बंद कोठरी का दरवाजारश्मि शर्मा |
हरेक सुबह की तरह सलमा आपा ने अपनी नज़र का चश्मा नाक पर चढ़ा कर अख़बार के पन्ने पलटना शुरू ही किया था कि उनकी नज़रें एक खबर पर ठहर गईं. हैडिंग के बाद बड़ी तेज़ी से उनकी निगाहें नीचे फिसलती गईं और ख़़बर पढ़ते ही उन्होंने ‘नसरीन-नसरीन’ का ऐसा शोर मचाया कि नसरीन रसोई से सालन पकाना छोड़कर बदहवास बाहर दौड़ी आई.सहन में आकरदेखा कि सलमा आपा के हाथ में अख़बारहै और उनके मुंह से लगातार गालियांनिकल रही है….“मुहंझौंसे कहीं के…अपने मने कुछो फैसला कर लेते हैं ये लोग…..जरा भी नहीं सोचते कि किसी के जिनगानी में क्या फर्क पड़ेगा एही से. अरे दोजख नसीब हो ऐसे मिनाईन को, अल्लाह गारत करे …..”
सलमा आपा को गुस्सा आता है तो उनकी पान से रंगी जुबान खांटी देसी लहजे में चलने लगती है और बड़ी-बड़ी आँखें कपार पर चढ़ जाती हैं. उन्हें सुनकर कोई यकीन नहीं कर सकता कि वह एक पढ़ी-लिखी महिला हैं और कोई सुबह ऐसी नहीं गुजरती जब अख़बार का कोई पन्ना उनकी नजर से अछूता जाए.
इस शोर को सुन नसरीन के साथ-साथ घर की तमाम औरतें इकट्ठा हो गईं. क्या हुआ– क्या हुआ कहते हुए सब सलमा आपा को घेरकर खड़ी हो गई और पूछने लगीं.. ‘’बोलिए न आपी....ऐसे किसको गरिया रहीं सुब्बे सुब्बे”. “हाँ हाँ बताइए” उनके देवर शफीक मियां की दुल्हन सबकी तरफ से बोली “किसने क्या बिगाड़ दिया आपका..क्या ख़बर आई है ?”
इस घर में कई औरतें थीं. दरअसल रफीक मियां का घर-घर जैसा नहीं किसी छोटे-मोटे महल जैसी एक बड़ी हवेली है, चार दालान और तीन मंजिलों वाली जिसका नाम भी ‘एहतेराम मंजिल’है. नसरीन के श्वसुर रफीक मियां खानदानी अमीर हैं. ऐसे रईस लोगों का कुनबा भी बड़ा होता है. उन्होंने तीन शादियां की हैं. पहली पत्नी जवानी में ही गुजर गईं तो बाद में एक के बाद एक दो शादियां कर लीं. वैसे भी इस्लाम में चार औरत रखने की इजाजत है. तो तीन बीवियों से कुल मिलाकर रफीक मियां की 14 संताने हैं और ख़ुदा की मेहरबानी है कि सब एक ही छत के नीचे रहते हैं. छह बेटे हैं और आठ बेटियां. अल्लाह के फज़ल से सबका निकाह हो गया है. छह भाइयों में रेहान सबसे छोटा था.
सलमा आपा दूसरी बीवी के पहले साहबजादे की शरीके हयात हैं. मैट्रिक पास सलमा वैसे तो उम्र में नसरीन से बहुत बड़ी हैं मगर दोनों में बहनापा है. नसरीन रफीक मियां की तीसरी बीवी के छठे और घर भर के सबसे छोटे औलाद रेहान की बीवी है. नसरीन ने संस्कृत में बीए किया है महिला कॉलेज चाईबासा से. उसकी दिली ख्वाहिश है कि वो एम.ए. की जमात भी संस्कृत से निकाल ले और किसी कॉलेज में लेक्चरार की नौकरी कर ले. वैसे भी किसी मुस्लिम लड़की के संस्कृत पढ़ने की बात सुनकर लोग-बाग़ उसकी ओर हैरत भरी नजरों से देखते थे और वह ऐसे में बहुत खास होने के अहसास से भर जाती है.
खुदा का करम है कि उसके नाक-नक्श खासे तराशे हुए हैं. फिलवक्त उसका ख्वाब बस इतना ही है कि वह ज्यादा से ज्यादा कॉलेज लेक्चरर और कम से कम किसी सरकारी स्कूल की टीचर बन जाए.
संस्कृत भाषा एक ऐसा सब्जेक्ट है कि उसमें नौकरी की जितनी जगहें निकलती हैं, उतने टीचर्स नहीं मिलते, लडकियां तो और भी कम. इसलिए नसरीन को लगता कि बस उसके कम्पीटीशन इम्तिहान में बैठने की देर भर है, वो सेलेक्ट तो यूँ ही हो जायेगी, बस एक बार पढाई पूरी हो जाये. फिर वह भी नौकरीपेशा होकर अपनी कमाई हुई खुदमुख्तारी से जिंदगी गुजारेगी. ससुराल वालों पर भी उसका रौब रहेगा. अपनी बाकी फूफियों या आपाओं की तरह चूल्हे फूंकने की बात कभी उसके ज़हन में भी नहीं आती थी. वह इसी ख्वाब के साथ रोज सुबह उठती और रात जब अपना बुर्का उतारकर अलमीरे में रखती, तो उसे लगता था कि वह अपना सपना भी हर रात इसी एहतियात के साथ उतार कर रखती है और सुबह कॉलेज जाते वक्त अपने चेहरे पर उसी सपने को लपेटकर अम्मी को खुदा-हाफि़ज कहती हुई निकल जाती.
नसरीन की किस्मत का सितारा उसके परिवार वालों के हिसाब से बुलंदी पर था मगर अब खुद नसरीन का ऐसा मानना था कि डूब चुका. हुआ ऐसा कि वह सबसे बड़ी दीदी की ननद की निकाह में कलकत्ता जो अब कोलकाता है, गई. सोचा मौज-मजा कर के आएगी. इसी बहाने कोलकाता घूम लेगी. बहुत सुना है विक्टोरिया महल के बारे में. एक बार देखने की तमन्ना तो बहुत पहले से थी. अब शादी के घर में तो नाते-रिश्तेदारों की भीड़ लगी ही रहती है. बहुत से लोगों में एक लड़का भी था. यही रफीक़ मियाँ के साहबजादे यानी रेहान, जो नसरीन की दीदी राफिया का ममेरा देवर था. शादी की गहमा-गहमी में लड़कियों का सजना-संवरना तो होता ही है.
नसरीन भी सब्ज रंग के शरारे में कयामत ढा रही थी निकाह वाले रोज़. रेहान की नजरों का तो पता नहीं मगर उसकी अम्मी को इतनी पसंद आ गई वो कि रिश्ता नसरीन की दीदी राफिया तक पहुंच गया.
अब दीदी इतनी बड़ी खुशखबरी का सेहरा किसी और के सर क्यों बंधने देती. वह झट से अम्मी-अब्बू को सारी बात बताते हुए यह भी समझाइश दे दी कि इतना अच्छा लड़का हाथ से निकल गया तो दुबारा जाने जिंदगी में ऐसा लड़का मिले कि नहीं. दरअसल, उस खानदान में रेहान ही इकलौता ऐसा लड़का था जो ‘बिट्स पिलानी’ से इंजनीयरिंग पढ़कर निकला था और अब कोलकाता में एक बड़े सरकारी महकमे में नौकरी कर रहा था. रईस खानदान और इंजीनियर लड़का, कौन परिवार ऐसा होगा जो मौका चूके, उस पर सामने से चलकर आया रिश्ता. गोरा चिट्टा रेहान चेहरे-मोहरे से भी दिलकश और स्मार्ट था.
