• मुखपृष्ठ
  • समालोचन
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
No Result
View All Result
समालोचन

Home » विश्व की दस उत्कृष्ट प्रेम कविताएँ: अनुवाद अरुण कमल

विश्व की दस उत्कृष्ट प्रेम कविताएँ: अनुवाद अरुण कमल

लखनऊ के शायर मीर हसन का एक शेर है- ‘कूचा-ए-यार है और दैर है और काबा है / देखिए इश्क़ हमें आह किधर लावेगा.’ प्रेम से कविता का बहुत ही नज़दीकी रिश्ता है. शायद ही कोई भाषा हो जिसकी कविता में इश्क के गीत न लिखे गये हों. विश्व-प्रसिद्ध कुछ प्रेम कविताओं में से दस का चयन करके हिंदी के वरिष्ठ और महत्वपूर्ण कवि अरुण कमल ने उनका अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया है. चयन और अनुवाद दोनों ऐसे उपक्रम हैं जिनके समानांतर तमाम रेखाएं चलती हैं. ख़ुद अनुवादक ने स्वीकार किया है– ‘अपने ही पैर की गर्द से घर गंदा हो जाता है’. यह ख़ास आयोजन ख़ास आपके लिए प्रस्तुत है.

by arun dev
August 10, 2022
in अनुवाद
A A
विश्व की दस उत्कृष्ट प्रेम कविताएँ: अनुवाद अरुण कमल
फेसबुक पर शेयर करेंट्वीटर पर शेयर करेंव्हाट्सएप्प पर भेजें

विश्व की दस उत्कृष्ट प्रेम कविताएँ

अनुवाद: अरुण कमल

Pablo-Neruda

1.
आज रात मैं लिख सकता हूँ सबसे उदास पंक्तियाँ
पाब्लो नेरुदा

उदाहरण के लिए, लिख सकता हूँ, रात टूट-बिखर चुकी है
और नीले तारे सुदूर काँप रहे हैं

रात की हवा आकाश में घूम रही है और गा रही है

आज रात मैं लिख सकता हूँ सबसे उदास पंक्तियाँ
मैंने उसे प्यार किया, और कभी कभी उसने भी मुझको प्यार किया

ऐसी रातों में मैंने उसे अपनी बाँहों में भरा
चूमा बार बार चूमा अंतहीन आसमान के नीचे

कभी कभी उसने मुझे प्यार किया, और मैंने भी उसे प्यार किया
कैसे कोई उन बड़ी शांत आँखों को प्यार न करता

आज की रात मैं लिख सकता हूँ सबसे उदास पंक्तियाँ
सोच कर कि वह नहीं है मेरे पास, कि मैं उसे खो चुका हूँ

इतनी बड़ी रात को सुनना, और भी बड़ी उसके बगैर यह रात
गिरती है आत्मा पर कविता जैसे मैदान पर ओस

इससे क्या कि मेरा प्यार उसे रख न सका पास
रात बिखर चुकी है और वह नहीं है मेरे पास

बस यही है. दूर कोई गा रहा है. दूर पर कहीं
मेरा मन नहीं मानता कि मैंने उसे खो दिया है

मेरी आँखें उसे ढूँढ रही हैं मानो पहुँचने को उस तक
मेरा दिल उसे खोज रहा है और वह नहीं है मेरे पास

रात वही है उन्हीं पेड़ों पर सफ़ेदी करती
पर हम नहीं रह गये हैं वही, तब जो थे

मैं अब उसे प्यार नहीं करता यह तो तै है, लेकिन मैंने उसे कितना प्यार किया
मेरी आवाज़ उस हवा को तलाशने की कोशिश करती जो उसे छू सके

दूसरे की. वह दूसरे की होगी. जैसे पहले के मेरे चुम्बन
उसकी आवाज़. उसकी चमकती देह. उसकी अनन्त आँखें

अब मैं उसे प्यार नहीं करता, यह तै है,लेकिन शायद करता भी हूँ
इतना छोटा है प्यार, और भूलना इतना लम्बा

ऐसी ही रातों में मैंने उसे बाँहों में भरा था
मेरा मन मानता नहीं कि मैंने उसे खो दिया

भले यह अंतिम दर्द हो उसका दिया हुआ भोगने को
और ये अंतिम पद जो मैं लिख रहा उसके लिए.

