टोटम आयशा आरफ़ीन |
कोडईकनाल की वादियों की पुर-असरार धुंध, दोपहर तक छँटने लगी. सुंदर के छोटे से कमरे की खिड़की से चाय के बाग़ान दूर-दूर तक नज़र आते थे, वहीं घर के अगले हिस्से के सामने मौजूद पहाड़ों पर नीलकुरिंजी के फूलों की नीली और बैंगनी चादर फैली थी. ये रीट्रीटिंग मॉनसून के ठीक वस्त के दिनों का कोई दिन था.
सुंदर कोई किताब पढ़ रहा था और बीच-बीच में अपनी नई कहानी के बारे में भी सोच रहा था. उसकी नज़र कभी टेबल पर रखी दूसरी किताबों पर जाती, कभी फ़र्श पर, कभी सामने खिड़की से बाहर दूर तक फैले बाग़ान पर या कमरे के दाएँ तरफ़ की दीवार पर. इन्हीं पलों के दरमियान, उसे अपनी कुर्सी के क़रीब ‘उसकी’ मौजूदगी का एहसास हुआ. वो उसकी कुर्सी के ऐन दाएँ तरफ़ बुलंद सर और तने हुए जिस्म के साथ मौजूद था. सुंदर ने फ़ौरन बाएँ तरफ़ अपने बेड पर छलांग लगाई. बेड पर छलांग लगाते ही ‘वो’ ग़ायब हो गया. सुंदर ने पूरे कमरे में नज़रें दौड़ाईं, मगर वो कहीं नज़र नहीं आया. कमरा छोटा था, दरवाज़ा बंद और खिड़की पर जाली लगी थी. ऐसे में वो जा कहाँ सकता है? एक ही जगह बाक़ी बचती है. बेड के नीचे. सुंदर अपनी वेटी (veshti) संभालते हुए बेड से कुर्सी पर कूद पड़ा और वहाँ उकड़ू बैठ गया. कुछ देर बाद, हिम्मत जुटा कर वो जल्दी से कुर्सी से उतरा, कुर्सी को ज़रा पीछे खिसकाया और वापस उस पर उकड़ू जा बैठा. उकड़ू बैठे-बैठे ही उसने बेड के नीचे झाँका. वाक़ई में वो बेड के नीचे ही मौजूद था.
सुंदर इंतज़ार करने लगा कि वो कब बेड के नीचे से बाहर निकलेगा. तक़रीबन आधे घंटे तक उकड़ू बैठे-बैठे उसके पैर के पंजे झनझनाने लगे. उसका इस हालत में अब मज़ीद बैठ पाना मुश्किल हो गया. मगर उसकी न तो पैर नीचे रखने की हिम्मत हो रही थी और न ही कुर्सी से दोबारा नीचे उतरने की. सुंदर और कुछ देर तक ऐसे ही बैठा रहा मगर ‘उसने’ बेड के नीचे जुंबिश तक न की. सुंदर आहिस्ता से कुर्सी से उतरा. उसकी नज़र बेड के नीचे फ़र्श पर टिकी रही. वो भाग कर, कमरे के दूसरे कोने से, बंद दरवाज़े के पीछे लगाने वाला लकड़ी का तख़्ता उठा लाया और फिर कुर्सी को और पीछे सरका कर बैठ गया. मगर ‘वो’ अब तक हिला नहीं था. टेबल पर से टॉर्च उठाकर, सुंदर ने उस पर रौशनी डाली. तब भी उसमें किसी क़िस्म की हरकत नहीं हुई. उसने टॉर्च बंद की, फिर जलायी, फिर बंद की और ये सिलसिला कुछ देर यूँ ही चलता रहा. मगर फिर भी बेड के नीचे कोई हरकत होती नज़र नहीं आई. सुंदर को झुंझलाहट होने लगी कि कैसे एक मामूली से रेंगने वाले जानवर ने क़ुदरत की सबसे आला मख़लूक़ को एक घंटे से भी ज़्यादा देर से परेशान किया हुआ है. उसने दूर से ही तख़्ते की मदद से उसको हिलाने के बारे में सोचा. मगर उसे ये डर भी सता रहा था कि कहीं वो तख़्ते के गिर्द गोल-गोल लिपट न जाए.