सच तो यह है कि नसरीन को कुछ सोचने का मौका ही नहीं मिला और वह चट मंगनी पट ब्याह वाले तरीके से दो महीने बाद ही अपने ससुराल में थी. दरअसल, इस रिश्ते में उसे सबसे अच्छी चीज यह लगी थी कि रेहान उसके अपने परिवार का हिस्सा नहीं. वह अपनी सहेलियों से हमेशा कहती थी कि मैं जिससे शादी करूंगी वो मेरी मुमानी का बेटा या चचाजाद भाई नहीं होना चाहिए. वह नजदीकी रिश्ते में बंधने के खिलाफ थी. ऐसे घरेलू रिश्ते से उपजे खिचपिच से हमेशा उसका सामना होता आया है. इसलिए जब यह रिश्ता आया तो उसे एक तरह से खुशी हुई थी कि वह अपने परिवार की दूसरी लड़कियों से थोड़ी अलग है. इसलिए वह बाखुशी शादी के लिए तैयार हो गई और निकाह कुबूल कर लिया.
जब ससुराल की देहरी पर पांव धरा नसरीन ने तो अपने इस्तकबाल में बहुत सारे लोगों को देखकर उसे तसल्ली हुई कि अच्छे बात-व्यवहार के लोग हैं ससुराल वाले, तभी इतने पड़ोसी जमा हैं. ‘एहतेराम मंजिल’की सीढ़ियां चढ़़ते हुए उसे अपने नसीब पर नाज हो आया. तब उसे पता नहीं था अपने बड़े खानदान के बारे में. रेहान दो बहनों का इकलौता भाई है, इतना ही मालूम था. दूसरे ही दिन उसे पता चल गया कि सब के सब उसके अपने घरवाले ही हैं. रेहान की तीनों मां से उसकी आठ ननदें थीं. उसे अपने ससुर पर अचरज हुआ कि वह इतना बड़ा खानदान कैसे चला रहे हैं, उस पर सब लोग एक ही छत के नीचे रहते हैं. दुर्गापुर के उसी घर के आंगन में सलमा आपा की गालियों की बौछार सुन सब जमा हो गए. नसरीन ने आपा से कहा– “अब आप बताएंगी भी कि नहीं आपी… कहीं सालन जल गई तो फिर से मेहनत करनी पड़ेगी.” सब आपा की तरफ ही मुखतिब थे. आपा ने कहा- “नसरीन तुम खुद ही पढ़ लो.”
नसरीन की सांस हैडिंग देखकर ही अटक गई जैसे और वह एक ही सांस में पूरी खबर पढ़ गई. सलमा आपा अख़बार पढ़ती नसरीन का चेहरा पढ़ रही थी. उन्हें हैरत हुई कि नसरीन के चेहरे पर जैसे अमनो-चैन पसरता जा रहा है, जबकि उन्हें अंदेशा था कि इस खबर को पढ़कर नसरीन और परेशान हो जाएगी. नसरीन ने एक लंबी सांस भरी और आपा को अख़बार वापस पकड़ाते हुए कहा-
“सलमा आपा…यह तो बहुत अच्छी खबर है.”यह कहकर र्निविकार भाव से वह रसोई की ओर चल पड़ी. रसोईघर में गैस की लौ धीमी कर कलछी चलाती नसरीन अतीत में जा पहुंची…
वह निकाह के बाद ससुराल में पहली रात थी. भरे-पूरे परिवार में सबसे मिलते-जुलते वह बुरी तरह थक गई थी. उसे अपने फूलों भरे बिस्तर को देखकर नींद आने लगी मगर इंतज़ार था रेहान का, जो अपने यार-दोस्तों की चुहलबाजियों में व्यस्त थे. लगता था रेहान के दोस्त आज उसे आने नहीं देंगे. इंतजार करती नसरीन कब नींद के आगोश में चली गई, उसे पता भी नहीं चला.
सुबह जब नींद खुली तो पाया कि वह रात वाले भारी पहनावे के साथ अपने बिस्तर पर है और सामने सोफे पर रेहान गहरी नींद में है. नसरीन को अफसोस हुआ कि वह ऐसे कैसे सो गई, मगर दूसरी तरफ रेहान का शांत और सरल चेहरा देखकर प्यार उमड़ आया कि कितना अच्छा शौहर मिला है उसे जो पहली रात से ही इस बात का ख्याल रख रहा कि उसकी नींद में खलल न पड़े.
नसरीन उठकर गुसलखाने गई और नहा के तैयार होने के बाद रेहान को उठाया. वह चाय लेकर आई थी. रेहान एक बार अचकचा गए उसे देखकर, फिर कहा – “रात आप इतनी गहरी नींद सो रही थीं कि जगाने की इच्छा नहीं हुई.‘’ ‘’शुक्रिया’’ शर्मीली सी मुस्कराहट के साथ नसरीन ने जवाब दिया. फिर पूछा- “आपने मेरे सो जाने का बुरा तो नहीं माना. माफ़ कीजिएगा, मैं बहुत थक गई थी.”“माफी की क्या बात है इसमें. मैं भी समझ सकता हूँ कि शादी-ब्याह में कितनी थकान हो जाती है. ‘’
नसरीन ने महसूस किया कि रेहान बहुत अच्छे स्वभाव के थे और पूरा परिवार भी कमोबेश ठीक था. दूसरे दिन जब उसकी सास ने कहा – “बहू… यहां तुम्हारी सलवार नहीं चलेगी. तुम्हें शरारा पहनना होगा.” उसने सर झुकाकर बात मान ली मगर इससे बहुत असुविधा होती थी.
चूंकि नौकर-चाकर के होने के बाद भी खाना बहुएं ही बनाती थी सो उसे रसोई का काम भी करना पड़ता और इसमें शरारा पहनने से बहुत दिक्कत होती. मगर रेहान ने समझाया कि अभी नई-नई हो, सबकी नजर तुम पर है. कुछ दिन पहन लो, फिर सब ठीक हो जाएगा.
नसरीन ने बीए फाइनल इयर की परीक्षा दे दी थी. उसका रिजल्ट दो-एक महीने में आ जाता फिर उसे प्री. पी.जी. इम्तिहान की तैयारी करनी थी. उसने इस बारे में रेहान से बात कर ली थी और कह दिया था कि वह जिंदगी में आगे कुछ करना चाहती है. महज़ खाना पका-खाकर जिंदगी नहीं गुजारनी उसे. इसलिए रेहान उसे पढ़ने से नहीं रोके और अपने अम्मी-अब्बू को मनाने का काम भी उसी का है. रेहान की हां थी, क्योंकि वह पढ़ा लिखा था और तालीम की अहमियत समझता था. वह नसरीन से कहता कि “कुछ दिन यहां रह लो फिर मैं तुम्हें अपने क्वार्टर कोलकाता ले जाऊंगा. वहां तुम अपनी मर्जी से पढ़ाई करना और कपड़े भी अपने मुताबिक पहनना.”
नसरीन इस वादे से खुश हो जाती. रेहान वास्तव में उसे प्यार करता और हर शनिवार कोलकाता से घर दुर्गापुर आने पर छुपाकर उसके लिए कोई न कोई तोहफा लाता. वैसे तो दुर्गापुर कोलकाता के मुकाबले छोटा शहर है, मगर नसरीन के लॉंग ड्राइव के शौक को पूरा करने के लिए उसे हर इतवार को अपनी एस यू वी में जरूर घुमाने ले जाता. शादी के बाद दोनों एक सप्ताह के लिए दीघा गए थे हनीमून के लिए. सब कुछ अच्छा था. रेहान बहुत ध्यान रखता. दोनों सारा दिन घूमते, समुद्र में अठखेलियां करते मगर रात को जब लौटकर आते, रेहान बिस्तर पर पड़ते ही सो जाता. दो दिन तो ऐसे ही निकले..फिर तीसरी रात लौटकर डिनर करते वक्त नसरीन ने पूछ लिया रेहान से
“रेहान..आपको मैं पसंद तो हूं न ?’’ “हां, पर ऐसे क्यों पूछ रही हो?‘’ रेहान ने सवाल किया.“नहीं..बस ऐसे ही. आप अभी तक मेरे करीब नहीं आए..’’ नसरीन की आवाज़ में हल्की-सी झिझक थी.