 

Pablo-Neruda

२.
हर दिन तुम खेलती हो…
पाब्लो नेरुदा

हर दिन तुम ब्रम्हाण्ड के प्रकाश के साथ खेलती हो
अगोचर आगन्तुक,तुम उतरती हो फूल में और जल में
हर रोज जो मैं अपने हाथों में कस कर पकड़ता हूँ यह उज्ज्वल माथा
फूलों के गुच्छे की तरह तुम कहीं अधिक हो उससे

तुम किसी और की तरह नहीं हो क्योंकि तुमको मैं प्यार करता हूँ
मैं पसार दूँ तुमको पीली मालाओं पर
दक्षिण में तारों के बीच कौन लिखता है तुम्हारा नाम धुएँ के अक्षरों में?
ओ मैं याद करूँ कैसी रही होगी तुम पहले, अपने होने के पहले

अचानक हवा चीखती है और पीटती है मेरी बंद खिड़की
आसमान धुँधली मछलियों से भरा हुआ जाल है ठसाठस
यहाँ सब हवाएँ चली जाती हैं देर- सबेर सब की सब
बारिश अपने कपड़े उतारती है

चिड़ियाँ भागती जाती हैं
हवा. हवा—
मैं तो केवल मनुष्य की ताक़त से लड़ सकता हूँ—
अंधड़ तेज घुमाती है स्याह पत्ते
और रात में बँधी नावों को खोल देती है आकाश की ओर

तुम यहाँ हो. ओह तुम मत जाना
जवाब देना अंतिम पुकार तक
मुझमें लिपट जाओ मानो तुम डर गयी हो
वैसे भी एक अजीब छाया गुजरी थी तुम्हारी आँखों से एक बार

अभी अब भी मेरी नन्हीं, तुम मेरे लिए लाती हो मोगरे के फूल
और तुम्हारी छातियाँ भी भरी हैं इसकी सुगंध से
जब खिन्न हवा तितलियों का संहार करती फिर रही है
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ और मेरी खुशी काटती है तुम्हारे मुंह का जामुन

तुमने कितना सहा होगा मेरे अभ्यस्त होने में
मेरी अकेली असभ्य आत्मा और मेरे नाम के, जिसे सुनते ही भागते हैं सब
कितनी बार हमने देखा है सुबह के जलते तारे को हमारी आँखें चूमते
और हमारे सिर के ऊपर भूरा प्रकाश उघड़ता है घूमती पंखियों में

मेरे शब्द बरसे तुम्हारे ऊपर, तुम्हें थपथपाते
लम्बे समय तक मैंने प्यार किया है तुम्हारी धूपतपी देह के मोती को
इतना कि मुझे लगा तुम्हीं स्वामिनी हो पूरे ब्रह्मांड की
मैं तुम्हारे लिए पहाड़ों से लाऊँगा प्रसन्न फूल, ब्लूबेल, स्याह हेज़ल, और चुम्बनों से भरीं
खाँचियाँ
मैं तुम्हारे साथ वही करना चाहता हूँ जो वसंत करता है चेरी वृक्षों के साथ.

 

Pablo-Neruda

३.
सॉनेट २५
पाब्लो नेरुदा

तुमसे प्रेम करने के पहले प्रिय कुछ भी नहीं था मेरा
मैं यूँ ही भटकता रहता गलियों में चीज़ सामानों
के बीच
किसी चीज़ का कुछ भी मतलब नहीं था न नाम
यह संसार हवा से बना था, इंतज़ार करता
मैं ऐसे कमरों को जानता था जो राख से भरे थे
उन खोहों को जहाँ रहता था चाँद
कर्कश कारख़ानों को जो गुर्राते ‘भाग जा’
ऐसे सवाल जो रेत में ले जाते
हर चीज़ खाली मृत और ख़ामोश थी
गिरी हुई छोड़ी हुई और विनष्ट
इतनी बाहरी इतनी अलग कि सोचा भी नहीं जा सकता
यह सब किसी और का था- या किसी का नहीं:
जब तक कि तुम्हारी सुन्दरता और दरिद्रता ने
हेमंत को भर न दिया ढेर से उपहारों से.

