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समालोचन

Home » राहतें और भी हैं: रश्मि शर्मा » Page 2

राहतें और भी हैं: रश्मि शर्मा

रश्मि शर्मा की कहानी, ‘राहतें और भी हैं’ पढ़ते हुए अनामिका का यह कथन याद आता रहा कि ‘“नई स्त्री बेतरहा अकेली है. क्योंकि उसको अपने पाये का धीरोदात्त, धीरललित, धीरप्रशांत नायक अपने आसपास कहीं दिखता ही नहीं. गाली बकते, ओछी बातें करते, हल्ला मचाते, मार-पीट, खून-खराबा करते आतंकवादी या टुच्चे पुरुष से प्रेम कर पाना या उसे अपने साथ सोने के लायक समझना किसी के लिए भी असंभव है. स्त्रियों का जितना बौद्धिक और नैतिक विकास पिछले तीन दशकों में हुआ है, पुरुषों का नहीं हुआ.” कहानी प्रस्तुत है.

by arun dev
July 21, 2021
in कथा, साहित्य
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माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक देख मिरा इंतिज़ार देख
(अल्लामा इक़बाल)

अंकुर को आइसक्रीम बहुत पसंद है.  वह जब कभी आता था या बाहर आउटिंग का प्‍लान बनता, वह आइसक्रीम के बि‍ना पूरा नहीं होता.  पहला फोन किसे करूँ का समाधान आइसक्रीम ने सामने रख दिया है…

 ”हाय अंकुर”

”आज बेवक्त कैसे याद किया श्रेया…तबीयत तो सही है तेरी? ” उसकी आवाज में किंचित आश्चर्य है.

”तेरी याद आ रही थी…”

”आय-हाय…याद तो हम कि‍या करते हैं जमाने से…आज तुझे कैसे मेरी याद आ गई? मेरी किस्मत का ताला खुल गया क्‍या…? ”

”फि‍र वही बकवास…तुम्हें कोई और बात नहीं सूझती क्या?”

”यार बस एक बार डेट पर चल न… पूरे 18 साल हो गये कहते हुए.  मेरा प्‍यार बालि‍ग हो गया अब तो.  ”

अतीत के पन्ने तेजी से फड़फड़ाते हैं.  इसे कॉलेज के दिनों से ही जानती हूँ, हमारा बैच भी एक ही था.  तब वह क्लास में अक्सर चुप-सा ही रहता, मैं इसे झेंपू समझती थी… इसलि‍ए बहुत बात नहीं की कभी.  मगर कॉलेज छोड़ने के बाद जब मैंने कंप्‍यूटर क्‍लास ज्‍वाइन कि‍या तो यह भी वहाँ था.  बीस बिलकुल अपरिचित चेहरों के बीच एक अकेला यही था जिसे मैं पहले से जानती थी.  वहाँ जो हमारे बीच समझ बननी शुरू हुई, तो सालों नि‍भ गई.  उसी दौरान बताया था उसने कि‍ वो मुझे पसंद करता था, मगर कॉलेज के पाँच सालों में कभी हि‍म्‍मत ही नहीं हुई कहने की.  तब तक हम अलग-अलग रास्‍तों पर चल नि‍कले थे.  उसका अपना बि‍जनेस था और मेरी नौकरी.  हम दोनों का लक्ष्‍य एक नहीं था, पर हमें एक दूसरे का साथ खूब भाता था.  जिसे मैं पाँच साल कम बोलने वाला और झेंपूँ समझती रही थी, वह स्वभाव से खूब खिलंदड़ निकला.  कई बार साथ रहकर भी हम कहाँ जान पाते हैं एक दूसरे को.  बात-बात में अकसर वह अपना प्रपोजल दुहराता और मैं हंसकर इंकार करती रही.  पर हमारा रिश्ता बना रहा.  हम आज भी संपर्क में हैं, पर आपस में एक खास किस्म की दूरी मैंने खुद ही बना रखी है.  आज उसके खिलंदड़ेपन में मैं खुद को सायास शामिल हो जाने देती हूँ…

”अब डेट पर चलूं तो क्‍या हो जाएगा?”