रेहान ने उसकी नर्म हथेलियों को हौले से अपने हाथों में थाम लिया था – “अभी तो हमारी जिंदगी शुरू हुई है. पहले हम एक- दसरे को ठीक से समझ तो लें..’’
नसरीन खुश हुई कि रेहान महज एक मर्द ही नहीं, ज़हीन इंसान भी है. नहीं तो बाकी शौहर तो शादी के बाद बस…… उन दोनों ने हनीमून खूब इंज्वाय किया. वापसी के बाद रेहान को अपनी नौकरी पर कोलकाता वापस जाना था. सब बातें तो ठीक थीं मगर नसरीन रेहान के साथ एकांत के लिए तरस कर रह जाती. हर शनिवार आता रेहान और सोमवार सुबह चला जाता. रेहान जब घर आता तो सबके बीच घिरा रहता. रात को जब दोनों मिलते तो सप्ताह भर की बातें सुनाता और “थका हूं सफर से”, कहकर सो जाता. रविवार को वह दोस्तों से मिलने चला जाता मगर देर शाम नसरीन को लॉंग ड्राइव पर ले जाना नहीं भूलता. डिनर अमूमन वो बाहर ही करते. आते हुये रात को देर हो जाती और लौटते ही सो जाते.
अतीत की गलियों से बाहर खींच लाई उसकी छोटी ननद की बेटी नाज ने. ठुनकती हुई रसोई में नाज अपनी गुड़िया के साथ आई और उसका दुपट्टा पकड़कर शिकायत करते हुए कहा – “मामी.. मेरी गुड़िया के बाल बना दो न..उलझ गए हैं. मुझसे नहीं बन रहे. अम्मी गंदी है, मेरी बात नहीं सुनती.”
नसरीन ने उसका सर सहलाते हुए कहा – “लाओ..मैं बना दूं तुम्हारी गुड़िया की चोटी.” उसने गैस का नॉब कम किया और नाज को प्यार कर उसकी गुड़िया को संवार कर दे दिया.
उसके सामने जीवन के पिछले पन्ने अब भी फड़फड़ा रहे थे…
उन दिनों उसका सारा वक्त रसोईघर और अपनी गोतनियों के किस्सों में कटने लगा था. उसे उम्मीद थी कि जल्दी ही यहां सब छोड़कर वह रेहान के पास चली जाएगी, जहां उजला कल उसका इंतजार कर रहा. उसे सोमवार से जुम्मे रात तक रेहान का इंतजार होता और उसके बाद कोई दुनिया नहीं दिखती. रेहान भी दो दिनों तक पूरा वक्त और प्यार देता, मगर आज तक उसे वह नहीं मिला जिसका इंतजार शादी के बाद हर लड़की को रहता है. वो आज तक कुंवारी ही थी.
नसरीन को बच्चों से लगाव था. तब यह नाज और छोटी थी. ऐसे ही एक दिन वह नाज के छोटे-छोटे कदमों पर मुग्ध होती हुई उसके पीछे घर के दूसरी तरफ चली गई. उस कोठे की बनावट ऐसी है कि एक बड़े से आंगन के चारों तरफ कई कमरे बने हुए थे. सबका दरवाजा आंगन में खुलता. कमरे पास-पास ही थे और एक गोल चक्र की तरह सबकी शादी होती गई और सभी कमरे आबाद होते गए. घर के अंदर आते दाहिनी तरफ का पहला कमरा सबसे बड़े बेटे – बहू को मिला. इसी तरह अंतिम कमरे में नसरीन रहती थी.
बड़े होते बच्चे, जो मां के साथ नहीं सोते, उनके लिए ऊपरी तल्ले में कमरे बने थे. कई तो बंद ही हैं. कुछ स्टोर रूम के काम आते हैं तो कई कमरे बेटियों को मायके आने पर खुलते. बड़ी और छोटी बहू के कमरे के बीच वाली जगह पर रसोईघर था. लगता है रेहान के दादा जी जब मकान बना रहे होंगे तो उनके मन में यह बात रही होगी कि रसोई सामने रहने से सबके बीच बात-व्यवहार बना रहेगा. इसलिए मकान की ऐसी बनावट है.
मगर घर के पीछे की तरफ अलग तरह की बसावट थी. पश्चिम की तरफ से रास्ता खुलता था. अगर कोई सदर दरवाजे से अंदर न आने चाहे या बहुओं से पर्देदारी का ख्याल हो तो वह पीछे के दरवाजे से अन्दर आ सकता था. उधर एक खुला आंगन था. वहां रफीक बैठकर धूप का आनंद लेते. कई बार उनके हमउम्र लोगों की महफिल भी जमती थी उधर. पांच कमरे थे पास-पास. दो कमरों में उसकी दोनों सास रहती थीं. बीच में ससुर का कमरा और फिर उसके बाद दो और कमरे जो सदा बंद ही रहते.
नाज के पीछे-पीछे आंगन में घूम रही थी नसरीन भरी दोपहर में. अचानक देखा कि उसके ससुर का कमरा खुला और वहां से महरी निकली जो घर में बर्तन मांजने का काम करती थी. नसरीन को बड़ी हैरत हुई कि यह महरी उसके ससुर के कमरे में क्या कर रही थी. उसने उसे रोककर पूछा- तुम क्या करने गई थी थी उनके कमरे में ?
महरी ने हंसी दबाते हुए कहा- “दुल्हिन …तुम्हारे ससुर को तेल लगाने गई थी. उनके बदन में दर्द रहता है न!” महरी ने तेल का कटोरा हाथ में पकड़ा था. बहुत अजीब बात लगी नसरीन को कि उसके ससुर एक औरत से मालिश करा रहे हैं. अच्छा नहीं लगा उसे और तय किया कि रेहान जब आएगा तो उसे यह बात बताएगी. शनिवार रात जब रेहान से मुलाकात हुई तो उससे सब कह दिया. कहते समय वह रोष में थी …”बोलिए रेहान… क्या ये शरीफ घराने के तौर-तरीके हैं? क्या असर पड़ेगा घर के बच्चों पर इसका.‘’ वह बोले जा रही थी और रेहान उस की बातों से बेपरवाह टीवी पर निगाहें गड़ाए हुए था.
झुंझला गई नसरीन…. “आपको कुछ सुनाई पड़ रहा है कि नहीं ?’’ उदासीन भाव से रेहान ने कहा – “तुम्हें अचरज हो रहा होगा, मेरे लिए नई बात नहीं. बचपन से देखता आया हूं. उनके शौक ही कुछ ऐसे हैं.““इसका मतलब… इसका मतलब…आपकी अम्मी भी जानती हैं ये बात….’’ हैरत भरी आँखें फाड़कर हकलाते हुए नसरीन बोली.“हां…सब जानते हैं और मर्दों के लिए यह आम बात है. मेरे दादा जी की मालिश भी औरत ही करती थी.”
झटका लगा था नसरीन को रेहान के जवाब से. उसे यकीन था कि जब रेहान को इन बातों का पता चलेगा तो वह अब्बू को उनकी हरकतों के लिए मना करेंगे. मगर…..रेहान तो इतने समझदार हैं. वह औरत के मन को समझते हैं, इसलिए तो मेरे साथ एक आशिक की तरह पेश आते हैं. कभी जिस्म की बात नहीं होती हमारे बीच. फिर ऐसा आदमी अपनी मां और उनके हकूक को इस तरह बंटता देखकर कैसे चुप रह जाता है. उस पर अपने अब्बू की तरफदारी भी कर रहे हैं.
उस दिन नसरीन के मन में पहली बार शक़ का बीज पड़ा. उसे लगने लगा कि कहीं रेहान किसी और को तो पसंद नहीं करते. उनकी यह शादी जबरदस्ती की तो नहीं है. उनकी जिंदगी में कोई और औरत तो नहीं, जिस कारण आज तक उसके जिस्मानी ताल्लुकात नहीं बने.