 

Pablo-Neruda

४.
शायद तुम याद करो
पाब्लो नेरुदा

शायद तुम याद करो उस उस्तरे-से चेहरे वाले आदमी को
जो एक ब्लेड की तरह बाहर निकला था अँधेरे से
और- इसके पहले कि हम जान पाते- वह जान गया सब कुछ जो वहाँ था
उसने धुआँ देखा और कहा आग

काले केशों वाली वह पाण्डुर औरत
एक मछली की तरह उठी अतल से
और दोनों ने मिल एक यंत्र बनाया
प्रेम के विरुद्ध शस्त्रबद्ध

आदमी और औरत, दोनों ने पहाड़ ढाहे और बगीचे
फिर नदी की ओर उतरे, दीवारें फाँदीं
और पहाड़ी पर अपना विचित्र सैन्य सामान जमा दिया

तब प्रेम ने जाना इसे ही कहते हैं प्रेम
और मैंने जब अपनी आँखें तुम्हारे नाम पर उठायीं
तब सहसा तुम्हारे दिल ने मुझे रास्ता दिखाया

Sylvia Plath

 

५.
पागल लड़की का प्रेम गीत
सिल्विया प्लाथ

मैं आँखें बंद करती हूँ और सारी दुनिया मृत पड़ जाती है;
मैं पलकें उठाती हूँ और सब फिर पैदा हो जाता है.
(मैं सोचती हूँ मैंने तुम्हें अपने मन के भीतर गढ़ा था.)

सितारे नाचते चले जाते हैं नीले लाल
और बेतरतीब कालापन सरपट दौड़ता आता है:
मैं आँखें बंद करती हूँ और सारी दुनिया मृत पड़ जाती है

मैंने सपना देखा कि तुम जादू डाल मुझे बिस्तर पर ले गये
और गाकर मुझे मदहोश कर दिया,चूम चूम कर पागल कर दिया.
(मैं सोचती हूँ मैंने तुम्हें अपने मन के भीतर गढ़ा था)

ईश्वर लुढ़कता है आसमान से, नर्क की आग मुरझाने लगती हैः
कूच कर जाते हैं शिशु देवदूत और शैतान के लोग:
मैं आँखें बंद करती हूँ और सारी दुनिया मृत पड़ जाती है.

मैंने सोचा तुम लौटोगे जैसा तुमने कहा था,
लेकिन मैं बूढ़ी हो रही हूँ और भूल रही हूँ तुम्हारा नाम.
(मैं सोचती हूँ मैंने तुम्हें अपने मन में गढ़ा था.)

मुझे वास्तव में गर्जनपाखी से प्रेम करना चाहिए था; कम से कम वसंत में तो वे फिर से गरजते आते हैं.
मैं आँखें बंद करती हूँ और सारी दुनिया मृत पड़ जाती है.
(मैं सोचती हूँ मैंने तुम्हें अपने मन में गढ़ा था.)

 

Federico García Lorca

६.
गुलाब की माला का सॉनेट
फेदेरियो गार्सिया लोर्का

माला, जल्दी से, एक हारः मैं आ गया हूँ और मर रहा हूँ.
गूँथों फूलों को वे मुरझा रहे हैं. गाओ, रोओ और गाओ!
हृदय मेरे कंठ में,एक तूफान उफानता नद को
हजारों प्रपातों से आच्छादित रजतमय.
तुम्हारी अपनी इच्छा और मेरी इच्छा के बीच की जगह
भरी है तारों से, हर डग कँपाता ज़मीन को, उग आएंगे एनिमोन फूलों के वन
वर्ष के अंत पर, अपनी गोपन आवाज़ करते.
मेरे जख्मों के लैंडस्केप में देख सकते हैं प्रेमी,
खुशी खुशी, काटती तरंगों में झुकते सरपत,
और पी सकते हैं मधुमय जंघाओं के लाल ताल से.
जल्दी करो, आओ हम एक दूसरे में गूँथकर एक हो जाएँ,
हमारे मुंह विदीर्ण, हमारी आत्मा डँसी हुई प्रेम से,
ताकि काल को मिलें हम निश्चित विनष्ट.

 

Guillaume Apollinaire

७.
मिराबो पुल
अपॉलीनेयर

मिराबो पुल के नीचे बहती है नदी सीन
जहाँ तक हमारे प्रेम की बात है
मुझे याद आता है कि
हर दुख के बाद आती है खुशी फिर

रात आए, बीतें पहर
दिन भी बीतें, पर यहीं ठहरा रहूँ मैं

हाथ में हाथ डाल आमने-सामने ठहरे रहें हम
और नीचे
हमारे आलिंगन-पुल के नीचे
बहती जाएँ लहरें हमारे ताकते रहने से क्षुब्ध

आए रात, बीतें पहर
दिन भी बीतें, पर यहीं ठहरा रहूँ मैं

प्यार गुजर जाता है जैसे धारा गुजर जाती है
गुजर जाता है प्यार
जीवन कितना लम्बा और सुस्त है
जीवन की उम्मीद देती है कितने ज़ोर की चोट

रात आए ,बीतें पहर
दिन भी बीतें, पर यहीं ठहरा रहूँ मैं

दिन और सप्ताह बहते जा रहे हैं हम से दूर
न लौटेगा बीता समय
न लौटेगा प्यार फिर
बह रही है नदी सीन मिराबो पुल के नीचे

रात आए, बीतें पहर
दिन भी बीतें, पर यहीं ठहरा रहूँ मैं.

 

Chinua Achebe

८.
प्रेम-गीत (अन्ना के लिए)
चिनुआ अचेबे

जरा सा धैर्य धरो मेरी प्रिय
मेरी खामोशी की इस घड़ी में;
हवा भरी है भयंकर अपशकुनों से
और गीतपक्षी मध्याह्न के प्रतिशोध के भय से
अपने स्वर छुपा आए हैं
कोकोयम की पत्तियों में…
कौन सा गीत तुम्हें सुनाऊँ मेरी साँवरी जब
उकड़ूँ बैठे दादुरों की टोली
सड़ियल दलदल के गलफड़ प्रशंसा गान से
दिन को उबकाई से भर रही है
और बैंगनी मूँड़ वाले गिद्ध हमारे घर की छप्पर पर बैठे
पहरा दे रहे हैं?

मैं ख़ामोश इंतजार में गाऊँगा
तुम्हारी उस ताक़त को जो मेरे सपने
अपनी शांत आँखों में सहेज रखेगी
और हमारे छाले भरे पाँवों की धूल को सुनहले पैताबे में
तैयार उस दिन के लिए जब लौटेंगे
अपने निर्वासित नृत्य.

 

Maya Angelou

९.
आओ, मेरे शिशु बन जाओ
माया अंजलु

हाइवे भरा है बड़ी बड़ी कारों से
जातीं कहीं नहीं तेज
और लोग पी रहे हैं जो भी जले उसका धुआँ
कुछ लोग अपने झूठ कॉकटेल ग्लास के इर्द-गिर्द लपेटे हुए हैं
और तुम बैठे हो सोचते
किधर जायें—
मैं जानती हूँ.

आओ. और मेरे शिशु बन जाओ.
कुछ भविष्य वक्ता कहते हैं ये दुनिया ख़त्म हो जाएगी कल
कुछ दूसरे कहते हैं अभी एक दो हफ़्ते हैं अपने पास
अख़बार तो हर तरह की भयानक बातों से भरे हैं
और तुम बैठे हो सोचते
अब क्या करें.
मैं जान गयी.
आओ, और मेरे शिशु बन जाओ.

 

Harold Pinter

१०.
यह यहीं है
हैरल्ड पिंटर

वो आवाज़ कैसी थी?

मैं मुड़ता हूँ, उस कमरे की ओर जो हिल रहा है.

वो आवाज़ कैसी थी जो अँधेरे से आई?
कैसा है यह प्रकाश का भूलभुलैया जिसमें वह छोड़ती है हमें?
यह कैसी मुद्रा है
हटने और फिर लौटने की?
यह क्या सुना हमने?

यह वही साँस थी जो हमने ली थी जब हम पहली बार मिले थे.

सुनो. यह यहीं है.

अरुण कमल

१५ फ़रवरी १९५४ को नासरीगंज, बिहार में जन्मे अरुण कमल के छह कविता संग्रह, दो आलोचना पुस्तकें, साक्षात्कारों की एक किताब और दो अनुवाद पुस्तकें प्रकाशित हैं. ‘अनुस्वार’ नाम से अनुवाद का एक स्तम्भ. नागार्जुन, शमशेर, त्रिलोचन, मुक्तिबोध, केदारनाथ सिंह की दस-दस कविताओं के अँग्रेजी अनुवाद, लेख सहित, इंडियन लिट्रेचर में प्रकाशित. एक कविता पुस्तक, और लेखों तथा बातचीत की किताबें प्रकाश्य.