सुंदर को कमरे से बाहर भागना पड़ेगा और इस दरमियान वो कहीं ग़ायब भी हो सकता है. फिर उसे तलाश करना मुश्किल होगा. सुंदर उसे तलाश करे इससे पहले अगर उसने सुंदर को तलाश कर लिया तो? उसे सिहरन सी हुई. काफ़ी सोच-विचार के बाद, सुंदर को उसकी पूँछ को तख़्ते से हिलाने का ख़याल आया और उसने ऐसा ही किया. ऐसा करते ही उसमें हलचल हुई और फिर उसी सीध में वो बाहर निकल आया. सुंदर ने बेहद फुर्ती के साथ उसके सर को तख़्ते से कुचल डाला. बाद में उसकी पूँछ कुछ देर तक छटपटाती रही. फिर वो बेहरकत हो गया. उसे शांत पड़ा देख कर सुंदर को एक अजीब सी ख़ुशी का एहसास हुआ. वो कमरे के बीचों बीच खड़ा हो गया, पसीने पोंछे, स्वेटर निकाल कर बेड पर फेंकी, दोनों हाथों की हथेलियों को कमर पर ऐसे टिकाया जैसे इस रेंगते हुए जानवर पर इंसानी फ़तह का जश्न मना रहा हो.
कुछ देर बाद सुंदर को उसे बाहर फेंकने का ख़याल आया. मगर पहले वो कमरे से बाहर बने किचन में कॉफ़ी बनाने चला गया. तभी उसका दोस्त अनिरुद्ध उसके कमरे में दाख़िल हुआ.
“भई सुंदर, शादी की दावत है. तुम्हें चलना पड़ेगा मेरे साथ.” अनिरुद्ध ने कहा.
“मगर…”
“हाँ, जानता हूँ, रात को कहानियाँ लिखते हो. यार, तुम दिन में सो चुके हो और मैं सुबह जल्दी उठा था. गाड़ी चलाने की बिल्कुल भी हिम्मत नहीं है. थक गया हूँ और ज़रा-ज़रा नींद भी आ रही है.” अनिरुद्ध जम्हाई लेते हुए बोला.
“तो ड्राईवर चाहिए ऐसा बोलो न?”
“अब तुम जो भी समझो. चलो यार, रास्ता लंबा है, बात करने के लिए भी तो कोई चाहिए. शादी वाले घर में मैं किसी और को नहीं जानता. दूल्हा मंडप पर बैठा रहेगा. मैं बोर हो जाऊँगा. चलो यार, एक दिन निकाल लो मेरे लिए.”
“कॉफ़ी बन रही है. पी लेते हैं, फिर चलते हैं. वैसे कितनी दूर है?”
“लगभग तीन-चार घंटे लग जाएँगे.”
“अच्छा पहले इस साँप को बाहर फेंक आऊँ.” सुंदर ने कमरे के कोने में पड़े हुए मुर्दा साँप की तरफ़ इशारा करते हुए ऐसे कहा जैसे उसने साँप न मारा हो बल्कि किसी बहुत बड़े कारनामे को अंजाम दिया हो.
“इसका सर क्यूँ कुचल दिया? ये तो सार पम्बू है, ज़हरीला भी नहीं होता. मारने की क्या ज़रूरत थी! मुझे बुलाते, मैं जंगल में छोड़ आता. तुम शहरी लोग भी ना!” अनिरुद्ध सुंदर से इस बात पर खफ़ा होते हुए बोला, “और कमरे को ज़रा साफ़ रखा करो यार, इस तरह सब बिखरा हुआ है. ऐसे में चूहे भी होंगे. और चूहे होंगे, तो साँप भी आएँगे ही.”
“ये मेरी कुर्सी के पास जिस तरह तन कर खड़ा था, मैंने तो इसे नाग पम्बू समझा. और तुम्हें बुलाने का वक़्त कहाँ दिया इसने मुझे! बिलकुल मेरी कुर्सी के पास आ कर फन उठाए हिल रहा था या नाच रहा था, पता नहीं क्या कर रहा था. बड़ा भयानक लग रहा था. मैंने तख़्ता उठाया और इसे मार डाला. तुम्हें बुलाने जाता तो कमरे में कहीं छुप जाता और फिर मौक़ा देख कर मुझे डस लेता.” सुंदर बोला.
“इस साँप का फन नहीं होता. और साँप बिना वजह इंसान को परेशान नहीं करते. ख़ैर. मार कर तुमने ग़लत किया. अब इसकी प्रेमिका की आँखों में तुम्हारी तस्वीर क़ैद हो गई होगी. वो तुम्हें ढूँढते हुए यहाँ आ जाएगी.” बाद के जुमले अनिरुद्ध ने मुस्कुराते हुए अदा किए.
“हाँ, हाँ, ज़रूर. और फिर वो मुझे डस लेगी”, सुंदर हँसते हुए बोला, “मगर ऐसा तो हमने बचपन में नाग के बारे में सुना था. और तुमने अभी बताया ये कोई और ही साँप है.”
“अरे भाई, मज़ाक़ नहीं कर रहा. नाग नहीं, सारे साँपों के बारे में कहा जाता है. ऐसा कईयों के साथ हुआ है. इनकी प्रेमिका या बीवी डसती नहीं है. जब क़ातिल उसकी आँखों में देखता है तो वो उसे अपने वश में कर, उसे भी साँप में तब्दील कर देती है.”
“मैं एक साँप की आँखों में तो झाँकने से रहा”, सुंदर बोला.
“वो एक औरत के भेष में आती है.”
सुंदर अब अपने-आपको रोक नहीं पाया. वो बेतहाशा हँसने लगा, “कभी-कभी बिल्कुल जाहिलों की सी बातें करने लगते हो, अन्नी.” वो बाहर जाते हुए बोला, “तुम कैसे कह सकते हो कि ये नर साँप ही था?”
अनिरुद्ध बोला, “इसकी पूँछ को देख कर अंदाज़ा लगाया जा सकता है. फिर वो आएगी तो अपने आप पता चल ही जाएगा.” अनिरुद्ध मुस्कुराया और चुपचाप कुर्सी पर बैठे, सुंदर को साँप को तख़्ते के सहारे बाहर ले जाते हुए, देखता रहा.
सुंदर मरे हुए साँप को घर से बाहर फेंक कर वापस कमरे में आया और अनिरुद्ध से बोला, “हाँ, तो बताओ, शादी कितनी बजे की है?”
“शादी तो कल दिन की है. आज रात तक पहुँचेंगे, आराम करेंगे और कल रात तक वापसी.”
“ठीक है.” सुंदर ने कहा.
उन्होंने कॉफ़ी ख़त्म की. सुंदर ने कपड़े तब्दील किए और साथ में कुछ गरम कपड़े भी रख लिए. अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी दिखाते हुए अनिरुद्ध से पूछा, “कैसी लग रही है?”
अनिरुद्ध ने सुंदर को अब ठीक से देखा. पहले से ही वो दुबला-पतला, दरमियाने क़द का आदमी था, इन दिनों और ज़्यादा दुबला हो गया था. पिचके हुए गालों पर बढ़ी हुई दाढ़ी बेहतर लग रही थी. बाल बिखरे-बिखरे थे मगर उस जैसे चेहरे पर ये भी ठीक ही लग रहे थे. मुस्कुराता था तो सिर्फ़ होंठ ही नहीं साथ में उसकी आँखें भी मुस्कुराती थीं. पहले काली शर्ट पहन रखी थी. अब नीली शर्ट और क्रीम रंग की पैंट पहन ली थी.
अनिरुद्ध ये सब देख ही रहा था कि सुंदर ने दोबारा पूछ लिया, “क्या हुआ? अच्छा नहीं लग रहा?”