उन्हीं दिनों सलमा आपा से उसकी नजदीकियां बढ़ी. एक रोज बातों-बातों में नसरीन ने कहा– “आपा, आप तो तब से जानती हैं न रेहान को, जब वो कॉलेज में थे. उनका किसी से अफेयर तो नहीं था. मुझे बताइए न !’’ “मुझे तो ऐसी कोई जानकारी नहीं छोटी दुल्हन… मैंने कभी नहीं सुना किसी लड़की के बारे में. ऐसा होता तो घर में जरूर बात होती.” उन्होंने दिलासा दिया .नसरीन जवाब से पूरी तरह मुतमईन नहीं हुई. मगर ऐसा कुछ नजर नहीं आता कि वह शक करे. रेहान नियमित रूप से शनिवार रात आता और सोमवार सुबह चला जाता. उसने जिद की कोलकाता चलने की, तो कहा कि कुछ दिनों में ले जाऊंगा. अभी बहुत छोटा फ्लैट है.
वाकई यह बात सच थी. एक बार रेहान नसरीन और अपनी बहन रजिया, नाज की मां को ले गया था कोलकाता घुमाने. एक बेडरूम के फ्लैट में रहता था वो. नसरीन को भी लगा कि एक छोटे से कमरे में रहने पर उसका दम घुट जाएगा. इसलिए अब वह जिद करने लगी कि कोई बड़ा फ्लैट ले ले रेहान किराए पर, तब वह जाए.
शादी के तीन महीने गुजर गए थे. नसरीन को मायके की याद सताने लगी तो रेहान आया था उसे छोड़ने. घर में खूब मेहमानवाजी हुई उसकी. कुछ सहेलियां भी मिलने आई उन दोनों से. मायके में अपने भाई-बहनों के साथ नसरीन का खूब मन लगता. यहां वह अपने मन से कपड़े पहनती और खूब आराम करती. कभी-कभी सहेलियों से मिलने चली जाती या फिर बच्चों के साथ फिल्म देखने या घूमने. मायके-सा सुख ससुराल में कहां ?
संयोग से उन्हीं दिनों उसकी सहेली अपूर्वा भी आई हुई थी मायके. दोनों की बहुत अच्छी दोस्ती थी कॉलेज के दिनों में. जब मिलीं तो अपूर्वा छेड़ने लगी उसे…’’ बताओ…सब ठीक है न … वो सब?
जवाब में फीकी मुस्कान उभरी नसरीन के चेहरे पर. अपूर्वा ने नसरीन को टटोला “बता क्या बात है…नई शादी की उमंग तेरे चेहरे पर दिख नहीं रही. ससुराल में सब ठीक तो है ? रेहान प्यार करते तो हैं?”उसने कहा – “हां, प्यार बहुत करते हैं. मगर आज तक हमारे बीच कोई जिस्मानी ताल्लुक नहीं बना.” फिर पहली रात से आज तक की सारी दास्तान सुना दी उसे. हैरत हुई अपूर्वा को. उसने कहा – “कोई कितना भी रोमांटिक हो, तीन महीने गुजर गए. कुछ गड़बड़ है जरूर. तू पता कर. कोई अफेयर तो नहीं ?’’ जब नसरीन ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं, तो उसने कहा- ”फिर ऐसा कर..अपनी तरफ से पहल कर. कह अपने शौहर को कि तुम्हें जरूरत है. न कह पाओ तो कहना-
“आपकी अम्मी कह रही है कि जल्दी पोता चाहिए उन्हें. तुझे बच्चों से प्यार है, सब जानते हैं. तू कोई भी बहाना कर और अपनी जरूरत जता. ऐसे काम नहीं चलेगा”.
अपूर्वा समझाकर चली गई. नसरीन के मन में शक ने पैर पसारना शुरू कर दिया था. उसे यकीन हो चला कि जरूर कोई न कोई बात है. कहीं ऐसा तो नहीं कि कोलकाता में कोई और लड़की हो, जिसके साथ रेहान रहते हों और यहां दिखावे के लिए आते हैं. बेचैन रहने लगी नसरीन. उसे लगने लगा कि अब बात करनी ही पड़ेगी खुलकर.
पन्द्रह दिनों के बाद वापस आई नसरीन अपने ससुराल. सब कुछ वैसा ही चल रहा था. उसे इंतजार था शनिवार का जब रेहान आएं. सोच लिया था कि कुछ पूछने से पहले वह अपनी तरफ से पहल करेगी. देखे तो सही, क्या रिस्पांस मिलता है. क्या पता, झिझकते हों रेहान.
देर शाम आए रेहान. दोनों में खूब बातचीत हुई और सोने चले गए. रेहान तो आराम से सो गए मगर नसरीन करवटें बदलती रही. कई बार इच्छा हुई कि रेहान को जगाकर अपने मन की बातें करे. पर यह सोचकर कि इतनी दूर से आए हैं… थके होंगे… मन मसोसकर रह गई नसरीन.
रविवार सुबह हमेशा की तरह रेहान अपनी मित्रमंडली में चले गए. नसरीन सारा दिन इंतजार करती रही. आज उसे बात करनी थी इसलिए उसे यह इंतजार बर्दाश्त नहीं हो रहा था.
शाम होने को थी. जब रेहान लौटे, नसरीन कमरे में नहीं थी. उसे ढूंढने लगे तो पता लगा वह छत पर है. सीढ़ियों के बगल में एक कमरा था जो स्टोर के काम आता था. कभी-कभी शाम की चाय वो दोनों वहीं पी लेते थे. रेहान को पता था कि नसरीन छत पर नहीं होगी, तो उस कमरे में जरूर होगी. सर्दियों के दिन थे. छत पर पूरी धूप उतरती थी और जब शाम नीचे का सारा घर ठंढा हो जाता तो ऊपर वाला वह कमरा हल्का गर्म रहता. रेहान ने ही बताया था नसरीन को कि जब उसे अकेला रहने का मन होता तो वह उस कमरे में चला जाता.
सीढ़ियों पर नीम अंधेरा था. कमरे का दरवाजा खुला था पर बत्तियां बुझी थी. ‘नसरीन- नसरीन’ की आवाज लगाता हुआ वह कमरे के अंदर गया. कोई जवाब नहीं मिला उसे. लगा कि नसरीन यहां नहीं है. तभी किसी ने अचानक पीछे से उसे बाहों में जकड़ लिया था.
“ओह… तुमने तो मुझे डरा ही दिया…” नसरीन को खींच कर आगे करते हुये रेहान ने बत्ती जला दी थी.
रौशनी में उसे देखकर सहम सा गया रेहान. नसरीन ने बहुत झीना कपड़ा पहना था. ऐसे कपड़े कभी नहीं पहनती. रेहान ने समझते हुये भी नासमझ बने रहने की कोशिश की –“चलो नीचे चलते हैं, यहां बहुत सर्दी है.”
कुछ नहीं कहा नसरीन ने. बस बिजली की-सी फुर्ती के साथ जोर से लिपट गई रेहान से. “क्या पागलपन है नसरीन? इस तरह छत में ऐसे कपड़ों में हो. सर्दी खा जाओगी. चलो अब कमरे में”. रेहान ने नसरीन के हाथों को हौले से खुद से अलग करने की कोशिश की.
नसरीन ने नहीं छोड़ा उसे. धीरे से उसकी कानों में बुदबुदाने लगी… “रेहान… मुझे प्यार करो, करीब आओ”.नसरीन की आंखें बंद थीं और उसकी फुसफुसाहट अंधेरे कमरे में बहुत साफ-साफ फैल रही थी… कितनी बार अकेले में अभ्यास करने के बावजूद वह अपने व्यवहार के स्वाभाविक दिखने के प्रति भीतर से आश्वस्त नहीं थी… उसके शब्दों में एक ओढ़ी हुई लरज थी… पर यह सब इतना औचक और अनायास था कि रेहान समझ नहीं पाया… नसरीन की हरकतें उसके लिए अप्रत्याशित थी.