अनुवादक घर साफ़ करने वाली बाई की तरह कविता के कोने अँतरों तक पहुँच सकता है या घड़ीसाज की तरह सारे पुर्जे खोल कर फिर से जमा सकता है- इसी मजे, और भेद को जानने- सीखने के वास्ते मैं अनुवाद करता रहता हूँ और रखे रहता हूँ. हालाँकि फिर से जमाने में कुछ कल-पुर्जे इधर उधर हो जाते हैं , या अपने ही पैर की गर्द से घर गंदा हो जाता है.
arunkamal1954@gmail.com

Tags: 20222022 अनुवादअपॉलीनेयरअरुण कमलचिनुआ अचेबेपाब्लो नेरुदाप्रेम कविताएँफेदेरियो गार्सिया लोर्कामाया अंजलुविश्व की दस उत्कृष्ट प्रेम कविताएँसिल्विया प्लाथहैरल्ड पिंटर
ShareTweetSend
Previous Post

केरल से नाटक: के. मंजरी श्रीवास्तव

Next Post

दो गज़ ज़मीन: प्रकाश कान्त

Related Posts

रंगसाज की रसोई : ओम निश्चल
समीक्षा

रंगसाज की रसोई : ओम निश्चल

2024 : इस साल किताबें
आलेख

2024 : इस साल किताबें

प्रियंका दुबे की कविताएँ
कविता

प्रियंका दुबे की कविताएँ

Comments 27

  1. स्वप्निल श्रीवास्तव says:
    3 years ago

    इन कविताओं को पढ़कर सुबह खुशनुमा हो गयी है । पाब्लो मेरे प्रिय कवि है । यह तय हो चुका है कि क्रांतिकारी कवि ही उम्दा प्रेम कविताएं लिख सकते हैं

    Reply
  2. Ajay kumar sharma says:
    3 years ago

    बहुत ही सुंदर

    Reply
  3. विनोद तिवारी says:
    3 years ago

    मरहबा ! बेहतरीन प्रेम कविताएँ । चयन और अनुवाद बहुत ही उम्दा । आप दोनों को बधाई ।

    Reply
  4. दीपक सिंह says:
    3 years ago

    सुबह इससे बेहतर नहीं हो सकती थी। शानदार चयन है, दस में चार कविताएं तो पाब्लो नेरुदा की ही है।❤️❤️

    Reply
  5. M P Haridev says:
    3 years ago

    1 आज रात मैं लिख सकता हूँ सबसे उदास पंक्तियाँ
    स्त्री-पुरुष पहली बार मिलते हैं । पहली बार मोहब्बत होती है । निहारते हैं एक-दूसरे की तरफ़ । मन नहीं भरता और आँखें नहीं थकती । कभी स्त्री और कभी पुरुष एक-दूसरे की गोद में सिर रखते हैं । सुख की अनंत तलाश उदासी में बदल जाती है ।
    उदासी की भी अपनी ख़ूबी है ऐसे माहौल में ख़ुशनुमा लाइनें लिखी जाती हैं । पुरानी मोहब्बत और विछोह का ख़ूबसूरत तर्जुमा किया गया है । वह अब दूसरे की बाँहों में है । आकाश ख़ाली 😐 सा लगता है । हे पाब्लो नेरुदा तुम ही पाब्लो हो सके । आसमान तारों से ख़ाली हो गया है ।

    Reply
  6. इन्द्रजीत सिंह says:
    3 years ago

    पाब्लो नेरुदा की बेहतरीन कविताओं का अरुण कमल जी द्वारा बहुत उम्दा अनुवाद l पाब्लो नेरुदा इश्क़ और इन्कलाब के अप्रतिम कवि हैं l आदरणीय अरुण कमल जी और आपको हार्दिक बधाई और साधुवाद l

    Reply
  7. M P Haridev says:
    3 years ago

    2 हर दिन तुम खेलती हो . . .
    पाब्लो नेरुदा तुम धरती पर दोबारा उतर आओ । तुम्हें सबसे अधिक चाहने वाली लड़की तुम्हारा इंतज़ार कर रही है । तुमने उसकी मोहब्बत में क़सीदे पढ़े थे । जिसे पाब्लो के सिवा दूसरा नहीं लिख सकता । वह अगोचर है । श्रद्धा राम फिलौरी ने 19 वीं शताब्दी में परमेश्वर की आराधना में आरती लिखी थी । इसमें प्रभु के लिये लिखा था-तुम हो एक अगोचर । इस आरती की विशेषता है कि इसे सनातन धर्म और दुनिया के सभी पंथ अपने आराध्य के लिये गा सकते हैं ।
    तुम्हारी (जान-बूझकर लिख रहा हूँ क्योंकि तुम परमात्मा में विलीन हो गये हो) प्रेमिका के लाये गये फूल तुम्हारे हाथों में नहीं समाते । वह हर रोज़ आसमान से उतरती है । उसके लिये तुमने पीले फूलों की माला ज़मीन पर बिछा रखी है । ये पहली महिला है जिसने तुम्हें टूटकर चाहा है । तुम्हारा प्रेम दो शरीरों का रूप धारण करके inseparable हो गया है । मुझसे लिपट जाओ । ‘तुम मेरे लिये लाती हो मोगरे के फूल जिनकी सुगंध तुम्हारी छातियों में भरी है’. . . और मैं चूमता हूँ तुम्हारे जामुनों से होंठ । पाब्लो नेरुदा सारी दुनिया के रचनाकारों ने उरों पर धरती के पन्ने भर दिये हैं । इनके साथ हठखेलियाँ की जाती रही हैं । खजुराहो के मंदिर इसके गवाह हैं ।

    Reply
  8. Ranu Uniyal says:
    3 years ago

    बहुत सुंदर कविताओं का चयन और anuvaad

    Reply
  9. हरि मृदुल says:
    3 years ago

    एक तो विश्व के महान कवि और उनकी लिखी प्रेम कविताएं। फिर आह्लादित करने वाली बात यह कि हिंदी के अद्भुत कवि अरुण कमल जी ने किया है इनका अनुवाद। यह मणि-कांचन संजोग नहीं है, तो और क्या है! ये सदा के लिए सहेजकर रखी जाने वाली कविताएं हैं। बहुत आभार अरुण कमल जी आपका और भाई अरुण देव, जो समालोचन के जरिये कैसा तो अद्भुत कार्य कर रहे हैं।

    Reply
  10. Gaurow Gupta says:
    3 years ago

    बहुत ही सुंदर अनुवाद।नेरूदा प्रेम हैं। शुक्रिया समालोचन इस सुंदर अनुवाद के लिए।

    Reply
  11. उमर चंद जायसवाल says:
    3 years ago

    समालोचन ई पत्रिकाओं में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है ।अरूण कमल के अनुवाद के विषय में क्या लिखूं। बहुत सुंदर अनुवाद पढ़ कर कविता का आनंद मिला ।आपको और अरूण जी को बहुत बहुत बधाई।

    Reply
  12. पंकज मोहन says:
    3 years ago

    नामवर जी ने पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी के बारे मे लिखा है कि वे समर्थ साधक थे क्योंकि वह मंत्र उन्हें सिद्ध था जिससे शव मे प्राण का संचार होता है, शव शिव हो जाता है। हिन्दी के मूर्धन्य कवि श्री अरुण कमल ने विदेशी कविताओं का जीवन्त, मूल की सहज संवेदना से स्पन्दित और भाषाई संस्कार की दृष्टि से प्राणवान और श्रीसम्पन्न अनुवाद प्रस्तुत किया है। अनुवाद सत्य, शिव, सुन्दर है। साधुवाद।

