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समालोचन

Home » राहतें और भी हैं: रश्मि शर्मा » Page 4

राहतें और भी हैं: रश्मि शर्मा

रश्मि शर्मा की कहानी, ‘राहतें और भी हैं’ पढ़ते हुए अनामिका का यह कथन याद आता रहा कि ‘“नई स्त्री बेतरहा अकेली है. क्योंकि उसको अपने पाये का धीरोदात्त, धीरललित, धीरप्रशांत नायक अपने आसपास कहीं दिखता ही नहीं. गाली बकते, ओछी बातें करते, हल्ला मचाते, मार-पीट, खून-खराबा करते आतंकवादी या टुच्चे पुरुष से प्रेम कर पाना या उसे अपने साथ सोने के लायक समझना किसी के लिए भी असंभव है. स्त्रियों का जितना बौद्धिक और नैतिक विकास पिछले तीन दशकों में हुआ है, पुरुषों का नहीं हुआ.” कहानी प्रस्तुत है.

by arun dev
July 21, 2021
in कथा, साहित्य
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कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत
जिसका जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो खामोश है
(नातिक लखनवी)

नोट पैड पर लिखा अगला नंबर अमि‍ताभ का है.  ब्लॉगिंग के शुरुआती दिनों में उनसे परिचय हुआ था.  फि‍र फेसबुक तक आते-आते उनसे अच्छी ख़ासी दोस्‍ती हो गई.  हम मि‍ले नहीं हैं आज तक, मगर एक-दूसरे को समझते हैं.  हाँ, फोन पर जरूर बातचीत होती है. वक्‍त का हिसाब लगाऊँ तो सात-आठ साल से अधि‍क हो गये हमारी दोस्‍ती को.  हम बिंदास बात करते हैं.  बि‍ना कि‍सी शि‍कवे-शि‍कायत और तकल्लुफ के.

उनके फोन उठाते ही मैंने कहा -”सुनो अमि‍त…आमि‍ तोमाके भालोवासी”

एक हल्‍की हंसी तैरी…जैसे कि‍लकारी.

नहीं सोचा था कि‍ फोन उठाते ही ऐसा कुछ कहूंगी.  कभी-कभी प्‍यार से उनका नाम शार्टकट में ‘अमि‍त’ बुलाती हूं, मगर इस तरह की बात नहीं कही थी कभी, न ही उन्‍होंने कभी कोई ऐसी-वैसी बात कही.  हालांकि‍ बहुत बार चि‍ढ़ाती रहती हूं उन्हें कि‍सी न कि‍सी बात से. आज इतनी मुखर कैसे हो गई, मुझे भी समझ नहीं आया.

उधर चुप्‍पी तैरती रही कुछ देर….

”क्‍या हुआ?” इस चुप्‍पी से घबराहट हुई मुझे.

”आज इतनी बड़ी बात कैसे कह दी तुमने लड़की…” बहुत शांत लगी आवाज, मगर संतुष्‍ट-सी.

”जो फील करती थी कह दि‍या…जाने फि‍र कभी कहूं या नहीं.  आप मेरे लि‍ए दोस्‍त, सलाहकार, अभि‍भावक सब हैं. ” यह कहते हुए उदासी की एक परत फि‍र मेरे आसपास घि‍रने लगती है.

”तुम उदास हो?”

”नहीं तो. ” आवाज में थोड़ी शरारत घोलते हुए मैंने पूछा – ” आपको लगता था कि‍ ऐसा कभी कहूंगी मैं?”

”मैं जानता था तुम मुझसे प्‍यार करती हो…. पर इस अहसास से ज्यादा इस बारे में तुम्हारी चुप्पी मुझे ज्यादा प्रभावित करती थी.  तुम औरों से हमेशा अलग लगी… और तुम्हारा यही अलहदापन मुझे तुमसे जोड़े रखा. ‘’

अमिताभ के इस कोमल अंदाज को पहचानती हूं मैं…एक क्षण में जाने कि‍तनी आवाजें कौंध गई कानों में.  मेरे चुप्पी को पहचानने वाले इस शख्स ने क्या कभी अपनी चुप्पियों को भी पढ़ा होगा? अमि‍ताभ कहे जा रहे थे… ”हम इतने सालों से जुडे हैं, बि‍ना कि‍सी अपेक्षा के, बि‍ना मि‍ले.  मैं इंसान पहचानता हूं श्रेया.  जीवन ऐसे ही नहीं गुजारा है. ” उनकी गंभीर आवाज कुछ और गंभीर हो गई है.