रेहान जड़ खड़ा रहा..न हिला न आगे बढ़ा. नसरीन आवेग में थी, उसने बहुत मुलायमियत से रेहान के दोनों हाथों को खींचकर अपने गुदाज सीने पर रखते हुये एक मीठा-सा दबाव बनाया ही था कि रेहान ने ऐसे अपना हाथ खींच लिया जैसे बिजली का करंट लगा हो….
कोई सपना टूटा हो … अचानक किसी सहरा में रेत का तूफ़ान उठा. एक हाहाकार सा.. दरिया उफान पर था.. थमी हुई कायनात में शोर उठा हो जैसे …. बिफर पड़ी नसरीन…“क्यों..क्यों दूर रहते हो मुझसे…क्या मैं पसंद नहीं हूं?’ क्या कमी है मुझमें…बोलो” उसे झिंझोड़ रही थी वह.
“ऐसी कोई बात नहीं…” रेहान की सहमी हुई आवाज बहुत धीरे से उभरी…बहुत कोशिश के बाद कोई बात बाहर आए जैसे.
“फिर क्यों…क्या आपकी जिंदगी में कोई और औरत है ? आप किसी और को प्यार करते हो तो बता दो. आखिर ऐसा क्या है कि आप पास नहीं आते.” बोलते-बोलते हांफने लगी थी नसरीन.
रेहान की आवाज़ में जैसे मिमियाहट-सी उतार आई थी- “नहीं नसरीन..कोई और नहीं मेरी जिंदगी में…प्लीज समझो तुम”
“नहीं समझ आता मुझे…आखिर क्यों रेहान…हमारा रिश्ता ऐसा क्यों हैं. आपको आज मुझे जवाब देना ही होगा.” जिद पर उतर आई थी नसरीन.
रेहान सूनी निगाहों से उसकी ओर चुपचाप देखता रहा…रोती नसरीन से केवल इतना कहा – “अभी तुम बहुत गुस्से में हो…. हम फिर बात करेंगे. ठंढ बढ़ रही है, नीचे चलो”. रेहान ने नसरीन का हाथ थाम पर जरा खींचा ही था कि गुस्से में आकर जोर का धक्का मारा उसने.मायूस नजरों से देखता हुआ रेहान नीचे चला गया.
अपमान और ठुकराए जाने का ज़ख्म सीने पर लिए नसरीन सारी रात सुलगती रही. औरत के लिए ‘न’ सुनना बहुत मुश्किल होता है. अपनी मांग की बेईज्ज़ती बर्दाश्त नहीं कर सकती वह.अपने कमरे में नहीं गई. उसे लगने लगा कि ऐसे साथ का क्या मायने हैं. जब रेहान की जिंदगी में उसका कोई वजूद ही नहीं तो वह यहां रहे या कहीं और….क्या फर्क पड़ता है.
सुबुकती नसरीन को यह ख्याल बार-बार आता रहा कि जरूर ये बेमन की शादी है. रेहान के जीवन में कोई और है जिसने उस से करार लिया है कि अपनी बीवी से जिस्मानी ताल्लुक बनाना भी उसके लिए गुनाहे अज़ीम है. जो भी हो..आज या कल, सच जानकर कर रहेगी वो, इस रात उसने खुद से वादा किया.
उस दिन के बाद उन दोनों के रिश्ते में खिंचाव आ गया. नसरीन ने खुद को एक खोल में बंद कर लिया. वह घुटने लगी थी. पहले रेहान प्यार से पेश आता था, उसे घुमाने ले जाता था… मगर इन दिनों घर आने पर एक दूरी रहती. बिस्तर पर भी कोई बात नहीं होती. नसरीन उस दिन का अपमान नहीं भूली थी. अब वह चौकन्नी हो गई. रेहान के हर क्रियाकलाप पर उसकी नजर होती. वह खुद को दूर रख कर रेहान को अहसास दिलाना चाह रही थी कि नाराज है उससे.
अब रेहान हर शनिवार न आकर पन्द्रह दिनों में आने लगा था. घर के लोग भी इस खिंचाव से अनजान नहीं थे. सलमा आपा ने पूछा भी कई बार कि सब ठीक है न. जवाब में नसरीन सर की जुम्बिश से खामोश हामी भर देती.
ऐसे ही एक शनिवार रेहान आया एक लड़के को लेकर. बताया कि उसके ऑफिस में नया आया है. उसे दुर्गापुर आने की बहुत इच्छा थी इसलिए साथ ले आया. गोरा और खूबसूरत लड़का. अगर औरतों के लिबास पहन ले तो बिल्कुल लड़की दिखे, ऐसा पहली बार उसे देखकर नसरीन के मन में ख्याल आया. उसे बचपन में देखे गए रामलीला वाली सीता की याद हो आई. बिल्कुल ऐसा ही जनाना चेहरा था उस आदमी का जो हर बार सीता बनता.
रामलीला के बाद भी बच्चे उस सीता बने आदमी को सीता-सीता चिढ़ाते हुए घूमते थे. रेहान ने उसे नसरीन से मिलाया- “ये सज्जाद है…मेरा दोस्त. दो दिन मेरे साथ रहेगा. इसे अपना शहर घुमाना है. तुम भी साथ चलना.” नसरीन भी मान गई. वैसे भी दोनों के बीच पसरा सन्नाटा ज्यादा घना होने लगा था इन दिनों. दो दिनों तक रहा सज्जाद और खूब घूमे वो लोग. नसरीन को भी अच्छा लगा. जिंदगी की एकरसता से उब गई थी वो. सज्जाद हंसमुख लड़का था.
धीरे-धीरे सज्जाद ने घर के अनिवार्य सदस्य के रूप में जगह बना लिया. अब अक्सर रेहान के साथ आने लगा सज्जाद. घर में इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता हां, एक दो बार सलमा आपा ने जरूर टोका – “ये मुआ सज्जाद हरदम क्यों चला आता है घर में. इसे भगाओ. दाल-भात में मूसलचंद.”
नसरीन हंस पड़ी – “रेहान के दोस्त हैं आपा. उनका घर बहुत दूर है. एक दिन के लिए जा नहीं सकते इसलिए आ जाते हैं अक्सर”.
सलमा आपा ने कहा- “क्या है, कि इसके जनाना चाल-चलन मुझे नहीं सुहाते. इसकी चाल देखी है तूने ? कैसे मटक-मटक कर चलता है.”
“आप भी न आपा…कोई लड़की होती तो मुझे डर भी होता. एक लड़के से क्या डर. और मेरे सामने तो बहुत इज्जत से पेश आता है. रहम खाओ इस पर” कहते-कहते नसरीन जोर से हंस पड़ी.मगर सलमा आपा हंस नहीं पाई. दिन गुजरते गए. नसरीन जिन हालात से गुजर रही थी, उसे लगता कि उसकी जिंदगी बेकार हो गई है. जब बहुत घबराहट होने लगी तो रेहान से कहकर दस दिनों के लिए अपने मायके आ गई.मुश्किल यह थी कि सब बातें अपने खानदान में किसी से बता नहीं सकती. बेकार बात बढ़ जाएगी. उसके मन में था कि जरूर कोई औरत है उसकी जिंदगी में. वह प्यार से पूछ लेगी एक न एक दिन रेहान से. ऐसे ही एक शाम वह सहेलियों के साथ बिताकर देर से घर लौटी. अम्मी ने कहा- “तेरी सलमा आपा का फोन आया था दो बार. बात कर लेना.” नसरीन थोड़ा घबराई कि क्या बात हुई. ऐसे तो कभी फोन नहीं करती आपा. और उधर रेहान से दो-तीन दिन के अंतराल में बात हो ही जाती थी. जाने ऐसी क्या बात हो गई. कहीं आपा बीमार तो नहीं ?