    Reply
  13. Vishakha says:
    3 years ago

    सुन्दर चयन व अनुवाद ।
    अरुण कमल जी एवं समालोचन का शुक्रिया

    Reply
  14. M P Haridev says:
    3 years ago

    3 सॉनेट 2
    शे’र : जब तक मिला न था तो कोई पूछता न था
    तूने ख़रीदकर मुझे अमीर कर दिया
    पाब्लो नेरुदा तुम मोहब्बत को इंतहा तक लिखनेवाले कवि हो । मैंने तुम्हारी एक भी किताब नहीं पढ़ी । व्यक्ति न पाब्लो नेरुदा को पढ़ते हैं और न चेखव को । न Shakespeare को और न कालिदास को । वे अपनी कविताओं में मज़े से इनके नाम लिखकर पढ़ने का दावा करते हैं । प्रोफ़ेसर अरुण देव जी; मुझसे पाखंड सहन नहीं किया जाता । मैंने अपने दोस्तों की सूची को 178 से घटाकर 163 कर दिया है । एक एसोसिएट प्रोफ़ेसर ने लिखा कि जितने ज़्यादा दोस्त होंगे उतना ज़्यादा सीखने के लिये मिलेगा । मैंने जवाब दिया कि जबसे अरुण जी ने मुझे दोस्त समझा (बनाया नहीं) मैं अमीर हो गया हूँ । प्रेम ज़िंदगी में रंग भर देता है पाब्लो । अब तुम्हारी कविताएँ अँधेरे, रेतीले घर से बाहर निकलने में मददगार साबित हो रही हैं । खोहों शब्द का इस्तेमाल दुमका-कलकत्ता की ज्योति जी 👍 भी करती हैं । उनमें रणनीतिक मोहब्बत नहीं है । वे करुणामयी हैं ।

    Reply
  15. सुशीला पुरी says:
    3 years ago

    जहां दो दो ” अरुण ” हों, वहां ऐसा ही कुछ खिलता हुआ उजाला बिखरेगा कि आत्मा की अनदेखी परतों तक में रौशनी पैबस्त हो जाए.. ❤️ शुक्रिया, आभार इन अनमोल कविताओं के वास्ते 🌹

    Reply
  16. तेजी ग्रोवर says:
    3 years ago

    बहुत अच्छा चयन और अनुवाद।

    Arun Dev , आप समालोचन पर बाक़ायदा उन कवियों को आमंत्रित कर सकते हैं जो इसी तरह अपनी प्रिय दस दस प्रेम कविताओं के अनुवाद करने को राज़ी हों।

    मेरे पास तो पहले से ही होंगे, और नया चयन भी करूंगी।

    Seine (नदी) का उच्चारण सेन्न (जैसा) होगा, हालांकि अरुण जी निश्चित ही जानते होंगे और उन्होंने लय की ख़ातिर सीन को तरजीह दी होगी।।

    Reply
  17. दया शंकर शरण says:
    3 years ago

    गिरती है आत्मा पर कविता जैसे मैदान पर ओस…नेरूदा की प्रेम कविताएँ उत्कृष्ट एवं रूहानी कैफियत से भरी हैं।प्रेम हमें मुक्त करता है सारे बंधनों से और यहाँ तक कि अपने से भी।जब मोमिन कहते हैं कि तुम मेरे पास होते हो गोया जब कोई दूसरा नहीं होता तो एक दूसरे छोर पर उतनी ही शिद्दत और गहराई से जिगर मुरादाबादी कहते हैं कि वो हमारे करीब होते हैं जब हमारा पता नहीं होता। अरूण कमल जी का अनुवाद भी बहुत सुंदर है।उन्हें साधुवाद !

    Reply
  18. Dr Om nishchal says:
    3 years ago

    बेहतरीन कविताएं। बेहतरीन अनुवाद।

    Reply
  19. डॉ. भूपेंद्र बिष्ट says:
    3 years ago

    प्रेम की कविताएं चाहे किसी भी भाषा में रची गई हों, वे मानव मन के अंतःपुर को छू लेती हैं. यहां भी जो कविताएं दी गई हैं — द्वितीयो नास्ति ! पूरी कविता पढ़ चुकने के बाद लगने लगता है : …… खुशी और वसंत जैसी चीज़ों को/ और करीब आना था ….. ( विस्लावा शिंबोर्स्का )
    या ऐसा भी लग सकता है : ….. जैसे उतरने में एक पांव पड़ा हो ऐसे/ मानो वहां होगी एक सीढ़ी और/ पर जो न थी ….. ( अरुण कमल )
    सभी दसों कविताएं अप्रतिम और प्रत्येक अनुवाद अप्रतिरूप. आप दोनों कवियों का आभार.