”श्रेया…तुमने कालाबाजार फि‍ल्‍म देखी है?”

”नहीं…”

“देवानंद की फि‍ल्‍म है.  जब यह फि‍ल्‍म आई थी मैं कॉलेज में पढ़ता था.  उसमें वह आधी रात को खोया-खोया चांद गाता हुआ लहराकर चलता है, उसे देखकर मेरे अंदर एक टीस उठती थी.  कोई टीस भी इतनी प्यारी हो सकती है, मैंने तभी जाना था.  सिर्फ उस टीस को महसूस करने के लिए मैंने वह फिल्म सात बार देखी थी… जमाने बाद आज फिर वही टीस मेरे भीतर उठ रही है ”

अपने लिए अमिताभ के लगाव को मैं खूब समझती थी लेकिन, इस तरह वह मुखर होकर वह कभी प्रकट भी करेंगे मैंने भी नहीं सोचा था. अभी वे अपनी रौ में हैं… ”श्रेया! मैं मरने से पहले एक बार तुमसे मि‍लना चाहता हूं.  तुम्‍हें देखना चाहता हूं.  बि‍ना मि‍ले मर गया तो बहुत अफसोस होगा. ”

अमि‍ताभ की ज़िंदगी मेरे लिए खुली कि‍ताब की तरह है.  हर छोटी-बड़ी घटना उन्‍होंने शेयर की है मुझसे.  मेरे देखते ही देखते उन्‍होंने पहले अपना बेटा खोया और फि‍र पत्‍नी.  हम तब उतने करीब नहीं थे जब उनके जवान बेटे की एक्‍सीडेंट में मौत हो गई थी.  उनकी पत्नी बेटे की असमय मौत का वह सदमा नहीं झेल सकीं और कोई साल भर के भीतर ही वह भी नहीं रहीं.

उन्हीं दिनों हमारे बीच फोन का सिलसिला बढ़ा था.  हमारे बीच उम्र का अधि‍क ही फासला था मगर दोस्‍ती में इसका जरा भी अहसास नहीं होता था.  उम्र के इस पड़ाव पर एकाकी होना कि‍तना कष्‍टप्रद है, मैं समझती हूं.  बावजूद इसके खुद को संभाले रहने का जो हुनर उनके पास है, मैं उसकी कायल हूँ.  जिंदगी के हर क्षण को पूरी शिद्दत से जीनेवाला ऐसा कोई दूसरा इंसान मैंने नहीं देखा.  वास्‍तव में मैं उन्‍हें पसंद करती हूं और उनकी बेहद इज्‍जत भी करती हूं.  पर हर पसंद और चाहत की रंगत एक सी कहाँ होती है.  इतने लंबे समय से यदि हम दोस्त बने हुए हैं तो इसका कारण भी हमारी चाहतों के ये अलहदा रंग ही हैं.

”सुबह से आसमान में बादल थे, हवा भी चल रही थी. अब बारिश भी होने लगी है.  मैं अलगनी से कपड़े समेट लूं, फि‍र बात करूंगा…बहुत सी बातें कहनी-सुननी है.  मैं आता हूं…इंतजार करना.”

अमि‍ताभ की आवाज बता रही है कि‍ वह कितने खुश और उत्‍साहि‍त हैं.  उनसे जब भी बात होती है मैं पॉज़िटिव एनर्जी से भर जाती हूँ. मेरे भीतर एक खास तरह की खुशी फैलने लगती है.  कोई इंसान दूर रहते हुए भी कभी-कभी इतना करीब हो जाता है कि‍ आप कभी उस दूरी को महसूस ही नहीं करते.