”कुछ नहीं होगा…बस बचपन की साध पूरी हो जाएगी. ”

”क्‍या साध बाकी रह गया है तेरा……?”

”तूझे आई लव यू बोलने का”

”तो आज बोल दे….”

”सच में? बोल दूं…झगड़ा तो नहीं करोगी….दोस्‍ती तो नहीं तोड़ लोगी?”

”नहीं…”

”पक्‍का”

”हां पक्‍का…”

”आई लव यू….”

“मी टू”

मेरे इन दो छोटे-छोटे शब्दों को सुन वह अचानक से चुप हो गया है और मेरी हंसी नहीं थम रही…

अंकुर को जैसे अपने ही कान पर भरोसा नहीं, वह हैरान है.  उसके शब्द अब अटक-अटक कर मेरे फोन के रिसीवर तक का सफर तय कर रहे हैं- ”क्‍या जीवन के इस मोड़ पर हम साथ-साथ नहीं चल सकते?”

सालों से अंकुर के जिस खिलंदड़े आवाज़ को मैं जानती रही हूँ आज उसमें अलग सा मीठापन घुल आया है.  उसके भीतर चाहत की कोई आग दबी थी जो मेरे उकसाने से उभर-सी आई है.  मैं इस बात को अब और आगे नहीं बढ़ने देना चाहती.  मैं चुप हो गई हूँ.  मेरी चुप्पी का अनुवाद करने की कोशिश में उसके शब्द अचानक से बेचैन हो उठे हैं… ”श्रेया, तू कुछ परेशान है? कोई बात है तो बताओ.  तुम्हारे पास आऊं क्‍या?”

“नहीं कोई परेशानी नहीं, तुमसे बात करने लगी और इधर मेरा आइसक्रीम पिघल रहा… चल मुझे अब आइसक्रीम खाने दे.  तुझसे बाद में बात करती हूँ, बाय….!” उसके जवाब का इंतज़ार भी नहीं करती और फोन रख देती हूँ.

आइसक्रीम खाने के बहाने से मैंने अंकुर का फोन भले रख दिया हो, पर अगले नंबर पर जमी मेरी आँखें पिघलते हुए आइसक्रीम की तरफ देखती भी नहीं.  आइसक्रीम बाउल केसर डले दूधिये झील में बदल गया है और उसमें तैरता पिस्ते का छोटा-सा टुकड़ा किसी स्मृति-नौका की तरह मुझे सालों पुरानी दुनिया की सैर पर लिए जा रहा है…

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Tags: रश्मि शर्मा
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Comments 12

  1. Mukti Shahdeo says:
    4 years ago

    बेहद खूबसूरत कहानी के लिए बधाई रश्मि शर्मा!

    Reply
  2. प्रवीण कुमार says:
    4 years ago

    मैं सोच रहा था कि यादि पुरुष लेखक होता तो यह कहानी किस तरह लिखता । शायद वह चीज कभी नहीं मिलती पढ़ने को । रश्मि जी ने स्त्री मन के अकथ प्रदेश को कुरेदा है ।

    Reply
  3. Dr. Meeta Bhatia says:
    4 years ago

    बहुत सोचा क्या लिखूं शब्द साथ नहीं दे रहे । भावनाएं झकझोर रही हैं रश्मि जी। नारी मन की ऐसी व्याख्या… आप खूब लिखे … लिखती जाएँ… शुभकामनायें

    Reply
  4. Dr. Meeta Bhatia says:
    4 years ago

    बहुत खूबसूरत रचना ।एक लंबी कहानी का फ्लो बनाए रखने के लिए साधुवाद ।
    नारी मन को बहुत अच्छी तरह उकेरा है आपने।
    ढेरों बधाई और शुभकामनाएं
    लिखते रहिए …..लिखते रहिए

    Reply
  5. राकेश बिहारी says:
    4 years ago

    एक आधुनिक लड़की के अकेलेपन की विश्वसनीय छवियों से विनिर्मित कहानी. हर हिस्से के आरंभ में उद्धृत शेर अकेलेपन के संदर्भित रंग और उसकी व्यंजना को और सघन करते हैं. ‘आगे क्या होगा’ की उत्सुकता कहानी में आद्योपांत बनी रहती है. कहानी में वर्णित उपकथाएँ कहानी के अंत से मिलकर आधुनिक स्त्री के अंतः और बाह्य के बीच उपस्थित फ़ासले को जिस तरह रेखांकित करती हैं, वही इस कहानी का हासिल है. आपने कहानी प्रस्तुत करते हुए अनामिका के जिस कथन को रेखांकित किया है, वह इस कहानी के मर्म से सहज ही संबद्ध है.