    Reply
  20. हीरालाल नगर says:
    3 years ago

    अरुण कमल द्वारा दस अंग्रेजी प्रेम कविताओं का अनुवाद और फिर पंकज चतुर्वेदी द्वारा वीरेन डंगवाल की कविताओं पर सूविचारित लेख भी पढ़ा।
    वीरेन डंगवाल की कविताओं को मैं बहुत पसंद करता रहा हूं और आज भी उन्हें हिंदी कविता की श्रेष्ठतम उपलब्धि मानता हूं।

    Reply
  21. धनंजय वर्मा says:
    3 years ago

    अरुण कमल के दसों अनुवाद पढ़े वे जितने अच्छे कवि हैं, उतने ही अच्छे अनुवादक भी
    पाब्लो नेरूदा की कविताओं के अनुवाद तो
    बेहतरीन हैं.

    Reply
  22. ऋतु says:
    3 years ago

    बेहतरीन अनुवाद | सिल्विया प्लैथ की कविता बहुत अच्छी लगी | प्रेम ऐसे भी होता है जब तुम अपने लिए अपने भीतर एक प्रेमी गढ़ रहे हो….. अपने भीतर प्रेम बचा रहना चाहिए कैसे भी उम्मीद की तरह |

    ऋतु डिमरी नौटियाल

    Reply
  23. कृष्ण कल्पित says:
    2 years ago

    प्रेम कविताओं का मनभावन गुलदस्ता । बहुत सुंदर अनुवाद । शुक्रिया अरुण कमल जी और समालोचन ।

    Reply
  24. अच्युतानंद मिश्र says:
    2 years ago

    कवितायेँ अपना समय बोध आप रचती हैं. वे बाहर के अकुलाते समय को रोक लेती हैं. बहती हुयी नदी ठहर जाती है. आकाश एकदम पैर तले आ जाता है. ये कवितायेँ मनुष्य के आत्म-जगत में एक साथ कई हज़ार साल बनाती हैं. जीवन में मृत्यु और मृत्यु में जीवन. अर्थ के पार तर्क और बुद्धि के पार चली जाती हैं. एक सतत प्रवाह की तरह, रौशनी की तरह, हवा जल और स्मृति की तरह, ये हमारे भीतर प्रवेश करती हैं. संभवतः इसी अर्थ में कलाएं, समय के पार जाकर कालजयी हो जाती हैं .क्लासिक का दर्ज़ा पा जाती हैं.
    कवि अरुण कमल ने इन कविताओं में हिंदी के प्राण फूंक दिए हैं. इतने बेहतरीन और प्रवाहपूर्ण अनुवाद के लिए समालोचन का और कवि का बहुत-बहुत आभार.

    Reply
  25. शिव किशोर तिवारी says:
    2 years ago

    कविताओं का अनुवाद यथासंभव अच्छा किया गया है। केवल माया अंजलू की कविता का अनुवाद ठीक नहीं हुआ। इस अनुवाद से कविता का मर्म समझ में नहीं आयेगा। पता नहीं बेबी को शिशु क्यों अनूदित किया। आजकल तो भारत में भी जोड़े एक दूसरे को बेबी कहते हैं।

    Reply
  26. Hiralal Nagar says:
    1 year ago

    बसंत के मौसम में महान विदेशी कवियों की प्रेम कविताओं का कवि अरुण कमल द्वारा यह हिन्दी
    अनुवाद अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसे यहां प्रकाशित कर हिन्दी पाठकों के लिए मुहैया कराया गया।
    अनुवाद बहुत सुंदर बन पड़ा है, जिसका गहरा प्रभाव पड़ता है।
    बहुत आभार और धन्यवाद ।
    हीरालाल नागर

    Reply
  27. Dr Gade Vijay Mahadeo says:
    1 year ago

    बहुत ही बेहतरीन कविताएं जो प्रेम के विविध आयाम को उजागर करती है और जीवन के प्राणतत्व को उद्घाटित करती हैं।

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

समालोचन

समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

  • Privacy Policy
  • Disclaimer

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum

No Result
View All Result
  • समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • आलोचना
    • आलेख
    • अनुवाद
    • समीक्षा
    • आत्म
  • कला
    • पेंटिंग
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • शिल्प
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • संपर्क और सहयोग
  • वैधानिक