“सही है. एक वेटी भी रख लो, कल शादी में पहन लेना.” अनिरुद्ध बोला.
सूरज डूबने में अभी थोड़ा वक़्त था. बादल घिरे थे और हल्की-हल्की हवा भी चल रही थी. दोनों दोस्त जीप में निकल पड़े.
कुछ देर बाद ही हल्की-हल्की बारिश होनी शुरू हो गई. अनिरुद्ध ने तमाम और बातें करने के बाद सुंदर से कहा, “शर्ट भी तुम्हें नीली ही मिली थी?”
“अब इसमें क्या बुराई है?” सुंदर बोला.
“साँपों को हरा और नीला रंग अच्छे से दिखाई देता है, बाक़ी रंगों में फिर भी शायद कनफ्यूज़ हो जाएँ.”
सुंदर मुस्कुराया और बोला, “मौसम के मज़े लो, प्यारे! और ज़रा मेरी स्वेटशर्ट भी बैग से निकाल कर दो.”
कुछ ही देर में शदीद अंधेरा हो गया. रास्ते में सिर्फ़ उनकी जीप की हैड लाइट के उजाले के अलावा कोई और रौशनी नज़र नहीं आ रही थी. बारिश में तेज़ी आ गई, बिजली की गड़गड़ाहट से सुंदर को अचानक झुरझुरी सी हुई. वो ड्राइव करते हुए अपनी स्वेटशर्ट पहन ही रहा था कि अनिरुद्ध को बाएँ जानिब, कुछ फ़ासले पर, सड़क के किनारे एक औरत खड़ी नज़र आई. वो जीप को रोकने का इशारा कर रही थी.
अनिरुद्ध ने सुंदर से कहा, “ये इतनी रात गए अकेली औरत यहाँ क्या कर रही है? डर नहीं लग रहा इसे? क्या मालूम कोई भूतनी हो?”
सुंदर ने देखा कि जिस तरफ़ से औरत आई थी, उधर घना जंगल था और सोचने लगा इस वक़्त अकेली औरत का डरना तो लाज़मी है.
अनिरुद्ध ने उसे गाड़ी आहिस्ता करने को कहा. बोला, “सोचने दो, लिफ़्ट दें या न दें. क़ायदे से तो, लिफ़्ट माँगने में औरत को डर लगना चाहिए. देखते हैं, शायद हम दो मर्दों को देख कर लिफ़्ट ना माँगे.”
सुंदर ने जीप की रफ़्तार कम कर दी मगर उसने सोच लिया था अंजान औरत को लिफ़्ट देना ख़तरे का सबब बन सकता है. मगर जैसे ही वो उसके क़रीब पहुँचे, जीप के ब्रेक चरमराए.
औरत तेज़ कदम बढ़ा कर अनिरुद्ध की सीट के पास आई. सुंदर ने जीप के अंदर की लाइट ये सोच कर जला दी कि शायद वो औरत दो मर्दों को देख कर लिफ़्ट ना माँगे. मगर औरत ने अनिरुद्ध से फ़ौरन ही पूछ लिया कि क्या वो लोग उसे अगले गाँव तक छोड़ सकते हैं? अनिरुद्ध ने हौले-हौले सर हिला कर हामी भर दी तो सुंदर उसको घूरने लगा. अनिरुद्ध ने सुंदर को इशारे से बता दिया कि गाड़ी तो उसी ने रोकी थी, वो भला क्या करता, इजाज़त दे दी.
औरत जीप की पिछली सीट पर जा कर बैठ गई.
औरत भीगी हुई थी; कुछ पसीने से, कुछ बारिश की बूंदों से. दोनों दोस्तों ने इतनी सी ही देर में औरत को सरसरी निगाह से देख लिया था. गोल चेहरा, घुंघराले बालों की लटें पेशानी के दोनों तरफ़ लहरा रही थीं. मोटे होंठ. बड़ी-बड़ी आँखें. माथे पर बिंदी. काला लिबास. चावल की बोरी से रेनकोट बना कर पहना हुआ था. ज़्यादा से ज़्यादा पच्चीस साल की लगती थी.
