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राजविन्दर मीर की कविताएँ (पंजाबी) : अनुवाद : रुस्तम
राजविन्दर मीर की इन पंजाबी कविताओं के रुस्तम सिंह के इस हिंदी अनुवाद को पढ़ते हुए पहले तो इस बात का दुःख हुआ कि मुझे पंजाबी क्यों नहीं आती है. फिर संतोष हुआ कि हिंदी में रुस्तम सिंह जैसा कवि है जो इन कविताओं को लगभग पूर्णता में अनूदित कर सकता है. अच्छी कविताओं से अच्छा सचमुच कुछ नहीं, ख़ासकर जब आप एक संपादक के नाते बहुत ही बेतुकी, बचकानी और ठस कविताओं को पढ़ने के लिए लगभग विवश हों और उसी बीच आपको राजविन्दर मीर की कविताएँ मिल जाए. राजविन्दर मीर ने एक कविता मरहूम विष्णु खरे की ‘आलैन कुरदी’ पर लिखी कविता पर भी लिखी है. रुस्तम सिंह के प्रति अत्यंत आभार के साथ ये कविताएँ समालोचन प्रस्तुत करता है.
*जूलियस फूचिक (1903—1943) चेकोस्लोवाकिया के पत्रकार,आलोचक तथा लेखक थे. वे नात्सी-विरोधी आन्दोलन में सक्रिय थे.
कोहकाफ़ से ख़त
कोहकाफ़ से
कोई कवि
मुझे लिखा ख़त लेकर आया
यह ख़त
अजीबोगरीब भाषा में लिखा हुआ था
(पर तब भी
मैंने यह ख़त पढ़ लिया
इस बात को अभी राज़ ही रखना
कि दुनिया के सारे कवियों की
एक छुपी हुई साझा भाषा होती है
जिसमें वे बीती रात
सपनों की घाटी में मिलकर
बातें करते हैं
और अपने-अपने लोगों के लिए
हज़ार रंगों वाली कविता गढ़ते हैं)
ख़त में लिखा था
कि यहाँ सेनाएँ तन गयी हैं
दुनिया के हुक्मरानों को
पृथ्वी की गतियाँ पसन्द नहीं
वो पृथ्वी की एक गति रोकना चाहते हैं
जिससे मौसम बदलते हैं
ऋतुएँ बदलती हैं
यदि ऐसा हुआ तो
पतझड़ कैसे आयेगा
दरख़्त कैसे सूखेंगे
कैसे जलेगी हमारे घरों में आग
यदि ऐसा हुआ तो
कैसे खिलेंगे
तेरी कलाई पर अमलतास के फूल
दूधिया मक्का कैसे पकेगा
यदि ऐसा हुआ तो
क्या होगा
मुझे नहीं पता
मैंने अमेज़न नदी के पार बसे
कवि को ख़त लिखा है
यदि ऐसा हुआ तो
कोई कैसे पढ़ेगा
प्रेम की बीस कविताएँ*
कैसे आयेगी
माचू-पीचू पर बहार
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*यहाँ पाबलो नेरुदा के पहले कविता संग्रह की तरफ़ इशारा है जिसमें बीस प्रेम कविताएँ थीं.
कृति : Khaled Yeslam
आलैन कुरदी*
विष्णु खरे नाम का कवि
कविता लिखता है
जब मैं शान्त-चित्त सोने की कोशिश करता हूँ
वो खीझा हुआ
मेरी नींद में खट-खट करता है
शराब के गिलास में से खींचता हूँ जब सुकून
वो साज़िशी
मेरे अन्दर दहशत भरता है
मेरी नौकरीशुदा पत्नी के दुनियादार स्वर्ग को
विचलित करता है
वो सागर तट पर मरे पड़े
आलैन कुरदी पर कविता लिखता है
कहता है,“आ तेरे जूतों से रेत निकाल दूँ।“
वो सफ़र के लिए तैयार होते
आलैन के माता-पिता की सुहानी तस्वीर खींचता है
शब्दों का ऐसा मृगछ्ल बनाता है
जैसे कि आलैन ज़िन्दा हो
वो पागल कवि
आलैन कुरदी मर चुका है
“और मरे हुए बच्चे कभी बड़े नहीं होते”
लेकिन यह बूढ़ा कवि ज़िद्द करता है
मरे हुए आलैन को ज़िन्दा कर लेता है
पालता-पोसता है अपनी कविताओं में
बड़ा करता है
दुबारा फिर फेंक आता है सागर के किनारे
दुनिया को भूलने नहीं देता
कि आलैन मर चुका है
वो मेरे मस्तिष्क के तन्तुओं में
घुस जाता है
मुझे साथ लेकर
भूल जाने के खिलाफ़
बेरहम,लम्बा युद्ध लड़ता है
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*आलैन कुरदी सीरिया का वह बच्चा था जो कुछ वर्ष पहले तुर्की के समुद्र तट पर औंधे मुँह मरा हुआ पाया गया था.
राजविन्दर मीर पेशे से अध्यापक हैं.
उनका जन्म 1980 में पंजाब के मानसा ज़िले के गाँव कोट लल्लू में हुआ.
उनके तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं :
काले फुल (2008), लाल परिन्दे(2014) तथा सौवीं सदी दे गीत (2017).
उन्हें 2017 का रत्न सिंह बागी यादगार पुरस्कार प्राप्त हुआ है.
कवि और दार्शनिक, रुस्तम के पाँच कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिनमें से एक संग्रह में किशोरों के लिए लिखी गयी कविताएँ हैं. उनकी कविताएँ अंग्रेज़ी, तेलुगु, मराठी, मल्याली, पंजाबी, स्वीडी, नौर्वीजी तथा एस्टोनी भाषाओं में अनूदित हुई हैं. रुस्तम सिंह नाम से अंग्रेज़ी में भी उनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हैं. इसी नाम से अंग्रेज़ी में उनके पर्चे राष्ट्रीय व् अन्तरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं.