ऑस्कर वाइल्ड
रेडिंग जेल कथा
अनुवाद और टिप्पणी: कुमार अम्बुज
”दे बैलैड ऑव रेडिंग जेल” उन्नीसवीं सदी के महत्वपूर्ण आइरिश कवि, लेखक, नाटककार ऑस्कर वाइल्ड की प्रसिद्ध कविता है. इस कविता को ‘जेल की कोठरी से एक चीख’ भी कहा गया है. वाइल्ड को समलैंगिकता के अपराध में दो वर्ष का कठोर, सश्रम कारावास की सजा दी गई थी. यह उनके तथाकथित अपराध की तुलना में निर्मम सजा थी.
इंग्लैंड के रेडिंग कस्बे की जेल में इस सजा का आखिरी दौर भुगतते हुए वे, पत्नी की हत्या के आरोपी, एक कैदी के मृत्युदण्ड के साक्षी बने. उस प्रसंग और बहाने से जेल, वहॉं के वातावरण, जेलबंदियों की दुर्दशा, यातना और आतंक को लेकर यह कविता लिखी गई. अंतत: यह किसी एक कैदी के बारे में न होकर, जेल के व्यापक संत्रास, अवसाद, मृत्युभय, जीवन से उकताहट, नारकीय अनुभवों और अमानवीयता को अपना विषय बनाती है.
शेक्सपियर के ‘मर्चेंट ऑव वेनिस’ की एक पंक्ति की भावना और प्रश्न को यह उलट कर कहती है कि ‘आखिर हर आदमी उसे मार देता है जिसे प्यार करता है’.
जेल की सजा पूरी करने के तत्काल बाद वाइल्ड फ्रांस चले जाते हैं और 1897 में यह कविता लिखते हैं. प्रारंभिक संस्करणों में कवि के नाम की जगह C.3.3 प्रकाशित हुआ. यह जेल में उनकी कोठरी का पता था. जेल में किसी को नाम से नहीं, कोठरी के पते से ही पुकारा और पहचाना जाता था. ब्लॉक-सी, तीसरा तल, कोठरी नंबर तीन. यानी सी थ्री थ्री. वाइल्ड काफी बदनाम हो चुके थे इसलिए पहले प्रकाशन के दो वर्ष बाद 1899 में, कविता को मिली सफलता उपरांत, सातवें संस्करण में ऑस्कर वाइल्ड का नाम प्रकाश में लाया गया.
छह भागों में विभक्त, छह-छह पंक्तियों के 109 स्टैंजा की इस काफी लंबी कविता से अनुवाद के लिए मैंने अपनी रुचि के आधार पर पॉंचवे तथा छठे भाग के सभी बीस, एवं पहले भाग से दो स्टैंजा चुने हैं. ऑस्कर वाइल्ड ने कविता के पहले भाग में आ चुके एक स्टैंजा से, छठे भाग का अंत किया है. इस अंतिम स्टैंजा के बाद, पहले भाग के उन दो स्टैंजा को रखा है क्योंकि उससे कविता का मूल स्पष्ट होता है. यहॉं प्रस्तुत अंतिम तीन स्टैंजा कविता के सर्वाधिक प्रसिद्ध हिस्से भी हैं.
इस कविता का पर्याप्त हिस्सा रिपोर्ताज शैली में है हालाँकि जगह-जगह रूपकों और बिंबों की उपस्थिति इसे कविता होने के दायरे में बनाए रखती है. कुछ स्टैंजा उत्कृष्ट कविता के नमूने पेश करते ही हैं.
चयनित हिस्सों के अनुवाद का आशय इस कविता के प्रति ध्यानाकर्षण और याददेहानी है. यदि इससे पाठकों में पूरी कविता के लिए दिलचस्पी होती है तो यह अंग्रेजी में आसानी से इंटरनेट पर उपलब्ध है. कविता में बाइबिल में आए प्रसंगों और मिथक के कुछ संदर्भ हैं. जिनमें आदम-हौआ के पुत्र कैन द्वारा अपने सगे भाई एबेल की हत्या का जिक्र है. उन दो जगहों पर ** का चिन्ह है. बाकी मिथकीय संदर्भ सहज हैं.
अनुवाद का यह प्रयास भावानुवाद के करीब है. इस में कई कमियाँ, गलतियाँ हैं. यह सब उत्साह का नतीजा है लेकिन इससे हिंदी पाठकों को एक जरूरी परिचय अवश्य मिलेगा.

