्रस्थान ज़रूर कर सकती हूं,
प्रतीक्षा भी.

मन के गुड़ जितने
प्रकाश वर्ष दूर पहुँच पाने की प्रतीक्षा…

लेकिन मन के भीतर बैठे हुए भी
मन से बाहर यात्रा संभव है भला ?

फ़िलहाल ख़ुद के लिए और लेखन के लिए बीबीसी से अवकाश 
priyankadubeywriting@gmail.com
Tags: नयी सदी की हिंदी कविताप्रियंका दुबे
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Comments 13

  1. Archana Lark says:
    3 years ago

    संवाद करती हुई ठोस कविताएं। Priyanka Dubey को बहुत बधाई।

    Reply
  2. Pallavi Sharma says:
    3 years ago

    प्रियंका जी की कविताओं को पढ़ कर लगता है कि मैं उन्हें जानने लगीं हूँ, विश्वास करने लगीं हूँ उनके लिखे पे! देवदार से ऊँची हैं, बहुत असरदार!💕

    Reply
  3. मनोज कुमार झा says:
    3 years ago

    नवाचारी कविताएं।बधाई!

    Reply
  4. Firoj khan says:
    3 years ago

    इस पूरे वक़्त में प्रेम कविताओं की तो जैसे आमद ही कम हो गई है। जैसे तमाम दुश्वारियों के बीच प्रेम किसी देवदार-सा प्रतीक्षा में खड़ा है अनवरत, कि युद्ध खत्म हो तो उसके तने से चिमट जाएं दो प्यार भरे जिस्म।
    प्रियंका की ये कविताएं प्रेम की गहरी अनुभूतियों की कविताएं हैं। ऐसी कविताएं जो हमको आसपास की तमाम ‘क्षुद्रताओं’ से बाहर सिर उठाकर दुनिया को ठीक से देख लेने का इशारा करती हैं। वे दो लोगों, दो जिस्मों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि दो जिस्मों के भीतर ‘ज़ीरो से इनफिनिटी के बीच’ की यात्रा भी हैं। एकाध कविता को छोड़ दें तो ज्यादातर कविताएं तो एक ही लंबी कविता-यात्रा सी लगती हैं। जहां दो लोग एकदूसरे में, उनके जिस्मों में कोई मारियाना ट्रेंच ढूंढ लेना चाहते हैं या कि कोई सिम्पोजियम रचते हुए अरिस्टोफेन्स का किरदार हो जाना चाहते हैं। ( चूंकि प्लेटो का अरिस्टोफेन्स कैसा है, उसकी डेप्थ क्या है, मुझे नहीं पता। कविता में पढ़ते हुए उसे मैं सिर्फ कविता के हवाले से महसूस कर पा रहा हूं। जो इस किरदार को जानते हैं, उसके सामने प्रियंका की यह कविता कुछ अलग तरह से ही खुल सकती है।)

    दुखों से ऊंचा देवदार’ कविता में एक लड़की की हसरत है कि वह अपने प्रेमी को देवदार के तने पर टिकाये और उसे चूमे। तमाम कहानियों, तमाम किस्सों, दुनियाभर की ज्यादातर फिल्मों में प्रेम में डूबे दो लोगों को दिखाते वक़्त पुरुष ही स्त्री को किसी ओट का सहारा देकर चूमता है। ज्यादातर स्त्रियों की रचनाओं में भी स्त्री किरदार की हसरत प्रेम में ‘एक्टिव’ इंडिविजुअल की नहीं, समर्पण की होती है। हो सकता है कि मेरी नज़र में न आई हों, लेकिन तमाम कहानियों और सिनेमा में अगर कोई स्त्री किसी पुरुष को किसी पेड़ से टिकाकर चूम लेना चाहती है, तो अपनी कामुकता के कारण। जबकि पुरुष का चूमना प्रेम में डूबकर चूमना दिखाया जाता रहा है। इसलिए प्रियंका की यह कविता और खास हो जाती है, जो जेंडर पर बगैर किसी नारे के बात करती है।

    Reply
  5. MP Haridev says:
    3 years ago

    1. आपका प्लेटो जानकर भी अनजान है । यों आपका नाभि नाल का संबंध है । जब युवक और युवती मित्र बनते हैं तो मिलना धीरे-धीरे प्रेम में बदल जाता है । आपने कविता में यूनान के नाटककार अरिस्टोफेन्स को अपना प्रेमी बनाया । वे नाटककार हैं, लेकिन आपसे नाटक नहीं कर रहे । अपने आस पास ढूँढो । आपने उन्हें गुम कर दिया होगा ।