तमाम तरह की हैरानियों के दरमियाँ उसने फोन मिलाया. सलमा आपा ने कहा ”सुनो नसरीन..जल्दी लौट आओ. मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा”. नसरीन ने पूछा’- “क्या हो गया आपा. वहां सब ठीक तो है न. ससुर जी नई शादी तो करने नहीं जा रहे? “
यह कहते हुए नसरीन की आंखों में वह दिन कौंध गया जब उसने देखा था कि करीमा की मां पीछे दालान में झाडू लगा रही थी और उससे ससुर रफीक मियां बड़े गौर से उसे देख रहे थे. जब वह वापस आने लगी तो उसका आंचल पकड़कर अपनी ओर खींचने लगे. तभी नसरीन को सामने देख झट छोड़ दिया आंचल और बोले- “जरा ढंग से कपड़े संभाल कर चलो करीमा की अम्मी. देखो मेरी कुर्सी में फंस गया”.
नसरीन के जेहन में यह सब बात चल ही रही थी कि उधर से आपा ने कहा ” ससुर की बात जाने दे. सब जानते हैं उनके ऐब. तू तो आकर अपने रेहान को देख. तुम नहीं हो फिर भी वह सज्जाद को लेकर आया है. इस बार दोनों घर में ही घुसे रहते हैं. देख छोटी…कहीं बात कोई और न हो”.
नसरीन इशारा समझ रही थी सलमा आपा का. वह यह भी जानती है कि पूरे परिवार में उसे कोई प्यार करता है तो वह सलमा आपा ही है. इसलिए उसकी ज्यादा फिक्र करतीं है. उसने सोचा कि इस बार वापस जाकर रेहान से बात करेगी. कहेगी कि जब घर वाले उनकी दोस्ती को गलत निगाह से देख रहे है तो हर छुट्टी में उसे यहां न लाया करे.
नसरीन दस दिनों के बजाय छह दिनों में ही अपने भाई के साथ मायके से वापस आ गई. इस बीच झगड़े का असर कम होने लगा. दोनों में ठीक-ठाक बातचीत होने लगी थी. रेहान को पता लगा तो उसे हैरानी हुई, पर नसरीन ने कहा कि मन नहीं लग रहा था आपके बिना, तो रेहान को तसल्ली हुई. उसके पूछने से पहले ही रेहान ने कहा कि मेरा भी मन नहीं लगता तुम्हारे बिन. इसलिए इस बार जिद करके मैं सज्जाद को ले आया. वो आना नहीं चाह रहा था. नसरीन को भी तसल्ली हो गई.
महीने भर बाद उसे अपनी फूफी सास के घर जाना पड़ा. उनके बेटे की शादी थी. रेहान के अब्बू-अम्मी, बड़ी अम्मी और दो भाई के साथ उनकी पत्नियां और रेहान अपने पूरे परिवार को लेकर गया. इस बार सज्जाद भी साथ था. रेहान ने बताया कि उसे निकाह देखना पसंद है, इसलिए साथ जाना चाहता है. चूंकि पूरे परिवार के साथ जा रहा था, इसलिए नसरीन को कोई भी शुबहा नहीं हुआ. सब लोग चार दिन वहां रहे. वहां सारी औरतें एक साथ अंदर के कमरे में सोतीं और सारे मर्द बाहर वाले कमरे में.
वापसी से एक दिन पहले की बात है. रात को फूफी सास ने नसरीन को बुलाया और पूछा – “नसरीन बिटिया बता तो, ये सज्जाद कैसा दोस्त है रेहान का?’’ नसरीन बोली- “उनका कुलीग है फूफू. साथ काम करते हैं.”
“तो उसे साथ-साथ लेकर क्यों घूमता है ये रेहान?’’ फूफी की आंखों में सवाल और शक के रेशे एक ही साथ उभर आए थे… नसरीन खामोश थी. उसे जो रेहान ने कहा था, वही दुहरा दिया.“तू बच्ची है अभी. दुनिया नहीं देखी है. मामला कुछ गड़बड़ लगता है. छोटी दुल्हन, जरा ध्यान दो नहीं तो तुम्हारी गृहस्थी तबाह हो जाएगी.” फूफी की चिंताएँ उनके शब्दों तक आ पहुंची थीं.इस बार नसरीन के भीतर भी डर ने अपने पैर फैलाये थे… ”सलमा आपा ने भी यही कहा था फूफी…पर कैसे, क्या है ये. मैंने कुछ तो ऐसा नहीं देखा. रेहान कुछ बताते नहीं. कहीं पैसे लेने के चक्कर में तो नहीं चिपका रहता यह ”.
बुआ बोली – “सुन…कड़ी नजर रख इस पर. मैं अपने खानदान के लोगों को जानती हूं. दादा – परदादा की बात भी खूब सुनी है. और ये रेहान….इसका बचपन तो मेरे आंखों में गुजरा है. जब ये स्कूल में था तो एक लड़के के साथ इसकी खूब दोस्ती थी. रात-बिरात साथ रहते थे ये… ‘’
बुआ ज़रा और करीब आई और फुसफुसाते हुए नसरीन के कान में बोली- “एक बार उसे पकड़ा भी था लोगों ने उसी दोस्त के साथ खेत में. बात भाईजान तक पहुंची. मार भी खाया था इसने. इसकी संगति छुड़ाने को ही भैया ने इसे बाहर पढ़ने भेज दिया. तब से कुछ नहीं सुना. फिर तुझसे शादी हो गई तो लगा सब ठीक है. बचपन की भूल थी, सुधार ली इसने. मगर अब वक्त रहते संभाल ले. बाद में पछताने से बेहतर है समय रहते संभल जाना.”
नसरीन को यकीन नहीं हो रहा था अब भी. उसने इस तरह से तो कभी सोचा ही नहीं. फिर भी अब जब दो लोगों ने एक बात कही तो वह नजर रखेगी, इसका फैसला किया उसने. नसरीन को विश्वास है कि गलत निकलेगा सबका अंदेशा, मगर कम से कम उसे तसल्ली तो हो जाएगी.
उस दिन रविवार था. रेहान इस बार भी सज्जाद के साथ आया था. नसरीन सलमा आपा के साथ बाजार निकली. ईद की तैयारियां जोरों पर थी. अपनी पसंद के सलवार-कमीज के कपड़े लेकर तुरंत दर्जी को दे देना था क्योंकि भीड़ अधिक होने से समय पर सिल कर नहीं मिलते कपड़े. सो रेहान को कहकर वह दो घंटे के लिए बाहर निकाल गई. रेहान बोला- “ठीक है, तुम जब आओगी तब हम साथ खाना खाएंगे.”
वह खुश-खुश सलमा आपा के साथ गई क्योंकि आज उनलोगों को रिक्शा में जाना था. नसरीन को खुली हवा में घूमना पसंद है और उसकी इस इच्छा को आज सलमा आपा पूरी करने वाली थी.. उसने सलमा आपा को बोला भी कि आपके साथ मुझे ऐसा लगता है कि मैं अपनी सगी बहन के साथ हूं. आपने बहन की कमी पूरी कर दी.
वो दोनों खरीददारी में व्यस्त ही थी कि अचानक नसरीन के पेट में मरोड़ उठने लगे. कुछ देर तो बर्दाश्त करने की कोशिश की मगर जब असहनीय हो गया तो सलमा को बताया. सलमा फौरन उठ गर्इ और उसका हाथ पकड़कर बाहर आ गई. सलमा आपा ने कहा – ” रेहान को बुला लेते हैं. पहले डाक्टर को दिखा लेंगे फिर घर चलेंगे ”. सलमा रेहान को फोन लगाने लगी मगर फोन ऑफ मिला. मजबूरी में रिक्शा बुलवाया और सलमा डाक्टर के पास ले जाने लगी तो नसरीन ने मना किया. कहा – “आराम करूंगी घर पर. डरने जैसी कोई बात नहीं. कल से तला-भुना खा रही है इस कारण तकलीफ है.” घर पहुंचकर देखा तो कमरे में रेहान नहीं थे. पूछने पर बाहर खेल रहे बच्चों ने ऊंगली से इशारा किया कि ऊपर वाले कमरे में है.