ऑस्कर वाइल्ड
रेडिंग जेल कथा
मैं नहीं जानता कि कानून सही हैं
या कि गलत हैं कानून
हम जो जेल में पड़े हैं, बस यह जानते हैं
कि दीवार मजबूत है
और हर एक दिन एक वर्ष की तरह बीतता है
ऐसा वर्ष जिसके दिन बहुत लंबे हैं
लेकिन जानता हूँ कि हरेक कानून
जो आदमियों ने आदमी के लिए तबसे बनाया है
जब पहली बार आदमी ने अपने भाई की जान ली **
और इस दुख भरी दुनिया की शुरुआत हुई
लेकिन सबसे खराब बुराई के पंखे की हवा में
गेहूँ फेंक दिया जाता है और भूसा बच जाता है
मैं यह भी जानता हूँ, और बेहतर होगा
हरेक आदमी इसे जान ले
कि प्रत्येक कारागार जो आदमी बनाते हैं
वे तामीर किए जाते हैं अपमान की ईंटों से
सब तरफ से कर दिए जाते हैं बंद कि कहीं मसीह देख न ले
कि आदमी किस तरह अपने ही भाइयों को देता है यातना
सींखचों में वे उज्ज्वल चंद्रमा को धुँधला बना देते हैं
और खूबसूरत सूर्य को बना देते हैं अंधा
और अपने इस नरक को छिपाते हैं सबसे
कि जो कुछ यहाँ किया जाता है उसे
न ईश्वर का बेटा और न ही आदमी की संतान
कभी देख सके
विषैली खरपतवार की तरह उनके घटिया कारनामे
खूब फलते-फूलते हैं जेल की आबो-हवा में
तब मनुष्य की तमाम अच्छाई
निरर्थक होकर कुम्हला जाती है
निस्तेज व्यथा पहरा देती भारी दरवाजे पर
और मायूसी से भरा रहता है संतरी
वे नन्हे डरे-सहमे बच्चे को भूखा रखते हैं
जब तक कि वह दिन-रात रोता ही न रहे
कमजोरों पर फटकारते हैं कोड़े, मंदबुद्धियों पर
चलाते हैं चाबुक और ताने मारते हैं बूढ़ों, बुजुर्गों पर
और कुछ पागल हो जाते हैं, और सब हो जाते हैं बीमार
और कोई एक शब्द भी नहीं कह सकता
हरेक तंग कोठरी में, जिसमें हम रहते हैं
बदबू है और अँधेरे से भरे शौचालय
और मृत जीवितों की दुर्गंध से भरी सॉंसें
जो नक्काशीदार जालियों को चोक कर देती हैं
और सब कुछ, सिवाय लालसा के,
मानवजाति की मशीन में धूल-धूसरित हो जाता है
जो खारा पानी हम पीते हैं
वह उबकाई भरी गंदगी की तरह हलक में उतरता है
और कड़वी ब्रैड जो मिलती है नाप-तौलकर
भरी होती है मिट्टी और कंकरों से
और नींद बिस्तर से दूर घूमती है ऑंखें फाड़े
काटे नहीं कटती रात
मगर बावजूद इसके कि भूख और प्यास
हरे विषैले सर्प और काले नाग की तरह युद्ध करते हैं
हम बहुत कम परवाह करते हैं जेल की रोटियों की
क्योंकि जो चीज कसकती है और मार डालती है
वह पत्थर है जिसे दिन भर उठाना पड़ता है
रात आते-आते वही आदमी का हृदय बन जाता है
आधी रात हमेशा एक आदमी के दिल में
और उसकी कोठरी के धुँधलके में
हम एक फंदा उतारते हैं या रस्सी को काटते हैं
हर कोई अपने अलग नर्क में
और चुप्पी कहीं ज्यादा भयानक लगती है
पीतल के घंटे की आवाज के बनस्बित
और कहीं मनुष्य की आवाज आसपास नहीं
जो कहती हो कोई कोमल शब्द
और वह ऑंख जो दरवाजे से निगाह रखती है
निर्दयी है और कठोर
और कुछ याद नहीं रह पाता सिवाय सडॉंध के
जिससे सन जाती है आत्मा और देह
और इस तरह हम हमारे जीवन के लोहे में
जंग लगाते हैं, अपमानित और अकेले
और कुछ लोग शाप देते हैं और कुछ लोग रोते हैं
और कुछ आदमी बिल्कुल अफसोस नहीं करते
लेकिन ईश्वर के शाश्वत कानून दयालु हैं
और तोड़ देते हैं पत्थर का भी हृदय
और हर आदमी जिसका दिल टूट जाता है
जेल की बैरक या बरामदे में वह एक
ऐसा टूटा संदूक है जिसके भीतर का खजाना
ईश्वर को दे दिया गया हो
और सराबोर कर दिया हो
किसी गंदे कोढ़ी घर को महँगे इत्र से
आह, वे खुशनसीब हैं जिनके दिल टूट जाते हैं
और क्षमादान की शांति छा जाती है
कोई आदमी सीधी सच्ची योजना कैसे बनाए
और कैसे धोए अपनी आत्मा का कलुष
और किस तरह भला एक टूटे हुए हृदय में
प्रवेश कर सकता है ईश्वर मसीह
और वह सूजे हुए बैंगनी गले के साथ
और कठोर घूरती हुई ऑंखों के साथ
प्रतीक्षा करता है उन पवित्र हाथों की
जो चोर को भी स्वर्ग ले जाते हैं
और यह कि टूटे, पछतावे भरे हृदय से
ईश्वर घृणा नहीं करेगा
वह आदमी जो लाल पोषाक में कानून बॉंचता है
उसे जीवन के तीन हफ्ते दिए
कि उन तीन सप्ताहों के संक्षिप्त समय में वह
अपनी आत्मा में उठते द्व्ंद से बने घाव भर ले
और खून के हर धब्बे को उस हाथ से
साफ कर ले जिसने चाकू उठाया
और उसने खून के ऑंसुओं से हाथ को साफ किया
उस हाथ को जिसने चमचमाता फाल पकड़ा था
क्योंकि खून ही खून को साफ कर सकता है
और केवल ऑंसू ही भर सकते हैं घाव
और तब कैन का वह सुर्ख लाल रंग का धब्बा
मसीह की बर्फ जैसी सफेद मुद्रा में बदल जाता है**
रेडिंग कस्बे के पास रेडिंग जेलखाने में
शर्म का एक गढ्ढा है
जिसमें पड़ा रहता है एक बदनसीब आदमी
जिसे अग्नि अपने दॉंतों से चबाकर खाती है
वह लिपटा है जलती हुई चादर में
और उसकी कब्र का कोई नाम नहीं है
और वहॉं जब तक मसीह उस मृतक को
अपने पास नहीं बुलाते, उसे वहीं शांति से रहने दो
उस पर कोई भावुक ऑंसू बर्बाद करने की जरूरत नहीं
या कोई गहरी उसॉंस भरने की
इस आदमी ने उसे मारा है जिसे वह प्यार करता था
इसलिए इसे भी मरना ही होगा
अंतत: आदमी उसे मार ही डालते हैं जिसे वे प्यार करते हैं
सब इस बात को अच्छी तरह सुन लें
कुछ तीखी निगाह से मार देते हैं
कुछ चापलूसी के शब्दों से
कायर इस काम को चुंबन लेकर करते हैं
और बहादुर आदमी तलवार से
कुछ अपनी जवानी में अपने प्यार की हत्या कर देते हैं
और कुछ लोग अपने बुढ़ापे तक आते-आते
कुछ अपनी हवस के हाथों गला घोंट देते हैं
कुछ अपनी संपन्नता के हाथों से
सबसे दयालु लोग चाकू का इस्तेमाल करते हैं
क्योंकि इससे आदमी जल्दी ही मर जाता है
कुछ लोग थोड़ी देर तक प्यार करते हैं, कुछ ज्यादा अरसे तक
कुछ बेच देते हैं, और दूसरे खरीद लेते हैं
कुछ लोग ऑंसू बहाकर यह काम करते हैं
और कुछ बिना एक भी आह भरे
आखिर हर आदमी उसे मार देता है जिसे प्यार करता है
हालॉंकि हर आदमी इससे मर नहीं जाता है.