    Reply
  6. M P Haridev says:
    3 years ago

    2. व्यक्ति का करुणामय होना लगभग नामुमकिन है । यदि प्रेमी निर्मम है तो इसका अर्थ है कि वह शारीरिक सुख की चाह रखता है । प्रेमी के निर्मम व्यवहार से मन-मस्तिष्क को कष्ट की अनुभूति होती है । आत्महत्या करने का रास्ता सुझता है । क्या आत्महत्या करना सरल है ? कठोर बनना पड़ता है । लेकिन मेरा प्रेम अनुमति नहीं देता । प्रेमी करुणामय है । औंधे मत लेटो । उठकर देखो । प्रेम तुम्हारे सामने उपस्थित हो गया है । ‘यूँ ही रूठा न करो’

    Reply
  7. M P Haridev says:
    3 years ago

    3. दुखों से ऊँचा देवदार
    हो सकता है । लेकिन दुख तरल पदार्थ के रूप में आता है । और मेरी नसों में बहता है । मैं साधारण सांसारिक व्यक्ति हूँ । जिसे इस अवस्था से बाहर निकलने में समय लगता है । क्या क्रूरता चुप रहने वालों के हिस्से में आती है । आह भरता हूँ । धार-धार आँसू झरते हैं । प्रभाष जोशी को याद करता हूँ तो रुलायी नहीं रुकती । अप्रतिम सम्पादक और खेलों की रिपोर्टों का प्रभावशाली व्यक्ति । वे टेनिस खिलाड़ी पीट संप्रास और मार्टिना नवरातिलोवा के प्रशंसक । सचिन तेंदुलकर के विश्व रिकॉर्ड के ऐतिहासिक शतक के पूरा होने तक देर रात तक जागते रहे । शतक पूरा हुआ और प्रभाष जी के सीने में लगे पेस मेकर ने काम करना बंद कर दिया । प्राण पखेरू उड़ गये थे । वे मेरे दुखों के देवदार से ऊँचे थे । ‘दिल क्या लगाया तो से, दिल क्यों लगाया । प्रियंका जी दुबे आपके लिए कविताएँ लिखना fantasy है । लेकिन मैं इन्हें दिल से मोहब्बत करता हूँ । सुख और दुख में झूलता हूँ ।

    Reply
  8. जयलक्ष्मी says:
    3 years ago

    शानदार अप्रतिम रचनाओं का संग्रह। सचमुच ऐसा प्रतीत हुआ कि प्रशांत महासागर में गोते लगा रही हूं। प्रगल्भ और बहुमुखी प्रतिभावान कवयित्री की कविताओं का आस्वादन बहुत दिनों के बाद हुआ।

    Reply
  9. अंकिता शाम्भवी says:
    3 years ago

    सारी कविताएँ पढ़ीं थीं उस दिन. अपने में बहुत अलग तरह का कलेवर लिए हुए हैं ये. इतने अनछुए बिम्ब हैं कि मन पर हमेशा के लिए चित्र बन जाए इनका. बहुत सुंदर लगीं सारी कविताएँ दीदी ❤️❤️

    Reply
  10. मिथलेश+शरण+चौबे says:
    3 years ago

    सुन्दर कविताएँ

    Reply
  11. Devesh Chaturvedi says:
    2 years ago

    पृथ्वी के भूगोल, भौतिकी से अपनी वेदना, संवेदना का इतना तीव्र गहरा बयान कहीं ना कहीं हम सबका साझा ही है ll

    “मेरे दुखों से कितना ऊँचा है यह देवदार!”…. जीने की इच्छा के सटीक वर्णन…….. शानदार

    Reply
  12. Jyotish Joshi says:
    1 year ago

    प्रियंका दुबे की यह दस कविताएँ प्रेम को अनेक स्तरों पर रखकर देखती हैं। इनमें गहरी दार्शनिकता के साथ जीवन के सातत्य में अनुभूति के स्तर पर प्रेम को अनुभूत करने की सफल चेष्टा है। प्लेटो बेबी से लेकर अंतिम कविता तक कविता के विन्यास में बड़ा परिवर्तन है जो नव्यतम काव्यशिल्प से चमत्कृत भी करता है। समालोचन की इस तरह की प्रस्तुतियां उपलब्धि की तरह हैं। प्रियंका सहित अरुण देव को भी बधाई।

    Reply
  13. सुनील सक्सेना says:
    6 months ago

    दिल की गहराइयों के हर कोने को छू गईं कविताएं। हलचल ऐसी कि थमने का नाम न ले । बधाई ।

    Reply

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