राजीव के सामने मैं जितनी प्रैक्‍टि‍कल और स्‍वार्थी होती हूँ, अमिताभ के सामने उतनी ही इमोशनल हो जाती हूँ.  जब इनसे दोस्ती गहरी हुई राजीव से मैं खुद को अलग कर चुकी थी.  उसे भूलने की कोशिश में खुद को व्यस्त रखना चाहती थी.  दिन तो फिर भी किसी तरह गुजर जाता, रात दुख और अकेलेपन के स्याह समंदर की तरह आती थी.  उन्हीं दिनों ब्लॉग लिखने की आदत लगी थी.  अमिताभ के लिखे शब्दों से दुख और अकेलेपन की जो आकृतियाँ मेरे आगे उभर कर आतीं, मुझे बहुत अपनी-सी लगतीं.  हम दोनों भले अकेले हों पर हमारा अकेलापन दो तरह का था.  पर उनको पढ़ते-सुनते मैंने यह महसूस किया कि दुनिया के हर दुखों के बीच एक खास तरह का साझापन होता है.  दुखों की यही साझेदारी हमारे रिश्ते का आधार थी.

अमिताभ के साथ अपने रिश्ते की किताब पलटते कोई आधा घंटा गुजर गया पर उनका फोन नहीं आया.  ऐसा आज तक कभी नहीं हुआ कि उन्होंने कहा हो और पलटकर फोन नहीं किया.

उनका फोन नहीं आने से मैं बेचैन-सी हो गई हूँ.  मेरे उँगलियाँ बेचैनी में फिर से उनका नंबर डायल कर रही हैं… हड़बड़ी में उनका नंबर कई-कई बार डायल करती हूँ पर हर बार डायल्ड नंबर के आउट ऑफ कवरेज एरिया होने की वही सूचना सुनाई पड़ती है.  मन में जाने क्यों किसी अनिष्ट की आशंका हो रही है.  पर खुद को समझाने का जतन करती हूँ… बारिश हो रही थी, नेटवर्क चला गया होगा.  नेटवर्क बहाल होते ही उनका फोन जरूर आएगा.

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Tags: रश्मि शर्मा
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Comments 12

  1. Mukti Shahdeo says:
    4 years ago

    बेहद खूबसूरत कहानी के लिए बधाई रश्मि शर्मा!

    Reply
  2. प्रवीण कुमार says:
    4 years ago

    मैं सोच रहा था कि यादि पुरुष लेखक होता तो यह कहानी किस तरह लिखता । शायद वह चीज कभी नहीं मिलती पढ़ने को । रश्मि जी ने स्त्री मन के अकथ प्रदेश को कुरेदा है ।

    Reply
  3. Dr. Meeta Bhatia says:
    4 years ago

    बहुत सोचा क्या लिखूं शब्द साथ नहीं दे रहे । भावनाएं झकझोर रही हैं रश्मि जी। नारी मन की ऐसी व्याख्या… आप खूब लिखे … लिखती जाएँ… शुभकामनायें

    Reply
  4. Dr. Meeta Bhatia says:
    4 years ago

    बहुत खूबसूरत रचना ।एक लंबी कहानी का फ्लो बनाए रखने के लिए साधुवाद ।
    नारी मन को बहुत अच्छी तरह उकेरा है आपने।
    ढेरों बधाई और शुभकामनाएं
    लिखते रहिए …..लिखते रहिए

    Reply
  5. राकेश बिहारी says:
    4 years ago

    एक आधुनिक लड़की के अकेलेपन की विश्वसनीय छवियों से विनिर्मित कहानी. हर हिस्से के आरंभ में उद्धृत शेर अकेलेपन के संदर्भित रंग और उसकी व्यंजना को और सघन करते हैं. ‘आगे क्या होगा’ की उत्सुकता कहानी में आद्योपांत बनी रहती है. कहानी में वर्णित उपकथाएँ कहानी के अंत से मिलकर आधुनिक स्त्री के अंतः और बाह्य के बीच उपस्थित फ़ासले को जिस तरह रेखांकित करती हैं, वही इस कहानी का हासिल है. आपने कहानी प्रस्तुत करते हुए अनामिका के जिस कथन को रेखांकित किया है, वह इस कहानी के मर्म से सहज ही संबद्ध है.

