1.
दरवाजे घर की आँख होते हैं
सबसे पहले उन्हें होता है
सबसे पहले उन्हें दीखता है
जैसे कोई स्त्री आँख से
थाह लेती है किसी का मन
पहचान लेते हैं दरवाजे
2.
दरवाजे घर के कान होते हैं
सबसे पहले उनको होती है
उन्हें पिता की पदचाप
माँ की बुदबुदाहट भी
सबसे पहले वही सुनते हैं
सबसे पहले उन्हें ही होता है!
3.
दरवाजे घर के होंठ होते हैं
कुछ कहने की चाह में
अनकहे रह जाते हैं हर बार
बुदबुदाते हैं प्रार्थनाएँ
आशीषते हैं उन्हें जी भर
ईश्वर का धन्यवाद करते नहीं थकते
चूमते हैं पिता की तरह
हौसला रखो बच्चो
4.
दरवाजे घर की बाँहें होते हैं
गलबाँही के लिए
सबसे कसकर थामते हैं
5.
दरवाजे अंदर और बाहर
दोनों तरफ खुलते हैं
आँखें खुलती हैं
द्वार भी होते हैं और दीवार भी
किसी के मुँह पर भड़ाम से बजते
6.
कोई भी बुरी नजर सबसे पहले
दरवाजे से टकराती है
दरवाजे से ही दो-दो हाथ करते हैं
अपने सीने और पीठ पर कीलें ठुकवाते हैं
धूप-बारिश से बचाने वाली छतरी
सहारा देने वाली छड़ी
तन ढँकने वाली कमीज
हाट-बाजार के झोले
बच्चों के बस्ते
पूरे घर-भर में तुरंत मिल नहीं पाती
कोई मुनासिब-मनमाफिक जगह!
7.
काठ की किवाड़ हो
मंदिर के पट हों
किले के कपाट हों
कि सिंहद्वार हो
कि कोई द्वार जर्जर हो
देवता हो या दुश्मन हो
सुरक्षित सोते हैं
सब असुरक्षित होते हैं!
8.
कुछ दरवाजे होते हैं
बिन ताले
तिलिस्मी ताले
कि दरवाजे खुद ब खुद बंद तो हो जाएँ
पर खुद ब खुद खुल न पाएँ
मजबूत से मजबूत ताले
सब बंद दरवाजे
9.
भव्य से भव्य, भयंकर से भयंकर किलों के
दैत्याकार दरवाजों पर भी कुदकते हैं कबूतर
चाहे वे खूँखार से खूँखार सिंहों के
जबड़ों की शक्ल में ही क्यों न हों
लंबे-लंबे नुकीले नश्तरों पर भी
बड़े आराम से घर बसा लेते हैं कबूतर!
10.
अमूमन आखिर में गिरते हैं दरवाजे
सबसे पहले तोड़े जाते हैं दरवाजे
सबसे अधिक चोट खाते हैं दरवाजे
अंत में उखड़ते हैं दरवाजे
लेकिन अब भी बुलंद हैं दरवाजे
सबसे ज्यादा याद आए हैं दरवाजे!!
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हिंदी के युवा कवि और अंग्रेजी-हिंदी के परस्पर अनुवादक. नौ दिसंबर, 1976 को दुमका, झारखंड के एक छोटे-से गाँव अगोइयाबाँध में जन्म.