पीछे की सीट पर बैठते ही उसने अपना रेनकोट उतारा, थैले से अपना शॉल निकाला और लपेट लिया. उसके हाथों की हरकत की वजह से सुंदर और अनिरुद्ध तक उसकी मुश्क पहुँची. उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ़ देखा. कहा कुछ नहीं. फिर अनिरुद्ध आहिस्ता से बोला,
“ऊद, पचूली.”
सुंदर भी यूँ बोला जैसे औरत के आने से पहले जो बातें हो रही थीं उसी को जारी रखते हुए कह रहा हो, “नहीं, ऊद, चाय और कोई, एक और चीज़.”
तभी औरत बोली, “एलोवेरा. हम घर पर ही ये तैयार करते हैं.” उसकी आवाज़ से अंदाज़ा हो रहा था जैसे उसे ज़ुकाम हो.
दोनों को शर्मिंदगी का एहसास हुआ क्योंकि वो लोग औरत के लगाए हुए परफ़्यूम या तेल के अजज़ा (ingredients) का ज़िक्र कर रहे थे और अब उन्हें ये मालूम हो गया था कि औरत को ख़बर है कि वो लोग किस बारे में बात कर रहे हैं. उस वक्त जीप के इंजन की आवाज़ के अलावा बाक़ी चारों तरफ़ ख़ामोशी थी लिहाज़ा औरत ने ही बात शुरू की, “आप लोग मुझसे बात करते रहिए वरना मुझे नींद आ जाएगी और फ़िल्हाल मेरा जागते रहना बेहद ज़रूरी है.”
सुंदर ने इधर-उधर की बात किए बग़ैर सीधे पूछा, “क्यूँ? क्या हुआ? आप जंगल में अकेले, इस वक़्त, कैसे?”
औरत ने कहा, “कोई ख़ास बात नहीं. आप लोग कहाँ जा रहे हैं?”
सुंदर दाँत पीस कर रह गया क्योंकि औरत ने ऐसा जवाब ही दिया था जैसे ये कोई आए दिन का वाक़ेया हो. ऊपर से हमसे सवाल भी करती है.
सुंदर को ग़ुस्से में देख कर अनिरुद्ध ने ही औरत के सवाल का जवाब देना मुनासिब समझा. बोला, “हम एक दोस्त की शादी में जा रहे हैं. आगे जो गाँव आएगा, उसका सबसे पहला मकान, वहीं जाना है.”
औरत ने फिर पूछा, “क्या करते हैं आप लोग?”
“ये लेखक है और मेरे कुछ चाय के बाग़ान हैं.” अनिरुद्ध ने बताया.
सुंदर ने औरत से फिर वही सवाल किया. औरत ने जवाब दिये बग़ैर फिर दूसरा सवाल पूछ लिया, “क्या लिखते हैं? बताइये अब तक किस-किस को पढ़ा?”
सुंदर ने रूखा सा जवाब दे दिया. वो फिर से वही सवाल दोहराने वाला था कि औरत ने उससे पूछा, “आजकल क्या लिख रहे हैं?”
सुंदर ने कहा, “कुछ ख़ास नहीं. एक कहानी है मगर फ़िल्हाल वो अधूरी है.”
औरत बोली, “सुनाइए.”
सुंदर हिचकिचाया और बोला, “अभी अधूरी है. सुनाने का कोई मतलब नहीं.”
अनिरुद्ध भी ज़िद करने लगा कि अधूरी ही सही, सुना दो यार. सुंदर को अनिरुद्ध पर ग़ुस्सा आया मगर अनिरुद्ध और औरत के बारहा इसरार पर उसने कहानी सुनानी शुरू की:
“यामिनी की जिस दिन शादी थी, उसी दिन उसे घर छोड़कर अपने प्रेमी के साथ भागना था. पहले भी उसने कोशिशें कीं थीं मगर कामयाब न हो पाई. शादीवाले दिन उसकी आख़री कोशिश कामयाब हो गई. घर से निकल कर जंगल में वो अपने प्रेमी का इंतज़ार कर रही थी. मगर वो न आया. टूटे दिल के साथ उसने अपने घर वापस जाने का फैसला किया, तभी गाँववालों की आवाज़ें उसे सुनाई दीं. वो लोग उसे ढूँढते हुए जंगल आ पहुँचे थे. यामिनी डर कर छुप गई. गाँववाले उसे तलाश करने में नाकामयाब रहे, लिहाज़ा वो लोग ये सोच कर वापस चले गए कि कहीं लड़की किसी और मुसीबत में न फँस गई हो. यामिनी छुप कर उनकी बातें सुन रही थी. उनके जाने के बाद उसने सोचा कि उसके पास अब तीन रास्ते हैं. एक ये कि वो सुबह होने का इंतज़ार करे और फिर अपने प्रेमी के घर चली जाए. दूसरा ये कि किसी और रास्ते से अपने घर की तरफ़ जाए, नींद में चलने का नाटक करे और उसी हालत में घर में दाख़िल हो जाए. तीसरा ये कि घर के पिछवाड़े वाले बाग़ीचे में जा कर बेहोश होने के बहाने पड़ी रहे. मगर वो इन में से कोई एक रास्ता चुने इससे पहले ही उसे किसी ज़हरीले साँप ने डस लिया. ये उसके तीसरे प्लान के मुताबिक़ ख़ुद से ही एक अच्छा मौक़ा बन पड़ा. अब उसे बस नींद से बचना था. किसी भी सूरत में जागते रहना था ताकि वो घर के पिछवाड़े वाले बाग़ीचे तक सही सलामत पहुँच सके.”
“अभी बस इतनी ही बनी है.” सुंदर ने अपनी अधूरी कहानी ख़त्म करते हुए कहा.
अनिरुद्ध मुस्कुराया और उसको चिढ़ाते हुए कहा, “साँप ज़ेहन से नहीं जा रहा!”
सुंदर बेख़याली में साँप को कहानी में ले आया था और अनिरुद्ध के इस तरह बोलने पर वो किसी गहरे ख़याल में डूब गया.
औरत ने कहा, “ये तो आम सी कहानी है. इसमें क्या ख़ास बात है?”
अनिरुद्ध बोला, “मुझे तो सुनने में मज़ा आया. कहानियाँ तो सुनी-सुनाई ही होती हैं, कहने का अंदाज़ अलग होना चाहिए. सुंदर को लिख लेने दीजिए, फिर देखिएगा.”
सुंदर उनकी बातों से बेख़बर अपने ही ख़यालों में उलझा हुआ था. कुछ देर पहले जो उसने इतनी बेरहमी से साँप का सर कुचला था, ऐसा उसने अपने आपको बचाने के लिए किया था या एक इंसान के अहम को ठेस पहुँचाने के लिए उसे सज़ा दी थी? क्या वो उस साँप को उसकी औक़ात दिखाना चाहता था? सुंदर अपने ख़यालों में उलझता रहा और आख़िर में वो इस नतीजे पर पहुँचा या यूँ कहें कि उसने अपने आपको दिलासा दिया कि अपने बचाव में ही उसने साँप को मारा था.
सुंदर अपने ख़यालात से बाहर निकला और औरत से बोला, “जाने दीजिये, आप कुछ अपने बारे में बताइये. क्या नाम है? क्या करती हैं?”
औरत उसका सवाल गोल कर गई और इस तरह पेश आई जैसे उसने सवाल सुना ही ना हो. कुछ पल ख़ामोशी रही. फिर उसने सुंदर के सवाल का जवाब देने के बजाय, हैरानी जताते हुए पूछा, “आप दोनों में दोस्ती कैसे हुई? कहाँ आप लेखक और कहाँ ये व्यवसायी!”
सुंदर के बजाय अनिरुद्ध ने ही जवाब दिया, “तंजावूर के बृहदेश्वर मंदिर की नाट्यांजली में मिले थे. वहीं बातें हुईं. ये तन्हाई के तलबगार और मैं महफ़िल का, सो इनके साथ जो इनके दोस्त आए थे वो मेरे दोस्त हो गए और मैंने इन्हें अपने यहाँ कोडईकनाल में आकर रहने का न्योता दे दिया. इनको लिखना था, तन्हाई चाहिए थी सो यहाँ आ गए. जगह पसंद आ गई और यहीं ठहर गए. मेरा घर बाग़ान से ज़रा दूर है, जब मौक़ा मिले, ये दिन में किसी वक़्त बाग़ान का चक्कर काट आते हैं और अगर किसी वर्कर को कोई मसला होता है, तो वो भी निपटा देते हैं. यूँ मेरी मदद हो जाती है.”
अनिरुद्ध की बात ख़त्म होने पर सुंदर बोला, “इसमें मदद की कोई बात नहीं, उल्टा मेरा टहलना-फिरना हो जाता है. और बाग़ान के क़रीब जो इनका घर है, उसमें मैं मुफ़्त में ही रहता हूँ. लिखने वाले को और क्या चाहिए.”
उनकी मंज़िल आ गई. सुंदर ने गाड़ी रोक दी. उसे इस बात की नाराज़गी थी कि औरत ने अपने बारे में कुछ भी नहीं बताया. उसने कहा, “गाँव थोड़ा आगे है, मगर हम आपको यहीं तक छोड़ सकते हैं.”
अनिरुद्ध को सुंदर का रवय्या पसंद नहीं आया. वो उसे घूरने लगा. जब औरत जीप से उतर रही थी तब सुंदर ने अनिरुद्ध से आहिस्ता से कहा, “ऐसे मत देखो मुझे, अगर ये औरत रात गए अंधेरे में, इतने घने जंगल से अकेले आ सकती है तो बिजली की रौशनियों में थोड़ी दूर गाँव तक चल कर जा भी सकती है. हमने ठेका नहीं ले रखा है किसी का.”
औरत जीप से उतर कर सुंदर की तरफ़ गई. उसी वक्त अनिरुद्ध का दोस्त उसे रिसीव करने आया और बोला, “बड़ी देर कर दी तुम लोगों ने”. सुंदर ने एक हाथ के इशारे से अनिरुद्ध के दोस्त को हैलो कहा. अनिरुद्ध अपने दोस्त से वहीं खड़े-खड़े बातें करने लगा. सुंदर अभी भी ड्राइविंग सीट पर मौजूद था. औरत ने सुंदर का शुक्रिया अदा किया, उसकी आँखों में आँखें डाल कर मुस्कुराते हुए बोली, “मेरा नाम यामिनी नहीं, शेषाद्रि है. मैंने न घर छोड़ा है और ना ही जंगल में किसी प्रेमी से मिलने गई थी.” शादीवाले घर की जगमगाती रौशनियों में सुंदर ने अब वो देखा जो वो पहले गाड़ी की नीम रौशनी में नहीं देख सका था. औरत की आँखों की पुतलियों का रंग ज़ैतून जैसा हरा था.
वो गाँव की तरफ़ चली गई और सुंदर जीप के बाहर अवाक ऐसे देखता रहा जैसे औरत अब भी वहीं मौजूद हो. उसे अचानक ये बात याद आई कि मरे हुए साँप की प्रेमिका, औरत के भेष में आती है और क़ातिल को अपने वश में कर लेती है. उसने असहाय हो कर फ़ौरन अनिरुद्ध की तरफ़ पलट कर देखा मगर अनिरुद्ध अपने दोस्त के साथ घर की तरफ़ बढ़ चुका था. घर की तरफ़ जाते हुए वो सुंदर को इशारे में बता रहा था कि गाड़ी पार्क करके वो भी घर के अंदर आ जाए. यूँ थम्ब्स अप का इशारा कर अनिरुद्ध सुंदर की नज़रों के सामने से ओझल हो गया. सुंदर गाड़ी में ही बैठा औरत का नाम दोहराने लगा, “शेषाद्रि”. “शेषाद्रि”.