    Reply
  6. हीरा सिंह says:
    4 years ago

    प्रेम में डूबी हुई अकेलेपन की रोचक कहानी ,एक ही साँस में पढ़ जाने की इच्छा आगे क्या होगा की जिजीविषा कहानी को मधुर बना देती है , अवचेतन मन में छिपा प्रेम बाहर आने को बेक़रार दिखता है , कहानी में स्त्री मन अपने में सिमटी हुई प्यार में डूबी हुई कभी संकुचित कभी उद्धेलित दिखती है !

    Reply
  7. दयाशंकर शरण says:
    4 years ago

    आजकल लिखी जा रही हिन्दी कहानियों की एक प्रवृत्ति यह है कि वे बहुत अच्छे विषय को लेकर चलती हैं, काफी दूर तक सही रास्ते पर चलती हैं पर अंत में रास्ता भूल कहीं और पहुँच जाती हैं। कहानी पर अगर कोई वाद या विमर्श हावी हो,तो अक्सर वह रास्ता बदल लेती है और वही पहुँचती है जहाँ वे(विमर्श) पहुँचाना चाहते हैं। यह कहानी वहाँ तक अच्छी है जहाँ तक अलग-अलग पुरुष उसकी जिंदगी में आते हैं। श्रेया को उस हर किसी के जीवन में और व्यक्तित्व में कुछ ऐसी विसंगतियाँ दीखती हैं जो उसकी अस्मिता के विरुद्ध हैं और जो उसे सहज स्वीकार्य नहीं हो पातीं। यहाँ तक तो ठीक है पर कहानी इसके आगे स्वयं को एक हड़बड़ी में समेटती वही नाटकीय ढंग से अंत तक पहुँचकर खत्म हो जाती है। मुझे लगता है कि कहानी में विचारधारा और विमर्श का घोल चित्रकला के रंग संयोजन की बारीकियाँ लिए होना चाहिए । रश्मि शर्मा की कहानी की भाषिक संरचना आकर्षक एवं काव्यात्मक है।कथात्मक बुनावट भी दिलचस्प है।उन्हें शुभकामनाएँ।

    Reply
  8. NavRatan says:
    4 years ago

    अरे ! वाह!!! बहुत खूबसूरत कहानी बुनी है…और ये हिम्मतवर कहानी भी है…हमारे यहां महिला लेखिकाएं कम हैं…जो मन का लिखने की हिम्मत कर जाती हैं,…मुद्दत कोई बेहतरीन कहानी पढ़ी… बधाई!!!
    लेकिन … आखिर में इतनी भी क्या जल्दी थी…बड़े गौर से सुन रहा था जमाना…..खैर!!! पुनः पुनः बधाई…💐😊🙏

    Reply
  9. Sangita Kujara Tak says:
    4 years ago

    आज के परिवेश की कहानी…बहुत बढ़िया
    चिड़िया की आँख पर फ़ोकस है,लिखती रहो ।

    Reply
  10. Anonymous says:
    4 years ago

    कहानी अच्छी है लेकिन नयापन कुछ भी नहीं है।

    Reply
  11. Jai mala says:
    3 years ago

    कहानी में प्रवाह ऐसा है कि दोबारा पढ़ने के बाद भी नया सा लगा ।
    आप इसी तरह लिखते रहें । असीम शुभकामनाएं !

    Reply
  12. नूपुर अशोक says:
    12 months ago

    बहुत अच्छी लगी कहानी। कथ्य के साथ साथ भाषा और शिल्प भी अनूठे लगे। कथा का प्रवाह और रोचकता पाठक को बाँधे रखती है। अंत थोड़ा अचानक सा लगा। फिर भी आज की स्त्री के मनोभावों का सफल चित्रण करने के लिए रश्मि को साधुवाद!

    Reply

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