कुमार अंबुज कविता-संग्रह-‘किवाड़’, ‘क्रूरता’, ‘अनन्तिम’, ‘अतिक्रमण’, ‘अमीरी रेखा’ और कहानी-संग्रह- ‘इच्छाएँ’ और वैचारिक लेखों की दो पुस्तिकाएँ-‘मनुष्य का अवकाश’ तथा ‘क्षीण सम्भावना की कौंध’ आदि प्रकाशित. कविताओं के लिए मध्य प्रदेश साहित्य अकादेमी का माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, भारतभूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार, श्रीकान्त वर्मा पुरस्कार, गिरिजाकुमार माथुर सम्मान, केदार सम्मान और वागीश्वरी पुरस्कार आदि प्राप्त. kumarambujbpl@gmail.com |
ओह उफ्फ, कितने भयावह संत्रास और दर्द को सच के साथ उघाड़ देती है, यह कविता एक ही सांस में पढ़ गया ! एक लम्बे विमर्श का विषय है यह भी, कैदियों के जीवन और उनकी दिक्क़तो को लेकर वर्तिका नंदा जी की एक किताब ” तिनका तिनका डासना ” आई थी ! बहरहाल ये कविता और अम्बुज जी का अनुवाद बहुत यथार्थ के साथ कविता के मर्म को छू कर पाठकों तक पहुंचता है, यह वाह नहीं, आह
निकालती है ! सार्थक चयन व समर्थ अनुवाद !
आस्कर वाइल्ड की लम्बी कविता में डरावनी त्रासदी से गुजरते हुए सच से आमना-सामना होता है ‘ कारागार आदमी बनाते हैं और अपमान की ईंटों में ‘ मानवीयता के कई चित्र, बिम्ब चित्रित हो जाते हैं.
कुमार अंबुज जी की टिप्पणी परत-दर- परत खोलती चलती है.
अरुण देव जी का चयन व अंबुज जी के सहकार से कविता पढ़ने को मिली, दोनों के प्रति आभार.
वंशी माहेश्वरी.
तत्कालीन ब्रिटिश समाज जो पाखण्ड और आडम्बर को एक नैतिक मूल्य की तरह देखता था, ऑस्कर वाइल्ड ने अपने व्यंग्य लेखन से उनपर चोट किया। कहा था, पत्रकारिता और साहित्य में अंतर है कि पत्रकारिता पढ़ने लायक नहीं है और साहित्य को कोई पढ़ता नहीं। अपने एक नाटक में लिखा कि सच्चाई शायद ही पवित्र होती है और सीधी-सादी तो कतई नहीं। यह भी कि जोड़ियाँ अगर स्वर्ग में बनती हैं तो तालाक भी वही होते हैं। ये सब विक्टोरियन समाज पर व्यंग्य था। कुछ लोगों की ये धारणा है कि वे मानते थे कि कला के लिए कला होती है। पर जिसके साहित्य में इतना व्यंग्य भरा हो,ऐसा प्रतीत नहीं होता। अंबुज जी ने उस जेल यातना पर लिखी कविता का भावानुवाद काफी अच्छा किया है।उन्हें साधुवाद !
उफ़. झकझोर कर रख देती है कविता. बिल्कुल मौलिक कविता का आनंद है इसमें. बहुत बढ़िया अनुवाद है.
बहुत बढ़िया अनुवाद। इस कविता से परिचय कराने के लिए प्रिय कवि कुमार अम्बुज और समालोचन का आभार।
क्या अद्भुत कविता है. रोम- रोम कांप उठे हैं.
नंदकुमार कंसारी
ऑस्कर वाइल्ड को जिस कथित अपराध के लिए जेल में डाला गया था, उसके बारे में थोड़ा पढ़ा था, लेकिन उनके रचना संसार से बिलकुल वाकिफ़ नहीं था
कुमार अंबुजजी को बधाई कि उन्होंने उम्दा अनुवाद करके इस रचना संसार को अधिक जानने की हसरत पैदा की।
साथियों, मित्रों की पसंदगी के लिए धन्यवाद।
यह कविता अनुवाद के लिए एकाधिक मायनों में अनुवाद के लिए चुनौतीपूर्ण है, कठिन है लेकिन इसकी अंतर्वस्तु महत्त्वपूर्ण है। इसलिए ही यह कोशिश की गई। अरुण देव ने इस प्रयास का महत्व समझा।
सूचनार्थं: वाइल्ड का एकमात्र उपन्यास The portrait of Dorian Gray भी बहुत अच्छा है और उस पर बनी फ़िल्म भी।
बहुत सुन्दर सृजन
कुमार अंबुज कितना सार्थक और उल्लेखनीय काम कर रहे हैं। अंत के पैरा ने सोचने पर वोवश कर दिया।