नसरीन समझ गई कि ऊपर अपने पसंदीदा कमरे में होंगे रेहान. सीढ़ियां चढ़कर ऊपर गई तो देखा दरवाजा बंद था. पहले सोचा खटखटाकर खुलवा ले दरवाजा मगर फूफी की याद आ गई – “छोटी दुल्हन, जरा ध्यान दो नहीं तो तुम्हारी गृहस्थी तबाह हो जाएगी.“ उसने ‘की-होल’ से अंदर झांका….. जहाँ उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा भूचाल उसका इंतज़ार कर रहा था …..दीवान पर रेहान और सज्जाद आपस में…
चक्कर खाकर धड़ाम से गिरी नसरीन. सलमा आपा को कुछ अंदेशा हो ही रहा था. वह सीढियों के नीचे उसके इंतजार में खड़ी थी. वह दौड़कर ऊपर गई. गिरने की आवाज से तब तक सभी आ गए. रेहान और सज्जाद भी बाहर थे. उसे सहारा देकर नीचे कमरे तक लाया रेहान और बिस्तर पर लिटा दिया. पानी के छींटे मारने पर उसे होश आया. नसरीन ने देखा कि उसके हाथ पर रेहान का हाथ है….उसने इतनी नफरत से रेहान का हाथ झटका जैसे कोई घिनौनी, लिजलिजी चीज छू ली हो.
एक-एक कर सभी बाहर चले गए. एक बार फिर छूने की कोशिश की रेहान ने….फुत्कार उठी नसरीन – “ खबरदार! जो मुझे हाथ लगाया तो..”“ मैंने किया क्या है?’’ रेहान अनजान बनने का नाटक कर रहे थे.नसरीन रो पड़ी… “क्या कमी थी मुझमें…क्यों किया ऐसा. मैं खूबसूरत नहीं, जवान नहीं या तुम्हें वो सुख देने लायक नहीं. अरे…. कोई औरत होती तो मैं भी तुम्हारी अम्मी की तरह उसे बर्दाश्त कर लेती या तुम्हारी खुशी के लिए तुम्हें उसके साथ छोड़कर चली जाती.”
अवरुद्ध गले से बोल रही थी नसरीन – “ये आदमी…. एक आदमी को मेरी सौत बना दिए तुम तो….मुझे घृणा हो रही है तुमसे. आज से मेरा-तुम्हारा नाता खत्म. भूल से भी मुझे छूना नहीं.”
बिस्तर के पायताने बैठा रेहान सहसा कांपने लगा. नसरीन ने चौंक कर उसकी तरफ देखा…वह सिसक रहा था. उसकी सिसकियां साफ़ सुनी जा सकती थी. नसरीन जड़ हो गई.
उसके अपने आंसू थम गए और उसकी आंखे रेहान के चेहरे पर अटक गईं.
“मुझे माफ कर दो नसरीन. मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. मगर क्या करूं…..मैं ऐसा ही हूं बचपन से. मेरा किसी औरत की तरफ कभी जी नहीं ललचाया. मैं उस लायक ही नहीं! ”
अब नसरीन चौंकी…”क्या? मतलब तुम गे हो ? “
“हां” …कहकर सिसकता रहा रेहान.
“फिर क्यों की मुझसे शादी ? मेरी जिंदगी बर्बाद करने का तुम्हें क्या हक है? मना क्यों नहीं किया ?” हैरत और फिर गुस्से से कांप रही थी नसरीन.
रेहान की सफाई उसकी सिसकियों के साथ निकल रही थी – “बचपन से लड़कियों के साथ पला-बढ़ा. जब पैदा हुआ तो मेरी आठों बहनों ने हाथों-हाथ लिया. सब कहते हैं बहुत खूबसूरत बच्चा था मैं. जब थोड़ा बड़ा हुआ तो वो सब खेल-खेल में मुझे लड़की बना देती. मुझे भी काजल, टीका लगा कर बहुत अच्छा लगता. दुपट्टे से सर ढंक कर मैं नाचता तो सभी मेरी बलैया लेते नहीं थकते. धीरे-धीरे बड़ा होता गया मगर इसकी मेरी आदत नहीं गई. मुझे लड़के पसंद आते. मैं दसवीं में था तो स्कूल का एक लड़का मुझे पसंद आ गया. हम दोनों साथ-साथ ज्यादा वक्त बिताने लगे.‘’
“फिर…तुम्हारे घरवालों ने तुम्हें रोका नहीं ?” नसरीन ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए पूछा.
“हां…एक बार हम पकड़े गए. अब्बू बेहद नाराज हुए. उन्होंने बहुत मारा मुझे. कहा- हमारे खानदान में ऐसा नहीं चलता. तुम्हें औरतों की कोई कमी नहीं. जिसे चाहे…. मगर खबरदार…”
रेहान ऐसे कांप उठा जैसे उसके अब्बू सामने खड़े होकर उस पर चिल्ला रहे हों.
“मैं डर गया बहुत. मुझे हास्टल भेज दिया गया. वहां मन लगाकर पढ़ाई करने लगा. इन सब बातों से बिल्कुल दूर हो गया. मेरी लड़कियों से दोस्ती थी मगर किसी को उस नजर से देख ही नहीं पाया. मुझे लड़के अच्छे लगते थे. मगर यह ऐसी बात थी जो मैं अपने घरवालों से नहीं कह सकता था”.
‘’तुमने कभी भी बताने की कोशिश नहीं की ? अपनी बहनों से भी नहीं शेयर किया ?’’ नसरीन हैरान थी कि हर क्षेत्र में अव्वल रहने वाला रेहान, जो आज एक कामयाब इंजीनियर है, खूब अच्छी तन्ख्वाह है जिसकी, वो अंदर से इतना दब्बू है कि अपने मन को आजतक किसी के आगे खोल तक नहीं पाया..
“मैंने एक-दो बार कोशिश की थी. शुरू में मैंने शादी करने से इंकार भी किया… मगर तुम्हें देखने के बाद तो जैसे सबने एक सुर में तय कर लिया सबकुछ… अब्बू को अनुमान था शायद मेरी परेशानी का, पर उन्होंने यह कहकर मेरे ना को खारिज कर दिया कि उन्होंने दुनिया देखी है. शादी के बाद सब ठीक हो जाता है.”
“क्या तुमने भी यही सोचा था? ” नसरीन के सवाल में एक नई तकलीफ आ घुली थी.ठंढ में भी रेहान के माथे पर पसीने चुहचुहा गए.“मैं कुछ समझ नहीं पाया. लगा, इतने सालों से ऐसे कोई संबंध नहीं मेरे. तो शायद अब्बू सही कहते होंगे. मगर कुछ नहीं हो सका. मैं क्या करूं, अब तुम्हीं बताओ नसरीन? तुम्हारा साथ पसंद है मगर मैं उस तरह नहीं रह सकता.”
नसरीन के माथे के दोनों तरफ की नसें तड़कने लगी. लग रहा था माथा दर्द से फट जाएगा. बहुत अजीब-सी स्थिति में फंस गई थी वह. देर तक स्तब्ध सी बैठी रही…शिथिल..स्थिर..शब्दहीन. कुछ पलों तक मौन पसरा रहा दोनों के दरम्यां. कमरे में घड़ी की टिकटिक के अलावा कोई और स्वर नहीं था.
“मुझे तलाक चाहिए” नसरीन की आवाज में कोई आक्रोश, आवेश या उत्तेजना नहीं थी…
अचकचा गया रेहान और दूसरे ही पल उसने नसरीन के पैर पकड़ लिए- “नहीं नसरीन, नहीं! ऐसा नहीं कर सकता मैं. तुम्हें तलाक देने का मतलब है, मेरी यह बात जग जाहिर हो जाना. बहुत बदनामी होगी मेरे खानदान की. किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रह जाऊंगा मैं.”
नसरीन किसी तूफान के मुहाने पर बैठी थी… कुछ देर वैसे ही बैठी रही, फिर धीरे से रेहान के हाथों पर अपना हाथ रखकर दबाया जैसे मौन आश्वस्ति दे रही हो. फिर धीरे से उसके हाथों को अपने पैरों से विलग किया और दरवाजा खोल बाहर निकल गई….नीरव अंधकार में, जाने कहां…अकेली.