रात गहरी हो गई थी. शादीवाला घर जगमगा रहा था. सुंदर ने गाड़ी को कहीं पार्क नहीं किया. वो वहीं गाड़ी से उतरा और उसके क़दम घर की तरफ़ जाने की बजाय ख़ुद-ब-ख़ुद बाग़ीचे की तरफ़ मुड़ गए. ये घर के पिछवाड़े वाला हिस्सा था. यहाँ कुछ मुलाज़िम पीढ़ों पर बैठ कर बर्तन धो रहे थे. वहाँ से थोड़ी दूरी पर, ज़मीन की बनावट टीलानुमा थी. ज़मीन का ये टीलानुमा हिस्सा बर्तन धो रहे मुलाज़िमों से ज़रा ऊपर की तरफ़ था. वहाँ एक कुआँ भी था. कई केले के दरख़्त, लौकी की लताएँ, तिल, सागो पाम और हल्दी के पौधों के साथ-साथ फूल गोभी और गाजरें भी उगाई गईं थीं.
सुंदर वहाँ पहुँचा और वहीं से उसने काम करते हुए मुलाज़िमों को घूरा. रफ़्ता-रफ़्ता वो झुकने लगा और आख़िरकार सीने के बल लेट कर रेंगता हुआ पौधों की क्यारियों में जाकर यहाँ-वहाँ लोटने लगा. उसने दाएँ करवट ली, अपने घुटनों को छाती तक ले गया और फिर घुटनों से ही घसीटते हुए अपने जिस्म को आगे की तरफ़ ढकेलता रहा. पत्तों की सरसराहट ने मुलाज़िमों का ध्यान खींचा और वो लोग उस ओर देखने लगे. वो समझ नहीं पाए कि आख़िर ये इतना बड़ा रेंगता हुआ कौनसा नया जानवर है. मुलाज़िम जल्दी से खड़े हो कर उस बड़े से रेंगते हुए जानवर को देखने लगे मगर उसके क़रीब जाने की हिम्मत उनमें से किसी में न थी.
सुंदर की आँखें सुर्ख़ और उसके कपड़े मटमैले हो गए. इस हुलिये में वो बेहद ख़ौफ़नाक लग रहा था. वो फिर सीने के बल लेट कर रेंगने लगा. वो तेज़-तेज़ साँसें ले रहा था जैसे कोई साँप फुफकारता हो. अपने हाथों को ज़मीन पर टिका कर, उन्हें ज़मीन पर रगड़-रगड़ कर, वो साँप की तरह ही बल खाता हुआ कुएँ तक पहुँचा. उसने पंजों पर ज़ोर देते हुए अपना सर थोड़ा सा उभारा और उन मुलाज़िमों को एक आख़री बार और घूरा. शादीवाले घर की रौशनी की वजह से उसकी आँखें चमक रही थीं. मुलाज़िम बुत बने वहीं खड़े हो कर उसे देखते रहे. सुंदर पंजों के सहारे, मुंडेर को पार करता हुआ, कुएँ की गहराई में उतर गया.
आयशा आरफ़ीन
जे.एन.यू. , नई दिल्ली से समाजशास्त्र में एम्.ए, एम्.फ़िल और पीएच.डी. हिंदी की कई पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित. हिंदी और अंग्रेजी पत्रिकाओं में लेख एवं अनुवाद प्रकाशित. |
कहानी पढ़ने में तो रुचिकर है। भाषा में रवानी है। अंत तक जिज्ञासा बनी रहती है कि क्या हुआ। लेकिन ऐसे कथ्य लोक में फैले अंधविश्वास को ही नये अंदाज में प्रस्तुत कर रहे हैं। इसलिए इसका कोई महत्व मेरी समझ में नहीं है।
एक सांस में कहानी पढ़ गया, आयशा परिवेश को बेहद महीना से पकड़ती हैं, लेकिन सुन्दर के अपराधबोध को लेकर मैं अब तक सोच रहा हूं! क्या कहानी नागों के विषय में कही गई धारणाओं को स्थापित करती है? कहानी में क्या सारा रोमांच इसीलिए है, मन में और भी बहुत से सवाल उठ रहे हैं!