    Reply
  6. हीरा सिंह says:
    4 years ago

    प्रेम में डूबी हुई अकेलेपन की रोचक कहानी ,एक ही साँस में पढ़ जाने की इच्छा आगे क्या होगा की जिजीविषा कहानी को मधुर बना देती है , अवचेतन मन में छिपा प्रेम बाहर आने को बेक़रार दिखता है , कहानी में स्त्री मन अपने में सिमटी हुई प्यार में डूबी हुई कभी संकुचित कभी उद्धेलित दिखती है !

    Reply
  7. दयाशंकर शरण says:
    4 years ago

    आजकल लिखी जा रही हिन्दी कहानियों की एक प्रवृत्ति यह है कि वे बहुत अच्छे विषय को लेकर चलती हैं, काफी दूर तक सही रास्ते पर चलती हैं पर अंत में रास्ता भूल कहीं और पहुँच जाती हैं। कहानी पर अगर कोई वाद या विमर्श हावी हो,तो अक्सर वह रास्ता बदल लेती है और वही पहुँचती है जहाँ वे(विमर्श) पहुँचाना चाहते हैं। यह कहानी वहाँ तक अच्छी है जहाँ तक अलग-अलग पुरुष उसकी जिंदगी में आते हैं। श्रेया को उस हर किसी के जीवन में और व्यक्तित्व में कुछ ऐसी विसंगतियाँ दीखती हैं जो उसकी अस्मिता के विरुद्ध हैं और जो उसे सहज स्वीकार्य नहीं हो पातीं। यहाँ तक तो ठीक है पर कहानी इसके आगे स्वयं को एक हड़बड़ी में समेटती वही नाटकीय ढंग से अंत तक पहुँचकर खत्म हो जाती है। मुझे लगता है कि कहानी में विचारधारा और विमर्श का घोल चित्रकला के रंग संयोजन की बारीकियाँ लिए होना चाहिए । रश्मि शर्मा की कहानी की भाषिक संरचना आकर्षक एवं काव्यात्मक है।कथात्मक बुनावट भी दिलचस्प है।उन्हें शुभकामनाएँ।

    Reply
  8. NavRatan says:
    4 years ago

    अरे ! वाह!!! बहुत खूबसूरत कहानी बुनी है…और ये हिम्मतवर कहानी भी है…हमारे यहां महिला लेखिकाएं कम हैं…जो मन का लिखने की हिम्मत कर जाती हैं,…मुद्दत कोई बेहतरीन कहानी पढ़ी… बधाई!!!
    लेकिन … आखिर में इतनी भी क्या जल्दी थी…बड़े गौर से सुन रहा था जमाना…..खैर!!! पुनः पुनः बधाई…💐😊🙏

    Reply
  9. Sangita Kujara Tak says:
    4 years ago

    आज के परिवेश की कहानी…बहुत बढ़िया
    चिड़िया की आँख पर फ़ोकस है,लिखती रहो ।

    Reply
  10. Anonymous says:
    4 years ago

    कहानी अच्छी है लेकिन नयापन कुछ भी नहीं है।

    Reply
  11. Jai mala says:
    3 years ago

    कहानी में प्रवाह ऐसा है कि दोबारा पढ़ने के बाद भी नया सा लगा ।
    आप इसी तरह लिखते रहें । असीम शुभकामनाएं !

    Reply
  12. नूपुर अशोक says:
    12 months ago

    बहुत अच्छी लगी कहानी। कथ्य के साथ साथ भाषा और शिल्प भी अनूठे लगे। कथा का प्रवाह और रोचकता पाठक को बाँधे रखती है। अंत थोड़ा अचानक सा लगा। फिर भी आज की स्त्री के मनोभावों का सफल चित्रण करने के लिए रश्मि को साधुवाद!

    Reply

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