नसरीन की तकलीफ में रेहान की गिड़गिड़ाहट का बोझ भी शामिल हो गया था. इस दर्द को सम्हालने का हर संभव जतन करती वह, पर दर्द था कि सहा नहीं जाता… कुछ दिनों बाद ही वह सलमा आपा के आगे रो पड़ी. उसे लगा था सलमा आपा उसकी तकलीफ को समझेंगी… मगर उम्मीद के विपरीत सलमा ने उसे ही समझाइश दी थी – “माफ़ कर दो दुल्हिन रेहान को. गलती हो जाती है. और हमारे मजहब में तो चार औरतें रखने की छूट है. शुक्र कर, कोई औरत नहीं रखी उसने. अगर निकाह कर के ले आता तो तू क्या कर सकती थी? तू तो किस्मत वाली है कि रेहान प्यार करता है तुझे और ऐसे संबंध हमेशा नहीं रहते. तू अपने प्यार से खींच ला वापस उसे.”
नसरीन की तकलीफ पर बेबसी की परत जम आई थी… “आपा! रेहान शुरू से ऐसे ही हैं. ऐसे लोगों के जीन में यह प्रवृति होती है, और ऐसे लोग शादी नहीं करते. यह आपलोगों की गलती है कि उसे जबरदस्ती के इस बंधन में बांध दिया. अब हम दोनों छटपटा रहे हैं. हमारा जीवन कभी सामान्य नहीं हो सकता”.
सलमा की आंखे नसरीन के चेहरे पर टिकी थीं. सफ़ेद, श्रीहीन चेहरा, जैसे नसों का सारा लहू निचोड़ लिया हो किसी ने. नसरीन को समझ नहीं आ रहा कि उसका दुख बड़ा है या रेहान का? वह भी तो घुट-घुट कर जी रहा है. उसे तो यह अब झेलना पड़ रहा है मगर रेहान तो बचपन से अपने मन को मारता आया है. नसरीन को उससे हमदर्दी-सी होती है, मगर अपने आगे फैला शून्य बेतरह मथता है उसे.रेहान अब सज्जाद को नहीं लाता घर. उसने नसरीन की बात मान ली है कि जब कोलकाता में उसके पास जगह है ही तो फिर उसे यहाँ लाकर यह बदनामी क्यों मोल लेना? रेहान के भीतर नसरीन के लिए कृतज्ञता का भाव उभर आया है…
नसरीन को महसूस होता है कि वह प्रेत की तरह जी रही है. उसे पहले रेहान के आने का इंतजार होता था. मगर जब से उसे यह सब पता चला है, रेहान के प्रति वह प्यार नहीं महसूस कर पाती. एक दोस्त की तरह उसकी जरूरतों का ख्याल रखती है. कई बार मन होता कि रेहान की फिक्र छोड़कर वह चली जाए यहां से. सबको बता दे कि रेहान ‘गे’ है और उसके साथ कोई भविष्य नहीं उसका. पर हर बार रेहान की उस कातर गिड़गिड़ाहट की स्मृतियाँ उसके बढ़े कदमों को पीछे खींच लेती है और वह किसी कुशल अभिनेत्री की तरह सुखी दांपत्य का अभिनय करने लगती है.
नसरीन को बच्चे बेहद पसंद हैं. उसके मायके से लेकर आस-पड़ोस तक सब कहने लगे हैं कि अब एक बच्चा हो जाना चाहिए… हर ऐसी बात नसरीन को नए सिरे से छलनी कर जाती है… अपनी जरूरतों और ख़्वाहिशों की आंच में झुलसती नसरीन जागी आँखों से करवटें बदलते हुये कई-कई रातें गुजार देती है… अपनी चाहतों और ख्वाहिशों का कफ़न ओढे किसी जिंदा लाश की तरह हो गई है वह…
मन ही मन वह रेहान के पुनः ठीक हो जाने की दुआएं भी करती… वह यह भी जानती थी कि सिर्फ दुआओं से कोई क्रान्ति नहीं होने वाली और ऐसे ही किसी दिन उसने किसी सायकेट्रिस्ट की तलाश में जस्ट डायल में जाकर सर्च किया था…
डॉ. रुबीना एक तजुर्बेकार और संजीदा-सी औरत थीं. उनके सहज साथ की ऊष्मा के आगे जब नसरीन कतरा-कतरा पिघल चुकी उन्होने सधे हुये शब्दों में कहा था- “इम्पोटेंसी दो तरह की होती है- कुछ केसेज में टेम्पररी तो कुछ में परमानेंट. बेहतर होता कि आप अपने शौहर के साथ आतीं. कुछ जांच जरुरी है, किसी भी नतीजे पर पहुँचने से पहले. मगर आपकी बातों से एक बात तो साफ है कि आपके शौहर की दिलचस्पी औरतों में नहीं. ऐसे लोग औरतों का साथ खूब इंज्वाय करते हैं. बल्कि खुद को उनके ज्यादा करीब पाने की कारण उन्हें औरतों का साथ खूब भाता है, मगर उनका शारीरिक आकर्षण पुरुषों के प्रति ज्यादा होता है.
नसरीन जैसे सारी संभावनाओं के दरवाजे एक ही साथ तलाश लेना चाहती थी – “क्या कोई निदान नहीं इसका ? उस लड़के से दूर होने पर क्या इनकी दिलचस्पी मुझ में जागेगी ?आपा कहती हैं कि प्यार से मैं उन्हें अपनी तरफ कर सकती हूँ…”
चश्में से झाँकती रूबीना की अनुभवी आँखें नसरीन पर टिकी हैं… “समझने की कोशिश कीजिए. यह कोई रोग नहीं है जिसका इलाज हो सके. यह मनोवृति है. इसे बदलना लगभग असंभव है. मैं अपने तजुर्बे से कह सकती हूँ कि यह मामला परमानेंट इम्पोटेंसी का है.”
रसोईघर में कलछी चलाती नसरीन के कानों में डाक्टर रूबीना के शब्द एक बार फिर से बहुत साफ-साफ सुनाई पड़ रहे हैं… – “आपके सामने दो ही रास्ते हैं – या तो आप यथास्थिति को स्वीकार कर उनके साथ ऐसे ही रहिए या फिर अपना रास्ता अलग कर लीजिए. बेवजह की उम्मीद मत पालिए.”
अपने चश्मे की काँच को आँचल से साफ करने के बाद कोर्ट के फैसले पर बडबड़ाती सलमा आपा ने अख़बार का पन्ना पलट दिया था… गैस का नॉब ऑफ करते हुये नसरीन ने सोचा- सलमा आपा जो भी कहें, सरकार ने धारा 377में बदलाव लाकर उसके लिए मुक्ति का द्वार खोल दिया है. कानूनन अपराध नहीं है, रेहान और सज्जाद का रिश्ता… रेहान जैसा है, वह वैसा ही रहे… लेकिन, माशरे से छुपकर कितने दिन ऐसे गुजार सकता है कोई ? उसे हिम्मत करनी होगी… रेहान की झूठी शान और आबरू की खातिर वह भी अब खुद से और नहीं लड़ेगी.
उसने तय किया अब उसे अपने लिए जीना है… इस सोच ने मुस्कराहट ला दी नसरीन के चेहरे पर… बंद कोठरी के दरवाजे खोलने को बेताब नसरीन की उँगलियों में एक नई जुंबिश-सी हुई… उसने सोचा.. जिंदगी इतनी भी बुरी नहीं.
रश्मि शर्मा
विभिन्न राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी, लेख, यात्रा-वृतांत, बाल कथा, इत्यादि का नियमित प्रकाशन.
दो काव्य संग्रह ‘नदी को सोचने दो‘ और ‘मन हुआ पलाश‘ प्रकाशित.
एक दशक तक सक्रिय पत्रकारिता करने के बाद अब पूर्णकालिक रचनात्मक लेखन एवं स्वतंत्र पत्रकारिता.
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